विकासशील और विकसित देशों की सामाजिक विशेषताऐं |Social Characteristics of Developing and Developed Countries
विकासशील और विकसित देशों की विशेषताऐं
B विकासशील और विकसित देशों की सामाजिक विशेषताऐं
1. भूमिकाओं का निर्धारण
- विकासशील देशों में भूमिकाओं का निर्धारण उपलब्धियों के आधार पर नहीं, आरोपण कर (Tax) के आधार पर होता है। परन्तु विकसित देशों में यह स्थिति सर्वथा विपरीत है। दोनों विकासशील तथा विकसित अथवा अविकसित देशों में विभिन्न स्तर होते हैं। परन्तु स्पष्ट शब्दों में हम कह सकते हैं कि विकासशील अथवा अविकसित देशों में यह स्तर-भेद जन्म अथवा आरोपण के आधार पर होता है। जबकि विकसित देशों में यह आधार आरोपण की अपेक्षा उपलब्धियों के आधार पर निश्चित होता है। इसे अधिक स्पष्ट करने के लिए हम कह सकते हैं कि भारत जैसे देश में सामाजिक स्तरों में पारस्परिक गत्यात्मकता बहुत कम हैं। इसके विपरीत यूरोप में सामाजिक गत्यात्मकता बहुत है।
2. जातीय संरचना
- विकासशील देश में जातीय संरचना बड़ी कठोर होती है। हमारे देश में उच्च जातीय हिन्दू, निम्न जातीय हिन्दू की लड़की से विवाह नहीं करते, अन्तर्जातीय विवाह की तो बात ही दूर रही। यह जानना बड़ा रोचक है कि हमारे देश में प्रशासनिक व्यवस्था भी जातीय स्तर पद्धति के बहुत अनुकूल पड़ती है। हमारे प्रशासकीय ढ़ाँचे में चार स्तरों के कर्मचारी हैं। यह सोचा ही नहीं जा सकता तथा यह असम्भव भी है कि श्रेणी चार के कर्मचारी को उन्नति प्रदान करके प्रथम श्रेणी का कर्मचारी बना दिया जाये। इस प्रकार प्रशासिनक श्रेणियाँ भी जातीय श्रेणियों के अनुरूप हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विकसित देशों में इस प्रकार का स्तरीकरण नहीं है और वहाँ गुणों के आधार पर एक श्रेणी से दूसरी श्रेणी में उन्नति सम्भावित है। इस प्रकार वहाँ उपलब्धियों पर अधिक बल दिया जाता है।
3. सामाजिक संघर्ष
- विकसित देशों में सामाजिक संघर्ष की मात्रा अविकसित देशों की अपेक्षा बहुत कम होती है। अविकसित देशों में ये संघर्ष अर्न्तजातीय अथवा प्रादेशिकता के आधार पर झगड़ों का रूप धारण कर लेते हैं। उदाहरणस्वरूप, भारत जैसे देश में हम लगभग हर रोज जातीय दंगों के कारण भारत के किसी न किसी भाग में एक-दो हत्याओं के बारे में सुन लेते हैं और इनकी प्रतिक्रिया देश के दूसरे भागों में बहुत अधिक हो जाती है। इसका यह अर्थ नहीं कि विकसित देशों में ऐसी स्थिति होती ही नहीं। ऐसे देशों में भी मिथकों का प्रचार, जैसे- जातीय आधार पर उत्तमता, रंग-भेद, इत्यादि के कारण जातीय दंगे भड़के हैं, हडतालें हुई हैं, शान्ति, कानून और व्यवस्था को आघात पहुँचा है। झाड़-फूँक, हत्या और विनाश हुआ है। परन्तु इन देशों में इस प्रकार की स्थिति चिन्ताजनक नहीं होती। ऐसी घटनाऐं कभी-कभी घटती हैं।
- विकासशील देशों में यह स्थिति नियन्त्रण से बाहर जा रही है। उदाहरणस्वरूप भारत जैसे देश में नई दिल्ली में तथा देश के अन्य भागों में श्रीमती इन्दिरा गाँधी की हत्या के पश्चात) सिक्खों की हत्या | अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के सदस्यों को जिन्दा ही जला देना, भारतीय इतिहास की कुछ भयंकर दुर्घटनाएं हैं। इसी प्रकार की स्थिति पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफ्रीका के कुछ देशों में भी विद्यमान है। इन्हीं सामाजिक झगड़ों के परिणामस्वरूप विकसित देश, विकासशील देशों को अप नियन्त्रण में रख रहे हैं और उन्हें अपनी राजनैतिक पकड़ में बनाये रखना चाहते हैं। विकसित देशों के लिए यह लाभदायक है, परन्तु विकासशील देशे के लिए आत्महत्या के समान है।
विषय सूची -
विकसित एवं विकासशील देश- अर्थ एवं परिभाषा
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