लोक प्रशासन का महत्त्व | Significance of Public Administration
लोक प्रशासन का महत्त्व
(Significance of Public Administration)
लोक प्रशासन का महत्त्व Importance of Public Administration
- लोक प्रशासन सभ्य समाज की सर्वोच्च प्राथमिक आवश्यकता है। लोक प्रशासन केवल सभ्य जीवन का संरक्षक ही नहीं बल्कि यह सामाजिक विकास, सामाजिक न्याय और सुधार संशोधनों का प्रमुख साधन भी है।
- यह व्यक्ति के जन्म के पूर्व से लेकर मृत्यु के बाद तक के जीवन (from cradle to grave) के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी सेवाएं अर्पित करता है। यह "आधुनिक सभ्यता का हृदय" (Heart of Modern Civilization) है।
- लोक प्रशासन पुलिस राज्य (Laissez Faire State) से निकलकर न सिर्फ कल्याणकारी राज्य (Welfare State) और प्रशासकीय राज्य (Administrative State) के पड़ाव तक पहुंच चुका है अपितु नागरिकों के जीवन को समस्या रहित बनाने के लिए प्रयत्नशील है।
- लोक प्रशासन न केवल लोकतान्त्रिक राज्यों में अपितु पूंजीवादी, साम्यवादी, विकसित, विकासशील, अविकसित, यहाँ तक कि तानाशाही व्यवस्थाओं में भी अति महत्त्वपूर्ण बन गया है क्योंकि इन सभी राज्यों की सरकारें अपनी नीतियों और योजनाओं का कार्यान्वयन स्थायी सरकार (लोक प्रशासन के द्वारा ही करती हैं।
लोक प्रशासन के महत्त्व को दर्शाते हुए प्रो० डनहम ने लिखा है कि
- "यदि हमारी सभ्यता विफल हुई तो उसके लिए प्रशासन की असफलता प्रमुख रूप से उत्तरदायी होगी।
इसी प्रकार चार्ल्स ए० बेयर्ड ने भी लोक प्रशासन के महत्त्व के बारे में लिखा है:
- "प्रशासन के विषय से अधिक महत्त्वपूर्ण अन्य कोई विषय नहीं होता। सभ्य शासन तथा मेरे विचार से स्वयं सभ्यता का भविष्य भी, हमारी इस क्षमता पर निर्भर करता है कि हम एक सभ्य समाज के कार्यों की पूर्ति के लिए एक कुशल प्रशासकीय दर्शन, विज्ञान और व्यवहार का विकास कर सकें ।
लोक प्रशासन के महत्त्व का वर्णन
लोक प्रशासन के महत्त्व को निम्नांकित बिन्दुओं के माध्यम से अधिक स्पष्ट किया जा सकता है:
1. राज्य का व्यावहारिक तथा विशिष्ट भागः
- राजनीति विज्ञानियों के अनुसार राज्य के चार मूलभूत तत्त्वों (निश्चित भू-भाग, जनसंख्या, सम्प्रभुता तथा शासन) में शासन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। शासन अर्थात् सरकार के कार्यों तथा दायित्वों को मूर्तरूप प्रदान करने में लोक प्रशासन एक अनिवार्य तथा विशिष्ट आवश्यकता है। सुप्रसिद्ध विचारक अरस्तु के अनुसार राज्य, जीवन के लिए अस्तित्व में आया तथा अच्छे जीवन के लिए उसका अस्तित्व बना हुआ है। दरअसल आधुनिक युग में 'राज्य' को एक बुराई के रूप में नहीं बल्कि मानव कल्याण तथा विकास के लिए एक अनिवार्यता रूप में देखा जाता है। वर्तमान विश्व के प्रत्येक राष्ट्र में, चाहे वहाँ कैसा भी शासन हो, राज्य का कर्त्तव्य जनकल्याण ही है। अनादिकाल से ही राज्य की इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रशासन ही एकमात्र माध्यम रहा है। यद्यपि राजशाही व्यवस्थाओं में प्रशासन का स्वरूप आज की भाँति उत्तरदायी तथा विकासपरक नहीं था तथापि प्रशासन, राज्य की व्यावहारिक अभिव्यक्ति अवश्य था। राज्य के लिए कार्य करते-करते अथवा जन सेवाएँ सुलभ कराते कराते कतिपय ऐसे प्रशासनिक सिद्धान्त, नियम तथा प्रक्रियाएँ विकसित हो गई, जो आज राज्य के प्राणतत्त्व सिद्ध हो रही हैं। राज्य के कार्यों की पूर्ति के लिए कारगर हथियार होने के कारण ही प्रशासन तथा राज्य समानार्थी हो गए हैं। व हद् स्तरीय तथा जटिल कार्य केवल सरकार ही कर सकती है। ऐसा माना जाता है कि भारत में जनगणना कार्य, विश्व की सबसे बड़ी प्रशासनिक प्रक्रिया है।
2. जन कल्याण का माध्यमः
- आधुनिक विश्व में राज्य का स्वरूप न्यूनाधिक मात्रा में लोकतांत्रिक तथा जन कल्याणकारी है। आज अहस्तक्षेपवादी राज्य (Laissez Faire State) की अवधारणा दम तोड़ चुकी है।
- वर्तमान समाजों की अधिसंख्य मानवीय आवश्यकताएँ राज्य के अभिकर्त्ता अर्थात् लोक प्रशासन द्वारा पूरी की जाती हैं।
- व्हाईट के अनुसार कभी ऐसा भी समय था जब जनता सरकारी (राजा के) अधिकारियों से दमन के अतिरिक्त और कोई अपेक्षा नहीं करती थी। कालान्तर में आम जनता ने यह सोचा कि उसे स्वतंत्र तथा भाग्य के भरोसे छोड़ दिया जाए, किन्तु आज का समाज, प्रशासन से सुरक्षा तथा विभिन्न प्रकार की सेवाओं की आशा करता है
- भारत का संविधान भी नीति-निदेशक तत्त्वों के माध्यम से समाज के दीन-हीन तथा निर्योग्यताग्रस्त व्यक्तियों के लिए राज्य द्वारा विशेष प्रयासों तथा कल्याण कार्यक्रमों के निर्देश लोक प्रशासन को देता है। चिकित्सा, स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, जन संचार, परिवहन, ऊर्जा, सामाजिक सुरक्षा, कृषि, उद्योग, कुटीर उद्योग, पशुपालन, सिंचाई, डाक तथा आवास इत्यादि समस्त मूलभूत मानवीय सामाजिक सेवाओं का संचालन प्रशासन के माध्यम से ही सम्भव है। इसी कारण आज का राज्य प्रशासकीय राज्य भी कहलाता है।
3. रक्षा, अखण्डता तथा शांति व्यवस्थाः
- राजशाही शासन व्यवस्थाओं में राजा का मुख्य ध्येय अपने राज्य की सीमाओं में निरन्तर विस्तार करने का रहता था जो वर्तमान सन्दर्भों में दम तोड़ चुका है। आज का राज्य विस्तारवादी होने के स्थान पर जन कल्याणकारी है। लेकिन इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि राज्य अपनी सीमाओं की रक्षा नहीं करता है। परमाणु हथियारों के विकास प्रायोजित आतंकवाद के विस्तार तथा परिवर्तित होते राजनयिक एवं कूटनीतिक सम्बन्धों ने विदेश नीति तथा रक्षा नीति के समक्ष नित्य कई चुनौतियाँ प्रस्तुत की हैं।
- यद्यपि युद्ध के समय सीमाओं तथा राष्ट्र की रक्षा करना 'सैनिक प्रशासन का दायित्व है किन्तु शांति काल में सीमाओं की चौकसी तथा राष्ट्र की आंतरिक अखण्डता, शांति व्यवस्था, साम्प्रदायिक सौहार्द्र तथा समरसता बनाए रखने का दायित्व लोक प्रशासन का है।
- हरमन फाइनर के शब्दों में "कुशल प्रशासन, सरकार का एकमात्र सशक्त सहारा है। इसकी अनुपस्थिति में राज्य क्षत-विक्षत हो जाएगा।" न्याय, पुलिस, सशस्त्र बल, हथियार निर्माण, अन्तरिक्ष, परमाणु ऊर्जा, बहुमूल्य खनिज, वैदेशिक सम्बन्ध तथा गुप्तचर इत्यादि गतिविधियाँ ऐसी हैं जो किसी भी राष्ट्र की बाहरी एवं भीतरी सुरक्षा को स्पष्ट तथा प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं। ऐसी गतिविधियाँ या विषय जानबूझकर लोक प्रशासन के अधीन रखे जाते हैं।
- इस सम्बन्ध में जेम्स एल० पैरी ने कहा है-“सरकार को ऐसे कार्य सौंपे गए हैं, जिन्हें या तो बाजार पूरे करने में असमर्थ हैं या जो निजी क्षेत्र के लिए उपयुक्त नहीं समझे गए हैं।"
4.लोकतंत्र का वाहक एवं रक्षकः
- प्रजातंत्र की अवधारणा सैद्धान्तिक रूप से चाहे कितनी ही सशक्त तथा प्रभावी दिखाई देती हो लेकिन प्रजातंत्र की स्थापना तथा विस्तार केवल तब ही सम्भव है जबकि लोक प्रशासन इस दिशा में सार्थक पहल करे।
- आम व्यक्ति तक शासकीय कार्यों की सूचना पहुँचाना, नागरिक तथा मानव अधिकारों की क्रियान्विति करना, निष्पक्ष चुनाव करवाना, जन शिकायतों का निस्तारण करना, राजनीतिक चेतना में व द्धि करना तथा विकास कार्यों में जन सहभागिता सुनिश्चित कराने के क्रम में लोक प्रशासन की भूमिका सर्वविदित है।
- फाइनर के अनुसार-"किसी भी देश का संविधान चाहे कितना ही अच्छा हो और वहाँ के मंत्रिगण भी सुयोग्य हों किन्तु बिना कुशल प्रशासकों के उस देश का शासन सफल सिद्ध नहीं हो सकता है।" लोकतांत्रिक मूल्यों में केवल निष्पक्ष चुनाव तथा जनता की सहभागिता ही सम्मिलित नहीं है बल्कि समानता, न्याय तथा वितरण के मूलभूत सिद्धान्तों सहित प्रशासनिक शक्तियों का विकेन्द्रीकरण भी प्रमुख है।
- भारत में 1989 से 1999 तक हुए पाँच आम चुनावों के समय पश्चिमी देशों द्वारा प्रायः यह आशंका व्यक्त की गई थी कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अर्थात् भारत शीघ्र ही विखण्डित हो जाएगा, किन्तु लोकतंत्र में जनास्था तथा प्रशासनिक सुद ढ़ता के कारण यह धारणा निर्मूल सिद्ध हो चुकी है।
- वस्तुतः लोक प्रशासन केवल लोकतंत्र का संवाहक ही नहीं बल्कि उसका सजग प्रहरी भी है। ड्वाईट वाल्डो लोक प्रशासन को सांस्कृतिक सम्मिश्रण का भाग मानते हुए लोकतंत्र तथा समाज में इसकी महत्ती भूमिका स्वीकारते हैं।
सामाजिक परिवर्तन का माध्यमः
- आधुनिक समाजों विशेषतः विकासशील समाजों की परम्परागत जीवन शैली, अंधविश्वास, रूढ़ियों तथा कुरीतियों में सुनियोजित परिवर्तन लाना एक सामाजिक आवश्यकता है। सुनियोजित सामाजिक परिवर्तन के लिए शिक्षा, राजनीतिक चेतना, आर्थिक विकास, संविधान, कानून, मीडिया, दबाव समूह तथा स्वयंसेवी संगठनों सहित प्रशासन भी एक यंत्र माना जाता है। लोक प्रशासन न केवल सामाजिक परिवर्तन का हथियार है बल्कि सामाजिक नियंत्र का भी माध्यम है। मैक आइवर एवं पेज के अनुसार सामाजिक नियंत्रण का अभिप्राय उस ढंग से है जिसके द्वारा सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था की एकता तथा स्थायित्व बना रह सके और जिसमें 'व्यवस्था परिवर्तनशील संतुलन के रूप में समग्र रहती हुई क्रियाशील रहती है।
- भारत में गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, बालश्रम, शोषण, महिला अत्याचार, अपराध, बाल अपराध सहित दहेज, विधवा विवाह, छूआछूत, सती प्रथा, पर्दा प्रथा, म त्युभोज, बाल विवाह, नशाखोरी, बलात्कार तथा निरक्षरता जैसी सामाजिक समस्याएँ विद्यमान हैं। इन सामाजिक समस्याओं तथा कुरीतियों का समाधान केवल सरकार द्वारा निर्मित सामाजिक नीतियों, सामाजिक नियोजन तथा सामाजिक विधानों के द्वारा ही हो सकता है। प्रथम पंचवर्षीय योजना से लेकर अद्यतन भारत सरकार एवं राज्य सरकारों के अधीन कार्यरत प्रशासनिक संस्थानों का मुख्य लक्ष्य सामाजिक-आर्थिक विकास सहित आम व्यक्ति का जीवन स्तर ऊँचा उठाना ही रहा है।
- निस्संदेह, सामाजिक परिवर्तन एक विशिष्ट आयाम है। इस सम्बन्ध में प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का मानना था "लोक प्रशासन सभ्य जीवन का रक्षक मात्र ही नहीं बल्कि सामाजिक न्याय तथा सामाजिक परिवर्तन का महान् साधन है।" ऐसा इसलिए सम्भव है कि लोक प्रशासन "जनमत निर्माण का सशक्त माध्यम है।
सभ्यता, संस्कृति तथा कला का संरक्षकः
- लोक प्रशासन की प्रकृति, विषय-वस्तु तथा क्षेत्र को आधार बनाकर इसके महान् विद्वान् एल० डी० व्हाईट कहते हैं- "लोक प्रशासन आधुनिक शासन व्यवस्था का केन्द्र बिन्दु है।" दरअसल लोक प्रशासन, शासन व्यवस्थाओं का ही केन्द्र बिन्दु नहीं बल्कि हम सभी की आशाओं तथा अपेक्षाओं का भी हृदयस्थल है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा संचार क्रान्ति के वर्तमान युग में सभ्यता का जो नया स्वरूप सामने आ रहा है उसका मुख्य प्रणेता लोक प्रशासन ही है। यही कारण है कि प्रत्येक राष्ट्र की सांस्कृतिक विविधता तथा विरासत का संरक्षण, एक अनिवार्य प्रशासनिक कृत्य बन चुका है। चित्रकला, साहित्य, वास्तुकला, संगीत से लेकर लोक जीवन से जुड़े सभी सांस्कृतिक पक्षों का संरक्षण तथा संवर्द्धन राज्य का दायित्व है।
- यद्यपि आदिकाल से ही कला एवं संस्कृति को राजाओं का संरक्षण मिलता रहा है तथापि वर्तमान भौतिक युग में जहाँ सांस्कृतिक परिवर्तन की दर अत्यधिक है, राज्य के दायित्व पूर्व की तुलना में कहीं अधिक एवं गम्भीर हो गए हैं। सांस्कृतिक अतिक्रमण, आक्रमण तथा पतन की ओर अग्रसर गौरवशाली मूल्यों के संरक्षण में निस्संदेह लोक प्रशासन ही सशक्त भूमिका निर्वाहित कर सकता है। सर जोसिया स्टाम्प कहते हैं, "प्रशासनिक कर्मचारी समाज को प्रेरणा देने के सबसे बड़े स्रोत हैं।"
विकास प्रशासन का पर्याय:
- आज का लोक प्रशासन विकास प्रशासन का पर्याय माना जाता है क्योंकि वर्तमान में प्रशासन का कार्य, मात्र राजस्व एकत्रण तथा शांति व्यवस्था बनाए रखना (नियामकीय कृत्य) ही वहीं बल्कि विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करना है। यही कारण है कि लोक प्रशासन की प्रकृति परम्परागत रूप से कठोर होने के बजाय अब लक्ष्योन्मुखी, परिणामोन्मुखी, ग्राहकोन्मुखी तथा परिवर्तनोन्मुखी हो चुकी है। बीसवीं सदी के मध्य में उपनिवेशवाद से मुक्त हुए एशियाई, लेटिन अमेरिकी तथा अफ्रीकी देशों में तात्कालिक आवश्यकता "विकास के लक्ष्य" प्राप्त करना थी।
- विकास प्रशासन अवधारणा के जनक एडवर्ड वाइडनर के अनुसार विकास प्रशासन की वर्तमान मान्यताएँ प्रशासन को प्रगतिशील राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक लक्ष्यों की ओर मार्गदर्शन प्रदान करती हैं ताकि जनता के कल्याण, विकास तथा सुरक्षा के लक्ष्य प्राप्त किए जा सकें। विकास के क्षेत्र उतने ही विस्त त तथा बहुआयामी हैं जितने कि राज्य के कर्त्तव्य तथा शासन के विषय हैं।
- समाजवादी शासन व्यवस्थाओं में सम्पूर्ण विकास प्रशासन के प्रयासों पर निर्भर करता है, वहीं पूँजीवादी देशों में भी विकास की मूलभूत नीतियाँ, लोक प्रशासन ही तैयार करता है। विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए लोक प्रशासन के कार्मिकों तथा विशेषज्ञों द्वारा अनेक प्रकार की लोक नीतियाँ निर्मित तथा क्रियान्वित की जाती हैं। आधुनिक आर्थिक व्यवस्था में पूँजीवाद को कई बार 'प्रबंधवाद' भी कह दिया जाता है क्योंकि सम्पूर्ण समाज आधुनिक प्रबंधकीय क्रांति के दौर से गुजर रहा है।
विधि एवं न्यायः
- वस्तुतः लोक प्रशासन का प्रमुख कार्य कानून एवं नीति निर्माण में विधायिका को परामर्श प्रदान करना तथा विधायिका द्वारा स्वीकृत कानूनों एवं नीतियों को व्यावहारिक रूप में लागू करना है। लोक प्रशासन के जनक वुडरो विल्सन ने कानून के विस्त त एवं व्यवस्थित प्रयोग का दूसरा नाम लोक प्रशासन बताया था । आधुनिक राज्यों में मुख्यतः विधि का शासन (Rule of Law) प्रवर्तित है, अर्थात् कानून सर्वोपरि है। कानून या विधि से बढ़कर कोई नहीं है।
- लोक प्रशासन का यह कर्त्तव्य है कि वह संविधान, कानूनों, नियमों, नीतियों तथा निर्धारित मापदण्डों के अनुसार भेदभावरहित ढंग से समस्त राजकीय क्रियाएँ संचालित करवाये। यदि निर्धारित कानून तथा विधि का उल्लंघन होता हो तो पीड़ित पक्ष को न्याय दिलवाने तथा दोषी व्यक्ति को दण्डित कराने का दायित्व भी लोक प्रशासन का है। यद्यपि न्यायपालिका को कानूनों की व्याख्या का अधिकार दिया गया है किन्तु न्यायपालिका को आवश्यक सहायता पुलिस ही उपलब्ध करवा सकती है तथा न्यायपालिका के निर्णयों की क्रियान्विति प्रशासनिक तंत्र ही करता है।
- विधि के शासन के मुख्य प्रवर्तक लॉर्ड ए० वी० डायसी की दृष्टि में मानव व्यवहार को नियंत्रित करने तथा सामाजिक एकता सुनिश्चित करने के लिए सुव्यवस्थित तथा न्याय संगत प्रशासनिक तंत्र का होना नितांत आवश्यक है।
- लॉर्ड ब्राइस के शब्दों में-"कानून का सम्मान तभी होता है जबकि यह निर्दोष व्यक्तियों की रक्षा के लिए ढाल बन जाता है और प्रत्येक नागरिक के निजी अधिकारों का निष्पक्ष संरक्षण करता है। यदि अंधेरे में न्याय का दीपक बुझ जाए तो उस गहन अंधकार का अनुमान लगाना कठिन है ।
9. औद्योगिक एवं आर्थिक विकासः
- मानव जीवन में आवश्यक भौतिक वस्तुओं तथा प्रमुख तकनीकी संसाधनों की सुलभता सुनिश्चित करने के लिए आधुनिक राज्यों द्वारा अनेक प्रकार की औद्योगिक नीतियाँ तथा आर्थिक कार्यक्रम निर्मित किए जाते हैं। आर्थिक तथा उत्पादन के साधनों का समुचित वितरण एवं विनिमय करने के लिए यह आवश्यक है कि सरकार आर्थिक नियोजन का मार्ग अपनाए। इसी कारण लगभग सभी राष्ट्रों में प्रमुख आर्थिक उपक्रमों का राष्ट्रीयकरण किया जाता है।
- प्रत्येक देश, उपलब्ध प्राकृतिक, भौगोलिक, तकनीकी वित्तीय तथा मानवीय संसाधनों के अनुरूप उद्योगों तथा कुटीर उद्योगों का विकास करता है ताकि आर्थिक न्याय की स्थापना सहित राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को सुद ढ़ किया जा सके। मार्शल ई० डिमॉक के अनुसार "लोक प्रशासन प्रत्येक नागरिक के लिए महत्त्व का विषय है क्योंकि वह प्रशासन से कुछ निश्चित सेवाएँ प्राप्त करता है तथा सरकार को कर (Tax) देता है। सरकार द्वारा एकत्र किया जाने वाला राजस्व ही अंततः विकास कार्यों तथा सामाजिक सेवाओं का आधार बनता है। किसी भी राष्ट्र के सम्मुख प्रमुख चुनौती वित्तीय संसाधनों में वद्धि तथा जनकल्याण की ही होती है।
- राष्ट्र के समस्त प्रकार के संसाधनों के सदुपयोग को सुनिश्चित करने, व्यापार संतुलन को बनाए रखने, राष्ट्रीय आय में व द्धि करने, जीवन स्तर को उच्च बनाने, विश्व के साथ प्रतिस्पर्धा करने, वाणिज्यिक एवं व्यापारिक गतिविधियाँ नियंत्रित करने तथा विधि ग्राह्य मुद्रा संचालन के क्रम में लोक प्रशासन की उपादेयता स्वयंसिद्ध है।
10. आजीविका का माध्यमः
- "राज्य सर्वश्रेष्ठ नियोक्ता है।" इस कथन को चरितार्थ करते हुए अधिसंख्य देशों में कार्यशील जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा राजकीय सेवाओं में नियोजित है। भारत में 2 करोड़ से भी अधिक व्यक्ति केन्द्र तथा राज्य सरकारों के अधीन प्रशासनिक संगठनों में रोजगार प्राप्त हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में कार्यशील जनसंख्या का 18 प्रतिशत, फ्रांस में 33 प्रतिशत तथा स्वीडन में 38 प्रतिशत हिस्सा राजकीय सेवाओं में कार्यरत है। इससे सिद्ध होता है कि लोक प्रशासन केवल जनकल्याण तथा विकास के कार्यक्रम ही संचालित नहीं करता है बल्कि विशाल जनसंख्या को रोजगार उपलब्ध कराने का भी श्रेष्ठ स्थल है।
- लोक प्रशासन में कार्य करने वाले लोक सेवकों की प्रत्येक युग में सदैव ही एक विशिष्ट छवि रही है। आर्डवे टीड के शब्दों में-"लोक प्रशासन एक नैतिक कार्य है और प्रशासक इसके नैतिक अभिकर्ता है। "
सारांशतः
- लोक प्रशासन सम्पूर्ण सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, शैक्षिक, व्यक्तिगत तथा सामुदायिक पक्षों को प्रभावित करने वाला विषय बन चुका है। इस सम्बन्ध में पंडित नेहरू ने भारतीय लोक प्रशासन संस्थान की उद्घाटन बैठक ( 29 मार्च, 1954) में प्रशासकों को सम्बोधित करते हुए कहा था-"प्रशासन अन्य बहुत से पक्षों की भांति अन्तिम विश्लेषण की दृष्टि में एक मानवीय समस्या है। इसमें मनुष्यों से व्यवहार करना पड़ता है न कि आँकड़ों की सूची से प्रशासक अपने सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों के बारे में अव्यावहारिक दृष्टि से सोच सकता है और उनके सम्बन्ध में ऐसे निर्णय कर सकता है जो दिखने में न्यायपूर्ण लगें, किन्तु उनमें मानवीय तत्त्व भुला दिया गया हो। आप चाहें किसी भी विभाग में कार्य करते हों, सदैव ही मानवीय समस्याओं से सम्बद्ध रहते हैं। यदि इस तथ्य को भूलते हैं तो वास्तविकता से दूर भागते हैं। प्रशासन का उद्देश्य कुछ प्राप्त करना है न कि प्रक्रिया के कुछ विशेष नियमों का अनुगमन करते हुए नरगिस के पौधे के समान पूर्ण सन्तोष करके शीश महल में बैठे आनन्द का जीवन व्यतीत करना । मानव समाज और उसका कल्याण ही तो प्रशासन की कसौटी है। "
- लोक प्रशासन की उपयोगिता के क्रम में यह भी माना जाता है कि यह विषय क्रियाशील नागरिकता को महत्त्व देता है अर्थात् लोकतंत्र में नागरिकों को सरकार के बारे में पूर्ण जानकारी (सरकार क्या है, कैसे कार्य करती है) होनी चाहिए। यह जानकारी लोक प्रशासन उपलब्ध करवाता है। चूंकि सामाजिक जीवन में सरकार की भूमिका बढ़ रही है अतः लोक प्रशासन का महत्त्व भी एक बौद्धिक विषय के रूप में निरन्तर बढ़ रहा है।
निष्कर्ष
- उपरोक्त विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि लोक प्रशासन नागरिकों के जीवन को बहुत गहरे से प्रभावित करता है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि लोक प्रशासन के बिना आधुनिक सभ्य समाज की कल्पना करना कठिन है।
- इसी कारण एल० डी० व्हाइट ने लिखा है कि "आज लोक प्रशासन इतना महत्त्वपूर्ण गया है कि इसे आधुनिक शासन व्यवस्था का केन्द्र बिन्दु कहा जाता है।" इसी प्रकार हरमन फाइनर ने लिखा है कि, "किसी भी देश का संविधान चाहे कितना भी अच्छा हो, उसके मन्त्रीगण भी योग्य हों, परन्तु बिना दक्ष प्रशासकों के उस देश का शासन सफल नहीं हो सकता।" उन्होंने आगे कहा है कि "कुशल प्रशासन सरकार का एकमात्र अवलम्ब है जिसकी अनुपस्थिति में राज्य क्षत-विक्षत हो जाएगा।"
- अतः निष्कर्ष स्वरूप हम कह सक हैं कि वर्तमान समय में लोक प्रशासन व्यावहारिक रूप से हमारे समस्त जीवन और कार्यों पर आच्छादित हो चुका है तथा हमारी सभ्यता का मूलाधार बन गया है।
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