संग्रामशाह-गोंड वंश का प्रथम प्रतापी सम्राट | Sangram Shah Gond Vansh

संग्रामशाह-गोंड वंश का प्रथम प्रतापी सम्राट

संग्रामशाह-गोंड वंश का प्रथम प्रतापी सम्राट | Sangram Shah Gond Vansh



संग्रामशाह-गोंड वंश का प्रथम प्रतापी सम्राट

  • संग्रामशाह गढ़ा - मंडला के गोंड राजाओं में सबसे प्रतापी और पौरुषवान राजा हुआ । उसे विरासत में अपने पिता अर्जुनदास से प्रशिक्षण प्राप्त हुआ तथा लगभग गढ़ प्राप्त हुए थे। उसने अपने पौरुष से धीर-धीरे उनकी संख्या बढ़ाकर अपने राज्य का व्यापक विस्तार किया। 

  • संग्रामशाह का शासनकाल गोंड राज्य का स्वर्णयुग माना जाता है। संग्राम सिंह जिसे अकबरनामा में अमानदास कहा गया हैवह इस वंश का प्रथम ऐतिहासिक सम्राट था ।

  • संग्रामशाह लगभग 1480 ई. में सिंहासनारूढ़ हुआ था गोंडवाना की वास्तविक महानता और ख्याति प्रदान करने का श्रेय उसे ही हैक्योंकि उसके पूर्व गोंडो का आधिपत्य मण्डला और जबलपुर के आसपास तक ही सीमित था अमानदास को संग्राम शाह की उपाधि गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह द्वारा रायसेन विजय में उसकी महत्वपूर्ण सहायता के उपलक्ष्य में प्रदान की गयी थी।

  • संग्राम शाह के दो पुत्र थे दलपत शाह और चन्द्रशाह संग्राम शाह के मृत्यु के उपरान्त उनके ज्येष्ठ पुत्र दलपत शाह उत्तराधिकारी हुए। दलपत शाह को अपने प्रतापी पिता से एक सुव्यवस्थित विशाल राज्य विरासत में मिलाजिसे उन्होंने कुशलता से अक्षुण्ण बनाये रखा । सिंहासनारूढ़ होने के समय दलपत शाह की उम्र 28 वर्ष थी।

  • दुर्गावती का दलपत शाह के साथ विवाह बेशक एक राजनैतिक विकल्प थाक्योंकि यह शायद पहली बार थाजब एक राजपूत राजकुमारी की शादी गोंड वंश में हुई थी।गोंड लोगों की मदद से चंदेल वंश उस समय शेर शाह सूरी से अपने राज्य की रक्षा करने में सक्षम रहा। इनकी सूझबूझ कारण कालिंजर किला अपराजेय बना रहा।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.