जीवाणु (बैक्टीरिया) के कारण उत्पन्न रोग |Disease caused by bacteria
जीवाणु (बैक्टीरिया) के कारण उत्पन्न रोग
जीवाणु (बैक्टीरिया) के कारण उत्पन्न रोग
- याद रहे अंग्रेजी का बैक्टीरिया शब्द बहुवचन हैं इसका एकवचन बैक्टीरियम है।
1. यक्ष्मा ( तपेदिक) (Tuberculosis)
रोगजनक :
एक जीवाणु (बैक्टीरियम) ( माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस ) संक्रमित व्यक्ति
संचारण की विधि : संक्रमित व्यक्ति के वायुवाहित विसर्जित पदार्थ जैसे थूक, खांसी और छींक - आदि के निकलने पर।
उद्भवन अवधि: 2-10 सप्ताह, इस अवधि में जीवाणु एक आविष (विषैला पदार्थ),ट्यूबरकुलोसिस पैदा करता है ।
ट्यूबरकुलोसिस के लक्षण
(i) लगातार ज्वर व खाँसी
(ii) छाती में दर्द व थूक के साथ रक्तस्राव
(iii) सामान्य कमजोरी
रोकथाम व उपचार
(i) संक्रमण को फैलने से रोकने के लिये रोगी को अलग रखना।
(ii) निरोधक उपाय के तौर पर बच्चों को बी.सी.जी. (B.C.G) के टीके लगवाना । (iii) रहने वाले कमरे हवादार, स्वच्छ व आसपास स्वच्छ वातावरण होना चाहिये । (iv) उपचार हेतु ऐंटीबायोटिक (प्रतिजैविक) दवाइयों का प्रयोग किया जाना चाहिये।
2. टाइफाइड (Typhoid)
रोगजनक : एक बैसीलस, छड्नुमा (दंडाकार) बैक्टीरियम (साल्मोनेला टाइफी, Salmonella typhi)
संचारण विधि : संदूषित भोजन व जल द्वारा
उद्भवन अवधि: लगभग 1-3 सप्ताह
टाइफाइड के लक्षण
(i) लगातार ज्वर, सिरदर्द, धीमी स्पंद ( नाड़ी दर) दर
(ii) पेट पर लाल दाने
(iii) गंभीर स्थितियों में व्रण (घाव, जख्म) (अल्सर Ulcer) के फटने पर रोगी की मृत्यु
रोकथाम व बचाव
(i) ऐंटीटाइफॉइड ( टाइफाइडरोधी) टीकाकरण करवाना चाहिये।
(ii) खुले रखे गए भोजन व पेय नहीं लेना चाहिए।
(iii) उचित स्वच्छता व सफाई का रखरखाव ।
(iv) रोगी के उत्सर्ग (मल, मूत्र, आदि) का उचित निपटान
(v) एंटीबायोटिक्स (प्रतिजैविक) दवाइयां लेनी चाहिये।
3. हैजा ( विसूचिका, कॉलरा Cholera)
यह अक्सर भीड़ वाले व अपर्याप्त स्वच्छता वाली परिस्थितियों में ही फैलता है।
रोगजनक: कोमा (,) के आकार का जीवाणु (विब्रियो कॉलेरी Vibrio cholerae )
संचारण विधि : दूषित खाद्य व जल, घरेलू मक्खी इसकी वाहक है।
उद्भवन अवधि: 6 घंटे से 2-3 दिन
हैजा के लक्षण
(i) तीव्र (अत्यधिक) दस्त, चावल के पानी की तरह का मल
(ii) पेशियों में ऐंठन
(iii) मूत्र द्वारा खनिजों का ह्रास
(iv) निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन) के कारण मृत्यु
हैजा रोकथाम व उपचार
(i) हैजा का टीका दिया जाना चाहिये।
(ii) विद्युत् अपघट्य (Electrolytes) (सोडियम, पोटेशियम, चीनी आदि) पानी में घोलकर रोगी को दिये जाने चाहिये ताकि निर्जलीकरण को रोका जा सके (बाजार में यह मुखीय पुनर्जलीकरण विलयन घोल (ओ.आर.एस ORS, Oral Rehydration Solution ) के नाम से उपलब्ध है।
(iii) खाद्य पदार्थों को भलीभाँति धोकर पकाना चाहिये।
(iv) रोगी के वमन व मल का उचित निपटान करना चाहिये।
(v) मक्खियों को खाद्य पदार्थो व बर्तनों पर बैठने न देना।
4. डिफ्थीरिया (Diptheria)
यह रोग प्रायः 1-5 आयु वर्ग के बच्चों को होता है।
रोगजनक : छड़नुमा (दंडाकार) जीवाणु
(कोर्निबैक्टीरियम डिप्थीरिया Cornybacterium diptherea)
संचारण विधि (संचारण) : वायु द्वारा (बिन्दुक संक्रमण)
उद्भवन अवधि: 2-4 दिन
डिप्थीरिया के लक्षण
(i) हल्का ज्वर, गले में गलदाह / व्रण ( गले में जख्म) व सामान्य अस्वस्थता
(ii) गले में अर्धठोस पदार्थ का रिसना (oozing) जो एक कठोर झिल्ली के रूप में बदल जाता है। इस झिल्ली से वायु पथ अवरूद्ध हो जाने से मृत्यु हो जाती है।
डिप्थीरिया रोकथाम व उपचार
(i) तुरन्त औषधीय उपचार प्रारंभ किया जाना चाहिये।
(ii) शिशुओं को डी.पी.डी. (DPT) का टीका लगाना चाहिये।
(iii) संक्रमित शिशु के थूक (कफ), मुख व नासिका अनावों (discharges) का निपटान उचित ढंग से किया जाना चाहिये।
(iv) डॉक्टरी देख-रेख में एंटीबायोटिक दवाइयां दी जा सकती हैं।
(v) संक्रमित शिशु को अलग रखना चाहिए।
5. कुष्ठ रोग (Leprosy)
संचारण विधि : लंबी अवधि तक संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में रहना, नासिका स्राव पारिवारिक संपर्कों के लिये सर्वाधिक संक्रामक पदार्थ है।
उद्भवन अवधि : 1-5 वर्ष
कुष्ठ रोग लक्षण
(i) त्वचा प्रभावित होना
(ii) गाँठों व व्रण (अल्सर) का बनना
(iii) अंगुलियों व अंगूठों में खुरण्ड (स्कैब) व विकृतियां
(iv) संक्रमित भागों का संवेदनहीन हो जाना
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