प्राचीन भारत की स्थापत्य कला | गुफा स्थापत्य कला | प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला | Gufa Sthapatya Kala
प्राचीन भारत की स्थापत्य कला
प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला
प्राचीन ऐतिहासिक काल या प्राचीन काल
- भारतीय स्थापत्य के एक महत्त्वपूर्ण चरण की शुरुआत मौर्यों के शासन के साथ होती है। मौर्यों की भौतिक समृद्धि तथा नई धार्मिक चेतना ने भारत को हर क्षेत्र में सफलता दिलवाई। यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटोर का राजदूत मेगास्थनीज मौर्यों के दरबार में आया। मेगास्थनीज ने चन्द्रगुप्त मौर्य के महल को स्थापत्य की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि बताया है। चंद्रगुप्त मौर्य का महल विशाल था और लकड़ी का बना हुआ था।
- ईसा पूर्व सन् 322-182बीसी में मौर्य काल में विशेषकर अशोक के राज्य में स्थापत्य कला ने अत्यधिक उन्नति की । मौर्यों की कला और स्थापत्य, फारसी और यूनानी प्रभाव को दर्शाते है। अशोक के शासन काल में अनेक एकाश्म पत्थरों के खंभे स्थापित किए गए।
- इन खंभों में 'धम्म' की शिक्षाओं को अंकित किया गया है। शीर्ष पर जानवरों की आकृतियों वाले यह चमकदार खंभे, बहुत ही विशिष्ट और विलक्षण हैं। सारनाथ का खंभा जिसके शीर्ष पर शेर की आकृति है, भारत गणतंत्र | राष्ट्रीय चिह्न के रूप में स्वीकृत हुई है। हर खंभे का वजन 50 टन तथा उसकी ऊंचाई 50 फीट थी।
- सांची और सारनाथ के स्तूप मौर्यों की स्थापत्य कला की उपलब्धि के प्रतीक हैं। सांची स्तूप के प्रवेश द्वार पर जातक कथाओं का चित्रण उस समय के कलाकारों के सौंदर्यबोध और उनके कौशल का नमूना है।
- यूनानी और भारतीय कला के मिश्रण से बाद में गंधर्व कला विकसित हुई। दूसरी कलाएँ और स्थापत्य की शैली 'मथुरा-शैली' और 'अमरावती शैली' देशी थीं। कुषाण शासकों के प्रभाव में पहली | सदी के बाद इन शैलियों के कलाकारों द्वारा बड़ी संख्या में बुद्ध की मूर्तियां बनाई गईं। |
- गान्धार-कला विद्यालय के अंतर्गत बुद्ध की जीवन्त मूर्तियों में बोधिसत्त्व को यूनानी देवता के समान बनाया गया जबकि समस्त विचार, प्रेरणा तथा विषय भारतीय थे। उनके शारीरिक सौन्दर्य के लिए महंगे गहने, पोशाक का प्रयोग किया जाता था। सभी मूर्तियां पत्थर, टेराकोटा, सीमेंट जैसे पदार्थों से बनीं थी और कुछ मिट्टी की मूर्तियां भी बनी।
- मथुरा शैली की आकृतियां धब्बेदार लाल पत्थर से बनाई गई थीं। उनमें आध्यत्मिकता झलकती थी। यहां हमें बुद्ध मूर्तियों के साथ जैन देवों की भी मूर्तियां देखने को मिलती हैं।
- आंध्र के सातवाहन शासकों के संरक्षण में अमरावती स्कूल विकसित हुआ। गोदावरी के निचले भाग में एक विशाल स्तूप का निर्माण किया गया था। इस स्तूप के गोलाकार खंडों तथा दीवारों पर बहुत ही खूबसूरत नक्काशी की गई है। नागार्जुनकोंडा भी बौद्धों के स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध अन्य प्रमुख नगर है।
- गुप्त काल से ही बिना खंभों वाले हिन्दू मंदिरों का निमाण शुरू गया था। इसका एक उदाहरण देवगढ़ (झांसी जिला) का मंदिर है; जिसके बीच में गर्भ गृह है जिसमें भगवान की मूर्ति स्थापित की गई है। एक और उदाहरण है भर्तृगांव (कानपुर जिला ) । यह दोनों मंदिर इस काल के बेहतरीन उदाहरण हैं।
गुफा स्थापत्य कला
- भारतीय स्थापत्य के इतिहास में गुफा स्थापत्य कला का विकास एक महत्त्वपूर्ण और विशिष्ट चरण है। ई.पू. दूसरी सदी से दसवीं सदी ईसवी के बीच की हजारों गुफाएं खुदाई के दौरान मिली हैं। इनमें सबसे मशहूर महाराष्ट्र की 'अजंता तथा एलोरा' और उड़ीसा की 'उदयगिरि गुफा है। इन गुफाओं में बौद्धों के विहार, चैत्य, मंडप तथा हिन्दू देवी-देवताओं के खंभों वाले मंदिर भी पाए गए हैं।
चट्टानी पत्थरों के मंदिर
- बड़ी-बड़ी चट्टानों को काटकर व तराशकर मंदिरों को निर्माण किया गया। खुदाई के दौरान प्रारंभिक पत्थरों के मंदिर पश्चिमी दक्कन में मिले हैं। ये मंदिर ईसवी सन के प्रारंभ के हैं।
- कार्ले में अवस्थित 'चैत्य' पत्थरों को तराशकर बनाये जाने वाले स्थापत्य कला का असाधारण उदाहरण है। इस चैत्य में एक बहुत बड़ा सभाकक्ष है तथा इसकी दीवारें नक्काशीयुक्त व चमकदार हैं। ऐलोरा का 'कैलाश मंदिर' तथा महाबलीपुरम् का 'रथ मंदिर' पत्थरों को तराशकर बनाए जाने वाले मंदिरों के दूसरे उदाहरण हैं। 'कैलाश मंदिर' का निर्माण राष्ट्रकूटों ने तथा 'रथ मंदिर का निर्माण पल्लवों ने करवाया।
- अनुमानतः पत्थरों के स्थायित्व एवं मजबूती ने कला के संरक्षकों तथा निर्माताओं को आकर्षित किया होगा इसीलिए उन्होंने इन मंदिरों को सुन्दर मूर्तियों से सजाया।
निरावलम्बित मंदिर
- मंदिरों का निर्माण कार्य गुप्तवंश के शासन काल में शुरू हुआ था। गुप्त वंश के राजाओं के शासन काल के बाद भी मंदिरों का निर्माण कार्य जारी रहा। दक्षिण भारत में पल्लव, चोल, पांड्य, होयसाल तथा बाद के काल में विजयनगर के शासक मंदिरों के बहुत बड़े निर्माता रहे हैं।
- महाबलिपुरम् में 'तटीय मंदिर' का निर्माण पल्लव शासकों ने करवाया। पल्लवों ने दूसरे संरचनात्मक मंदिरों का भी निर्माण किया, जैसे कांचीपुरम् के 'कैलाशनाथ मंदिर' तथा 'वैकुंठ पेरूमल-मंदिर' आदि ।
- चोलों ने बहुत सारे मंदिरों का निर्माण कराया। | इनमें तंजौर का 'बृहदेश्वर मंदिर' बहुत प्रसिद्ध है। चोलों ने दक्षिण भारत में मंदिर स्थापत्य की एक दूसरी ही शैली विकसित की । इसे द्रविड़ शैली कहा गया। इस शैली में मंदिर में विमान या शिखर होता है। इसमें ऊंची-ऊंची दीवारें होती हैं तथा मंदिर के प्रवेश द्वार के ऊपर गोपुरम् होता है। बेलूर में बहुत ही भव्य और आकर्षक मंदिरों का निर्माण किया गया है और इनमें रत्नों का उत्कृष्ट प्रयोग अद्वितीय है।
- उत्तर और पूर्वी भारत में भी सुन्दर, आकर्षक मंदिरों का निर्माण किया गया। इन मंदिरों का निर्माण नागर शैली में किया गया है। इनमें से अधिकांश मंदिरों के छत सर्पिल होते हैं जिन्हें 'शिखर' कहा जाता है; मंदिरों की वेदी को 'गर्भ-गृह' कहा जाता है और खंभों की सहायता से बनाया गया 'सभाकक्ष' या 'मंडप' कहलाता
- उड़ीसा में कुछ सुन्दर और आकर्षक मंदिर हैं। इनमें से एक लिंगराज का मंदिर है, जिसका निर्माण 'गंगा' शासकों ने करवाया। इसी तरह 'मुक्तेश्वर' का मंदिर भुवनेश्वर में तथा 'जगन्नाथ' का मंदिर पुरी में है।
- कोणार्क के सूर्य मंदिर का निर्माण | पूर्वी गंगा शासक नरसिंह देव प्रथम ने 13वीं शताब्दी में करवाया। यह मंदिर भगवान 'सूर्य' को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण बारह पहियों के रथ के आकार में किया गया है।
- मध्य प्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र में 'खजुराहो मंदिरों' का निर्माण चंदेल शासकों द्वारा 10वीं तथा 11वीं सदी के बीच में करवाया गया। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण मंदिर 'कंदरिया महादेव का मंदिर है।
- राजस्थान का माऊंट आबू क्षेत्र 'दिलवाडा-मंदिरों के लिए जाना जाता है। 'दिलवाडा-मंदिर' | जैन तीर्थंकरों को समर्पित हैं। ये मन्दिर बिल्कुल सफेद संगमरमर से बने हैं और विशिष्ट मूत्तियों से सुसज्जित हैं। इन मंदिरों का निर्माण 'सोलंकी' शासकों के संरक्षण में हुआ।
- गुजरात का 'सोमनाथ मंदिर', बनारस का 'विश्वनाथ मंदिर', मथुरा का गोविन्द मंदिर, गुवाहटी का 'कामाख्या मंदिर, कश्मीर का 'शंकराचार्य' मंदिर तथा कलकत्ता के कालीघाट का कालीमंदिर आदि दूसरे महत्त्वपूर्ण मंदिर हैं। ये मंदिर भारतीयों के मंदिर निर्माण कार्य में सक्रिय रहने के प्रमाण हैं।
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