खाद्य आधारित कल्याणकारी योजनाएँ |राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन |गरीबी पर PDS का प्रभाव

 खाद्य आधारित कल्याणकारी योजनाएँ

गरीबी पर PDS का प्रभाव 

खाद्य आधारित कल्याणकारी योजनाएँ |राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन |गरीबी पर PDS का प्रभाव



 खाद्य आधारित कल्याणकारी योजनाएँ 

सरकार द्वारा गरीब परिवारों के लिए रियायती कीमतों पर खाद्यान्न वितरण से संबंधित बहुत विशेष कार्यक्रम या योजनाएं आरंभ की गईं हैं। इनमें ये प्रमुख हैं : 

(i) 2000 में प्रारंभ की गई अंत्योदय अन्न योजना (AAY), 

(ii) 2001 में प्रारंभ की गई अन्नपूर्णा योजना, और 

(iii) 2001 में प्रारंभ की गई संपूर्ण ग्रामीण रोज़गार योजना (SGRY)। 


  • AAY का उद्देश्य गरीब परिवारों में सबसे अधिक गरीब (लगभग 5 करोड़ व्यक्तियों) को रियायती खाद्यान्न (गेहूँ रु.2 प्रति किलोग्राम और चावल रु. 3 प्रति किलोग्राम की दर से) देना है जो पूरे वर्ष भर स्थायी आधार पर दिन में दो वक्त का भोजन नहीं जुटा पाते हैं। परिवारों की पहचान ग्राम पंचायतों और ग्रामसभाओं द्वारा की जाती है। अन्नपूर्णा स्कीम का लक्ष्य, 65 वर्ष से अधिक आयु के एक करोड़ गरीब वरिष्ठ नागरिकों (और जो वृद्धावस्था पेंशन स्कीम के अंतर्गत नहीं आते हैं) को प्रति माह प्रति व्यक्ति निःशुल्क 10 किग्रा. खाद्यान्न देना है। 


  • SGRY रोज़गार आधारित कार्यक्रम प्रारंभ करता है जिसमें (केंद्र द्वारा राज्यों को निःशुल्क आपूर्ति किया गया) खाद्यान्न किए गए कार्यों का भुगतान करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है, अर्थात् किए गए कार्य की प्रतिपूर्ति खाद्यान्न के माध्यम से वस्तु रूप में की जाती है। 


  • एक अन्य महत्त्वपूर्ण कल्याणकारी स्कीम सरकारी स्कूलों में "मध्याह्न भोजन कार्यक्रम है जिसमें कक्षा I-VIII के बच्चों को पका हुआ भोजन दिया जाता है। कार्यक्रम का लक्ष्य स्कूल में बच्चों को आने के लिए प्रोत्साहन देने के अलावा गरीब बच्चों का ऊर्जा और प्रोटीन स्तर बढ़ाना है। अतिरिक्त पोषक तत्व, जैसे लौह, फॉलिक एसिड और विटामिन ई अभिसरण की बृहत्तर स्कीम अर्थात् "राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन" (NRHM) में पूरक के रूप में गरीब बच्चों को भी दिये जाते है।

 

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM)

 

  • NFSM फसल विकास स्कीम के रूप में 2007 में प्रारंभ किया गया था। मिशन का लक्ष्य चावल, गेहूँ और दलहनों के उत्पादन में क्रमशः 10, 8 और 2 मिलियन टन की वृद्धि प्राप्त करना है। इस उपलब्धि का समय लक्ष्य ग्यारहवीं योजना की समाप्ति तक, अर्थात् 2012 तक था। मिशन ने अतिरिक्त खाद्यान्न के 25 मिलियन टन का उत्पादन अपना लक्ष्य एक वर्ष पहले ही प्राप्त कर लिया है। मिशन की कार्यविधि में शामिल है : नई कृषि पद्धतियों का प्रवर्तन, HYV बीजों का वितरण, उच्चतर उत्पादकता के लिए मृदा की उर्वरता बढ़ाने के लिए उसका उपचार, आदि ।

 

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा (NFS) विधेयक

 

  • प्राथमिकता परिवारों को खाद्यान्नों के प्रावधान पर बल देने के अलावा NFS विधेयक लक्ष्यित PDS में निम्नलिखित द्वारा सुधार करने का प्रस्ताव करता है: (i) खाद्यान्नों का दरवाजे पर वितरण, और (ii) ICT ( अर्थात् सूचना और संचार प्रौद्योगिकी) का प्रयोग पश्चोयुक्त को एकमात्र पहचान संख्या के आबंटन की स्कीम "आधार" से लाभभोगियों के सटीक पहचान / निर्धारण में बल मिला है। खाद्यान्नों की आपूर्ति न होने के मामले में विधेयक लाभभोगियों को खाद्य सुरक्षा भत्ता देने का प्रस्ताव करता है। विधेयक सामाजिक लेखा परीक्षा, शिकायत निवारण क्रियाविधि की स्थापना, सतर्कता समितियों का गठन आदि जैसे उपायों से पारदर्शिता और जवाबदेही का प्रावधान करता है।

 

 खाद्य सुरक्षा का सरकारी नीति का प्रभाव

 

प्रापण की सरकार की नीतियों, PDS के अधीन वितरण आदि के खाद्य सुरक्षा पर नकारात्मक और सकारात्मक दोनों प्रभाव हुए हैं। इन्हें निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है। 

अत्यधिक स्टॉक के परिणाम

  • आवश्यकता को ध्यान में रखे बिना प्रापण की नीति के कई हानिकार प्रभाव होते हैं। पहला, यह उपभोक्ताओं को अनाज की अधिक निर्बाध सुलभता से वंचित करता है। यदि खाद्यान्नों का प्रापण उस सीमा तक नहीं किया गया होता तो बाजार में अधिक मात्रा में उपलब्ध होता। दूसरा मामला यह नहीं है कि यह अतिरिक्त प्रापण बफर स्टॉक बढ़ाने के हित में था खाद्यान्नों का स्टाक साधारणतया बफर स्टॉक मानकों से काफी अधिक है और इस अतिरिक्त स्टॉक को भरने से केवल उनके भंडारण की अतिरिक्त लागत होती है। तीसरा, आवश्यकता से अधिक प्रापण कीमतों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है। यदि बाजार में अतिरिक्त आपूर्तियां उपलब्ध होतीं तो इसकी कीमतों पर संतुलित प्रभाव होता। अंत में, यह सामान्य ज्ञान है कि भंडारण के दौरान क्षतियां भंडारण की अवधि पर निर्भर करती हैं, भंडारण की अवधि जितनी लंबी होगी, क्षतियां भी उतनी अधिक होंगी।

 

अस्वस्थकर / अधारणीय उत्पादन पद्धतियां: 

  • चावल की उच्च प्रापण कीमतों ने किसानों को चावल उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया। यह अत्यधिक जल प्रधान फसल है। अभिजीत सेन समिति द्वारा दीर्घकालिक अनाज प्रबंधन समिति की रिपोर्ट में प्रेक्षण किया कि यह "एकधा सस्यन प्रणाली जो पर्यावरण की दृष्टि से अधारणीय है, उन क्षेत्रों में हुई है जो दीर्घकालिक धारणीयता की दृष्टि से चावल उत्पादन के लिए उपयुक्त नहीं थे। इसके अलावा किसानों को निःशुल्क विद्युत आपूर्ति से दुर्लभ उभयनिष्ठ संपदा संसाधन जैसे भौमजल का अपव्ययी प्रयोग हुआ, जो लंबे समय तक विद्यमान नहीं चल सकता। सिंचाई के लिए भौमजल के सघन प्रयोग के फलस्वरूप इन क्षेत्रों में भौमजल स्तर क्षीण हो गये। अब किसानों को पानी के लिए अधिक गहरी बोरिंग करनी पड़ती है। इससे सिंचाई लागत में भारी वृद्धि हुई है।

 

PDS का विकेंद्रीकरण

  • पिछले कुछ समय से केंद्र ने राज्य सरकारों को सस्ती दरों पर BPL परिवारों के लिए खाद्यान्न के स्थान पर वित्तीय सहायता दे रही है। यद्यपि इस मय उनकी अपनी ही आधारभूत कठिनाइयों के कारण बहुत से राज्य इस नीति को अपनाने के लिए आगे नहीं आए, यह भय है कि विकेंद्रीकृत प्रापण से कम प्रापण की संभावना बढ़ सकती है, यहां तक कि प्रापण बंद हो सकता है जो गरीब किसानों (जो आपात बिक्री करने के लिए विवश होते हैं) के हित के विरुद्ध हो सकता है। अभिजीत सेन समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में केंद्र / FCI द्वारा खाद्यान्न के खुले प्रापण की विद्यमान न्यूनतम समर्थन मूल्य आधार प्रणाली जारी रखने की सिफारिश की। परंतु समिति ने किसानों की वास्तविक उत्पादन लागत प्रतिबिंबित करने के लिए MSP के युक्तीकरण की वकालत की है।

 

खाद्यान्नों का निर्यात 

  • उत्पादन में वृद्धि से भारत खाद्यान्नों का वास्तविक निर्यातक हो गया है। यह तब भी हो रहा है जब देश की जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग भूखा रहता है। गेहूँ का निर्यात मूल्य रु.4310 प्रति टन रखा गया है। इसका अर्थ यह है कि सरकार विदेशी राष्ट्रों को अनाज (गेहूँ और चावल) BPL परिवारों को बेची गई कीमत पर बेच रहा है जो इसकी आर्थिक लागत के आधे से भी कम है। दूसरी ओर सरकार इस दावे पर BPL परिवारों के लिए प्राचलन कीमत को कम करना अस्वीकार करती है कि इससे साहाय्य का भार आगे अधिक बढ़ेगा। परंतु दूसरी ओर, यह खाद्यान्न निर्यात को भारी साहाय्य देना जारी रख रही है। इस प्रकार भारतीय करदाताओं द्वारा भुगतान किये गये खाद्य साहाय्य का लाभ विदेशी उपभोक्ताओं और पशुचारा विनिर्माताओं द्वारा उपभोग किया जा रहा है। गरीब भारतीय परिवारों जिनके लिए यह अभिप्रेत है, के बदले ये साहाय्य पशुचारा विनिर्माताओं द्वारा (दक्षिण कोरिया, मलेशिया, बंग्लादेश, UAE, इंडोनेशिया, ओमान, इराक और फिलीपाइन्स जैसे देशों में) उपयोग किया जा रहा है।

 

गरीबी पर PDS का प्रभाव : लोक वितरण प्रणाली और गरीबी 

  • PDS से गरीबों को आय अंतरण के आधार पर लाभ कम है क्योंकि गरीबी की बहुत बड़ी संख्या वाले राज्यों में PDS प्रभावी नहीं है। परिणामतः PDS के निष्पादन में व्यापारिक राज्यांतरिक अंतर और गरीबी स्तरों में घटाव हुआ है। बहुत अध्ययनों ने प्रकट किया है कि बहुत गरीब परिवारों को राशन कार्ड से वंचित किया गया है, जबकि बहुत गैर-गरीब परिवार राशन कार्ड प्राप्त करने में सफल हुए हैं। इस प्रकार टाईप ई और टाईप एफ त्रुटियों के उच्च स्तरों ने भारत में PDS की कार्यदक्षता को बाधित किया है। इन कारकों के कारण PDS पर साहाय्य अप्रभावी ढंग से उपयोग किया गया है।


  • NSS उपभोग आंकड़े दिखाते हैं कि PDS ने गरीबों की खाद्य खरीदों का केवल लगभग 8 से 20 प्रतिशत दिया है, शेष खुला बाजार क्रय द्वारा खरीदा गया । इसलिए PDS में अत्यधिक सुधारों की आवश्यकता है। इन कमियों के बावजूद सुरक्षित तरीके से सस्ता PDS गरीबों के लिए खाद्य सुरक्षा का सर्वोत्तम रूप हो सकता है।

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