सर्वोदय दर्शन क्या है? सर्वोदय दर्शन पर जयप्रकाश नारायण के विचार | Sarvodai Darshan and JP Narayan
सर्वोदय दर्शन क्या है? सर्वोदय दर्शन पर जयप्रकाश नारायण के विचार
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सर्वोदयी का दर्शन क्या है ?
- जयप्रकाश नारायण की पहचान एक ऐसे राजनेता व राजनीतिक चिन्तक के रूप में की जाती है जिन्होंने सर्वोदय के विचारों का प्रबल समर्थक माना जाता है। इस संबंध में उनका मानना था कि समाज के प्रत्येक समूह के उत्थान के बिना विकास की बात नहीं की जा सकती।
- उन्होंने समाजवाद को सर्वोदय के रूप में बदलने की बात कही और यह कहा कि समाजवाद के प्रमुख लक्ष्य स्वतन्त्रता, समानता व बन्धुत्व को हासिल करने के लिए सर्वोदय के साथ जोड़ना नितान्त जरूरी है। इनके बिना समाजवाद व लोकतंत्र का कोई औचित्य नहीं रह जाता।
- जयप्रकाश नारायण गांधीजी जी के सर्वोदय सिद्धान्त से काफी प्रभावित थे। उन्होंने उनके प्रिय शिष्य आचार्य विनोबा भावे द्वारा सर्वोदय के विस्तृत कार्यक्रम में अपना हाथ बढ़ाया।
- सर्वोदय को आगे बढ़ाने के लिए विनोबा भावे के भूदान ग्राम दल का साथ दिया।
- सन् 1953 में बोधगया सर्वोदय सम्मेलन में जयप्रकाश नारायण ने सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने तथा जीवनदानी के रूप में विनोबाजी के भूदान आन्दोलन से मिलने का फैसला लिया। यहीं से उनकी सर्वोदयी की यात्रा शुरू हुई तथा अगले 22 वर्षों तक इसमें सक्रिय रहे। सर्वोदय के दर्शन को उदय करने में जयप्रकाश नारायण की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
जयप्रकाश नारायण की सर्वोदय की अवधारणाएँ हैं
1 सर्वोदय का दर्शन सभी के उत्थान में विश्वास रखता है
- सर्वोदयी मतधारा मार्क्सवादी के वर्ग संघर्ष से राजी नहीं है। गांधीजी ने सर्वोदय का मत दिया था। उनका मानना था कि गरीब तथा निर्बलों को भौतिक उत्थान की आवश्यकता है तो पूंजीपतियों हेतु आध्यात्मिक उत्थान जरूरी है। जयप्रकाश नारायण यह मानते है कि समाज में वर्ग संघर्ष से लाया गया बदलाव अस्थाई होता है। जिसका परिणाम सुखद नहीं हो सकता। जब तक सभी का उत्थान नहीं होगा तब तक राज्य व समाज को सशक्त नहीं बनाया जा सकता।
2 शोषण विहिन समाज की स्थापना
- जयप्रकाश नारायण शोषण विहिन समाज की आवश्यकता पर बल देते है यदि ऐसा राज्य की मशीनरी के सहयोग से किया जाता है तो अन्त में राज्य हावी हो जाएगा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन होगा। इसीलिए समाज की स्थापना राज्य के सहयोग से नहीं की जानी चाहिए। समाजवाद की स्थापना आपसी सहयोग से की जा सकती है और उस समाजवाद को जनता का समाजवाद कहा।
3 ग्रामदान, भूदान, सम्पति दान तथा ग्राम स्वराज्य सर्वोदय की स्थापना की दिशा में कदम है
- जयप्रकाश नारायण ने एक बार कहा था कि ऊपर से देखने में भूदान आन्दोलन भले ही खेती सुधार आंदोलन दिखाई देता हो, परन्तु गहराई से देखने पर इसका वास्तविक स्वरूप सामने आता है। यह वास्तव में सर्वनोन्मुखी सामाजिक तथा मानवीय क्रांति का प्रारम्भ है। जयप्रकाश जी ने आगे कहा कि सर्वोदय के माध्यम से समाज के साथ-साथ समाज में भी बदलाव लाया जाता है। यह गांधी जी की क्रांति की अहिंसक तकनीक का व्यापक स्तर पर प्रयोग है।
- सर्वोदय समाज की स्थापना की दिशा में ग्राम स्वराज्य अन्तिम प्रयत्न है। ग्राम स्वराज्य पंचायत नहीं है बल्कि यह स्व-विकसित, आत्मनिर्भर तथा पूर्ण सत्ता सम्पन्न ग्रामीण इकाई है। इस प्रकार जब तक समाजवाद को सर्वोदय के रूप में परिवर्तित नहीं किया जाता है, तब तक समानता, स्वतंत्रता, बन्धुत्व व शोषण से मुक्ति के उद्देश्यों को हासिल नहीं किया जा सकेगा।
4 सर्वोदय समाज का सामाजिक तथा आर्थिक ढाँचा कठिन नहीं
- सर्वोदय के अन्तर्गत पुनर्गठित ग्रामीणों को सामाजिक, आर्थिक ढाँचा सरल होगा, ऐसा जयप्रकाश नारायण का मानना था आर्थिक शक्ति का विकेन्द्रीकरण इसका आधार है। हर ग्रामीण स्वशासित, आत्म निर्भर तथा पूर्ण सत्ता सम्पन्न होगा। इस तरह इन गांवों में उत्पन्न कृषि उत्पादकों पर आधारित कुटीर उद्योगों की स्थापना की जाएगी।
5 राजशक्ति की जगह लोकशक्ति लेगी
- जयप्रकाश नारायण ने सर्वोदय के तहत प्रस्तावित नए समाज के अन्तर्गत राजशक्ति की जगह लोकशक्ति की स्थापना का समर्थन किया लोकशक्ति के माध्यम से लोकतंत्र व समाजवाद को सशक्त बनाया जा सकता है।
निष्कर्ष - इस प्रकार कहा जा सकता है कि जयप्रकाश नारायण के सर्वोदय संबंधी विचार उनके उदारवादी विचार का सार है। मार्क्सवाद से शुरूआत होकर उनकी राजनीतिक यात्रा सर्वोदय तक पहुंचती है। सर्वोदय की धारणा का गांधी जी ने पैदा किया। विनोबा जी ने उसकी रूपरेखा प्रस्तुत की तथा जयप्रकाश नारायण ने उसका एक सम्पूर्ण दर्शन तथा जीवन पद्धति के रूप में व्याख्या प्रस्तुत की।
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