औपनिवेशिक स्थापत्य कला | आधुनिक काल स्थापत्य कला |Colonial architecture in Hindi

 

औपनिवेशिक स्थापत्य कला 
आधुनिक काल स्थापत्य कला

औपनिवेशिक स्थापत्य कला | आधुनिक काल स्थापत्य कला |Colonial architecture in Hindi


 

औपनिवेशिक स्थापत्य कला

  • औपनिवेशिक प्रभाव को कार्यालयों के भवनों पर देखा जा सकता है। यूरोपीय लोगों का आगमन 16वीं सदी से होता है। इन्होंने बहुत सारे चर्च और अन्य भवनों का निर्माण किया। 


  • पुर्तगालियों ने गोवा में बहुत सारे चर्चा का निर्माण किया। इन चर्चा में सबसे प्रसिद्ध है | बेसिलिका बोन जीसस तथा 'संत फ्रांसिस का चर्च' 
  • इसके बाद जब ब्रिटिश शासन भारत में हुआ तो उन्होंने रिहायशी और प्रशासनिक भवनों का निर्माण कराया। इन भवनों में साम्राज्य का गौरव झलकता है। स्तम्भों वाले भवनों में मिस्र और रोम का भी कुछ प्रभाव देखने को मिलता है। 
  • दिल्ली में संसद भवन और कनाट प्लेस इसके दो अच्छे उदाहरण हैं। वास्तुकार लुट्यन्स ने राष्ट्रपति भवन का नक्शा बनाया जो भूतपूर्व वायसराय का निवास था। यह लाल पत्थर से बना है और इसमें राजस्थान के जाली व छतरी जैसे डिजाइन हैं। 
  • ब्रिटिश भारत की भूतपूर्व राजधानी कलकत्ता में बना विक्टोरिया स्मारक संगमरमर की बहुत बड़ी इमारत है। यहां अब ब्रिटिशकाल की कलात्मक वस्तुओं का संग्रहालय है।
  • 'राइटर्स बिल्डिंग' जहां ब्रिटिशकाल में सरकारी कर्मचारियों की कई पीढ़ियों ने काम किया, स्वतंत्रता के बाद अब वह बंगाल का प्रशासनिक केन्द्र है। 
  • कलकत्ता के चर्च जैसे सेंटपाल कैथेडरल कुछ 'गाथिक' तत्व देखने को मिलते हैं। अंग्रेजों ने मुंबई में विक्टोरिया टर्मिनल जैसे कुछ खूबसूरत रेलवे टर्मिनल भी बनवाए। साक्ष्य के तौर पर 1947 ई. में आजादी के बाद भी तत्कालीन शैली के भवन देखने को मिलते हैं।
  • फ्रांसीसी वास्तुकलाकार कोरबिजीयर ने चंडीगढ़ के भवन डिजाइन किए। 
  • दिल्ली में आस्ट्रिया के वास्तुकार स्टैन ने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर का वास्तु डिजाइन किया, जहां विश्वभर से आये विचारकों और प्रबुद्ध वर्गों के सम्मेलन होते हैं और तात्कालिक इण्डिया हैबीटेट सैन्टर बनवाया जो राजधानी में बौद्धिक गतिविधियों का केन्द्र है। 
  • पिछले कुछ दशकों में बहुत से भारतीय वास्तुकार हुए जो वास्तु शिल्प के उत्कृष्ट संस्थानों जैसे दिल्ली के 'स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्केटेक्चर' से प्रशिक्षित हुए हैं। राज रैवल और चार्ल्स कोरेया जैसे वास्तुकार देश की नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • राज रैवेल ने स्कोप कॉम्पलैक्स और दिल्ली के जवाहर व्यापार भवन का नक्शा डिजाइन किया है। वे | देशी भवन सामग्रियों जैसे बलुआ पत्थर का उपयोग करते हैं और इसमें वे गर्व का अनुभव करते हैं। उन्होंने रोम की प्लाजाओं में बनाई गई खुली जगहों और सीढ़ियों का उपयोग अपने वास्तु डिजाइनों में किया। इसका उदाहरण दिल्ली में निर्मित सीआइईटी भवन है। 
  • मुंबई के चार्ल्स कोरिया, दिल्ली के कनाट प्लेस में जीवन बीमा योजना भवन के निर्माण के लिए जाने जाते हैं। ऊँचे-ऊँचे भवनों में उसने शीशे के रोशनदानों का प्रयोग किया जिससे प्रकाश आता रहे और ऊँचाई का आभास भी होता रहे। 
  • घरेलू स्थापत्य में पिछले दशक में सभी महानगरों में गृह निर्माण सहकारिता संस्थाएं फैल गई हैं जिन्होंने बेहतरीन योजना के साथ उपयोगिता और सौन्दर्यबोध का मिश्रण किया है।

 

औपनिवेशिक काल  भारत में कस्बे और शहर

 

  • इस खण्ड में हम भारत में कस्बों की और शहरों की योजना के विषय में जानेंगे। यह भी एक बहुत रोचक कहानी है। हम कुछ समय वर्तमान भारत के चार प्रमुख शहरों चेन्नई, मुंबई, कोलकाता और दिल्ली के विस्तार के विषय में चर्चा करने में बिताएंगे। हम इन शहरों के मूल रूपों को रेखांकित करेंगे और इनके महत्त्वपूर्ण संरचनाओं और भवनों के विषय में जानेंगे।

 

  • आपको यह जानवर आश्चर्य होगा कि हड़प्पन सभ्यता जिसे कुछ इतिहासकारों द्वारा सिन्धु सरस्वती सभ्यता भी कहा जाता है, से प्रारंभ करके भारत में नगर योजना का एक बहुत लम्बा इतिहास रहा है जिसे ई.पू. 2350 ईसवी तक भी खोजा जा सकता है।
  • जैसा कि आप पहले पढ़ चुके हैं कि हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो इन दो नगरों में व्यापक प्रणाली व्यवस्था थी, सड़कें थीं जो एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं, एक किला था जो ऊंची जमीन पर बना था और निचले हिस्सों में शेष जनसंख्या रहा करती थी। राजस्थान में कालीबंगा तथा कच्छ में सुखदा में भी इसी प्रकार का नगरीय ढांचा था।
  • ईसा पूर्व 600 शताब्दी से आगे हमें ऐसे कस्बे और शहर मिलते हैं जो दोनों आर्य और द्रविड़ सभ्यताओं से जुड़े हुए हैं। ये हैं राजगिरि, वाराणसी, अयोध्या, हस्तिनापुर, उज्जैन, श्रावस्ती, कपिलवस्तु | और कौशाम्बी एवं कई अन्य। हम मौर्य युग में भी कई कस्बों को देखते हैं जिन्हें जनपद (छोटे कस्बे) और महाजनपद (बड़े कस्बे) कहा जाता था।

 

  • भारत में मुस्लिमों के आने पर दृश्य परिवर्तित हो गया। कस्बों पर इस्लामी प्रभाव दिखाई देने लगा। मस्जिदें, किले, महल अब शहरों में दिखाई देने लगे। अबुल फजल के अनुसार 1594 ई. पश्चात् प्राय: 2387 कस्बे थे। मुख्यतया इसलिए क्योंकि कई बड़े गांव छोटे शहरों में बदल गये जिन्हें कस्बा कहा जाने लगा। इन कस्बों में शीघ्र ही स्थानीय कलाकार और |शिल्पकार रहने लगे जिन्होंने अपने चुने हुए शिल्प में विशेषता प्राप्त करनी प्रारंभ कर दी |जैसे आगरे में चमड़े का काम और संगमरमर का काम सिंध सूती कपड़ों और सिल्क के लिए माना जाने लगा, गुजरात जरी और रेशम के धागों और उनसे बने ब्रोकेट के निर्माण में प्रसिद्ध हो गया जो अन्य देशों को भी भेजा जाता था।

 

  • जैसा कि आप जानते हैं, बाद में 16वीं शताब्दी में भारत में अंग्रेज समुद्री रास्तों से आए और नई बंदरगाहों की स्थापना का प्रारम्भ हुआ जैसे गोआ में पणजी, (1510 ई.), महाराष्ट्र में मुंबई (1532 ई.), मछलीपट्टनम् (1605 ई.), नागपट्टनम् (1658 ई.), दक्षिण में मद्रास (1639 ई.) और पूर्व में कोलकाता (1690 ई.)। ये नई बंदरगाहें अंग्रेजों द्वारा बनाई गईं क्योंकि इस समय इंग्लैंड विश्व का अग्रणी औद्योगिक अर्थव्यवस्था क्षेत्र के रूप में विकसित हो चुका था। 


  • भारत ब्रिटिश उद्योगों के लिए कच्चा माल निर्यात करता था और इनके बने सामान का समृद्ध प्रमुख खरीददार भी था। 1853 ई. के बाद अंग्रेजों द्वारा रेलवे लाइनें भी बिछाई गईं जिससे सामान को अंतरंग भागों से बंदरगाहों तक लाया जा सके या उन क्षेत्रों से संबंध जोड़ा जा सके जो कच्चा माल देते थे या बना हुआ माल लेते थे। 
  • 1905 ई. तक प्राय: 28000 मील लंबी रेलवे लाइनें अंग्रेजों के आर्थिक, राजनैतिक और | सैनिक हितों की पूर्ति करती थीं। डाक और तार की लाइनें भी बिछाई गईं जो संप्रेषण कार्य के लिए आवश्यक थीं।

 

  • 20 वीं शताब्दी के प्रारंभ तक बोम्बे (मुम्बई), कलकत्ता (कोलकाता) और मद्रास (चेन्नई) प्रशासन, व्यापार और उद्योगों के जाने माने महत्वपूर्ण नगरों के रूप में प्रसिद्ध हो गए। कुछ स्थान जैसे कोलकाता में डलहौजी स्कवेयर, फोर्ट स्ट्रीट जार्ज (मद्रास), कनॉट प्लेस (दिल्ली) और समुद्री तट जैसे मुम्बई में मेरीन ड्राइव, आदि अंग्रेजों को उनके निवास इंग्लैण्ड की याद दिलाते थे। लेकिन वे यूरोप के समान अपने वातावरण में ठंडक भी चाहते थे। अत: इन शहरों के पास पहाड़ों पर भारत की तेज गर्मी से बचने के लिए नये हिल स्टेशन बनाए गए जैसे मसूरी, शिमला और नैनीताल उत्तर में पूर्व में दार्जिलिंग और शिलांग, और दक्षिण में नीलगिरि और कोडईकनाल। 

 

  • शहरों में नये आवासीय क्षेत्र भी विकसित होने लगे। जिस क्षेत्र में नागरिक प्रशासन के अधिकारी रहते थे वह क्षेत्र सिविल लाइन्स कहलाया, जबकि छावनी आदि क्षेत्रों में ब्रिटिश आर्मी के अफसर रहा करते थे। क्या आप जानते हैं कि यह दो क्षेत्र अभी भी प्रशासन और सेना के अधिकारियों के उच्च वर्ग के लिए ही पहले की भांति आरक्षित हैं।

 

भारत के चार प्रमुख महानगर चेन्नई, कोलकाता, मुम्बई और दिल्ली की स्थापत्य कला

 




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