भारत में राष्ट्रीय आय के आकलन के लिए प्रयुक्त विधियाँ |राष्ट्रीय आय के आकलन में कठिनाइयाँ | Problem in National Income Calculation

भारत में राष्ट्रीय आय के आकलन के लिए प्रयुक्त विधियाँ

भारत में राष्ट्रीय आय के आकलन के लिए प्रयुक्त विधियाँ |राष्ट्रीय आय के आकलन में कठिनाइयाँ | Problem in National Income Calculation


 

भारत में राष्ट्रीय आय के आकलन के लिए प्रयुक्त विधियाँ

राष्ट्रीय आय के आकलन की तीनों प्रमुख विधियों-उत्पादन आय तथा व्यय विधियों पर हम पहले ही पर्याप्त विस्तार से विचार कर चुके हैं। 


  • सैद्धांतिक दृष्टि से यदि पर्याप्त आँकड़े उपलब्ध हों तो तीनों विधियों से स्तवंत्र रूप पर ही पहुँचेंगे। पर व्यावहारिक दृष्टि से अर्थव्यवस्था के सभी अवयवों पर एक ही विधि का प्रयोग कर राष्ट्रीय आय में इसके योगदान को मापना संभव नहीं हो पाता। सौभाग्यवश इन विधियों को मिले-जुले प्रयोग द्वारा अलग-अलग क्षेत्रों के योगदान आकलन से भी काम चल जाता है। कहाँ किस विधि का प्रयोग होता है यह बात पर्याप्त एवं विश्वास योग्य आँकड़ों की उपलब्धि पर निर्भर है। 


  • भारत के घरेलू उत्पाद के अनुमान के लिए केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन उत्पादनआयव्यय तथा वस्तु प्रवाह विधियों के मिले-जुले प्रयोग का सहारा लेता है। आँकड़ों की उपलब्धि में सुधार के साथ-साथ उत्पादन विधि का प्रयोग कर रहे क्षेत्रकों में वृद्ध होती रही है।

 

आजकल इन क्षेत्रकों में उत्पादन विधि का अनुसरण होता है : 

(1) कृषि (2) वानिकी एवं लट्ठा बनाना (3) मत्स्यन,  (4) खनन् एवं उत्खनन् तथा (5) पंजीकृत विनिर्माण


आय विधि का अनुसरण इन क्षेत्रकों में होता है :

 

(1) अपंजीकृत विनिर्माण (2) विद्युतगैसजल आपूर्ति, 3) परिवहन भण्डारण एवं संचार. (4) व्यापार होटल एवं जलपानगृह (5) बैंकिंग व बीमा (6) स्थावन सम्पदाआवासों का स्वामित्व एवं व्यवसायिक सेवा (7) लोक प्रशासन एवं रक्षा और (8) अन्य सेवाएँ ।

 

  • निर्माण क्षेत्र में व्यय तथा वस्तु प्रवाह विधियों को मिलाकर उसका योगदान आँका जाता है। 


  • ग्रामीण क्षेत्र में व्यय तथा बाहरी तथा शहरी क्षेत्र के निर्माण कार्यों में वस्तु प्रवाह विधि प्रयोग होती है।

 

केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन प्रत्येक क्षेत्र के लिए उपयुक्त आँकड़े एकत्र कर बाजार भावों पर राष्ट्रीय आय से उनके योगदान का अनुमान लगाती है। मूल्यहास तथा जहाँ आवश्यक हो शुद्ध अप्रत्यक्ष करों की राशियाँ ही हम सभी क्षेत्रकों द्वारा साधन लागत पर शुद्ध घरेलू मूल्य वृद्धि मानते हैं। इसमें विदेशों से शुद्ध साधन आय जोड़कर साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद या राष्ट्रीय आय का अनुमान प्राप्त होता है।

 

 

भारत में राष्ट्रीय आय के आकलन में कठिनाइयाँ

 

भारत में राष्ट्रीय आय के मापने में आने वाली कठिनाइयों को दो श्रेणियों में बाँटा जाता है.

 

(क) अवधारणागत कठिनाइयाँ तथा सांख्यिकीय कठिनाइयाँ ।

 

राष्ट्रीय आय के आकलन में अवधारणा कठिनाइयाँ

 

विकसित तथा अविकसितसभी देशों में राष्ट्रीय आय लेखांकन में कुछ सैद्धांतिक समस्याओं का निराकरण जरूरी होता है। अर्थशास्त्री इस बात पर सहमत नहीं हो पाते कि आखिर राष्ट्रीय आय है क्या इन कठिनाइयों के उदाहरण इस प्रकार हैं :

 

  • राष्ट्रीय आय की सर्वसम्मत परिभाषा का अभाव 
  • अन्तिम एवं मध्यवर्ती वस्तुओं में भेद
  • हस्तांतरण भुगतान 
  • निःशुल्क सेवाएँ आदि 
  • टिकाऊ उपभोग वस्तुएँ आदि। 


राष्ट्रीय आय के आकलन में सांख्यिकीय कठिनाइयाँ 


अपर्याप्त एवं अविश्वसनीय आँकड़े

 

  • अक्सर उपलब्ध आँकड़े अधूरे तथा अपर्याप्त रहते हैं। भारत में विनिर्माण क्षेत्र से तो फिर जैसे-तैसे आँकड़े मिल जाते हैं पर कृषिकुटीर उद्योग तथा देशीय बैंकरों (महाजनों) आदि से उत्पादन की जानकारी के विषय में जो कुछ न कहा जाए वही बेहतर है। उत्पादन का असंगठित क्षेत्र को बहुत ही बिखरा हुआ भी है।

 

अमोदिक क्षेत्र की समस्या

 

  • कृषि तथा कुटीर उद्योग क्षेत्र में उत्पादन का काफी भाग वस्तु विनिमय का रूप लेता है। ऐसा उत्पादन जो बाज़ार तक पहुँचाती ही नहींउसकी कीमतों और परिभाषा की कोई  सही जानकारी एकत्र नहीं हो पाती।

 

अपने उपभोग के लिए उत्पादन

 

  • भारत में आधे से ज्यादा कृषक तो मात्र अपने परिवार के लिए अनाज उगा पाते हैं। यह उत्पादन भी बाज़ार का मुँह नहीं देखता यहाँ भी उत्पादन का मूल्य अटकल बाजी से ज्यादा कुछ नहीं होता।

 

अशिक्षा तथा अज्ञान

 

  • भारत की आधी से अधिक आबादी या आर्थिक इकाइयाँ अशिक्षा व अज्ञान में फँसी है। वे न अपनी आय की जानकारी रख पाते हैं और न ही खर्च का हिसाब उन्हें स्वयं इस बारे में कुछ नहीं पता होता तो वह आँकड़े किसे और कैसे दे पाएँगेविकसित देशों में प्रयुक्त लागत लेखांकन का तो उन्होंने नाम भी नहीं सुना होता।

 

स्पष्ट व्यावसायिक वर्गीकरण का अभाव

 

  • भारत में अधिकतर लोगों की आय मिली-जुली ही होती है। किसान फालतू समय में किसी न किसी दस्तकारों में या फिर छोटे उद्योग-धंधे में भी काम करते हैं। इसमें आय के मुख्य स्रोत का निर्णय कर पाना संभव नहीं होता और आय का अच्छा खासा हिस्सा राष्ट्रीय आय के लेखे में शामिल होने से छूट जाता है।

 

नई वस्तुओं की स्थिर कीमतों का मूल्यांकन

 

  • जब कोई वस्तु पहली बार उत्पादित होकर बाज़ार में आती है तो हम उसकी वर्तमान कीमत ही जान पाते हैं पर उनकी स्थिर कीमतों की बात ही अनुपयुक्त होती है। भारत में 1970-71 की कीमतों पर रंगीन टेलीविजन का मूल्यांकन इसीलिए संभव नहीं हो पाता क्योंकि उनका उस वर्ष तक उत्पादन ही नहीं शुरू हुआ था।

 

स्थिर पूँजी का हास

 

  • सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) में से स्थिर पूँजी की छीजन का अनुमान घटाकर हमें शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद के आँकड़े प्राप्त होते हैं। परन्तु वर्ष भर के स्थिर पूँजी अर्थात् मशीनोंभवनों आदि की छीजन का अनुमान लगा पाना सहज नहीं होता। इसी कारण इसमें कुछ न कुछ अस्पष्टता घर कर जाती है।

विषय सूची 


राष्ट्रीय आय की गणना (मापन)

राष्ट्रीय आय की गणना (मापन) की आय विधि

राष्ट्रीय आय की गणना (मापन) की व्यय विधि

भारत में राष्ट्रीय आय का आकलन (गणना)

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राष्ट्रीय आय की संरचना 






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