कुपोषण का अर्थ कारण एवं प्रभाव |कुपोषण दूर करने के लिए सरकार द्वारा किये गए प्रयास |Meaning, causes and effects of malnutrition
कुपोषण क्या है
- शरीर के लिए आवश्यक सन्तुलित आहार लम्बे समय तक नहीं मिलना ही कुपोषण है। कुपोषण के कारण बच्चों और महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।
- कुपोषण प्रायः पर्याप्त सन्तुलित अहार के अभाव में होता है। बच्चों और स्त्रियों के अधिकांश रोगों की जड़ में कुपोषण ही होता है।
- स्त्रियों में रक्ताल्पता या घेंघा रोग अथवा बच्चों में सूखा रोग या रतौंधी और यहाँ तक की अंधत्व भी कुपोषण के ही दुष्परिणाम हैं।
- इसके अलावा ऐसे अनेक रोग हैं जिनका कारण अपर्याप्त या असन्तुलित भोजन होता है।
कुपोषण का अर्थ?
- कुपोषण (Malnutrition) वह अवस्था है जिसमें पौष्टिक पदार्थ और भोजन, अव्यवस्थित रूप से ग्रहण करने के कारण शरीर को पूरा पोषण नहीं मिल पाता है। चूँकि हम स्वस्थ रहने के लिये भोजन के ज़रिये ऊर्जा और पोषक तत्त्व प्राप्त करते हैं, लेकिन यदि भोजन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन तथा खनिजों सहित पर्याप्त पोषक तत्त्व नहीं मिलते हैं तो हम कुपोषण के शिकार हो सकते हैं। कुपोषण तब भी होता है जब किसी व्यक्ति के आहार में पोषक तत्त्वों की सही मात्रा उपलब्ध नहीं होती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन और
यूनिसेफ के अनुसार कुपोषण के तीन प्रमुख लक्षण हैं:
नाटापन (Stunting) - यदि किसी बच्चे का कद उसकी आयु के अनुपात में कम रह जाता है तो उसे
नाटापन कहते हैं।
निर्बलता (Wasting) - यदि किसी बच्चे का वज़न उसके कद के अनुपात में कम होता है तो उसे
निर्बलता कहा जाता है।
कम वज़न (Underweight) - आयु के अनुपात में कम वजन वाले बच्चों को ‘अंडरवेट’ कहा जाता है।
कुपोषण का प्रभाव
- शरीर को लंबे समय तक संतुलित आहार न मिलने से व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण वह आसानी से किसी भी बीमारी का शिकार हो सकता है।
- कुपोषण बच्चों को सबसे अधिक प्रभावित करता है। आँकड़े बताते हैं कि छोटी उम्र के बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण कुपोषण ही होता है। स्त्रियों में रक्ताल्पता या घेंघा रोग अथवा बच्चों में सूखा रोग या रतौंधी और यहाँ तक कि अंधत्व भी कुपोषण का ही दुष्परिणाम है।
- कुपोषण का सबसे गंभीर प्रभाव मानव उत्पादकता पर देखने को मिलता है और इसके प्रभाव से मानव उत्पादकता लगभग 10-15 प्रतिशत तक कम हो जाती है, जो कि अंततः देश के आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न करती है।
कुपोषण के कारण
- हालिया आँकड़े बताते हैं कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली कुल जनसंख्या का लगभग 25.7 प्रतिशत हिस्सा अभी भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन व्यतीत कर रहा है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह संख्या 13.7 प्रतिशत के करीब है। यद्यपि गरीबी अकेले कुपोषण को जन्म नहीं देती, किंतु यह आम लोगों के लिये पौष्टिक भोजन की उपलब्धता को प्रभावित कर सकती है।
- अधिकांश भोजन और पोषण संबंधी संकट भोजन की कमी के कारण उत्पन्न नहीं होते हैं, बल्कि इसलिये उत्पन्न होते हैं क्योंकि लोग पर्याप्त भोजन प्राप्त करने में समर्थ नहीं हैं।
- जल जीवन का पर्याय है। पीने योग्य पानी की कमी, खराब स्वच्छता और खतरनाक स्वच्छता प्रथाओं के कारण आम लोग जल जनित बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं, जो कि कुपोषण के प्रत्यक्ष कारणों में से एक है।
- देश में पौष्टिक और गुणवत्तापूर्ण आहार के संबंध में जागरूकता की कमी स्पष्ट दिखाई देती है जिसके कारण तकरीबन पूरा परिवार कुपोषण का शिकार हो जाता है।
- बीते कुछ दशकों में जलवायु परिवर्तन से संबंधित प्राकृतिक आपदाओं जैसे- सूखा, चक्रवात, बाढ़, आदि की संख्या में काफी वृद्धि देखने को मिली है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार विश्व के 40 से अधिक विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन के कारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि उत्पादन में हो रही गिरावट आने वाले वर्षों में भूख से पीड़ित लोगों की संख्या में नाटकीय रूप से वृद्धि कर सकती है।
भारतीय संविधान और कुपोषण
- यद्यपि संविधान के अनुच्छेद-21 और अनुच्छेद-47 भारत सरकार को सभी नागरिकों के लिये पर्याप्त भोजन के साथ एक सम्मानित जीवन सुनिश्चित करने हेतु उचित उपाय करने के लिये बाध्य करते हैं। किंतु भारतीय संविधान में भोजन के अधिकार को ‘मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता नहीं प्रदान की गई है।
- अनुच्छेद 21 के मुताबिक, किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन अथवा निजी स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। वहीं संविधान के अनुच्छेद 47 के अनुसार, राज्य अपने लोगों के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने तथा लोक स्वास्थ्य में सुधार को अपने प्राथमिक कर्त्तव्यों के रूप में शामिल करेंगे।
- इस प्रकार संविधान के मूल अधिकारों से संबंधित प्रावधानों में अप्रत्यक्ष जबकि राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों से संबंधित प्रावधानों में प्रत्यक्ष रूप से कुपोषण को खत्म करने की बात की गई है।
कुपोषण दूर करने के लिए सरकार द्वारा किये गए प्रयास
राष्ट्रीय पोषण नीति 1993
- राष्ट्रीय पोषण नीति को सरकार द्वारा वर्ष 1993 में अंगीकार किया गया था। इसके अंतर्गत कुपोषण मिटाने और सबके लिये इष्टतम पोषण का लक्ष्य प्राप्त करने के लिये बहु-सेक्टर संबंधी योजना की वकालत की गई। यह योजना देश भर में पोषण के स्तर की निगरानी करने तथा अच्छे पोषण की आवश्यकता व कुपोषण रोकने की ज़रूरत के संबंध में सरकारी मशीनरी को सुग्राही बनाने पर ज़ोर देती है।
मिड-डे मील कार्यक्रम
- मिड-डे मील कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1995 में केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में की गई थी। इसके पश्चात् वर्ष 2004 में कार्यक्रम में व्यापक परिवर्तन करते हुए मेनू आधारित पका हुआ गर्म भोजन देने की व्यवस्था प्रारंभ की गई। इस योजना के तहत न्यूनतम 200 दिनों हेतु निम्न प्राथमिक स्तर के लिये प्रतिदिन न्यूनतम 300 कैलोरी ऊर्जा एवं 8-12 ग्राम प्रोटीन तथा उच्च प्राथमिक स्तर के लिये न्यूनतम 700 ग्राम कैलोरी ऊर्जा एवं 20 ग्राम प्रोटीन देने का प्रावधान है। यह कार्यक्रम मानव संसाधन विकास मंत्रालय के स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के अंतर्गत आता है।
भारतीय पोषण कृषि कोष
- महिला और बाल विकास मंत्रालय ने वर्ष 2019 में भारतीय पोषण कृषि कोष (BPKK) की स्थापना की थी। इसका उद्देश्य कुपोषण को दूर करने के लिये बहुक्षेत्रीय ढाँचा विकसित करना है जिसके तहत बेहतर पोषक उत्पादों हेतु 128 कृषि जलवायु क्षेत्रों में विविध फसलों के उत्पादन के उत्पादन पर ज़ोर दिया जाएगा।
पोषण अभियान
- वर्ष 2017 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने देश भर में कुपोषण की समस्या को संबोधित करने के लिये पोषण अभियान की शुरुआत की थी। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य परिणामोन्मुखी दृष्टिकोण के माध्यम से देश भर के छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में कुपोषण तथा एनीमिया को चरणबद्ध तरीके से कम करना है। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु अभियान के तहत राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेशों के सभी ज़िलों को शामिल किया गया है।
कार्यक्रमों की असमर्थता का कारण
- बजट 2020 ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि कई पोषण आधारित योजनाओं के तहत किया गया व्यय उनके अधीन आवंटित की गई राशि की तुलना में काफी कम है।
- किसी भी योजना के लिये आवंटित वित्त संसाधनों के अल्प-उपयोग से आगामी वर्षों के लिये होने वाला आवंटन भी प्रभावित होता है, जिससे बजट को बढ़ाने और पोषण योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करने की संभावना भी सीमित हो जाती है।
- कई विशेषज्ञ कृषि को कुपोषण से संबंधित समस्याओं को संबोधित करने का अच्छा तरीका मानते हैं। किंतु देश की पोषण आधारित अधिकांश योजनाओं में इस और ध्यान ही नहीं दिया गया है। पोषण आधारित योजनाओं और कृषि के मध्य संबंध स्थापित करना आवश्यक है, क्योंकि देश की अधिकांश ग्रामीण जनसंख्या आज भी कृषि क्षेत्र पर निर्भर है और सर्वाधिक कुपोषण ग्रामीण क्षेत्रों में ही देखने को मिलता है।
- आँकड़े दर्शाते हैं कि पोषण अभियान, जो कि कुपोषण को संबोधित करने की एक बड़ी पहल है, के लिये आवंटित कुल राशि का 72 प्रतिशत हिस्सा सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी पर खर्च किया जा रहा है, जिसके कारण अभियान के मूल उद्देश्य पीछे छूट रहे हैं।
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