उपभोक्ता अदालतों का अधिकार क्षेत्र। उपभोक्ता फोरम । Consumer Forum

उपभोक्ता अदालतों का अधिकार क्षेत्र
उपभोक्ता फोरम

उपभोक्ता अदालतों का अधिकार क्षेत्र। उपभोक्ता फोरम । Consumer Forum


  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत गठित न्यायिक व्यवस्था में जिलाराज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता अदालतें होती हैं। इन्हें क्रमश: जिला फोरमराज्य उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग (राज्य आयोग) तथा राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग (राष्ट्रीय आयोग) के रूप में जाना जाता है। 
  • कोई भी उपभोक्ता या उपभोक्ता संघ वस्तु की कीमत के आधार पर मुआवजा चाहता है तो वह दावे के साथ जिला फोरमराज्य या राष्ट्रीय आयोग में अपनी लिखित शिकायतें दर्ज करा सकता है।
  • यदि वस्तु या सेवाओं की कीमत या मुआवजे का दावा ₹ 20 लाख से अधिक नहीं है तो इन शिकायतों का फैसला जिला फोरम के अधिकार क्षेत्र में आता है। राज्य आयोग को ₹20 लाख से ऊपर और एक करोड़ तक के मामलों की सुनवाई का अधिकार है। जिला फोरम के आदेशों के खिलाफ अपीलों पर भी राज्य आयोग सुनवाई करता है। एक करोड़ रूपये से अधिक के सभी दावे और मामले राष्ट्रीय आयोग के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। इसके साथ ही इसे जिला फोरम और राज्य आयोगों के आदेशों के खिलाफ दायर अपीलों को निपटाने का भी अधिकार हैलेकिन राष्ट्रीय आयोग के आदेशों के खिलाफ यदि अपील करनी हो तो उच्चतम न्यायालय जाना होगा।

 

उपभोक्ता की शिकायतों को निपटाने की प्रक्रिया

 

  • जैसा कि पहले बताया जा चुका हैकोई व्यक्तिगत उपभोक्ता या उपभोक्ताओं का संघ अपनी शिकायतें दर्ज करा सकता है। शिकायतें उस जिले फोरम में दर्ज करायी जा सकती है जहां यह मामला हुआ या जहां विरोधी पक्ष रहता या राज्य सरकार या केन्द्र शासित प्रदेश की सरकार द्वारा अधिसूचित राज्य आयोग के समक्ष अथवा नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय आयोग के समक्ष दर्ज कराई जा सकती है। शिकायत दर्ज कराने का बहुत कम शुल्क है। शिकायतशिकायत कर्ता द्वारा या व्यक्तिगत रूप से उसके अधिकृत एजेंट द्वारा दर्ज करायी जा सकती है या डाक से भेजी जा सकती है। 


निम्नलिखित सूचनाओं के साथ शिकायत की पांच प्रतियां जमा कराई जानी चाहिएँ ।

 

  1. शिकायत कर्ता का नामपता और विवरण.
  2. विरोधी पक्ष या पक्षों का नामपता और विवरण. 
  3. शिकायत से सम्बंधित तथ्य और यह जानकारीकि मामला कब और कहां हुआ। 
  4. शिकायत दर्ज आरोपों के समर्थन में दस्तावेजयदि कोई हो तो (जैसे कैशमेमो,रसीद वगैरह ) 
  5. यह ब्यौरा कि शिकायत कर्ता किस तरह की राहत चाहता है।

 

  • शिकायत पर शिकायत कर्ता या उसके अधिकृत प्रतिनिधि (एजेंट) के हस्ताक्षर होने चाहिएँ । यह जिला फोरमराज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष को संबोधित होनी चाहिए। कोई भी शिकायतमामला उठाने की तारीख से दो वर्ष की अवधि के भीतर दायर की जानी चाहिए।

 

  • यदि इसमें देर होती है और सम्बंधित फोरम या आयोग इसे क्षम्य मान लेता है तो विलम्ब का कारण रिकॉर्ड किया जाना चाहिये।

 

  • जहां तक संभव हो शिकायतों पर विरोधी पक्ष द्वारा नोटिस ग्रहण करने के तीन महीने के भीतर फैसला कर दिया जाना चाहिए। उन मामलों में जहां उत्पादों की प्रयोगशाला में जांच या विश्लेषण की व्यवस्था होनिपटान की समय सीमा पांच महीने की होती है ।

 

  • फोरम या आयोगशिकायतों की प्रकृतिउपभोक्ता द्वारा मांगी गयी राहत और मामले के तथ्यों के अनुरूपनिम्नलिखित में से एक या एक से अधिक राहतों का आदेश दे सकता

 

उपभोक्ता संरक्षण में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका

 

  • गैर सरकारी संगठनलोगों के ऐसे समूह हैंजो बिना किसी आर्थिक लाभ के जन कल्याण को बढ़ावा देने का काम करते हैं। इन स्वयंसेवी संगठनों का अपना संविधान और अपने नियम होते हैं और ये सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त होते हैं। ये संगठन अनुदानों पर और आंशिक रूप से सरकारी सहयोग पर निर्भर करते हैं। उपभोक्ताओं की समस्याओं से सम्बन्धित गैर सरकारी संगठनों को उपभोक्ता संघों या उपभोक्ता संगठनों के रूप में जाना जाता है।

 

  • पिछले दो दशकों में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका महत्वपूर्ण रूप से बढ़ी है। भारत में अब इस तरह के 800 से अधिक संगठन हैं। ये संगठन सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट या कम्पनी एक्ट के अधीन या चैरिटेबल ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत हैं।

 

गैर सरकारी संगठनों ने उपभोक्ता आंदोलन के एक अंग के रूप में विभिन्न गतिविधियां चलाई है। ये कई प्रकार से काम करते हैं ।

 

  • उपभोक्ता अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करना और लोगों को उपभोक्ता समस्याओं और समाधानों के बारे में गोष्ठियोंकार्यशालाओं और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के जरिये जानकारी देना। 
  • उपभोक्ता को कानूनी कार्रवाई करने में सहयोग के जरिये कानूनी परामर्श प्रदान करना। 
  • उपभोक्ता संरक्षण परिषदों तथा अन्य निकायों के प्रतिनिधि के रूप में उपभोक्ताओं के पक्ष की पैरवी करना।  
  • अपनी जांच व्यवस्थाओं या प्रयोगशालाओं में उत्पादों की तुलनात्मक जांच करकेप्रतियोगी ब्रांडों की सम्बंधित गुणवत्ता का मूल्यांकन करना और जांच के परिणामों को प्रकाशित करना ताकि उपभोक्ताओं को सजग ग्राहक बनाया जा सके। 
  • समय समय पर पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन करकेपाठकों तक उपभोक्ता समस्याओंकानूनी जानकारी तथा उपभोक्ताओं की रूचि की अन्य सूचनाएं पहुंचाना। इनमें अधिकांश पत्रव्यावसायिक फर्मों से विज्ञापन स्वीकार नहीं करते।
  • ऐसे सुझाव और सिफारिशें प्रस्तुत करनाजिन पर सरकारी अधिकारियों को नीति निर्धारण और उपभोक्ताओं के हित में किये जाने वाले प्रशासनिक उपाय करते हुए विचार करना चाहिए।
  • कुछ गैर सरकारी संगठनों ने कई मामलों में उपभोक्ता अधिकारों को लागू करने मेंजिन हित याचिकाओं का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया है। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो गैर सरकारी संगठनों ने किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं बल्कि आम लोगों के हित में अदालतों में मुकदमे दायर किये हैं। 

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