परोक्ष कर का अर्थ |अप्रत्यक्ष कर किसे कहते हैं |Meaning of Indirect tax in Hindi
परोक्ष कर का अर्थ, अप्रत्यक्ष कर किसे कहते हैं
परोक्ष कर/अप्रत्यक्ष कर
- 'उत्पादन शुल्क' या आबकारी कर सभी परोक्ष करों में सर्वाधिक सामान्य कर है। इसके तहत 'उत्पादन प्रक्रिया अथवा विशिष्ट वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रयोग पर कर लगाया जाता है।
- सर्वाधिक प्रसिद्ध उत्पादन करों में शामिल हैं- तंबाकू, मद्य एवं पेट्रोलियम उत्पादों पर कर। उत्पादन शुल्क विशिष्ट अथवा मूल्यानुसार कर के रूप में लगाए जाते हैं।
- राजस्व सृजन के अतिरिक्त उत्पादन शुल्क प्रदूषण जैसी बाह्यताओं की समस्या से निबटने के लिए भी प्रयोग किए जा सकते हैं और हानिकर वस्तुओं के प्रयोग से लोगों को रोकने के लिए भी। बाह्यताओं पर पीगूवादी कर मुख्यतः आबकारी करों के रूप में ही लगाए जाते हैं।
- आमतौर पर अधिकांश उत्पादन शुल्क आपतन अंतिम उपभोक्ताओं पर और कभी-कभी पूर्णतः उन्हीं पर दृष्टिगत होता है (जैस मद्य एवं तंबाकू)। परंतु, कर भार प्रतिगामी होता है क्योंकि अमीर-गरीब सभी इन उत्पादों का प्रयोग करते हैं (जैसे पेट्रोलियम उत्पाद) और निर्धन वर्ग को इन करों के रूप में अपनी कुल आय का अपेक्षाकृत उच्च प्रतिशत चुकाना पड़ता है।
- अनिवार्य वस्तुओं पर उच्च उत्पादन शुल्क प्रायः अवैध व्यापार और तस्करी की ओर प्रवृत्त करता है। भारत में कुछ उत्पादन शुल्क वस्तु एवं सेवा कर (GST) में सन्निविष्ट कर लिए गए हैं, परंतु मद्य एवं पेट्रोलियम पर करों को अभी संयोजित नहीं किया गया है।
मूल्यवर्धित कर (VAT)
- गत वर्षों में, कर प्राधिकारियों के समक्ष वस्तु करों से जुड़ी अनेक समस्याएँ आई हैं। इन करों में अधिकांश प्रतिगामी और अन्यायपरक हैं। कर कानूनों में अस्पष्टता एवं बच निकलने के रास्तों के कारण और इस कारण भी कि कर योग्य अवसर एवं राशि विषयक मतभेद हैं, अनेक अंतराधिकारिक विवाद देखे जाते हैं।
- ऐतिहासिक रूप से, बहु दर प्राधारों वाले वस्तु कर बहुत जटिल रहे हैं। इसमें ऊँची अनुपालन लागत भी शामिल हो जाती है। इसके अलावा, केंद्रीय स्तर पर और केंद्र एवं राज्य कर प्राधिकारियों के बीच समन्वय के अभाव में कराधिक्य का ऊँचा स्तर देखने में आता है। इन सभी समस्याओं के समाधान स्वरूप, मूल्यवर्धित कर (VAT) नाम अप्रत्यक्ष कर के एक नए विचार का प्रस्ताव किया गया।
- यह कर (VAT) उत्पादन एवं वितरण के विभिन्न सोपानों पर वर्धित एवं एकत्रित मूल्य पर उद्ग्रहित एक प्रकार का अप्रत्यक्ष कर है। यह आदर्शतः परोक्ष कर प्रणाली का औचित्य प्रतिपादन करता है। यह श्रेष्ठ है और बीजक आधारित कर गण्यता प्रणाली के कारण स्वयं बाध्यकारी भी। यह कराधिक्य और करांबार दूर करता है। उच्च राजस्व संभाव्यता के कारण कर प्राधिकारियों के लिए उत्तम सर्वोत्तम है। तथापि, अपने गुणों के बावजूद, यह कर (VAT) कोई सरल कर नहीं है। इसका उपयोग दुष्कर है।
- मूल्यवर्धित कर (वैट) तीन प्रकार के होते हैं- सकल उत्पाद वैट, आय वैट और उपभोग वैट । सकल उत्पाद वैट में सभी पूँजीगत वस्तुएँ आती हैं। आय वैट केवल तैयार माल पर कर लगाता है, इसमें पूँजीगत माल का अवमूल्यन शामिल नहीं होता। उपभोग वैट न तो पूँजीगत माल पर कर लगाता है और न ही पूँजी के अवमूल्यन पर यह केवल उपभोग के अंतिम सोपानों पर कर लगाता है।
- उपभोग वैट विश्वभर में मूल्यवर्धित करों में सर्वाधिक लोकप्रिय है। कीन (2013) ने 'C-दक्षता' को 'वैट उत्पादी निष्पादन मापदंड' के रूप में परिभाषित किया। यह समस्त उपभोग पर किसी एकरूप दर से उद्ग्रहीत पूर्णतः बाध्यकारी कर से वैट के प्रस्थान का संकेतक है।
उक्त 'C-दक्षता' को निम्नवत् परिभाषित किया जाता है-
C- दक्षता = (VAT राजस्व ) / ( कर दर उपभोग व्यय)
अथवा
कर दर = ( VAT राजस्व) । (C-दक्षता * उपभोग व्यय)
वस्तु एवं सेवा कर (GST)
यद्यपि वैट के क्रियान्वयन से कुछ समस्याएँ दूर हुईं, माल और सेवाओं का एकीकरण अब भी नहीं हो पाया था । पूर्व जीएसटी कर प्रणाली के साथ ये समस्याएँ जुड़ी थीं
कराधिक्य एवं उच्च कर दरें : 'केंद्रीय उत्पादन शुल्क और वैट के अलावा, केंद्रीय बिक्री कर (CST) वस्तुओं की अंतर्राज्यीय बिक्री पर लिया जाता था
आदान कर समंजन (ITC) : केंद्र सरकार समस्त सैनवैट ( CENVAT) (यथा, केंद्रीय वैट) एवं सेवा कर पर चुनिंदा प्रति समंजन की अनुमति देती थी, जिससे कोई भी निर्धारिति या तो 'केंद्रीय उत्पादन शुल्क के अंतर्गत आ जाता था या फिर 'सेवा कर निर्धारण के तहत । वैट वस्तुओं की अंतह-राज्यीय बिक्री पर वसूला जाता था जबकि आदान कर समंजन (आदाओं एवं पूँजीगत माल पर) केवल वस्तुओं की अंतरा-राज्यीय खरीद पर उपलब्ध होता था।
प्रवेश कर : ऐसे राज्य जहाँ प्रवेश कर' स्थानीय सरकारों की ओर से लिया जाता था और राजस्व उन्हें भेज दिया जाता था, उनके लिए प्रवेश कर एक 'असहाय' लागत ही रहा (जैसे- कर्नाटक, ओडीशा)। 'प्रवेश कर' पर किसी भी आदान कर समंजन (ITC) की अनुमति नहीं थी।
- उपर्युक्त पृष्ठभूमि में, वस्तु एवं सेवा कर (GST) से यही अपेक्षा की गई कि वह इन समस्याओं को दूर करेगा, आधार का विस्तार करेगा, दर प्राधार को निम्नीकृत कर सरलीकृत करेगा और उसके उपयोग एवं प्रवर्तन को सरल एवं कारगर बनाएगा। विश्वभर में मुद्रास्फीति पर इस कर (GST) के प्रभावों का मिला-जुला ही असर देखा गया है। कनाडा, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड ने मुद्रास्फीति का दबाव झेला मगर इंग्लैंड, जर्मनी और मलेशिया में मुद्रास्फीति संबंधी कोई समस्या नहीं आई। भारत में, यह कर मुद्रास्फीति का दबाव नहीं बना पाया है क्योंकि इस कर से थोक-कीमत सूचकांक (WPI) पिटक का एक छोटा प्रतिशत ही प्रभावित हुआ है।
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