संयुक्त पूँजी कम्पनी क्या होती है | संयुक्त पूँजी कम्पनी की विशेषताएँ |संयुक्त पूँजी कम्पनी के बारे में जानकारी | Joint Stock Company in Hindi
संयुक्त पूँजी कम्पनी क्या होती है
संयुक्त स्टॉक कंपनी क्या है
संयुक्त पूँजी कम्पनी के बारे में जानकारी
संयुक्त पूँजी कम्पनी
- एक संयुक्त पूँजी कम्पनी अथवा एक साधारण कम्पनी सदस्यों का एक स्वैच्छिक सगंठन होता है जिसका गठन सामान्यतः किसी बड़ी व्यावसायिक कार्य को करने के लिए किया जाता है। इसकी स्थापना एवं विघटन भी विधि-सम्मत होता है । कम्पनी का अपना अलग वैधानिक अस्तित्व होता है क्योंकि यदि इसके सदस्यों की मृत्यु भी हो जाती है, तब भी कम्पनी का अस्तित्व बना रहता है। इसके सदस्य समान उद्देश्य के लिए धन का अंशदान देते हैं । इस तरह से एकत्रित धन पूँजी कहलाता है। कम्पनी की पूँजी को छोटे-छोटे समान भागों में बांटा जाता है जो अंश कहलाते हैं। चूंकि इसके सदस्य कम्पनी के अंशों को खरीदकर सदस्यता प्राप्त करते हैं इसलिए उन्हें अंशधारी कहा जाता है तथा कम्पनी की पूँजी को अंश पूँजी के नाम से जाना जाता है।
- भारत में, संयुक्त पूँजी कम्पनियां, कम्पनी अधिनियम, 1956 के द्वारा शासित होती हैं। इस अधिनियम के अनुसार कम्पनी से तात्पर्य, इस अधिनियम के अन्तर्गत बनी पंजीकृत कम्पनी अथवा पहले से स्थापित कम्पनी से है। पहले से स्थापित कम्पनी से अभिप्राय है "कम्पनी पहले से किसी पूर्व कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत स्थापित एवं पंजीकृत है।" यह परिभाषा कम्पनी मूल विशेषताओं को स्पष्ट रूप से प्रकट नहीं करती है, तथापि पूर्व कम्पनी एक्ट में दी गई परिभाषा के तथा अन्य न्यायिक निर्णयों के आधार पर इसे निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है- "कानून द्वारा निर्मित ऐसा कृत्रिम व्यक्ति जिसका पृथक-वैधानिक अस्तित्व होने के साथ चिर स्थायी जीवन काल हो ।"
- संयुक्त पूँजी कम्पनी (Joint-stock company) वह व्यावसायिक संगठन है जिसके स्वामी बहुत से अंशपूंजीधारक (शेयरहोल्डर) होते हैं। शेयरहोल्डर का कम्पनी पर स्वामित्व शेयरहोल्डर के शेयरों के अनुपात में होता है.
- एक संयुक्त स्टॉक कंपनी कुछ व्यवसाय पर ले जाने के उद्देश्य से एक स्वैच्छिक संघ है। कानूनी रूप से, यह एक कृत्रिम व्यक्ति है और एक विशिष्ट नाम और एक आम मुहर है। इंग्लैंड के लॉर्ड जस्टिस लिंडले ने संयुक्त स्टॉक कंपनी को "कई व्यक्तियों के एक संघ के रूप में परिभाषित किया है जो एक सामान्य स्टॉक के लिए पैसे या धन का योगदान करते हैं और इसे एक सामान्य उद्देश्य के लिए नियोजित करते हैं।"
- योगदान किया गया आम स्टॉक पैसे में दर्शाया गया है और कंपनी की पूंजी है। वे व्यक्ति जो इसमें योगदान करते हैं या जिनके सदस्य हैं। पूंजी का अनुपात जिसका प्रत्येक सदस्य हकदार है वह उसका हिस्सा है। "
संयुक्त स्टॉक कंपनी शब्दकी कंपनी अधिनियम द्वारा परिभाषा
- शब्द "संयुक्त स्टॉक कंपनी" को भारत में कंपनी अधिनियम द्वारा परिभाषित किया गया है, शेयरों द्वारा विभाजित निश्चित राशि का एक स्थायी भुगतान-योग्य या नाममात्र शेयर पूंजी वाले शेयरों द्वारा सीमित कंपनी के रूप में, और स्टॉक के रूप में हस्तांतरित की गई निश्चित राशि और अपने सदस्यों के केवल उन शेयरों या स्टॉक और अन्य व्यक्तियों के होने के सिद्धांत पर गठित। ”
संयुक्त पूँजी कम्पनी की विशेषताएँ
(क) कृत्रिम व्यक्ति
- एक संयुक्त पूँजी कम्पनी इस अर्थ में कृत्रिम व्यक्ति है कि इसका निर्माण कानून द्वारा हुआ है तथा किसी साधारण व्यक्ति की तरह इसका कोई भौतिक स्वरूप नहीं है। यह न तो खा सकती है और न घूम-फिर ही सकती है; न लिख और पढ़ सकती है; और न ही हंस सकती है तथा न ही विवाह कर सकती है। लेकिन वस्तुतः वास्तविक व्यक्ति की तरह इसका वैधानिक अस्तित्व है।
(ख) स्थापना :
- संयुक्त पूँजी कम्पनी की स्थापना में काफी समय लगता है क्योंकि इसे व्यवसाय शुरू करने से पहले कई वैधानिक दस्तावेजों को पूरा कर, वैधानिक औपचारिकताओं को पूरा करना होता है। एक कम्पनी केवल तभी स्थापित की जा सकती हैं जब कि वह कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत हो । हम अगले पाठ में संयुक्त पूँजी कम्पनी के गठन के विषय में विस्तृत रूप से अध्ययन करेंगे ।
(ग) पृथक वैधानिक अस्तित्व
- कृत्रिम व्यक्ति होने से एक कम्पनी का अस्तित्व इसके सदस्यों से पृथक होता है । यह अपने नाम से संविदा कर सकती है, वस्तुओं की खरीदारी एवं विक्रय कर सकती है, लोगों को नियुक्त कर सकती है तथा कोई भी वैधानिक कार्य कर सकती है। यह मुकदमा चला सकती है एवं इसके विरुद्ध न्यायालय में मुकदमा दायर किया जा सकता है। एक अंशधारी को कम्पनी के किसी भी कार्य के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
(घ) सार्वजनिक मुहर :
- चूंकि कम्पनी का भौतिक अस्तित्व नहीं होता है अतः उसका निदेशक मण्डल ही उसकी ओर से कार्य करता है। लेकिन उनके द्वारा सम्पन्न सभी संविदे पर कम्पनी की मुहर होती है। यह सार्वजनिक मुहर ही कम्पनी के आधिकारिक हस्ताक्षर होते हैं। कम्पनी के एक अधिकारी द्वारा मुहर सहित हस्ताक्षारित दस्तावेज, कम्पनी पर बाध्य होते हैं।
(ङ) स्थायी अस्तित्व :
- कम्पनी का अस्तित्व लम्बे समय तक रहता है। उसके सदस्यों की मृत्यु, पागलपन, दिवालियापन अथवा सेवा-निवृत्ति कम्पनी के जीवन पर कोई प्रभाव नहीं डालती। यह चलती रहती है। चूंकि यह कानून द्वारा स्थापित होती है, इसलिए इसका विघटन भी कानून द्वारा ही संभव है ।
(च) सदस्यों का सीमित उत्तरदायित्व :
- व्यवसाय का कम्पनी स्वरूप लोगों को बड़ी संख्या में अंशों की खरीदारी में निवेश करने के लिए आकर्षित करता है क्योंकि यह उनको सीमित दायित्व की सुविधा प्रदान करता है। एक सदस्य का उत्तरदायित्व उसके अंशों के मूल्य तक ही सीमित रहता है। दूसरे शब्दों में एक सदस्य को उसके अंशों के अंकित मूल्य तक ही उत्तरदायी ठहराया जा सकता है और यदि उसने इनका मूल्य चुका दिया है तो उसे और अधिक राशि देने के लिए नहीं कहा जा सकता। उदाहरण के लिए - यदि 'अ' ने 100 रुपये वाले अंश के सिर्फ 75 रुपये दिये हैं तो उसका दायित्व केवल 25 रुपये तक ही सीमित रहेगा।
(छ) अंशों की हस्तांतरणीयता :
- एक सार्वजनिक कम्पनी के सदस्य अपने अंशों का हस्तांतरण करने के लिए स्वतन्त्र होते हैं। उन्हें अपने अंशों का हस्तांतरण करने के लिए किसी अन्य अंशधारक की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।
(ज) सदस्यता :
- एक निजी कम्पनी की स्थापना के लिए कम से कम दो सदस्य तथा सार्वजनिक कम्पनी की स्थिति में सात सदस्यों की आवश्यकता होती है। एक निजी कम्पनी में सदस्यों की अधिकतम संख्या पचास हो सकती है, जबकि सार्वजनिक कम्पनी में सदस्यों की अधिकतम संख्या के विषय में कोई सीमा निर्धारित नहीं है ।
(झ) प्रजातांत्रिक प्रबन्ध :
- आप जानते हैं कि कम्पनी की पूँजी में विभिन्न वर्गों एवं क्षेत्रों के लोग अपना अंशदान देते हैं। अतः उनके लिए कम्पनी का दिन प्रतिदिन का प्रबन्ध देखना संभव नहीं है । वे कम्पनी की सामान्य नीतियों के निर्धारण में तो भाग ले सकते हैं परन्तु कम्पनी के दिन प्रतिदिन के मामलों का प्रबंध उनके द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि जिन्हें 'निदेशक' कहते हैं, के द्वारा ही किया जाता है ।
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