समुदाय आधारित संगठन, सीबीओज़ | Community Based Organisations |CBO Kya Hote Hain
CBO Kya Hote Hain
समुदाय आधारित संगठन (सीबीओ)दृष्टिकोण का महत्व और उत्पत्ति
समुदाय आधारित संगठन, सीबीओज़ (Community Based Organisations) सामान्य परिचय
- समुदाय आधारित संगठन (सीबीओज़ ) ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय समुदायों का स्थायी विकास लाने के लिए अपेक्षित सक्षमता रखते हैं। राज्य संस्थाएं और अन्य विकास अभिकरण ग्राम विकास कार्यक्रमों में प्रतिपादन, नियोजन और क्रियान्वयन में समुदाय आधारित संगठनों को उत्तरोत्तर रूप से शामिल करने का प्रयास कर रहे हैं।
- क्रियान्वयन के बाद की अवस्था में सीबीओज़ को ग्राम विकास कार्यक्रमों के माध्यम से बनाई गई परिसम्पत्तियों का स्वामी अर्थात मालिक / प्रबंधक बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
- सीबीओज़ को सामान्य तौर पर बाह्य अभिकरणों से प्रेरणा और सहयोग पाकर स्थापित किया जाता है, जैसे राज्य अथवा अन्य विकास अभिकरण या फिर वृहद् एनजीओज़ भी। कुछ सीबीओज़ देशज समुदाय नेताओं की अभिप्रेरणा तथा भारी उत्साह के साथ स्थानीय समुदायों के भीतर से भी स्वतंत्र रूप से उद्गमित हुए हैं। इस इकाई में हम ऐसे ही सीबीओज़ पर ध्यान केंद्रित करेंगे जो राज्य संस्थाओं व अन्य विकास अभिकरणों से प्रेरणा और सहयोग पाकर स्थापित हुए हैं।
समुदाय आधारित संगठन (सीबीओ) दृष्टिकोण और ग्राम विकास
- ग्राम विकास के दृष्टिकोण, ग्राम विकास की प्रक्रिया में राज्य के ऊपर से नीचे के दृष्टिकोण से विकसित हुए हैं, जिसमें ये दृष्टिकोण लोगों की निष्क्रिय भागीदारी से 'अंतर्क्रियात्मक और योगदायी भागीदारी तक विकसित हुए हैं।
- अन्तिम दृष्टिकोण जो समुदायों के संघटन द्वारा जन भागीदारी को संस्थागत करने के लिए कड़ा प्रयास करता है, उसमें ही समुदाय आधारित संगठनों की मूल विशिष्टता निहित है। इस भाग में हम आपको ग्रामीण समुदायों को स्थायी विकास का लाभ प्रदान करने के लिए समुदाय आधारित संगठनों द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण (सीबीओ दृष्टिकोण) के महत्व और अनिवार्य प्रकृति से अवगत कराएंगे।
समुदाय आधारित संगठन (सीबीओ)दृष्टिकोण का महत्व और उत्पत्ति
- ग्राम विकास कार्यक्रमों के मुख्य उद्देश्य रहे हैं गरीबी उन्मूलन, निरक्षरता मिटाना, स्वास्थ्य में सुधार और ग्रामीण जन समुदाय के जीवन स्तर में अनुवर्ती बढ़ोत्तरी ।
- विगत में अधिकांश ग्राम विकास कार्यक्रम केवल मंत्रालयों और सरकारी विभागों द्वारा ही परिकल्पित और अभिकल्पित किए जाते थे। ग्रामीण लोगों की आवश्यकताओं का आकलन किया गया और राज्य की उच्च संस्थाओं द्वारा कार्यक्रम तैयार किए गए।
- ग्रामीण समुदायों की सार्थक भागीदारी तो दूर की बात है, उनसे कोई सलाह भी नहीं ली जाती थी। ग्राम विकास योजनाएं / कार्यक्रम तब राज्य के विभिन्न कर्मियों द्वारा क्रिर्यान्वित किए जाते थे।
- अधिकांश क्रियान्वयनकारी अभिकरणों और उनके कर्मियों को ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय दशाओं का बहुत कम ज्ञान होता था। और भी बड़ी बात यह है कि वे प्रायः विकास परियोजनाओं अथवा कार्यक्रमों के परिणाम में कम ही रुचि लेते थे। इस में आश्चर्य नहीं कि अनेक पूर्वकालीन ग्राम विकास कार्यक्रम भारतीय राज्य द्वारा किए गए असीम निवेशों के बावजूद अपने लक्ष्य हासिल करने में विफल रहे।
- बाद में, यह महसूस किया गया कि जन-भागीदारी ही ग्राम विकास कार्यक्रमों की सफलता के लिए मुख्य तत्त्व है। भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए गए परंतु इस प्रकार के प्रयास ग्रामीण लोगों की सार्थक और सतत भागीदारी का लाभ उठाने में विफल रहे। लोगों ने विभिन्न राज्य प्रायोजित ग्राम विकास योजनाओं और परियोजनाओं में भाग तो लिया परंतु बहुत ही सीमित तरीके से, अर्थात नाम मात्र और केवल औपचारिक रूप से। उनमें ऐसे ग्राम विकास कार्यक्रमों में किसी सतत तरीके से भागीदारी के लिए उत्साह का अभाव था। कारण यह था कि लोगों ने अपने अंदर ग्राम विकास कार्यक्रमों के प्रति तादात अर्थात संबंध विकसित नहीं किया था। उन्हें लगता था कि अंत में वे विभिन्न ग्राम विकास कार्यक्रमों द्वारा सृजित परिसम्पत्तियों के स्वामी नहीं होंगे। इसी कारण सभी व्यवहारिक उद्देश्यों से, ग्राम विकास कार्यक्रम मुख्यतः सरकारी कार्यक्रम ही बने रहे और वे जनता के कार्यक्रम नहीं बन पाए।
- 1980 के दशक तक विकास कर्ताओं को अहसास हो गया कि ऊपर से नीचे का दृष्टिकोण ग्राम विकास में जनभागीदारी को बढ़ावा देने में विफल रहा है। उन्होंने यह महसूस किया कि ऐसी विकास परियोजनाएं जो मंत्रालयों अथवा अन्य राज्यीय संस्थाओं द्वारा आयोजित की गई हों, उन्हें क्रिर्यान्वित करने के लिए ग्रामीण समुदायों से पूछा जाना ही मात्र पर्याप्त नहीं होता। उन्होंने यह भी महसूस किया कि ग्रामीण समुदायों को ग्राम विकास कार्यक्रमों के सफल क्रियान्वयन के लिए स्थानीय स्तर के योजना निर्माण में अवश्य ही शामिल होना चाहिए।
- यह सोच एकदम सटीक रही, क्योकि अनेक पीढ़ियों से एक क्षेत्र विशेष में रहते-रहते ग्रामीण समुदाय को प्रायः स्थानीय दशाओं का प्रत्यक्ष ज्ञान होता है। यहां तक कि राज्य के तकनीकी और सैद्धांतिक रूप से सुविज्ञ, नेकनीयत और निष्कपट विकास कर्मियों के पास भी ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यमान सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक दशाओं की अंतरंग जानकारी का अभाव हो सकता है।
- विकास प्रतिमान के भीतर यह माना गया कि समुदायों की भूमिका और भागीदारी को ग्राम विकास कार्यक्रमों के कार्यान्वयन से संबंधित कार्यकलापों तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए। बल्कि, ऐसी भागीदारी क्रियान्वयन अवस्था से भी आगे बढ़ाई जानी चाहिए जिसके द्वारा ग्राम विकास कार्यक्रमों के दौरान बनी परिसंपत्तियों की रखरखाव की ज़िम्मेदारी (अथवा स्वामित्व) स्थानीय समुदायों को सौंप देनी चाहिए।
- ग्रामीण क्षेत्रों में विकास प्रयासों द्वारा बनी परिसंपत्तियां प्रायः विकास अभिकरणों द्वारा लापरवाही अथवा बाद में रखरखाव के अभाव की वजह से जीर्ण-शीर्ण हो जाती हैं। चूंकि स्थानीय समुदाय ही ग्राम विकास कार्यक्रमों का प्रत्यक्ष या परोक्ष लाभ में भागीदार होता है, ऐसे कार्यक्रमों द्वारा बनी परिसंपत्तियों की देखभाल करना समुदाय के परम हित में होगा।
- सर्वप्रथम स्थानीय समुदाय ही ग्रामीण क्षेत्रों में किसी भी चूक को संज्ञान लेने वाला अथवा परिसंपत्तियों को पहुंचने वाली किसी भी क्षति से अवगत होता है। इस प्रकार किसी भी विकास परियोजना द्वारा बनी परिसंपत्तियों का रखरखाव बाह्य विकास अभिकरणों अथवा राज्य की संस्थाओं की बजाय समुदाय द्वारा ही कहीं बेहतर हो सकता है। ऐसी स्थिति को कार्यरूप देने के लिए ग्राम विकास कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के बाद की अवस्था के दौरान भी स्थानीय समुदायों और विकास अभिकरणों के बीच एक अंतर्क्रियात्मक सहभागिता कायम रखना आवश्यक होता है।
- ग्राम विकास कार्यक्रमों की सभी अवस्थाओं के दौरान, जैसे संकल्पन, अभिकल्पन, निरूपण, क्रियान्वयन और कार्यान्वयनोत्तर ( परिसंपत्ति का रखरखाव), स्थानीय समुदाय की भागीदारी समेत समग्र प्रक्रिया ग्राम विकास के लिए समुदाय आधारित दृष्टिकोण की बुनियाद रखती है। राज्य की संस्थाओं के पास बड़े एनजीओज़ व अन्य विकास अभिकरण होते हैं, परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी विकास लाने के लिए समुदाय आधारित संगठन ही सर्वाधिक उपयुक्त साधन बन पाए हैं।
विषयसूची -
Post a Comment