सिंगौरगढ़ का किला दमोह| सिंगौरगढ़ किला: दुर्गावती | Singorgardh Kila Damoh GK in Hindi
सिंगौरगढ़ का किला दमोह
सिंगौरगढ़ किला: दुर्गावती
सिंगौरगढ़ का किला दमोह
- सिंगौरगढ़ का किला दमोह जिले में स्थित है तथा यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित है | दुर्गावती के समय के किलों में सिंगौरगढ़ का काफी महत्वपूर्ण स्थान था ।
- भौगोलिक दृष्टिकोण से यह काफी सुरक्षित किला था । इस किले को दो प्रकार के परकोटों से सुसज्जित किया गया था, जिसका एक भाग पहाड़ के लगभग सभी चोटियों से गुजरते हुए कई किलोमीटर में फैला हुआ है, जो बाह्य किलेबंदी के रूप में कार्य करती है .
- इस किले के अंदरूनी भाग में भी एक परकोटा है, जो अन्तः किलेबंदी के प्रयोजन हेतु निर्माण किया गया था | इन परकोटों को मजबूती प्रदान करने हेतु विभिन्न जगहों पर बुर्ज भी बनाये गए थे । इसे अलंकृत करने हेतु कँगूरे की अनवरत श्रृंखला भी बनायी गयी थी । अनगढ़ पाषाण खण्डों को सुसज्जित कर सम्पूर्ण किले का निर्माण किया गया है, जिसकी चिनाई हेतु सुर्खी और चूने का प्रयोग किया गया था । किले के सबसे ऊपरी सतह पर कई प्रकार की स्थापत्य संरचनाओं का निर्माण किया गया है ।
- सिंगौरगढ़ का किला मध्य प्रदेश के प्रमुख किलों में से एक माना जाता है । यह किला कलचुरी राजवंश द्वारा सर्वप्रथम बनाया गया था तथा समय के साथ - साथ इस किले का प्रयोग विभिन्न राजवंशों ने किया था | सभी राजवंशों ने यहाँ पर किसी न किसी प्रकार का परिवर्तन किया, जिसका उदाहरण हमें यहाँ आज भी देखने को मिलता है।
- इस किले को तब और महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ, जब इस स्थल को गोंड साम्राज्य का एक अभिन्न अंग बनाया गया | सिंगौरगढ़ का यह किला सामरिक दृष्टिकोण से अत्यंत ही महत्वपूर्ण है तथा इस किले को इस प्रकार से बनाया गया था कि यह अभेद्य बना रहे । किले कि सुरक्षा के लिये बनाया गया द्विस्तरीय परकोटा इस तथ्य की पुष्टि करता है।
- इस किले में मुख्य रूप से तीन द्वार है । इन द्वारों में मुख्य रूप से दो द्वार ही दिखाई देते हैं जबकि त्रितीय द्वार एक सँकरे आंगन में बनाया गया था । सँकरे आंगन को बनाने के मध्य एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण सामरिक योजना छिपी हुयी होती है | माना कि कोई दुश्मन किले पर चढ़ाई कर दे और वह मुख्य द्वार को तोड़ दे तो ऐसे में अचानक भारी संख्या में सेना सँकरे आंगन मे आ जायेगी और वह एक जगह ही अचानक फंस जायेगी। ऐसे मे किले में तैनात सैनिक आंगन में फंसे दुश्मनों को आसानी से मृत्यु के घाट उतार सकती है। साथ ही तीसरे द्वार के बने होने से किले के अंदर तैनात सैनिकों को इतना समय मिल जाये कि वे सब तैनात हो सकें ।
- इस किले के एक द्वार को हाथी द्वार के नाम से भी जाना जाता है और ऐसा माना जाता था कि यह द्वार हाथियों को किले में जाने के लिये प्रयोग में लाया जाता था । इस द्वार पर जाने हेतु एक सोपान का भी निर्माण किया गया था जो आज भी यहाँ पर स्थापित है ।
- इस किले के आतंरिक परकोटे की परिधी 730 मीटर तथा बाह्य परकोटे की परिधि 4.8 किलोमीटर है। मुख्य द्वार से रानी महल की ऊंचाई 122 मीटर है।
सिंगौरगढ़ किले के भीतर स्थित रानी महल
- किले के भीतर स्थित रानी महल ही एकमात्र ऐसी इमारत है जो वर्तमान में भी काफी हद तक पूर्ण है। रानी महल पत्थर व चूने सुर्खी के संयोग से बनाया गया है । रानी महल मध्यकालीन कला और गोंड कालीन कला को बखूबी से प्रस्तुत करती है । इसको वाह्य और आंतरिक दोनो ओर चूने का पिलास्तर किया गया है । इस महल मे कई हॉलनुमा कमरे, बरामदे आदि मौजूद हैं |
- यह महल तीन तलीय है । इस महल में लकड़ी का प्रयोग बड़ी संख्या में किया गया था, जिसका उदाहरण आज भी यहाँ पर स्थित लकड़ी के प्रयोग के लिये बने पत्थर के खांचे प्रस्तुत करते हैं | महल के मुख्य द्वार के उर्ध्व भाग पर एक द्वारनुमा झरोखे का निर्माण किया गया है। तृतीय तल का झरोखा भग्न है। इस महल पर अन्य कई झरोखे भी बनाये गये हैं तथा मध्य में एक आंगन का भी निर्माण किया गया है। रानी महल की लम्बाई पूर्व से पश्चिम 23 मीटर तथा उत्तर से दक्षिण 23 मीटर है।
- महल के समीप ही एक विशाल कुंड का भी निर्माण किया गया है जिसकी बाँध-बन्दी चारों ओर से की गयी है। इस कुंड के मध्य मे एक दीवार का निर्माण किया गया है जो कुंड को दो भागो में विभाजित करता है | कुंड के एक ओर एक नाले का निर्माण किया गया है जो वर्षा के जल को कुंड में एकत्रित करने का कार्य करता है । यह कुंड अति विशाल है तथा यह जल संरक्षण एवं संयंत्रण का एक महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करता है | इस कुंड की लम्बाई पूर्व से पश्चिम तक 120 मीटर तथा चौड़ाई उत्तर से दक्षिण तक 65 मीटर और गहराई 7.5 मीटर है।
सिंगौरगढ़ किले में कलचुरी कालीन प्रतिमायेँ
- इस किले में कलचुरी कालीन अनेकों प्रतिमाये भी प्राप्त हुयी हैं जो इस तथ्य को सिद्ध करती हैं कि यह किला सामरिक ही नहीं अपितु धार्मिक रूप से भी अति महत्वपूर्ण था । यहाँ से प्राप्त प्रतिमाओं में प्रमुख प्रतिमायें विष्णु, हनुमान, भैरव, गणेश, युगल, सती स्तंभ आदि हैं ।
- यहाँ से प्राप्त विष्णु प्रतिमा स्थानक मुद्रा मे है तथा उर्ध्व भाग पर गंधर्वों का अंकन किया गया है । इस प्रतिमा के बाएं पार्श्व भाग पर एवं दाएं पार्श्व भाग पर व्याल, शार्दुल, पूजको आदि का अंकन किया गया है । यह प्रतिमा भग्न है । यहाँ से प्राप्त गणेश प्रतिमा ग्रेनाइट प्रस्तर पर निर्मित है तथा इस प्रतिमा में गणेश को नृत्यरत प्रस्तुत किया गया है | गणेश प्रतिमा के समीप ही एक युगल प्रतिमा भी स्थापित है।
- इस किले के प्रांगण में ही कुछ अन्य द्वार शाखाएं भी स्थापित हैं जिनके मध्य में गणेश का अंकन किया गया है । ये द्वार खंड यह सिद्ध करते हैं कि यहाँ पर शिव मंदिरों की अधिकता रही होगी। यहाँ से प्राप्त दो द्वार खंडों में से एक खंड अपूर्ण है। किले के भीतर ही तीन खंडित हनुमान प्रतिमायें स्थापित हैं, जिसमें हनुमान को पनौती के ऊपर एक पैर रखे हुये प्रस्तुत किया गया है । किले के प्रांगण से ही एक भैरव की विशाल प्रतिमा प्राप्त हुयी है, जिसमें भैरव को कटार, डमरू व खप्पर धारण किये हुये प्रस्तुत किया गया है | भैरव को मुंडमाल पहने हुये भी दिखाया गया है । यहाँ पर कुछ सती स्तंभ भी प्राप्त हुये हैं जिनपर युगल, सूर्य और चंद्रमा के साथ स्त्री के पंजे का भी अंकन किया गया है ।
- किले के मध्य में ही प्राचीन कलचुरी कालीन भग्न मंदिर स्थित है । वर्तमान में इस मंदिर का जगती मात्र ही प्राप्त होती है, यह मंदिर वर्गाकार है तथा इस वर्गाकार मंदिर की एक भुजा की लम्बाई 13 मीटर है ।
पंचमढ़िया नामक एक ऐतिहासिक स्थल
- सिंगौरगढ़ पहाड़ी के भैसा घाट वाले क्षेत्र में पंचमढ़िया नामक एक ऐतिहासिक स्थल है। इस स्थान पर कई मंदिर के अवशेष दृष्टिगोचर होते हैं । यहाँ स्थित मंदिर को स्थानीय लोग माला देवी और पंचमढ़िया मंदिर कहते हैं। ये सभी मंदिर पाषाण निर्मित हैं। पंचमढ़िया मंदिर का स्वरुप पंचायतन शैली का है जो एक चबूतरे पर बना है। पांच देवालयों के एक समूह के कारण इसे पंचमढ़िया के नाम से जाना जाता है । इस मंदिर के गर्भगृह के द्वारशाखा पर गंगा यमुना और त्रिदेव का अंकन है । माला देवी मंदिर के गर्भगृह में चामुंडा देवी की एक प्रतिमा है ।
- इस स्थान पर दो सती स्तम्भ भी स्थापित हैं । यहाँ पर योनिपीठ सहित विशाल शिव लिंग भी स्थापित है, जो भग्नावस्था में है | यहाँ से प्राप्त सभी प्रतिमाएं एवं स्तम्भ बलुए पत्थर से निर्मित हैं । इसी स्थल के समीप जल का स्रोत है जहाँ तक पहुँचने के लिए एक विशाल सोपान का भी निर्माण किया गया था । ऐसी मान्यता है कि रानी दुर्गावती इन्हीं सोपानों से होते हुए मंदिर में पूजा हेतु जल लाया करती थी | इस स्थल को संरक्षित करने की जबलपुर मंडल की योजना है।
- पंचमढ़िया से प्राप्त सती स्तम्भ पर नागरी लिपि एवं संस्कृत भाषा में दो पंक्तियों का एक अभिलेख उत्कीर्ण है। इस अभिलेख में निकुम्भराम नामक व्यक्ति के पुत्र रतन की धर्मपत्नी मेलास के सतीत्त्व का वर्णन है । अभिलेख के अंत में संवत 66 का अंकन है। पुरालिपिशास्त्री डॉ. टी. एस. रविशंकर, पूर्व निदेशक (अभिलेख), भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार इस अभिलेख की तिथि 12वीं 13वीं सदी है। इसे श्री के मुनीरत्नम, निदेशक, अभिलेख शाखा, मैसूर द्वारा पढ़ा गया है इस स्तम्भ के ऊपरी भाग पर सूर्य, चन्द्रमा, योनिपीठ युक्त शिवलिंग, पंचलिंग एवं सती के एक हाथ का पंजे सहित अंकन है । स्तम्भ के मध्य भाग में मेलसा एवं रतन की प्रतिमा उत्कीर्ण है।
विषय सूची
- गोंड जनजाति का इतिहास मण्डला के गोंड़ राजवंश
- गोंडवाना के बारे में जानकारी | गोंडवाना परिक्षेत्र
- गोंड वंशावली | बानूर ताम्र पत्र 1730
- गोंड वंश के प्रमुख शासक
- गोंडवाना शासन की विशेषताएँ गोंडवाना के 52 गढ़
- गोंड़ जनजाति उत्पत्ति विषयक अवधारणा |मण्डला के गोंड़ शासक एक संगठक के रूप में
- गोंडवाना का पहला उल्लेख, गोंड शासन वाले क्षेत्र की सिंचाई परियोजनायेँ
- रानी दुर्गावती के बारे में जानकारी
- संग्रामशाह-गोंड वंश का प्रथम प्रतापी सम्राट
- सिंगौरगढ़ का किला दमोह
- गोंड वंश से संबन्धित प्रमुख किले एवं महल
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