वाणिज्यिक (व्यापारिक) बैंकिंग क्या है |क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक | वाणिज्यिक (व्यापारिक) बैंक का अर्थ |Commercial banking in Hindi
वाणिज्यिक (व्यापारिक) बैंकिंग क्या है
वाणिज्यिक (व्यापारिक) बैंक का अर्थ
वाणिज्यिक बैंकिंग (व्यापारिक बैंक) सामान्य परिचय
- यह आर्टिकल वाणिज्यिक बैंकिंग- अर्थ, कार्य एवं विकास से सम्बन्धित से है। जिसमें वाणिज्यिक बैंकों के आशय व कार्यों को जानने के साथ-साथ इनके विकास की प्रक्रिया को भी स्पष्ट करने का प्रयास किया जायेगा। वाणिज्यिक बैंकिंग का मूल आधार मुद्रा के हस्तान्तरण में एक माध्यम बनकर अपना व्यवसाय चलाना है तथा उससे लाभ प्राप्त करना है। प्रारम्भ में इन बैंकों का कार्य व्यापारिक कार्यों तक ही सीमित था लेकिन वर्तमान में जनता के आर्थिक हितों को सुरक्षित करने की जिम्मेदारी इन बैंकों द्वारा स्वीकार की गयी है। इस आधार पर इन वाणिज्यिक बैंकों का विकास अलग-अलग क्रमों में हुआ है तथा उसकी गति भी समयानुसार बदलती रही है।
वाणिज्यिक बैंकिंग: अर्थ एवं वर्गीकरण (व्यापारिक बैंक का अर्थ एवं वर्गीकरण)
आपको वाणिज्यिक बैंकिंग के नाम से यह आभास हो रहा होगा कि 'बैंकिंग' शब्द के साथ वाणिज्यिक शब्द क्यों लगाया गया है? अतः आपको नाम से ही थोड़ा अनुमान लगाना होगा कि वाणिज्यिक बैंकिंग का सम्बन्ध वाणिज्यिक क्रियाओं से अवश्य है।
सामान्य रूप से वाणिज्यिक बैंकिंग के अन्तर्गत बैंक शामिल किये जाते हैं, जो जनता की बचतें एकत्रित करते हैं तथा उन्हें बड़ी तथा छोटी औद्योगिक एवं व्यापारिक इकाईयों को उधार लेकर अपेक्षाकृत अधिक ब्याज पर व्यावासायिक लोगों को उधार देते हैं तथा लाभ कमाते हैं।
वर्तमान में
वाणिज्यिक बैंक व्यावासायिक व्यापारिक कार्यों के साथ गैर-व्यापारिक कार्यों में
भी संलग्न हैं तथा विकासात्मक कार्यों में रूचि प्रकट कर रहें हैं। सारांश रूप में
वाणिज्यिक बैंकिंग का मूल आधार लाभ कमाना है।
प्रो. चैण्डलर के अनुसार वाणिज्यिक (व्यापारिक) बैंक
- प्रो. चैण्डलर के अनुसार इन बैंकों को वाणिज्यिक बैंक के नाम से न पुकारकर अन्य नाम से पुकारा जाना चाहिए। इन्होंने इन बैंकों को वाणिज्यिक बैंक कहना अनुचित तथा भ्रामक बताया। इन बैंकों के पास सामान्यतः अल्पकालीन राशियां ही जमा होती हैं इसीलिए ये अल्पकाल के लिए ही ऋण देने में समर्थ होती हैं।
- वाणिज्यिक बैंक कहलाने वाली बैंकिंग संस्थाओं के कार्यों का विस्तार हुआ है। वर्तमान में इन वाणिज्यिक बैंकों द्वारा केवल व्यापारिक कार्यों के लिए ही ऋण नहीं दिया जाता बल्कि कृषि तथा औद्योगिक विकास के लिए भी ऋण उपलब्ध कराती है।
- इसके अतिरिक्त ये बैंक चैकों के भुगतान, वचत को प्रोत्साहन तथा अनेक प्रकार के कार्यों द्वारा अपने ग्राहकों की सेवा करते हैं। इन वाणिज्यिक बैंकों द्वारा साख सृजन एक महत्वपूर्ण कार्य है जो इनकी प्राथमिक जमाओं पर निर्भर करता है। इन बैंकों द्वारा सृजित साख विनिमय माध्यम का कार्य करती है।
- ये बैंक नये नोट नहीं छापती है और न ही सिक्के ढालती है। इसीलिए चैण्डलर ने इन बैंकों को चैक जमा बैंक कहना उचित समझा। लेकिन व्यापारिक या वाणिज्यिक बैंक नाम अधिक प्रचलित हुआ है। सामान्य रूप से जनता द्वारा कहा जाने वाला बैंक का अभिप्राय ही वाणिज्यिक बैंक है।
भारत में वाणिज्यिक (व्यापारिक) बैंकों का वर्गीकरण
अनुसूचित बैंक (Scheduled] Scheduled Bank)
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक
- निजी क्षेत्र के बैंक
- राष्ट्रीयकृत बैंक
- स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया
गैर-अनुसूचित बैंक (Non-Scheduled Bank)
- विदेशी बैंक
- क्षेत्रिय ग्रामीण बैंक (आर.आर.बी.)
अनुसूचित वाणिज्यिक (व्यापारिक) बैंक
- भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम के अधीन वाणिज्यिक बैंकों को दूसरी अनुसूची में शामिल किया गया है। उन्हें अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक कहा जाता है। इन बैंकों की प्रदत्त पूंजी तथा संचित राशि रू.5 लाख से कम नहीं होनी चाहिए तथा इन बैंकों द्वारा भारतीय रिजर्व बैंकों को इस बारे में संतुष्ट करना होता है कि इनका कार्य कलाप जमा कर्ताओं के हितों के अनुरूप किया जा रहा है इन बैंकों की स्थापना संयुक्त पूंजी कम्पनी के रूप में होती है न कि एकल व्यापारी साझा फर्म के रूप में इन अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को अपनी जमा का एक निश्चित अंश भारतीय रिजर्व बैंक के पास नकद रूप में रखना होता है तथा इनको भारतीय रिजर्व बैंकों के पास समय-समय पर बैंकिंग अधितनयम, 1949 के अन्तर्गत विवरण पत्र भी भेजना होता है।
गैर अनुसूचित बैंक
- गैर-अनुसूचित बैंकों से हमारा तात्पर्य ऐसे बैंकों से है जिन्हें भारतीय रिजर्व बैंकों अधिनियम 1934 की दूसरी अनुसूची में सम्मिलित नहीं किये गये हैं तथा ये बैंकों वैधानिक नगद आरक्षण आवश्यकताओं के अधीन हैं गैर-अनुसूचित बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंकों के पास एक निश्चित राशि नहीं रखनी होती है।
- ये बैंक अपने पास ही नगद राशी रखते हैं। इन बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंकों से उधार लेने तथा रियायती प्रेषण की सुविधा प्राप्त नहीं है।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाऐं पहुँचाने के लिए की गयी थी जहाँ पहले से बैंकिंग सेवाऐं उपलब्ध नहीं थी।
- प्रारम्भ में वर्ष 1975 में 5 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना की गयी थी जो मुरादाबाद, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश), भिवानी (हरियाणा), जयपुर (राजस्थान) तथा मालदा (पश्चिमी बंगाल) में स्थापित की गयी।
- इनकी स्थापना देश में वैयक्तिक राष्ट्रीयकृत वाणिज्यिक बैंकों के प्रायोजन पर की गयी। इन बैंकों का उद्देश्य छोटे तथा उपेक्षित किसानों, कृषि मजदूरों, दस्तकारों और छोटे उद्यमियों को ऋण उपलब्ध कराना था ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादन सम्बन्धी क्रियाकलापों को बढ़ावा मिल सके तथा ग्रामीणों को स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजित हो सके। इन बैंकों की स्थापना ऐसी संकल्पना पर की गयी थी जिसमें सहकारी और वाणिज्यिक दोनों प्रकार की विशेषताऐं विद्यमान हो सकें।
- अप्रैल 1997 से प्राथमिक क्षेत्र को ऋण देने का कार्य भी इन क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को सौंप दिया गया। कुछ स्थितियों के साथ क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को रूपयों में अनिवासी खाते खोलने और रखने की स्वीकृति दी गयी।
- इन बैंकों को और अधिक सुदृढ़ बनाने के लिए सितम्बर 2005 में इन बैंकों को चरणवद्ध तरीके से आपसी विलय करने की प्रक्रिया को प्रारम्भ किया गया।
- 31 मार्च 2010 में इन बैंकों की संख्या 82 थी जिसमें 46 विलयीकृत तथा 36 पृथक बैंक शामिल थीं। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक सिक्किम और गोवा के अलावा सभी राज्यों में कार्यरत हैं। 1987 के बाद कोई क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक नहीं खोला गया है।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक से संबन्धित समितियां
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की कार्यप्रणाली में
सुधार हेतु सरकार द्वारा अनेक समितियां गठित की गयी जिनका संक्षिप्त विवरण निम्न
प्रकार से दिया जा सकता है।
दान्तेवाला समिति
- दान्तेवाला समिति का गठन 1977 में किया गया था। इस समिति ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के संगठनात्मक ढाँचे में सुधार एवं कार्यों में संशोधन करके इनकी संरचना को और अधिक सुदृढ़ करने का सुझाव प्रस्तुत किया।
क्रेफिकार्ड समिति
- इसी क्रम में 1979 में क्रेफिकार्ड समिति का गठन किया गया। इस समिति ने ग्रामीण साख को सुदृढ़ करने में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के महत्व को रेखांकित किया। इस समिति के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में बहुउद्देश्यीय एजेन्सी के रूप में ग्रामीण बैंकों की भूमिका को बढ़ाया जिससे क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का क्षेत्र व्यापक हो सका।
खुसरो समिति
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की कार्यप्रणाली को और अधिक महत्वपूर्ण बनाने के लिए 1989 में खुसरो समिति का गठन किया गया। इस समिति के आधार पर बैंकिंग सेवाओं को ग्रामीण क्षेत्रों में दूर दराज तक ले जाने का उल्लेखनीय कार्य किया।
केलकर समिति
- उदारीकरण तथा वैश्वीकरण के दौर में इन बैंकों को और अधिक उपयोगी बनाये जाना आवश्यक समझा गया। इस संदर्भ में वर्ष 2004 में केलकर समिति का गठन किया गया। इस समिति ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के उद्देश्यों की पुन: समीक्षा की तथा अपनी सिफारिशों में प्रत्येक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के पूंजी आधार को बढ़ाने का सुझाव दिया गया। वर्तमान में देश के ग्रामीण क्षेत्रों के विकास हेतु ये बैंक बढ़ चढ़ कर कार्य कर रहे हैं।
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