भारत में नागरिक समाज (सिविल सोसाइटी) की भूमिका | Role of civil Society in India
भारत में नागरिक समाज (सिविल सोसाइटी) की भूमिका
Role of civil Society in India
भारत में नागरिक समाज (सिविल सोसाइटी) की भूमिका
- भारत में नागरिक समाज का इतिहास बहुत प्राचीन है। प्राचीन युग में इनका वर्णन पुंग श्रेणी संघ आदि नामों से मिलता रहा है। आधुनिक युग में जहाँ तक प्रश्न है भारत में पुर्नजागरण में आंदोलन के दौरान अनेक धार्मिक एवं सामाजिक संगठन ब्रहम समाज, प्रार्थना समाज जैसे आदि कई संगठन अस्तित्व में रहे है। लेकिन 1970 के दशक के बाद इनकी संख्या में काफी तेजी आयी है। लेकिन आज भी पश्चिमी समाजों की तुलना में नागरिक समाज का विकास नहीं हुआ है।
नागरिक समाज (सिविल सोसाइटी) 'जार्ज किंग के विचार
नागरिक समाज के बारे में प्रचलित सकारात्मक विचारों का सारांश प्रस्तुत करते हुए ब्रिटेन के साहित्यकार 'जार्ज किंग' कहते हैं कि-
- इस बात पर पैदा हो रही आम सहमति की नागरिक समाज स्वतंत्रता का क्षेत्र है, सही रूप में जनतंत्र की शर्त के रूप में इसके आधारभूत मूल्य पर बल देता हैं | जहाँ नागरिक समाज नहीं है वहाँ एक राजनैतिक वैज्ञानिक ढाँचे के भीतर नागरिक अपनी पहचान, अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों को चुनने की क्षमता नहीं रख सकते है।
नागरिक समाज की देश के विकास एवं कल्याण में भूमिका
नागरिक समाज की देश के विकास एवं कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसकी उपस्थिति सत्ता को नियंत्रित करती है। इसकी भूमिका पहलू निम्नवत हैं के
1. ये गरीबों को सामाजिक आर्थिक विकास के लिए संगठित करते हैं ।
2. समनता पर आधारित सार्वजनिक कल्याण को प्रेरित करते हैं।
3. प्रशासन में जन सहभागिता को बढ़ावा देते हैं।
4. जनता को सरकारी योजनाओं का और सरकार को जन समाज की समस्याओं से अवगत कराते हैं।
5. प्रशासनिक मशीनरी पर जबावदेही प्रणाली लागू करके, प्रशासन में निरंकुशता एवं भ्रष्टाचार पर रोक लगाते हैं।
6. प्रशासन को हित ग्राही मूलक बनाते हैं ।
7. ये स्थानीय विकास के लिए स्थानीय संसाधन विकसित करने
8. ये स्थानीय शासन को सशक्त बनाने में योगदान देते
9. ये स्थानीय स्तर पर सार्वजनिक पहरेदार होते हैं ।
10. ये जनता को राजनैतिक चेतना हेतु जागरूक
11. ये जनता की मांगों को संगठित करते हैं।
नागरिक समाज (सिविल सोयसायटी) विषय सूची-
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