अच्छी कर प्रणाली की प्रमुख विशेषताएं |भारतीय कर-प्रणली के दोष/सीमाएँ |Features of a good tax system

अच्छी कर प्रणाली की प्रमुख विशेषताएं

अच्छी कर प्रणाली की प्रमुख विशेषताएं |भारतीय कर-प्रणली के दोष/सीमाएँ |Features of a good tax system

आर्थिक दृष्टि से सबसे अच्छी कर-प्रणाली की प्रमुख विशेषताएं

डाल्टन के अनुसार, “आर्थिक दृष्टि से सबसे अच्छी कर-प्रणाली वह है जिसके अच्छे अथवा सबसे कम बुरे आर्थिक प्रभाव हों।एक अच्छी कर-प्रणाली की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित हैं


(1) करारोपण के सभी सिद्धान्तों का समावेश होना चाहिये (AGood Taxation System should include all Canons of Taxation)- 

  • एक अच्छी कर-प्रणाली में समानता, सुविधा, मितव्ययिता, उत्पादकता, लोचकता, विविधता, सरलता, कोमलता तथा पर्याप्तता, एकरूपता, वांछनीय तथा समन्वय आदि सिद्धान्तों का समावेश होना चाहिये। अन्य शब्दों में, कर प्रणाली में जो भी कर लगाये जाये वह करारोपण के आधारभूत सिद्धान्तों के अनुकूल हों।


(2) प्रत्यक्ष और परोक्ष करों में उचित समायोजन हो (There should be Proper Co-ordination Between Direct and Indirect Taxes)- 

  • एक अच्छी कर-प्रणाली के लिये यह आवश्यक है कि उसमें प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों प्रकार के कर सम्मिलित हों। इसका कारण यह है कि प्रत्यक्ष और परोक्ष कर   एक-दूसरे के पूरक होतेहैं और एक-दूसरे के दोषों का निवारण करते हैं। प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों प्रकार के करों द्वारा ही समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुँचा जा सकता है। डाल्टन के अनुसार, “प्रत्यक्ष और परोक्ष कर-प्रणालियाँ पारस्परिक दोषों को कम करके कर- व्यवस्था में साम्य की स्थापना करती हैं।


(3) एकल और बहुल कर-प्रणालियों का सम्मिश्रण हो (It should be a mixture of Single and Multiple Taxation System)-


  • एकल कर-प्रणाली (Single Tax System) सरकार को सीमित और लोचहीन आय प्रदान करती है। जबकि बहुल कर-प्रणाली (Multiple Tax System) बचत और विनियोग को हतोत्साहित करके उत्पादन पर बुरा प्रभाव डालती है तथा प्रशासन सम्बन्धी कठिनाइयाँ उत्पन्न करती है। अतः एक अच्छी कर-प्रणाली में इन दोनों प्रणालियों का सम्मिश्रण होना चाहिये अर्थात् कर-व्यवस्था में थोड़ी संख्या में इतने कर होने चाहिये कि एक ओर सरकार को अपने विभिन्न उत्तरदायित्वों को पूरा करने हेतु पर्याप्त आय सुलभ होसके और दूसरी ओर जनता का भी न्यूनतम त्याग करना पड़े।


(4) कर-व्यवस्था अधिकतम सामाजिक लाभ के उद्देश्यों की पूर्ति करने वाली (Taxation System should satisfy the objective of Maximum Social Advantage)–

  • कर-प्रणाली ऐसी होनी चाहिये जिसका समाज के आर्थिक तथा सामाजिक जीवन पर कम से कम प्रभाव पड़े। करों को इस प्रकार लगाया जाये कि देश के व्यापार व उद्योग में बाधा न पड़े, समाज में बचत हतोत्साहित न हो और उत्पादन शक्ति पर बुरा प्रभाव न पड़े। डाल्टन के अनुसार, “एक अच्छी कर-प्रणाली वह है जो अधिकतम लाभ के सिद्धान्त या न्यूनतम सामूहिक त्याग के सिद्धान्त पर आधारित हो।अन्य शब्दों में, सरकार द्वारा समाज के विभिन्न वर्गों पर कर के भार का वितरण इस प्रकार किया जाये कि सभी वर्गों की सीमान्त त्याग की मात्रा समान हो।


(5) कर-प्रणाली प्रगतिशील होनी चाहिये (Taxation System should be Progressive)-

  • विभिन्न वर्गों पर कर भार का वितरण उनकी सामर्थ्य और कर दान क्षमता के आधार पर होना चाहिये। जहाँ तक सम्भव हो, कर-प्रणाली में प्रतिगामी अधोगामी और आनुपातिक करो को स्थान नहीं देना चाहिये। कर-व्यवस्था में प्रगतिशील करारोपण होना चाहिये।


(6) शासन की दृष्टि से पर्याप्त नयन्त्रण हो (It should be adequately Controlled)-

  • शासन के दृष्टिकोण से एक अच्छी कर-प्रणाली में दो गुण होने चाहिये- (i) कर- प्रणाली सरल हो, (ii) कर-प्रणाली में भ्रष्टाचार की सम्भावना न हो। अन्य शब्दों में कर-प्रणाली ऐसी होनी चाहिये कि शासन को पर्याप्त आय प्राप्त होती रहे, करदाता किसी प्रकार की गड़बड़ न कर सके तथा कर्मचारियों में भ्रष्टाचार न फैले।


(7) परिवर्तित परिस्थितियों के अनुरूप ढलने वाली हो (It should be Flexible)-

  • एक अच्छी कर-प्रणाली इस रूप में लोचदार होनी चाहिये कि वह अर्थव्यवस्था की बदलती हुई आवश्यकताओं के अनुरूप सुगमता से ढल सके। कर-ढाँचा ऐसा होना चाहिये जिससे आर्थिक उतार-चढ़ावों पर नियन्त्रण पाया जा सके, पूर्ण रोजगार की दशा में आगे बढ़ा जा सके, निरन्तर गतिहीनता की स्थिति से निकाला जा सके और मुद्रा स्फीतिक दशाओं पर अंकुश लगाया जा सके।


भारतीय कर-प्रणली के दोष/सीमाएँ

(1) अप्रत्यक्ष करों का भार अधिक होना (More Burden of Indirect Taxex)- भारतीय कर-प्रणाली न्यायोचित नहीं है, क्योंकि इसमें प्रत्यक्ष करों को अपेक्षा अप्रत्यक्ष करों का भार अधिक है। अप्रत्यक्ष करों का भार निर्धन वर्ग पर अधिक पड़ता है। भारत में अप्रत्यक्ष करों का भार इतना बढ़ता जा रहा है कि एक निम्न वर्ग के व्यक्ति के लिये न्यूनतम जीवन-स्तर बनाय रखना बहुत कठिन हो गया है।

(2) उत्पादन एवं वितरण पर बुरा प्रभाव पड़ना (Adverse Effects on Production and Distribution)- देश के व्यापारियों और उत्पादकों पर कर का भार इतना बढ़ गया है कि वे उत्पादन में किसी प्रकार का उत्साह नहीं दिखाते। यहाँ पर मनोरंजन से लेकर मृत्यु तक प्रत्येक पग पर कर देना पड़ता है।

(3) सरकार की आय निश्चित न होना (Uncertainty about Government Revenue)- सरकार की आय निश्चित नहीं होती, क्योंकि राष्ट्रीय आय का 41% भाग कृषि से प्राप्त होता है और कृषि आज भी वर्षा पर जुआ है। (Indian agriculture is a gamble in rain)

(4) आय के साधनों का दोषपूर्ण वितरण (Faulty Distribution of Revenue Resources)- भारत में संघीय राज्य व्यवस्था है अतः यहाँ पर केन्द्रीय, राज्य और स्थानीय सरकारें हैं। परन्तु इनमें परस्पर आय के साधनों का वितरण दोषपूर्ण है।

(5) प्रगतिशीलता का अभाव (Lack of Progressivity)- भारतीय कर-प्रणाली प्रगतिशील नहीं है। यहाँ पर आय-कर ही केवल प्रगतिशील कर है। यह भी प्रगतिशील गुणों की पूर्ति करने में असमर्थ रहता है, क्योंकि समान आय वाले व्यक्तियों पर समान कर लगाया जाता है, भले ही एक के छः बच्चे हों और दूसरे के एक भी बच्चा न हो।

(6) शासन के दृष्टिकोण से अच्छी न होना (Not Administratively Good)- भारतीय कर-प्रणाली शासन के दृष्टिकोण से भी उत्तम नहीं है क्योंकि यहाँ पर अपर्वचन बहुत होता है। राजकीय कर्मचारियों में भ्रष्टाचार व्याप्त है, लोग करकी चोरी बहुत करते हैं।

(7) वांछित लोच का अभाव (Lack of Desirable Flexibility)- भारतीय कर- प्रणाली में लोच का पूर्णतया अभाव पाया जाता है, जबकि कर-व्यवस्था ऐसी होनी चाहिये कि राष्ट्रीय आय एवं आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ वह स्वयं भी बढ़े।

(8) कर-प्रणाली का स्फूर्तिदायक न होना (Inactive)- कर-प्रणाली का स्वरूप ऐसा होना चाहिये कि वह विनियोग और उत्पादन में वृद्धि करके आर्थिक विकास को गति दे सके, किन्तु भारतीय कर-प्रणाली इस कसौटी पर खरी नहीं उतरती।

(9) जटिल प्रणाली (Complex System)- भारतीय कर-प्रणाली जटिल है और उसमें जल्दी-जल्दी परिवर्तन होता रहता है।



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