उपभोक्ता संरक्षण से संबन्धित कानून । उपभोक्ताओं को कानूनी संरक्षण legal protection to consumers

उपभोक्ताओं को कानूनी संरक्षण legal protection to consumers

उपभोक्ता संरक्षण से संबन्धित कानून । उपभोक्ताओं को कानूनी संरक्षण legal protection to consumers

उपभोक्ता संरक्षण से संबन्धित कानून 

भारत सरकार ने उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए पिछले कुछ वर्षों में कई कानून बनाए हैं। इन कानूनों के उद्देश्यों के बारे में यहां संक्षेप में बताया जा रहा है।

  

कृषि उत्पाद ( श्रेणीकरण और विपणन) अधिनियम, 1937 

  • इस अधिनियम के अंतर्गतकृषि उत्पादों के गुणवत्ता स्तर को प्रमाणित करने और उन्हें श्रेणीकृत करने का प्रावधान है तथा इनपर भारत सरकार के कृषि विपणन विभाग की गुणवत्ता प्रमाण सील 'एगमार्कलगाया जा सकता है।

 

औद्योगिक (विकास और नियमन) कानून, 1951 

  • इस कानून में उत्पादन और उत्पादित वस्तुओं के वितरण पर नियंत्रण का प्रावधान है। इस कानून के अनुसार केन्द्र सरकारकिसी भी ऐसे उद्योग की जांच का आदेश जारी कर सकती है। जिसमें उसकी राय में उत्पादन में भारी कमी हुई हैंया उत्पाद की गुणवत्ता में स्पष्ट गिरावट आई हैं या उत्पाद मूल्य में अनुचित बढ़ोत्तरी हुई है। आवश्यक जांच और छानबीन के बाद सरकार स्थिति को सुधारने के निर्देश जारी कर सकती है। यदि निर्देशों का पालन नहीं किया जाता है तो सरकार उस उद्योग को अपने हाथों में भी ले सकती है।

 

खाद्य पदार्थ मिलावट रोकथाम अधिनियम, 1954 

  • यह कानून पहली जून 1955 से लागू हुआ। इसके तहत खाद्य वस्तुओं में मिलावट के लिए कड़े दण्ड का प्रावधान है। ऐसी मिलावट के लिएजो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो तथा जिससे मृत्यु तक हो सकती होउम्र कैद और साथ में ₹3,000 के जुर्माने का प्रावधान है। जांच के लिए निरीक्षक नियुक्त किये जाते हैं। उन्हें वस्तु का नमूना लेकर उसे जांच और विश्लेषण के लिए भेजने का अधिकार है। इस अधिनियम के अंतर्गत मिलावटी और नकली ब्रांड की खाद्य सामग्री के निर्माणआयातभंडारणबिक्री और वितरण से सम्बन्धित अपराध के लिए भी दंड का प्रावधान है।

 

आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 :

  •  इस कानून के तहत सरकार को यह अधिकार है कि वह सार्वजनिक हित में किसी भी वस्तु को आवश्यक वस्तु घोषित कर दे इसके बाद सरकार इस वस्तु के उत्पादनआपूर्ति और वितरण तथा व्यापार को नियंत्रित कर सकती है। इसके तहत मुनाफाखोरोंजमाखोरों और काला बाजारियों की असामाजिक गतिविधियों के खिलाफ कार्रवाई का भी प्रावधान है।


माप-तौल मानक अधिनियम, 1956

  •  इस अधिनियम के अंतर्गत देश भर में तौल के लिए भार और लम्बाई के मानक पैमाने के प्रयोग करने की व्यवस्था है। लम्बाई मापने के लिए मीटर और भार तोलने के लिए किलोग्राम को प्राथमिक इकाई माना गया है। यह कानून लागू होने से पहले देश के विभिन्न हिस्सों में माप तौल की विभिन्न प्रणालियां प्रचलित थीजैसे- वजन के लिए 'पौंड', 'छटांकऔर 'सेरतथा लम्बाई के लिए गजइंच और फुट आदि। इस विभिन्नता और अंतर से व्यापारियों को उपभोक्ताओं के शोषण का मौका मिलता था।

 

एकाधिकार और प्रतिबंधित व्यापार अधिनियम, 1969 : 

  • 1983 और फिर 1984 में संशोधित इस अधिनियम के तहत उपभोक्ता या उपभोक्ताओं के समूहप्रतिबंधित और अनुचित व्यापारिक गतिविधियों के बारे में शिकायतें दर्ज कराकरजांच कराने के अधिकार का उपयोग कर सकते हैं। सरकार ने एक एकाधिकार और प्रतिबंधित व्यापार आयोग (Monopolies and Restrictive Trade Practices Commission) का गठन किया है जिसे आवश्यक छान बीन और जांच के बाद उपभोक्ताओं की शिकायतें निपटाने का अधिकार दिया गया है। आयोग को यह अधिकार भी प्राप्त है कि वह उपभोक्ताओं को हुई किसी भी हानि या नुकसान के लिए मुआवजे के भुगतान का आदेश दें। आयोग जांच के दौरान गलत व्यापारिक गतिविधियों पर अस्थायी रोक लगा सकता है। इस आयोग को एक सिविल कोर्ट के समकक्ष अधिकार दिये गये हैं।

 

कालाबाजारी की रोकथाम और आवश्यक वस्तु आपूर्ति अधिनियम, 1980 

  • इस कानून का प्राथमिक उद्देश्यकाला बाजारी की रोकथाम और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बनाये रखने के लिएदोषी लोगों को हिरासत में लेने की व्यवस्था करना है। इस कानून के उद्देश्य के खिलाफ किसी भी तरह का काम करने वाले लोगों को अधिकतम 6 महीने तक की कैद हो सकती है।

 

भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम, 1986 

  • इस अधिनियम के तहत उपभोक्ता के हितों को बढ़ावा देने के लिए और उनके संरक्षण के एक कारगर उपाय के तौर पर भारतीय मानक संस्थान के स्थान पर भारतीय मानक ब्यूरो का गठन किया गया। इसकी दो मुख्य गतिविधियां हैं : उत्पादकों के लिए गुणवत्ता मानकों का निर्धारण करना और BIS चिन्ह योजना के जरिये उनको प्रमाणित करना। इसके द्वारा निर्धारित गुणवत्ता मानक सुरक्षा और कार्य के अनुरूप पर्याप्त जांच के बाद उत्पादकों को अपने उत्पाद पर मानक चिन्ह ISI प्रयोग करने की अनुमति दी जाती है। अब इस्तेमाल के आवश्यक उत्पादों जैसे रंगीन खाद्य सामग्रीवनस्पतिसीमेंटएल.पी. : जी. सिलेण्डरगैस स्टोवघरेलू बिजली उपकरण आदि पर मानकीकरण चिन्ह का होना अनिवार्य है। कई उत्पादकों ने तो स्वेच्छा से अपने उत्पादों पर यह चिन्ह लिया है। ब्यूरो ने आम उपभोक्ताओं में गुणवत्ता के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए उपभोक्ता मामले विभाग का गठन किया है। एक सार्वजनिक शिकायत प्रकोष्ठ भी हैजिसमें उपभोक्ता ISI मार्क वाली उत्पादों की गुणवत्ता के बारे में अपनी शिकायतें दर्ज करा सकते हैं।


उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 :

  •  यह अधिनियम अन्य किसी कानून की अपेक्षा उपभोक्ताओं को अधिक व्यापक संरक्षण प्रदान करता है। उपभोक्ता बड़े पैमाने पर हो रही व्यापारिक धांधलियों के लिए कानूनी संरक्षण प्राप्त कर सकते हैं। इनमें न केवल वस्तुओं ओर उत्पाद बल्कि बैंकिंगबीमावित्तपरिवहनटेलीफोनविद्युत या अन्य ऊर्जा आपूर्तिआवास मनोरंजन और आमोद-प्रमोद जैसी अनेक सेवाएं भी शामिल हैं। इस अधिनियम के तहत केन्द्र और राज्य स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परिषदों की स्थापना का भी प्रावधान है। उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए इस अधिनियम में अर्द्ध न्यायिक प्रणाली की व्यवस्था है। इसमें उपभोक्ता विवाद निपटाने के लिए जिला फोरमराज्य और राष्ट्रीय आयोग होते हैं। इन्हें उपभोक्ता अदालत माना जा सकता है।

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