चर्चित स्थल 2021- जुलाई | जुलाई 2021 के चर्चित स्थल | Place In News July 2021
जुलाई 2021 के चर्चित स्थल | July 2021 Ke Charchit Sthal
आमागढ़ फोर्ट: राजस्थान
- जयपुर स्थित ‘आमागढ़ फोर्ट’ (राजस्थान) आदिवासी मीणा समुदाय और स्थानीय हिंदू समूहों के बीच संघर्ष के केंद्र बन गया है।
- मीणा समुदाय के सदस्यों का कहना है कि ‘आमागढ़ किला’ जयपुर में राजपूत शासन से पहले एक मीणा शासक द्वारा बनाया गया था और सदियों से उनका पवित्र स्थल रहा है।
- उन्होंने हिंदू समूहों पर आदिवासी प्रतीकों को हिंदुत्व में शामिल करने की कोशिश करने और ‘अंबा माता’ का नाम बदलकर ‘अंबिका भवानी’ करने का आरोप लगाया है।
आमागढ़ फोर्ट
- आमागढ़ किले के वर्तमान स्वरूप का निर्माण 18वीं शताब्दी में जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा किया गया था।
- यह माना जाता रहा है कि जय सिंह द्वितीय द्वारा किले के निर्माण से पहले भी इस स्थान पर कुछ संरचनाएँ मौजूद थीं।
- दावे के मुताबिक, यह नदला गोत्र (जिसे अब बड़गोती मीणा के नाम से जाना जाता है) के एक मीणा सरदार द्वारा बनवाई गई थी।
- कछवाहा राजवंश के राजपूत शासन से पहले जयपुर और उसके आस-पास के क्षेत्रों में मीणा समुदाय का शासन एवं राजनीतिक नियंत्रण था।
- गौरतलब है कि मीणा समुदाय के सरदारों ने लगभग 1100 ईस्वी तक राजस्थान के बड़े हिस्से पर शासन किया।
गंगा नदी घाटी - ग्लेशियल लेक एटलस
- हाल ही में जल शक्ति मंत्रालय ने गंगा नदी घाटी के लिये एक ‘ग्लेशियल लेक एटलस’ का विमोचन किया है। यह ‘ग्लेशियल लेक एटलस’ गंगा नदी घाटी में मौजूद हिमनद झीलों पर आधारित है जो इसके उद्गम स्थल से लेकर हिमालय की तलहटी तक 2,47,109 वर्ग किलोमीटर के जलग्रहण क्षेत्र को कवर करती हैं। गंगा नदी बेसिन के अध्ययन में भारतीय हिस्से के साथ-साथ सीमा पार क्षेत्र भी शामिल हैं। यह एटलस 0.25 हेक्टेयर से अधिक जल प्रसार क्षेत्र वाले गंगा नदी बेसिन के लिये एक व्यापक एवं व्यवस्थित हिमनद झील डेटाबेस प्रदान करता है। जलवायु परिवर्तन प्रभाव विश्लेषण के संदर्भ में परिवर्तन विश्लेषण के लिये भी एटलस को संदर्भ डेटा के रूप में उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा यह इतिहास और भविष्य की किसी समय अवधि की तुलना के लिये भी उपयोगी होगा। यह एटलस क्षेत्रीय सीमा (विस्तार/संकुचन) में नियमित या आवधिक निगरानी परिवर्तनों और नई झीलों के निर्माण के लिये प्रामाणिक डेटाबेस भी प्रदान करता है। एटलस का उपयोग ग्लेशियर पर जलवायु प्रभाव अध्ययन के लिये भी किया जा सकता है। ‘ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड’ (GLOF) के संभावित जोखिम का पता लगाने के लिये भी यह एटलस काफी महत्त्वपूर्ण साबित होगा। केंद्र और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण आपदा न्यूनीकरण योजना और संबंधित कार्यक्रम के लिये एटलस का उपयोग कर सकते हैं।
दिल्ली में क्लाउड-आधारित स्वास्थ्य सेवा परियोजना
- हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री ने महत्त्वाकांक्षी क्लाउड-आधारित स्वास्थ्य देखभाल सूचना प्रबंधन प्रणाली (HIMS) की प्रगति की समीक्षा करते हुए वर्ष 2022 तक इस परियोजना के शुरू होने की घोषणा की है। दिल्ली सरकार की इस महत्त्वाकांक्षी स्वास्थ्य परियोजना के तहत दिल्ली के सभी निवासियों के नाम पर स्वास्थ्य कार्ड जारी किये जाएंगे, जिसके लिये सरकार द्वारा विशेष सर्वेक्षण किया जाएगा। यह दिल्ली के प्रत्येक निवासी के लिये सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के लाभों की उपलब्धता सुनिश्चित करेगा। इसके पश्चात् इस कार्ड को क्लाउड-आधारित ‘स्वास्थ्य देखभाल सूचना प्रबंधन प्रणाली’ के साथ एकीकृत किया जाएगा। इस प्रणाली का उद्देश्य स्वास्थ्य सेवा वितरण प्रक्रिया को लक्षित करना है। दिल्ली में सभी रोगी देखभाल सेवाओं, अस्पताल प्रशासन, बजट एवं नियोजन, आपूर्ति शृंखला प्रबंधन और बैकएंड सेवाओं तथा प्रक्रियाओं को इस प्रणाली के तहत लाया जाएगा। इस प्रणाली की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह पूर्णतः क्लाउड आधारित और डिजिटल होगी, जो कि नागरिकों को एक ही मंच पर समस्त जानकारी प्राप्त करने में सक्षम बनाएगा, जिससे उन्हें आपातकालीन स्थिति में मदद मिल सकेगी। इस प्रकार की सूचना प्राप्त करने के लिये निवासियों के पंजीकृत कार्ड नंबर का प्रयोग किया जाएगा।
पश्चिम बंगाल में विधान परिषद
- हाल ही में पश्चिम बंगाल सरकार ने संविधान के अनुच्छेद-169 के तहत राज्य में विधान परिषद के गठन हेतु राज्य विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया है। कानून के मुताबिक, यदि पश्चिम बंगाल के इस प्रस्ताव को राज्यसभा और लोकसभा का समर्थन मिलता है तो राज्य में अधिकतम 94 सदस्यों (कुल विधानसभा सीटों का एक-तिहाई) वाली विधान परिषद का गठन किया जाएगा। वर्तमान में केवल छह राज्यों- बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में विधान परिषद मौजूद है। ज्ञात हो कि पूर्व में पश्चिम बंगाल में भी विधान परिषद थी, हालाँकि वर्ष 1969 में वाम दलों की तत्कालीन गठबंधन सरकार ने विधान परिषद को समाप्त कर दिया था। वास्तव में यह उच्च सदन प्राप्त करने वाला देश का पहला राज्य था। गौरतलब है कि भारत में विधायिका की द्विसदनीय प्रणाली है। जिस प्रकार संसद के दो सदन होते हैं, उसी प्रकार संविधान के अनुच्छेद 169 के अनुसार राज्यों में विधानसभा के अतिरिक्त एक विधान परिषद भी हो सकती है। अनुच्छेद 169 के तहत भारतीय संसद को विधान परिषद का गठन करने और विघटन करने का अधिकार प्राप्त है। इस संबंध में सर्वप्रथम संबंधित राज्य की विधानसभा द्वारा एक संकल्प पारित किया जाता है, जिसका पूर्ण बहुमत से पारित किया जाना अनिवार्य है।
अंटार्कटिका में ‘काई’ की एक नई प्रजाति
- पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के ध्रुवीय जीव वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका में पौधे की एक नई प्रजाति की खोज की है। इस प्रजाति के नमूने वर्ष 2016-2017 के अभियान के दौरान एकत्र किये गए थे। इन नमूनों पर किये गए पाँच वर्षीय अध्ययन के पश्चात् वैज्ञानिकों ने अंततः अंटार्कटिका की इस नई प्रजाति की पुष्टि कर दी है। वैज्ञानिकों ने इस नई प्रजाति का नाम देवी ‘सरस्वती’ (जिन्हें ‘भारती’ के नाम से भी जाना जाता है) के नाम पर ‘ब्रायम भारतीएंंसिस' रखा है। ज्ञात हो कि पौधों को जीवित रहने के लिये पोटेशियम, फास्फोरस, सूर्य के प्रकाश और पानी के साथ नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है। वहीं अंटार्कटिका का केवल 1 प्रतिशत हिस्सा ही बर्फ से मुक्त है, ऐसे में सबसे बड़ा प्रश्न यह था कि ‘काई’ (Moss) की यह विशिष्ट प्रजाति चट्टान और बर्फ में इस क्षेत्र में किस प्रकार जीवित रही। वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि इस प्रकार की ‘काई’ मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में पाई जाती है जहाँ पेंगुइन बड़ी संख्या में प्रजनन करते हैं। पेंगुइन के मल में नाइट्रोजन होता है। ऐसे में ये पौधे मूल रूप से पेंगुइन के मल पर जीवित रहते हैं, जो उन्हें इस विशिष्ट जलवायु में जीवित रहने में मदद करते हैं। विदित हो कि यह खोज भारतीय अंटार्कटिका मिशन के लिये महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि वर्ष 1981 में मिशन की शुरुआत के बाद यह पहली बार है जब पौधों की किसी प्रजाति की खोज की गई है। अंटार्कटिका में भारत का पहला स्टेशन वर्ष 1984 में स्थापित किया गया था, जो कि वर्ष 1990 में बर्फ में दब गया था। इसके पश्चात् दो नए स्टेशनों- मैत्री और भारती को क्रमशः वर्ष 1989 और वर्ष 2012 में कमीशन किया गया, जो आज भी कार्य कर रहे हैं।
‘प्लेनेट TOI-1231’ एक्सोप्लेनेट
- पृथ्वी की कक्षा से परे जीवन की तलाश में वैज्ञानिकों ने एक नए एक्सोप्लेनेट की खोज की है, जहाँ का वातावरण समृद्ध है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, ‘प्लेनेट TOI-1231’ पृथ्वी से 90 प्रकाश वर्ष दूर एक लाल डवार्फ तारे की परिक्रमा कर रहा है। यह ग्रह पृथ्वी के आकार से साढ़े तीन गुना बढ़ा है और पृथ्वी से 57 डिग्री सेल्सियस गर्म है। ऐसे में इस ग्रह पर अब ज्ञात अपेक्षाकृत छोटे ग्रहों की तुलना में सबसे बेहतर वातावरण है और एक नए ग्रह की तलाश करने की दिशा में यह काफी महत्त्वपूर्ण हो सकता है। इस एक्सोप्लेनेट की खोज नासा के शोधकर्त्ताओं द्वारा की गई है। अपनी कक्षा के करीब होने के बावजूद शोधकर्त्ताओं ने ग्रह को अपेक्षाकृत ठंडा पाया है। यह ग्रह अपने आकार के कारण रहने योग्य है और साथ ही इसकी विशिष्ट वातावरणीय संरचना वैज्ञानिकों को इसके अध्ययन का विशिष्ट अवसर प्रदान करती है। इस ग्रह का अवलोकन हमें अपने सौरमंडल समेत तमाम ग्रह प्रणालियों की संरचना एवं गठन के बारे में नई अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा और पृथ्वी के समान एक नए ग्रह की खोज में मददगार साबित होगा। एक्सोप्लेनेट का आशय हमारे सौरमंडल से बाहर पाए जाने वाले किसी ग्रह से है, जो कि विशिष्ट सितारे की परिक्रमा कर रहा है। पहले एक्सोप्लेनेट की खोज 1990 के दशक में की गई थी और तब से अब तक ऐसे हज़ारों खगोल निकायों की खोज की जा चुकी है।
हैती के राष्ट्रपति ‘जोवेनल मौइसे’ की हत्या
- हाल ही में हैती के राष्ट्रपति ‘जोवेनल मौइसे’ की उनके निजी आवास पर हत्या कर दी गई है। इस घटना के पश्चात् हैती में आपातकाल की घोषणा कर दी गई है। 48 वर्षीय व्यवसायी और राजनेता ‘जोवेनल मौइसे’ ने 7 फरवरी, 2017 को हैती के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी। विदित हो कि वर्ष 1957 से वर्ष 1986 तक फ्रेंकोइस और जीन-क्लाउड डुवेलियर की क्रूर तानाशाही के अंत के बाद से हैती गंभीर गरीबी और अपराध के साथ राजनीतिक अस्थिरता जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है। कैरेबियन सागर में स्थित देश हैती, हिसपनिओला द्वीप के पश्चिमी हिस्से में स्थित एक छोटा सा देश है। हैती ‘तैनो भाषा’ का एक शब्द है, जिसका अर्थ है ‘पहाड़ी देश’। वर्तमान में हैती के लगभग 11 मिलियन निवासी मुख्य रूप से अफ्रीकी मूल के हैं। 19वीं सदी की शुरुआत में फ्राँँसीसी औपनिवेशिक नियंत्रण और दासता को समाप्त कर हैती दुनिया का पहला अश्वेत नेतृत्व वाला गणराज्य तथा स्वतंत्र कैरिबियन राज्य बना था। ‘पोर्ट-ऑ-प्रिंस’ हैती की राजधानी है। हैती दोनों अमेरिकी महाद्वीपों का एकमात्र देश है जिसे दुनिया के सबसे कम विकसित देशों में गिना जाता है।
गुजरात के सूरत पहला डिजिटल केंद्र लॉन्च किया
- अमेज़न (Amazon) ने भारत में गुजरात के सूरत में अपना पहला डिजिटल केंद्र लॉन्च किया है। अमेज़न के डिजिटल केंद्र ऐसे केंद्र हैं जो सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को ई-कॉमर्स के लाभों के संदर्भ में जानने का अवसर प्रदान करेंगे। MSME अमेज़न डिजिटल केंद्र पर जा सकते हैं और ई कामर्स, GST तथा कराधान समर्थन, शिपिंग एवं रसद समर्थन, कैटलॉगिंग सहायता व डिजिटल मार्केटिंग सेवाओं के लाभों पर प्रशिक्षण सहित तीसरे पक्ष की सेवाओं का फायदा उठा सकते हैं। कंपनी ने विक्रेताओं को पूरे भारत और वैश्विक स्तर पर ग्राहकों तक पहुँचने में सक्षम बनाने पर ध्यान केंद्रित किया है तथा प्रौद्योगिकी, रसद वितरण, बुनियादी ढाँचे एवं डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण निवेश किया है, जिससे अधिक ग्राहकों व व्यवसायों को सामूहिक रूप से ऑनलाइन पहुँच प्रदान करने में मदद मिली है।
अंटार्कटिका में सक्रिय झीलें
- हाल ही में अमेरिकी स्पेस एजेंसी द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि अंटार्कटिका की जल प्रणाली में 130 से अधिक सक्रिय झीलें हैं और इसका विकास भविष्य में बर्फ की चादर की गतिशीलता के लिये एक बड़ी अनिश्चितता बन सकता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, अंटार्कटिक बर्फ, जो ऊपर से शांत एवं स्थिर दिखाई देती है, धीरे-धीरे अपनी नींव से कमज़ोर होती जा रही है और ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन के कारण नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रही है। बर्फ के पिघलने से उसके नीचे कई झीलें बन गई हैं, जिससे जलमार्ग की एक प्रणाली विकसित हुई है जो अंततः समुद्र तक पहुँचती है। अंटार्कटिक जल प्रणाली की खोज सर्वप्रथम वर्ष 2007 में स्क्रिप्स इंस्टीट्यूशन ऑफ ओशनोग्राफी के ग्लेशियोलॉजिस्ट हेलेन फ्रिकर द्वारा की गई थी। अब वैज्ञानिकों ने एक-दूसरे से जुड़ी सक्रिय झीलों के पूरे नेटवर्क का पता लगाया है, जो समय के साथ और सक्रिय होती जा रही हैं। अंटार्कटिक की सतह में सक्रिय झीलों का निर्माण विभिन्न कारकों जैसे- ऊपरी बर्फ का भारी वज़न, बर्फ की चादर की सतह एवं चट्टानों के बीच घर्षण और पृथ्वी से आने वाली गर्मी आदि का परिणाम होता है। विदित हो कि हाल ही में अंटार्कटिका में एक विशाल बर्फ से ढकी झील कुछ ही दिनों में गायब हो गई थी, जिससे वैज्ञानिकों के बीच ग्लोबल वार्मिंग को लेकर चिंता और अधिक बढ़ गई थी। शोधकर्त्ताओं का मत है कि शेल्फ के नीचे बनी सक्रिय झीलें इस बड़े बदलाव का प्रमुख कारण हैं। इस घटना के कारण अनुमानित 21 अरब से 26 अरब क्यूबिक फीट पानी समुद्र में पहुँच गया था।
पश्चिमी असम के चिरांग रिज़र्व फॉरेस्ट की ‘झारबारी रेंज
- हाल ही में पश्चिमी असम के चिरांग रिज़र्व फॉरेस्ट की ‘झारबारी रेंज’ में भूमिगत मकड़ियों की दो नई प्रजातियों - ग्रेवेलिया बोरो और डेक्सिपस क्लेनी की खोज की गई है। इन दोनों मकड़ियों को बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र में खोजा गया है। पहली मकड़ी यानी ‘ग्रेवेलिया बोरो’ का नाम बोडो समुदाय के नाम पर रखा गया है और यह मिट्टी, वनस्पति तथा रेशम से बने कॉर्क जैसे जाल के साथ बिलों का निर्माण करती है। ये मकड़ियाँ रेतीली-दोमट सतह से लगभग 10-15 सेंटीमीटर नीचे भूमिगत रहती है। वहीं ‘डेक्सिपस क्लेनी’ एक ओरिएंटल जंपिंग मकड़ी है, जिन्हें पहली बार इस क्षेत्र में देखा गया है। इस मकड़ी को मूलतः 129 वर्ष पूर्व स्वीडिश पुरातत्त्वविद् टॉर्ड टैमरलान थोरेल द्वारा खोजा गया था। ‘डेक्सिपस क्लेनी’ ‘साल्टिसिडे’ परिवार की सदस्य है, जो पृथ्वी पर मकड़ियों का सबसे बड़ा परिवार है।
कोंगु नाडू: तमिलनाडु
- हाल ही में तमिलनाडु में ‘कोंगु नाडू’ क्षेत्र को लेकर राजनीतिक विवाद शुरू हो गया है। विदित हो कि 'कोंगु नाडु' न तो पिन कोड वाला कोई स्थान है और न ही किसी क्षेत्र को औपचारिक रूप से दिया गया कोई नाम है। इसे प्रायः पश्चिमी तमिलनाडु के हिस्से को इंगित करने के लिये प्रयोग किया जाता है। तमिल साहित्य में इसे प्राचीन तमिलनाडु के पाँच क्षेत्रों में से एक के रूप में संदर्भित किया गया था। साथ ही संगम साहित्य में भी एक अलग क्षेत्र के रूप में 'कोंगु नाडु' का उल्लेख मिलता है। वर्तमान तमिलनाडु राज्य में इस नाम का उपयोग अनौपचारिक रूप से एक ऐसे क्षेत्र को संदर्भित करने के लिये किया जाता है जिसमें नीलगिरि, कोयंबटूर, तिरुपुर, इरोड, करूर, नमक्कल और सलेम ज़िले शामिल हैं, साथ ही इसमें डिंडगुल ज़िले के ओड्डनछत्रम एवं वेदसंदूर क्षेत्र तथा धर्मपुरी ज़िले में पप्पीरेड्डीपट्टी क्षेत्र भी शामिल हैं। यह नाम ओबीसी समुदाय’ कोंगु वेल्लालर गौंडर’ से लिया गया है, जिनकी इन ज़िलों में महत्त्वपूर्ण उपस्थिति है। इस क्षेत्र में नमक्कल, सलेम, तिरुपुर और कोयंबटूर जैसे प्रमुख व्यावसायिक व औद्योगिक केंद्र भी शामिल हैं। हाल ही में मंत्रिमंडल विस्तार के दौरान जिन नए मंत्रियों के नाम की सूची जारी की गई है, उसमें तमिलनाडु से आने वाले मंत्रियों के नाम के साथ ज़िले के स्थान पर 'कोंगु नाडु' नाम दिया गया है, जो कि स्वयं में एक ज़िला नहीं है। ऐसे में सरकार पर तमिलनाडु में क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने और राज्य को दो हिस्सों में विभाजित करने का आरोप लगाया जा रहा है।
राष्ट्रीय डॉल्फिन अनुसंधान केंद्र
- इस वर्ष मानसून के पश्चात् लुप्तप्राय गंगा डॉल्फिन के संरक्षण के लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय डॉल्फिन अनुसंधान केंद्र (NDRC) के निर्माण का कार्य शुरू किया जाएगा। ज्ञात हो कि बिहार शहरी विकास विभाग ने गंगा से लगभग 200 मीटर की दूरी पर NDRC के भवन के निर्माण की मंज़ूरी दी है। गौरतलब है कि बिहार में इस अनुसंधान केंद्र का निर्माण इस लिहाज़ से भी महत्त्वपूर्ण है कि बिहार में विश्व की गंगा डॉल्फिन आबादी का 50 प्रतिशत हिस्सा मौजूद है। यह केंद्र डॉल्फिन के संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा देने के साथ-साथ उसके बदलते व्यवहार, उत्तरजीविता कौशल, भोजन की आदतों, मृत्यु के कारणों और अन्य विभिन्न पहलुओं पर गहन शोध का अवसर प्रदान करेगा। गंगा डॉल्फिन को वर्ष 2009 में भारत सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय जलीय जीव’ के रूप में मान्यता दी गई थी। इसे ‘वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम’ के तहत अनुसूची-I में शामिल किया गया है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) द्वारा इसे लुप्तप्राय प्रजाति घोषित किया गया है। गंगा डॉल्फिन दुनिया की चार ‘फ्रेश वाटर’ डॉल्फिन प्रजातियों में से एक है। अन्य तीन प्रजातियाँ चीन की यांग्त्ज़ी नदी (अब विलुप्त), पाकिस्तान में सिंधु नदी और दक्षिण अमेरिका में अमेज़न नदी में पाई जाती हैं।
पूर्वी नेपाल लोअर अरुण जलविद्युत परियोजना
- हाल ही में नेपाल ने पूर्वी नेपाल में 679 मेगावाट की ‘लोअर अरुण जलविद्युत परियोजना’ विकसित करने के लिये भारत की प्रमुख जलविद्युत ‘सतलुज जलविद्युत निगम’ (SJVN) के साथ 1.3 अरब डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं, जो कि पड़ोसी हिमालयी राष्ट्र में भारत द्वारा शुरू की गई दूसरी मेगा परियोजना है। इस संबंध में ‘नेपाल इन्वेस्टमेंट बोर्ड’ और ‘सतलुज जलविद्युत निगम’ के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं। वर्ष 2017 के लागत अनुमानों के आधार पर यह नेपाल की सबसे बड़ी विदेशी निवेश परियोजना है, जिसे पूर्वी नेपाल में संखुवासभा और भोजपुर ज़िलों के बीच विकसित किया जाएगा। इस परियोजना को ‘बिल्ड ओन ऑपरेट एंड ट्रांसफर’ (BOOT) मॉडल के तहत विकसित किया जाएगा। 679 मेगावाट की ‘लोअर अरुण जलविद्युत परियोजना’ 1.04 बिलियन डॉलर की 900 MW की ‘अरुण-3 जलविद्युत परियोजना’ के बाद भारत द्वारा शुरू की गई दूसरी मेगा परियोजना है। अरुण-3 जलविद्युत परियोजना पूर्वी नेपाल के संखुवासभा ज़िले में अरुण नदी पर है। नेपाल सरकार और ‘सतलुज जलविद्युत निगम’ लिमिटेड ने परियोजना के लिये मार्च 2008 में समझौता ज्ञापन पर हस्तामक्षर किये थे। इस परियोजना का निर्माण भी 30 वर्ष की अवधि के लिये ‘बिल्डर ओन ऑपरेट तथा ट्रांसफर’ मॉडल के आधार पर किया गया था।
महाराष्ट्र की नई ‘इलेक्ट्रिक वाहन’ नीति
- महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में नई ‘इलेक्ट्रिक वाहन’ नीति और उद्योगों के साथ-साथ उपभोक्ताओं को प्रोत्साहित करके ‘इलेक्ट्रिक वाहन’ निर्माण कंपनियों एवं संबद्ध व्यवसायों को राज्य में आकर्षित करने की अपनी योजना का अनावरण किया है। महाराष्ट्र इलेक्ट्रिक वाहन नीति, 2021 का उद्देश्य राज्य में इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग को प्रोत्साहन देना, इनके उत्पादन को बढ़ावा देना और आवश्यक बुनियादी अवसंरचना को मज़बूत करना है। यह नीति ‘इलेक्ट्रिक वाहन’ संबंधी उद्योगों को राज्य में मेगा परियोजनाओं की 'डी+' श्रेणी के तहत सभी लाभ प्रदान करती है, चाहे उनकी विनिर्माण इकाई किसी भी स्थान पर मौजूद हो। गौरतलब है कि प्रायः 'डी+' श्रेणी के लाभ राज्य के सबसे कम विकसित क्षेत्रों में मौजूद उद्योगों को प्रदान किये जाते हैं। राज्य में बेचे जाने वाले सभी इलेक्ट्रिक वाहनों को रोड टैक्स के साथ-साथ पंजीकरण शुल्क से भी छूट प्रदान की जाएगी। साथ ही इस नीति के तहत प्रोत्साहन वितरण प्रणाली को पूर्णतः डिजिटल बनाया जाएगा। इसी नीति के प्राथमिक उद्देश्यों में यह सुनिश्चित करना है कि राज्य में वर्ष 2025 तक पंजीकृत नए वाहनों में कम-से-कम 10 प्रतिशत ‘इलेक्ट्रिक वाहन’ शामिल हों; अप्रैल 2022 तक सभी नए सरकारी वाहन ‘इलेक्ट्रिक वाहन’ हों; वर्ष 2025 तक छह शहरी केंद्रों (मुंबई, पुणे, नागपुर, औरंगाबाद, अमरावती और नासिक) में सार्वजनिक परिवहन का 25% का विद्युतीकरण और शहरी क्षेत्रों एवं राजमार्गों में 2,500 चार्जिंग स्टेशन स्थापित करना शामिल है।
गुरुग्राम के फर्रुखनगर में भारत का पहला ‘ग्रेन एटीएम’
- अपनी तरह की पहली पहल में हरियाणा सरकार ने हाल ही में गुरुग्राम के फर्रुखनगर में खाद्यान्न वितरण के लिये पहली एटीएम मशीन यानी ‘ग्रेन एटीएम’ स्थापित किया है। ‘ग्रेन एटीएम’ बैंक एटीएम की तरह ही एक स्वचालित मशीन है, जिसमें अनाज की माप में त्रुटि नगण्य होती है। मशीन में टच-स्क्रीन के साथ एक बायोमेट्रिक सिस्टम भी है, जहाँ लाभार्थियों को अपना अनाज प्राप्त करने के लिये आधार या राशन कार्ड नंबर दर्ज करना होगा। इसका उद्देश्य विभिन्न सरकारी योजनाओं में मिलने वाले अनाज के वितरण को सुगम एवं पारदर्शी बनाना है। इसके तहत प्रत्येक मशीन एक बार में पाँच से सात मिनट के भीतर 70 किलो अनाज का वितरण कर सकती है। इस पायलट प्रोजेक्ट के एक हिस्से के रूप में हरियाणा सरकार राज्य भर में सरकार द्वारा संचालित राशन की दुकानों में ‘ग्रेन एटीएम’ स्थापित करने की योजना बना रही है। यह मशीन संयुक्त राष्ट्र के ‘विश्व खाद्य कार्यक्रम’ के तहत स्थापित की जाएगी। यह मशीन तीन प्रकार के अनाज- चावल, बाजरा और गेहूँ का वितरण करेगी। इस मशीन के माध्यम से सरकारी डिपो में खाद्यान्न की कमी की शिकायतों का भी निराकरण किया जा सकेगा।
फरीदाबाद में प्रागैतिहासिक गुफा चित्र
- हाल ही में पुरातत्त्वविदों ने फरीदाबाद (हरियाणा) के पास प्रागैतिहासिक स्थल मंगर बानी पहाड़ी जंगल में गुफा चित्रों की खोज की है, जो कि अनुमानतः एक लाख वर्ष पुराने हो सकते हैं। खोजकर्त्ताओं द्वारा किये गए अध्ययन के मुताबिक, इस स्थल पर प्रागैतिहासिक निवास की तिथि लगभग 1,00,000 से 15,000 वर्ष पूर्व की हो सकती है। हालाँकि शोधकर्त्ताओं को यहाँ 8वीं-9वीं शताब्दी ईस्वी तक निवास संबंधी प्रमाण भी प्राप्त हुए हैं। यह कहा जा सकता है कि मंगर बानी पहाड़ी जंगल भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे बड़े पुरापाषाण स्थलों में से एक हो सकता है, जहाँ खुले मैदानों के साथ-साथ रॉक शेल्टर से पाषाण युग के उपकरण बरामद किये गए थे। ये गुफाएँ ऐसे क्षेत्र में हैं जहाँ पहुँचना अपेक्षाकृत काफी मुश्किल है और संभवतः यही कारण है कि ये गुफाएँ व चित्र अभी तक यथास्थिति में बने हुए हैं। ज्ञात हो कि यह पहली बार है जब हरियाणा में व्यापक स्तर पर गुफा चित्र और रॉक कला के नमूने एक साथ पाए गए हैं, हालाँकि पुरापाषाण काल के औज़ारों की पहचान अरावली के कुछ हिस्सों में पहले भी की जा चुकी है।
जयनगर-कुर्था रेल ट्रैक (जयनगर (भारत) और कुर्था (नेपाल))
- भारत और नेपाल के बीच रेल संपर्क बहाल करने की दिशा में एक बड़े कदम के रूप में हाल ही में जयनगर (भारत) और कुर्था (नेपाल) के बीच रेल ट्रैक का सफल परीक्षण किया गया है। बिहार के मधुबनी ज़िले के जयनगर और पड़ोसी देश नेपाल के धनुसा ज़िले के कुर्था के बीच इस 34.50 किलोमीटर लंबे रेल ट्रैक पर हाई स्पीड ट्रेन के साथ ट्रायल किया गया। 619 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित इस रेलवे लाइन में पाँच स्टेशन शामिल हैं- जयनगर, इनरवा, खजूरी, बैदेही और नेपाल में प्रसिद्ध तीर्थस्थल जनकपुर के पास कुर्था। इस परियोजना का 17 किलोमीटर लंबा दूसरा चरण कुर्था और भंगहा को जोड़ेगा, जबकि 17 किलोमीटर लंबा तीसरा चरण भंगहा से बर्दीबास को जोड़ेगा। जयनगर-कुर्था रेलवे लिंक की स्थापना ‘इरकॉन इंटरनेशनल’ द्वारा भारत-नेपाल मैत्री रेल परियोजना के तहत भारत सरकार द्वारा दिये गए वित्त के माध्यम से की गई है। ‘इरकॉन इंटरनेशनल’ भारतीय रेल मंत्रालय के तहत भारत सरकार का एक सार्वजानिक उपक्रम है जिसे कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत स्थापित किया गया था।
मथुरा में देश का पहला 'ग्रीन हाइड्रोजन' प्लांट
- तेल एवं ऊर्जा के स्वच्छ रूपों की बढ़ती मांग को पूरा करने के उद्देश्य के तहत भारत की सबसे बड़ी तेल कंपनी ‘इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन’ (IOC) अपनी मथुरा रिफाइनरी में देश का पहला 'ग्रीन हाइड्रोजन' प्लांट स्थापित करेगी। ‘इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन’ (IOC) ने एक रणनीति तैयार की है, जिसका उद्देश्य अपने मुख्य रिफाइनिंग और ईंधन विपणन व्यवसायों पर ध्यान केंद्रित करते हुए आगामी 10 वर्षों में पेट्रोकेमिकल्स, हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के विस्तार को बढ़ावा देना है। कंपनी भविष्य में अपनी सभी रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल विस्तार परियोजनाओं में कैप्टिव पावर प्लांट स्थापित नहीं करेगी और इसके बजाय सौर ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से उत्पन्न होने वाली 250 मेगावाट बिजली का उपयोग करेगी। ध्यातव्य है कि हाइड्रोजन को विश्व भर की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। यद्यपि हाइड्रोजन स्वयं एक स्वच्छ ईंधन है, किंतु इसका निर्माण अत्यधिक ऊर्जा-गहन है और इसमें कार्बन उपोत्पाद शामिल हैं। 'ग्रीन हाइड्रोजन' के उत्पादन में हाइड्रोजन ईंधन बनाने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग किया जाता है
ओरछा और ग्वालियर हिस्टोरिक अर्बन लैंडस्केप प्रोजेक्ट
- हाल ही में मध्य प्रदेश के ओरछा और ग्वालियर शहरों को यूनेस्को के 'हिस्टोरिक अर्बन लैंडस्केप प्रोजेक्ट’ के तहत चुना गया है। वर्ष 2011 में शुरू किये गए इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए ऐतिहासिक शहरों का समावेशी एवं सुनियोजित विकास सुनिश्चित करना है। इस परियोजना के तहत ओरछा और ग्वालियर शहरों को यूनेस्को, भारत सरकार और मध्य प्रदेश द्वारा संयुक्त रूप से उनके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सुधार पर ध्यान केंद्रित करके विकसित किया जाएगा। ज्ञात हो कि भारत में अजमेर और वाराणसी सहित दक्षिण एशिया के छह शहर पहले से ही इस परियोजना में शामिल हैं।
- ओरछा तथा ग्वालियर को क्रमशः 7वें और 8वें शहर के रूप में शामिल किया गया है। इन शहरों के विकास और प्रबंधन की संपूर्ण योजना यूनेस्को द्वारा तैयार की जाएगी और इस योजना के तहत शहर के सभी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, खान-पान, रहन-सहन, आर्थिक विकास, सामुदायिक विकास समेत तमाम पहलुओं को शामिल किया जाएगा। यूनेस्को की इस परियोजना से मध्य प्रदेश पर्यटन को नया आयाम मिलेगा। पर्यटन के विकास के साथ-साथ रोज़गार के अतिरिक्त अवसर भी सृजित होंगे। ओरछा अपने मंदिरों और महलों के लिये लोकप्रिय है तथा 16वीं शताब्दी में यह बुंदेला साम्राज्य की राजधानी थी। प्रसिद्ध स्थान राज महल, जहाँगीर महल, रामराजा मंदिर, राय प्रवीण महल और लक्ष्मीनारायण मंदिर आदि ओरछा में स्थित हैं। ग्वालियर को 9वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था और गुर्जर प्रतिहार राजवंश, तोमर, बघेल कछवाहो व सिंधिया द्वारा शासित था।
लद्दाख में केंद्रीय विश्वविद्यालय
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में 750 करोड़ रुपए की लागत से एक केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना को मंज़ूरी दी है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना का प्राथमिक उद्देश्य केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में उच्च शिक्षा स्तर के क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करना और वहाँ के समग्र विकास को सुनिश्चित करना है। इस केंद्रीय विश्वविद्यालय को 750 करोड़ रुपए की लागत से विकसित किया जाएगा। इस परियोजना का पहला चरण आगामी चार वर्षों में पूरा होगा। आगामी केंद्रीय विश्वविद्यालय लेह और कारगिल समेत संपूर्ण लद्दाख क्षेत्र को कवर करेगा। गौरतलब है कि राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद ये क्षेत्र जम्मू-कश्मीर में मौजूद केंद्रीय विश्वविद्यालयों के अधिकार क्षेत्र से बाहर हो गए थे, जिसके कारण प्रदेश के लोगों के लिये स्थिति काफी चुनौतीपूर्ण हो गई थी।
‘दीमा हसाओ’ ज़िले के मंडेरडीसा में बाँस औद्योगिक पार्क
- असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने ‘दीमा हसाओ’ ज़िले के मंडेरडीसा में एक ‘बाँस औद्योगिक पार्क’ की आधारशिला रखी है। इस परियोजना को ‘मिनिस्ट्री फॉर डेवलपमेंट ऑफ नार्थ ईस्टर्न रीजन’ द्वारा 50 करोड़ रुपए की लागत से क्रियान्वित किया जाएगा। ‘बाँस औद्योगिक पार्क’ इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देगा और स्थानीय युवाओं के लिये रोज़गार के व्यापक अवसर पैदा करेगा। ज़िले में उत्पादित बाँस अब तक केवल अधिकतर पेपर मिलों को निर्यात किया जाता था, हालाँकि इस पार्क के बन जाने के साथ ही ज़िले के बाँस उद्योग के लिये टाइल्स और अगरबत्ती आदि के उत्पादन में संलग्न होने के नए रास्ते खुलेंगे, जिससे स्थानीय लोगों को अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त होगा। वैश्विक उद्योग रिपोर्ट (2019) के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर बाँस उद्योग का मूल्य तकरीबन 72.10 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जो कि वर्ष 2026 तक 98.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है। यद्यपि भारत के पास दुनिया के बाँस संसाधनों का 30% हिस्सा मौजूद है, किंतु भारत अपनी बाँस क्षमता का केवल दसवें हिस्से का ही उत्पादन करता है, जो कि वैश्विक बाँस बाज़ार का केवल 4% है। असम संपूर्ण भारत में प्राकृतिक एवं घरेलू बाँस के प्रमुख स्रोतों में से एक है। असम में बाँस सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक परंपराओं का एक अभिन्न हिस्सा रहा है। असम में बाँस की 51 प्रजातियाँ उगाई हैं, यदि इसका उचित उपयोग किया जाए तो इसमें पर्याप्त रोज़गार और राजस्व उत्पन्न करने की क्षमता है।
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