प्रत्यक्ष कर क्या होता है | प्रत्यक्ष कर के प्रकार | आय क्या होती है | Direct Tax In Hindi
प्रत्यक्ष कर Direct Tax
आय क्या है ?
- आय पर कर प्रत्यक्ष करों का एक प्रमुख हिस्सा बनता है । परंतु आय की अवधारणा के साथ कुछ खास सवाल जुड़े हैं। प्रथम, आय क्या है ? कर उद्देश्यों से इसकी अवधारणा और पैमाइश कैसे की जाती है?
हिक्स (1939 ) आय को इन शब्दों में परिभाषित करते हैं-
'वह अधिकतम मान जिसका कोई व्यक्ति किसी सप्ताह के दौरान उपभोग कर सकता है और फिर भी सप्ताहांत में उतना ही संपन्न रहता है जितना कि वह सप्ताहांरभ में था।
सायमन (1938) ने आय की जो परिभाषा सुझाई उसे 'विशद आय' कहा जाता है। इस परिभाषा के अनुसार
- व्यक्तिगत आय दो चीजों का कुल योग होती है, यथा- उपभोग में व्यवहृत अधिकारों का बाज़ार मूल्य तथा अवधि के आरंभ एवं अंत के बीच उसके मान में परिवर्तन सामान्यतः, वेतन, आवासीय सम्पत्ति, व्यापार अथवा व्यवसाय, पूँजी लाभ आदि से आय ही आय के घटक माने जाते हैं। इनमें से किसी आय को सीधे परिकलित किया जाता है तो किसी को अध्यारोपित करना पड़ता है (जैसे- स्वामी अधिकृत आवास से किराया कभी-कभी लोग गैर-बाज़ार क्रियाकलापों से भी आय संचित करते हैं (जैसे- घर के खेत में काम करके अथवा घर के कार्यकलापों / व्यापार में मदद करके) । एक अन्य विषय प्राप्त आय और अप्राप्त उगाही आय से जुड़ा है।
- आमतौर पर, अप्राप्त आय को छोड़ दिया जाता है (जैसे- भूमि अथवा परिसम्पत्तियों से पूँजी लाभ) । अंततः, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अवैध गतिविधियों से भी आय होती है। उनसे कैसे निबटें? उत्तर सीधा-सा है - जब कोई आर्थिक क्रियाकलाप अवैध होता है तो उस कृत्य से सृजित आय भी अवैध ही कहलाती है।
1- आय कर
- एक बार आय को परिभाषित कर लिए जाने के बाद अगला प्रश्न यह उठता है कि उस पर कर किस दर से वसूला जाए? विभिन्न प्रकार की आय के बीच अंतर करने का एक बड़ा प्रश्न होता है। क्या इस बात पर ध्यान न देते हुए सभी प्रकार की आय को एक समान समझा जाए कि वह किस कार्यकलाप से और कैसे संचित हुई ?
- आयकर की दर विषयक कोई निर्धारित नियम नहीं हैं और इष्टतम दर जैसा कुछ नहीं होता। आयकर दर सभी देशों में सदैव एक बहस का मुद्दा रही है। भारत में आयकर दरें ऐतिहासिक रूप से ऊँची ही रही हैं (जैसे- सीमांत आयकर दर यथा उच्चतम आय खंड पर कर दर एक समय 97.5 प्रतिशत तक रही है)। अनेक वर्षों में जाकर अब उच्चतम आयकर दर नीचे, लगभग 30 प्रतिशत पर आ पाई है।
- आमतौर पर सरकारें कुछ विशिष्ट आधारों पर आय राशियों के बीच भेद करती हैं और मानक कटौती अथवा मदवार कटौतियों अथवा छूटों रूप में कर रहित आय की अनुमति देती हैं। इस प्रकार की मानक आयकर छूटों में शामिल हैं- अवकाश यात्रा रियायत, मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति उपदान, अवकाश नकदीकरण, छँटनी प्रतिपूर्ति, स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के समय प्राप्त प्रतिपूर्ति, नियोक्ता द्वारा दिए गए अनुलाभों पर कर, नियोक्ता के कानूनीवासियों को सेवानिवर्तन कोष से प्राप्त राशि मकान किराया भत्ता, आदि ।
- मिर्लेस (1971) ने श्रम बाज़ार में रामसे प्रतिदर्श प्रयोग किया और पाया कि जब सरकार कराधान के विरूपणकारी साधन प्रयोग करती है (जैसे- श्रमिक आय कर ) तो वह इष्टतम स्तर पर भी आदर्श पुनर्वितरणात्मक परिणाम प्राप्त नहीं कर सकती ।
- आर्थर लैफर ने तर्क दिया कि जब सरकार कर की दर किसी बिंदु विशेष से आगे बढ़ाती है तो यह प्रति लाभकारी सिद्ध होती हैं और कर राजस्व घटने लगते हैं। उच्च कर दर लोगों को अपने पूर्णतम उत्पादक स्तरों तक काम करने के प्रति अवप्रेरित और हतोत्साहित करती है। दुर्भाग्यवश कर दर की ऐसी किसी भी अधिकतम उच्च सीमा पर मतैक्य नहीं है जिसके बाद यह आपके हिस्से का धन लौटा देती हो। लैफर वक्र प्रभाव विद्यमान कर प्राधार और कर दरों पर निर्भर करता है। जब सरकार कर दरें बढ़ाती हो और कर प्रशासन क्षीण हो तो यह कर वंचना की ओर प्रेरित करता है। निम्न कर दरों पर लोगों को कर वंचना का प्रलोभन अलाभकारी लगता है और इस प्रकार कर अनुपालन उच्च रहता है।
2 निगम कर
निगम कर क्या होता है व्याख्या कीजिए ?
- 'निगम' का अंग्रेजी पर्याय 'कॉर्पोरेशन' लैटिन शब्द 'कॉर्पोरार' से व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ है- किसी निकाय का रूप ले लेना।
- निगम कर निगमों की आय पर लगाए जाने वाले कर को कहा जाता है। निगमित आय कराधान का औचित्य क्या हैं? सविशेषाधिकार तर्क के अनुसार, किसी भी निगम को अस्तित्व में बने रहने और काम करते रहने की स्वीकृति प्राप्त होने के विशेषाधिकार हेतु कर चुकाना चाहिए, जो कि उसे बचत, ऋण उगाही, आदि के लिहाज से अद्वितीय विधिक प्रावधानों की एक श्रृंखला का अधिकार देगा।
- सामाजिक लागत दृष्टिकोण के अनुसार, चूँकि निगम राज्य की राजकीय सेवाओं का उपभोग करते हैं, उन पर कर न्यायसंगत है। नीतिशास्त्रीय तर्क के अनुसार, निगम कर धन-सम्पत्ति के वितरण में असमानताएँ घटाने के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए।
- हालाँकि यह स्पष्ट है कि कोई भी आय एक बार से अधिक कराधीन नहीं होनी चाहिए, निगमित आय एवं लाभांशों पर यह अवधारणा लागू करने में कुछ परेशानियाँ आती ही हैं।
- लाभांश वे भुगतान हैं, जो निगम अपने अर्जित लाभों में से अंशधारकों को चुकाते हैं। यदि निगम एक अलग विधिक इकाई हों तो उचित वही होगा कि निगम के लाभों पर कर वसूलने के बाद लाभांश कमाने वालों की आय पर कर लगाया जाए।
- फिर भी यदि निगमों को अलग विधिक इकाई नहीं माना जाता है तो दोनों पर कर दोहरे कराधान में परिणत होगा, जो कि बदले में निगमों में निवेशार्थ घटे प्रोत्साहनों की ओर प्रवृत्त कर सकता है। दोहरे कराधान की समस्या का हल करने का एक तरीका विविध कर प्रोत्साहन प्रदान करना है, जो चयनित विशिष्ट मुद्दों पर केंद्रित हों ताकि इस क्षेत्र की समग्र कर देयता को कम किया जा सके ।
3 सम्पत्ति कर
सम्पत्ति कर क्या होता है समझाईये ?
- सम्पत्ति कर कराधान के प्राचीनतम रूपों में से एक है। यह संपत्ति मूल्यांकन अथवा नियत राशि के आधार पर किसी वार्षिक शुल्क के रूप में लगाया जा सकता है। यह भू-संपदा एवं दाय संपत्ति पर लगाया जाता है।
- ऐतिहासिक रूप से अध्यारोपित चार प्रमुख प्रकार के संपति कर हैं- अचल संपत्ति कर, भूसंपदा एवं दाय कर, निवल मूल्य कर और पूँजी उद्ग्रहण धन अचल या स्थावर संपत्ति कर स्थानीय सरकारों के लिए राजस्व का एक मुख्य स्रोत है। यह मुख्यतः आवासीय एवं गैर आवासीय भूमि एवं भवनों के प्राधारों पर लगाया जाता है। इसका मुख्य मापदंड संपत्ति का स्वामित्व होता है। यह विवाद का विषय रहा है कि इसे धन-संपत्ति के पूँजी भाग से अलग कर संपत्ति पर कैसे लगाया जाए।
- भू-संपदा एवं दाय कर संपत्ति कर से इस अर्थ में किंचित् भिन्न होता है। कि उसका मूल्यांकन केवल मृत्यु के समय ही किया जाता है। यह भूसंपदा एवं दाय धन-संपत्ति के अधिकांश परिसंपत्ति वर्गों पर अनुप्रयोज्य होता है। चूँकि भू-संपदा करों का आरोपण और संग्रहण जटिल होता है, ये क्रियान्वयन के साथ-साथ राजकोष हेतु राजस्व उगाही में भी विफल ही रहते हैं।
- निवल मूल्य कर विश्व में अध्यारोपित दुर्लभ करों में एक है और क्रियान्वयन में बेहद जटिल भी है। यह कर मुख्यतः पूँजी आय और ऐसी परिसंपत्तियों पर लगाया जाता है जो चालू प्राप्त आय सृजित न करती हों। यह कर भारत में नहीं लगाया जाता पूँजी उद्ग्रहण धन अधिकतर एकदा कर उगाहियों से एकत्र होता है जो कि युद्ध एवं आपदा संबंधी अत्यावश्यकताओं की पूर्ति हेतु होता है। विश्व युद्धों के दौरान अनेक देशों ने ऐसी उगाही की थी।
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