वाणिज्यिक (व्यापारिक) बैंकों की समस्याएँ |Problems of Commercial Banks in Hindi
वाणिज्यिक (व्यापारिक) बैंकों की समस्याएँ
वाणिज्यिक (व्यापारिक) बैंकों की समस्याएँ
वाणिज्यिक बैंको के कार्य सम्पादन में आने वाली प्रमुख समस्याओं को निम्न रूप में समझा जा सकता है।
1. जनसंख्या का बढ़ता भार
- यद्यपि वाणिज्यिक बैंकों की शाखाओं में लगातार वृद्धि हो रही है फिर भी जनसंख्या के बढ़ते भार तथा क्रिया कलापों में वृद्धि के कारण बैंकिंग प्रणाली सफलता पूर्वक कार्य करने में पीछे रहती है। बैंकों में अत्यधिक भीड़ तथा ओवर लोड की समस्या बनी रहती है।
2. ऋण वापसी की समस्या
- वाणिज्यिक बैंकों द्वारा यद्यपि ऋण स्वीकृत करने तथा उपलब्ध कराने में ग्राहक की साख तथा अन्य पक्षों की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर ली जाती है फिर भी बैंकों की गैर-निष्पादित परिसम्पतियां बैंकों के सामने समस्या पैदा करती हैं इससे बैंकों की साख सृजन क्षमता तथा कार्य प्रणाली प्रतिकूल रूप् से प्रभावित होती हैं।
3. फर्जीबाड़े की समस्या
- बैंकों के सामने धोखाधड़ी तथा फर्जीबाड़ा जैसे अनेक समस्याऐं सामने आ रहती हैं। फर्जी हस्ताक्षर से धनराशि निकालना, ए.टी.एम कार्ड का नम्बर चुराना, फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत करना, ऋण का दुरूपयोग करना आदि कार्य बैंकिंग प्रणाली की कार्य कुशलता में बाधक हैं।
4. अशिक्षित ग्राहकों सम्बन्धी समस्या
- ग्रामीण तथा शहरी मलिन बस्तियों में बैंक ग्राहकों की निरक्षरता तथा अशिक्षा भी बैंकों के सामने एक समस्या है। बैंकिंग योजनाओं का पूर्ण प्रचार नहीं हो पाता है। सरकारी योजनाओं के बारे में अधिक धनराशि पर हस्ताक्षर या अंगूठा निशान लगाकर कम धनराशि देना एवं बैंक नियमों की अवहेलना करना इस प्रकार की अनेक समस्याऐं हैं।
5. कर्मचारियों के व्यवहार सम्बन्धी समस्या
- दूर-दराज ग्रामीण क्षेत्रों में सामान रूप से सरकारी कार्य करते हैं जिसके परिणाम स्वरूप वह अपने ग्राहकों के साथ उचित व्यवहार नहीं करता है एवं बैंकिंग सुविधाओं। कार्यक्रमों पर अधिक जोड़ नहीं देता है जिसके आधार पर वह शहरी क्षेत्रों की ओर ट्रांसफर कराना चाहता है।
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