समुदाय आधारित संगठनों की मूल विशेषताएं|समुदाय आधारित संगठनों का गठन Basic Features of Community Based Organizations
समुदाय आधारित संगठनों की मूल विशेषताएं
समुदाय आधारित संगठनों की मूल विशेषताएं
- समुदाय आधारित संगठनों (CBO) की कुछ विलक्षण विशेषताएं होती हैं। वे स्थानीय समुदायों में आधारित होते हैं, प्रकृति में स्वैच्छिक होते हैं और उनकी औपचारिक संरचना सख्त नहीं होती है। ये सदस्यता-आधारित होते हैं और किसी विकास परियोजना में पणधारी होते हैं।
1 समुदाय आधारित संगठनों का गठन
- समुदाय आधारित संगठन छोटे, अनौपचारिक संगठन होते हैं जो उन स्थानीय समुदायों में ही अपना आधार रखते हैं जहां वे सेवा प्रदान करते हैं। इससे उनके लिए दानदाताओं अथवा सरकारी अभिकरणों जैसे विकास क्षेत्र में अन्य पणधारियों के साथ परस्पर क्रिया मुश्किल होती है। अनेक सीबीओज़ विकास कार्यक्रम चलाते हैं, जो कि कभी-कभी मध्यस्थ एनजीओज़ के माध्यम से चलाए जाते हैं।
- यदि किसी समुदाय को कार्यक्रम प्रदाय और प्राप्ति करने वाली संस्था के रूप में काम करना हो तो एक सीबीओ बनाने का ही प्रयास किया जाना चाहिए। किसी भी सीबीओ को परियोजना के नियोजन और क्रियान्वयन के लिए सूचना और प्रशिक्षण की आवश्यकता पड़ती है। परियोजना जब समुदाय के लिए लाभदायक सिद्ध होती दिखाई पड़ती है तब भी सीबीओ को अभिप्रेरित करने की ज़रूरत होती है।
- यदि सीबीओ को प्रभार लेना हो तो उसके सदस्यों और खासकर कार्यकारी समिति के सदस्यों को परियोजना के लिए समय निकालना ही होगा। आरंभिक प्रेरणा प्रायः बाह्य अभिकर्त्ताओं, प्रायः एनजीओज़ द्वारा प्रदान की जाती है। एकबार जब समुदाय नेतागण स्वयं को एक सीबीओ बनाने और परियोजना का प्रभार लेने संबंधी विचार के प्रति वचनबद्ध हो जाते हैं तो वे दूसरों को प्रेरित और संघटित कर सकते हैं। परंतु उन्हें संघटन करने के लिए प्रशिक्षण लेना आवश्यक है। किसी भी सीबीओ के अभिप्रेरण और प्रशिक्षण की ज़िम्मेदारी किसी बाह्य अभिकर्ता की होती है, जैसे राज्य सरकार का विभाग, विकास अभिकरण अथवा कोई एनजीओ।
- किसी भी सीबीओ के गठन की प्रक्रिया एक सहभागितापूर्ण ग्रामीण मूल्यांकन, पीआरए (Participatory Rural Appraisal) के साथ शुरू हो सकती है। इस अभ्यास का उद्देश्य होता है कि किसी विकास परियोजना विशेष तथा ग्रामीण समुदाय की आवश्यकताओं और मांगों के संदर्भ में उस गांव विशेष की प्रस्थिति को समझना परियोजना के उद्देश्य स्पष्ट किए जा सकते हैं, खासकर उसमें दिए गए प्रावधान किस प्रकार से समुदाय की आवश्यकताओं और मांगों को पूरा कर सकते हैं। इस प्रकार की चर्चा के लिए ग्रामसभा की बैठक एक उपयुक्त मंच हो सकती है।
- भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए अभिप्रेरण और संघटन अवस्था पर यथेष्ट समय लगाए जाने की आवश्यकता होती है, जो कि विकास परियोजना स्थायित्व के लिए ज़रूरी होती है। समुदाय किसी सीबीओ के गठन के लिए तैयार होता है अथवा नहीं, यह एक विकास अभिकरण के अभिप्रेरित प्रयास पर निर्भर कर सकता है। ऐसे समुदाय के साथ एक प्रेरणादायक भेंट आयोजित की जा सकती है जिसने परियोजना को सफलतापूर्वक लागू किया हो। सर्वप्रथम बैठक समेत सभी बैठकों के लिए समय और बैठक स्थल दोनों ध्यानपूर्वक चुने जाने चाहिए। बैठक के लिए नियत किया गया समय समुदाय के सभी सदस्यों के लिए सुविधाजनक होना चाहिए और बैठक स्थल एक ऐसा सार्वजनिक स्थल होना चाहिए जहां सभी लोग आने में स्वतंत्रता महसूस करें।
- सीबीओ को अपनी गतिविधियां चलाने और बैठकें आयोजित करने, पदाधिकारी नियुक्त करने, आदि के लिए अपने नियम विनियम और कार्यविधियां विकसित करनी होती हैं। इस संगठन को समुचित कानून के तहत पंजीकृत होना होता है एक सहकारी के रूप में, एक समिति के रूप में, अथवा सार्वजनिक न्यास के रूप में। ऐसा करने के लिए उसे एक संविधान बनाना होगा। इसमें अधिकारीतंत्र के साथ परस्पर क्रिया करना तथा प्रलेखों के वांछित सेट तैयार करना या प्राप्त करना अपेक्षित होता है। एक सहमति पत्र अथवा समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding) पर प्रायः सीबीओ और उस मंत्रालय अथवा विकास अभिकरण के साथ संयुक्त रूप से हस्ताक्षर होते हैं जो संसाधन का स्वामी हो और उसे नियंत्रित अथवा संचालित करता हो ।
- सीबीओ को तकनीकी और प्रशासनिक / प्रबंधकीय प्रशिक्षण प्रदान करना बाह्य अभिकर्ता की सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है। यह प्रशिक्षण कक्षाएं आयोजित कर अथवा प्रत्यक्ष प्रयोगात्मक कार्य के रूप में हो सकता है। इसमें ऐसे दूसरे किसी समुदाय से मुलाकात करने जाना शामिल हो सकता है जिसने परियोजना को सफलतापूर्वक क्रियान्वित किया हो। तकनीकी प्रशिक्षण में मरम्मत कार्यों या निर्माण कार्य में प्रयुक्त सामग्री की गुणवत्ता जांचना, तैयार प्राधारों की गुणवत्ता सुनिश्चित करना, और सही पैमाइश करना, आदि शामिल हो सकते हैं। सीबीओ का प्रशासनिक / प्रबंधकीय प्रशिक्षण उसका अपना संविधान लिखने, अधिकारी तंत्र से विचार विनिमय करने, बैठकों की संक्षिप्त कार्यवाही सूचनाए बैठक का अजेंडा तैयार करने, बैठक आयोजित करने, कार्यकारी समिति व अन्य पदाधिकारियों के चुनाव कराने, परियोजना के बैंक खाते चलाने और लेखाजोखा रखने, आदि के लिए किया जा सकता है।
समुदाय आधारित संगठनों सीबीओ की कुछ मूल विशेषताएं
सीबीओज़ की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं इस प्रकार
हैं:
i) सदस्यता आधारित
- यदि किसी गांव में पेयजल योजना, उदाहरणार्थ 'स्वजलधारा, रही हो तो सभी निवासी - घर / कुटुंब इस योजना के तहत आएंगे। ग्राम जन समुदाय इस तरह उस परियोजना के प्रसंग में समुदाय को गठित करता है। लेकिन यह जरूरी नहीं कि हमेशा ऐसा ही हो। किसी नहर सिंचित गांव में जल प्राप्त करने के पात्र सभी कृषक जन सीबीओ का गठन कर • सकते हैं, परंतु ऐसे किसान जिनके भूखंड परियोजना के नियंत्रण क्षेत्र से बाहर पड़ते हैं और वे जल प्राप्त करने के पात्र नहीं हैं तो वे सीबीओ के घटक नहीं हो सकते। नहर द्वारा कई गांवों की भूमि सिंचित की जा सकती है। इस संबंध में अलग-अलग गांवों के किसान सीबीओ के सदस्य बन सकते हैं। नियमानुसार किसी भी सीबीओ के सदस्य एक ही गांव से होते हैं। जबकि परियोजना की वांछनीयताओं में ऐसा तय भी न किया गया हो तो भी प्रबंधकीय, प्रशासनिक, सामाजिक और राजनीतिक लिहाज से ऐसा आवश्यक होगा।
ii) किसी बाह्य अभिकरण से प्रेरणा
- सरकारी कार्यक्रम और परियोजनाएं किसी मंत्रालय अथवा किसी विभाग में सूत्रबद्ध की जाती हैं और सरकारी अभिकरणों, पंचायती राज संस्थाओं अथवा एनजीओज़ द्वारा क्रियान्वित की जाती हैं। सरकारी कार्यक्रम लागू अथवा क्रियान्वित करने वाले अभिकरण को परियोजना क्रियान्वयनकारी अभिकरण, पीआईए (Programme Implementing Agency) कहा जाता है। यह बहुधा पीआईए की ही ज़िम्मेदारी होती है कि सीबीओ को बढ़ावा दे | सीबीओज़ की अन्य विकास अभिकरणों द्वारा भी अपने निजी सहभागितापूर्ण विकास कार्यक्रम और परियोजनाएं लागू करने के लिए स्थापित किया जा सकता है, जैसे एनजीओज़ अथवा निजी दानदाता अभिकरण अथवा बहुपक्षीय आर्थिक सहायता संस्थाएं।
ii) उपान्तीकृत समूहों का प्रतिनिधित्व
- कार्यक्रम प्रबंधन के लिए सीबीओ द्वारा एक कार्यकारी समिति का निर्वाचन / चयन किया जाता है। कार्यकारी समिति में महिलाओं तथा अनुसूचित जातियों और अनूसूचित जनजातियों को शामिल किया जाना अधिकांश सीबीओज़ में अनिवार्य है। चूंकि परियोजना लाभों का समान वितरण इन संगठनों की स्थापना के लिए एक प्रमुख उद्देश्य है, समुदाय में सभी समूहों और व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाता है। बैठकें करवाने के लिए उपयुक्त समय का निर्धारण और एक तटस्थ स्थल का चयन महत्वपूर्ण सोच-विचार का विषय बन जाते हैं। बैठक के लिए स्थल ऐसा चुना जाए जहां बैठक में सभी समूह भाग ले सकें।
iv) अंतर्क्रियात्मक भागीदारी
- स्थानीय स्थिति के प्रश्नावली आधारित आकलन की बजाय, सहभागितापूर्ण ग्रामीण मूल्यांकन, (पीआरए) दृष्टिकोण अपनाया जाता है। स्थानीय लोग अथवा गैर-विशेषज्ञ साधारण जनसमुदाय अब केवल पात्र अर्थात लाभ प्राप्त करने वाले ही नहीं बने रहते। किसी भी सीबीओ में समस्याओं के समाधान निर्मित करते समय वे अपनी स्थिति और आवश्यकताओं का आकलन करने में सक्रिय भागीदार बन जाते हैं। योगदायी, प्रकार्यात्मक और अंतर्क्रियात्मक भागीदारी के विषय में हमने भाग 2.2 में पहले ही चर्चा की है।
v) देशज ज्ञान पर भरोसा
- 'ऊपर से नीचे, विशेषज्ञ प्रेरित विवरण तथा समस्या निदान और समाधान, आदि के लिए प्रायः सीबीओज़ द्वारा प्रयास तब तक नहीं किया जाता जब तक किसी खास प्रकार की समस्या में इसकी मांग पैदा न हो। सीबीओज़ समस्याओं को परिभाषित करने व समाधान ढूंढने के लिए स्थानीय जानकारी और देशज विशेषज्ञता पर भरोसा करते हैं। बाह्य अभिकरणों पर निर्भरता कम से कम कर दी जाती है ताकि स्थायी विकास का मार्ग प्रशस्त किया जा सके।
vi) सामुदायिक योगदान
- वे जिनसे यह अपेक्षा की जाती है कि विकास परियोजना से लाभ कमाएंगे, वे भी परियोजना में अपना योगदान देते हैं। योगदान नकद रूप में हो सकता है। उदाहरण के लिए, किसी वाटरशेड विकास परियोजना में जल-संग्रहण प्राधार की लागत का 10 प्रतिशत उन किसानों द्वारा योगदान दिया जाएगा जो उससे लाभांवित होंगे। योगदान वस्तु रूप में भी हो सकता है। उदाहरण के लिए, एक नलकूप स्वामी किसी जल संग्रहण प्राधार के निर्माण के लिए निःशुल्क जल मुहैया करा सकता है। दूसरी ओर, एक ऐसा किसान जिसके पास देने के लिए अतिरिक्त धन अथवा सामग्री न हो तो वह अपने श्रम का योगदान दे सकता हैं। वह उक्त प्राधार के निर्माण में सहायता कर सकता है। भारत सरकार की स्वजल धारा योजना, पेयजल उपलब्धता के राष्ट्रीय मानदंडों के पालन के लिए ग्राम समुदायों की सहायतार्थ धन प्रदान करती है। यद्यपि इस योजना के अंतर्गत सहायता प्रचुर होती है, योजना की प्रस्थापना के लिए ग्राम समुदाय से साकार योगदान अपेक्षित होता है। एक बार प्रस्थापित हो जाने के बाद समुदाय ही उसके रखरखाव का संपूर्ण दायित्व उठाता है। योगदान के लिए आग्रह का मुख्य उद्देश्य पणधारियों के बीच स्वामित्व का भाव उत्पन्न करना होता है। यदि समुदाय स्वामित्व का भाव विकसित कर लेता है तभी वह उसका रखरखाव करेगा, उसका बुद्धिमानी से प्रयोग करेगा और व्यवस्था को स्थायित्व प्रदान करेगा।
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