पूर्वाग्रह के कारण : मनोगतिकी उपागम | Psychodynamic approach to Prejudice in Hindi
पूर्वाग्रह के कारण : मनोगतिकी उपागम (Psychodynamic approach)
मनोगतिकी उपागम (Psychodynamic approach)
मनोगतिकी उपागम में उन मनोवैज्ञानिक कारकों के अध्ययन पर बल डाला जाता है जो व्यक्तित्व में कुण्ठा, असुरक्षा, चिन्ता आदि उत्पन्न कर व्यक्ति को पूर्वाग्रही करता है, ऐसे प्रमुख का अध्ययन समाज मनोवैज्ञानिकों ने किया है। इस प्रकार है
(i) सत्ताधारी व्यक्तित्व (Authorian personality)
- पूर्वाग्रह के विभिन्न मनोवैज्ञानिक कारणों में से सत्तावादी व्यक्तित्व पर मनोवैज्ञानिकों ने सबसे अधिक बल डाला है तथा अनेक अध्ययनों में सत्तावादी व्यक्तित्व तथा पूर्वाग्रह में सीधा संबंध भी दिखलाया गया है।
- एडानों एवं उनके सहयोगियों (Adrono etal 1950) ने कई अध्ययन किये हैं, जिसमें यह दिखलाया है कि जिन व्यक्तियों में सत्तावादी शीलगुण (a noritian ) जैसे दृढ़-चिन्तन (rigid thinking) दण्डात्मक प्रवृत्ति (punishmentive tendency) trait) आदि प्रधान होता है उनमें उन व्यक्तियों की अपेक्षा पूर्वाग्रह अधिक होता है जिसमें ऐसे शीलगुण कम होते हैं, इसकी व्याख्या करते हुए समाज मनोवैज्ञानिकों ने कहा है कि सत्तावादी व्यक्तित्व वाले व्यक्तियों को बचपन में अपने माता-पिता से अनुशासन का सख्त प्रशिक्षण मिला होता है। इस तरह के सख्त अनुशासन के कारण वे अपने माता पिता से अपने विचार व्यक्त नहीं कर पाते हैं। फलस्वरूप वे अपने इस बैर भाव की अभिव्यक्ति अन्य बाहरी समूहों या व्यक्तियों के प्रति नकारात्मक मनोवृत्ति दिखाकर करते हैं।
(ii) कुण्ठा एवं आक्रामकता- (Frustration and Aggression)
- कुण्ठा से भी व्यक्ति में पूर्वाग्रह की उत्पत्ति होती है। इसे पूर्वाग्रह का कुण्ठा सिद्धान्त या बलि का बकरा सिद्धान्त भी कहा जाता है। इस सिद्धान्त का आधार विस्थापित आक्रमण है।
- इस सिद्धान्त के अनुसार जब व्यक्ति अपने लक्ष्य (goal) पर बीच में उत्पन्न बाधा के कारण नहीं पहुँच पाता है तो इससे उसमें कुण्ठा उत्पन्न होती है। इस कुण्ठा से वह बाधक स्रोत के प्रति आक्रात्मक हो जाता है, परन्तु चूँकि बाधक स्रोत व्यक्ति से अधिक सबल और मजबूत होता है, फलस्वरूप वह अपनी आक्रामकता तथा बैर-भाव एक कमजोर स्रोत की ओर विस्थापित (displaced) कर लेता है। इसे विस्थापित आक्रमण कहा जाता है। इस विस्थापित आक्रामकता के कारण कमजोर स्रोत पूर्वाग्रह का निशाना बनता है।
(iii) असुरक्षा और चिन्ता (Insecurity and anxiety)-
- व्यक्ति में पूर्वाग्रह, असुरक्षा की भावना तथा चिन्ता से भी विकसित होता है। जिस व्यक्ति में अपनी नौकरी, सामाजिक स्तर आदि के बारे में असुरक्षा की भावना नहीं होती है, वह हमेशा अन्य व्यक्तियों या समूहों के प्रति एक स्पष्ट एवं वस्तुनिष्ठ विचार विकसित करता है। फलस्वरूप उसमें पूर्वाग्रह जल्दी नहीं विकसित होता है, परन्तु जिन व्यक्तियों में असुरक्षा की भावना अधिक होती है वह हमेशा ऐसे व्यक्ति की ताक में रहता है। जिस पर उनकी सुरक्षा का इल्जाम लगाया जा सके। फलस्वरूप ऐसे व्यक्तियों में पूर्वाग्रह तेजी से विकसित होती है। आलपोर्ट (Allport 1952), गज (Gough 1951) लिण्डजे (Lindzey 1950) ने अपने-अपने अध्ययनों में पाया कि जिन व्यक्तियों में असुरक्षा की भावना अधिक होती है, उनमें पूर्वाग्रह की मात्रा भी अधिक होती है।
- चिन्ता से भी पूर्वाग्रह की उत्पत्ति एवं सम्पोषण होता है। जब व्यक्ति में चिन्ता का स्तर अधिक होता है तो उनमें पूर्वाग्रह की मात्रा भी बढ़ जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि चिन्ता तथा पूर्वाग्रह में धनात्मक सहसम्बम्ध है। रोकील (Roteach 1960) ने अपने अध्ययन में पाया कि पूर्वाग्रही प्रयोज्य, अपूर्वाग्रही प्रयोज्यों (non-prejudiced subject) की अपेक्षा अधिक चिन्तित थे।
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