सार्वजनिक वितरण प्रणाली |लोक वितरण प्रणाली | Public Distribution System- PDS
सार्वजनिक वितरण प्रणाली
लोक वितरण प्रणाली
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System- PDS)
- देश में लोगों को विभिन्न आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति को उचित कीमतों पर व उचित समय पर उपलब्ध करवाने तथा उनके पोषण के उचित स्तर को बनाये रखने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System- PDS) को एक प्राथमिक उपकरण (Intrument) के रूप में प्रयोग किया गया है।
भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का इतिहास PDS History in Hindi
- स्वतंत्रता के पहले द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारंभ (सन् 1939) से माना जाता है। उस समय औपनिवेशिक सरकार ने गरीबों को कुछ चुने हुए शहरों में सस्ती दरों पर अनाज उपलब्ध कराया था। इसके बाद समय-समय पर जरुरतों के मुताबिक पीडीएस का स्वरूप बदलता रहा।
- आज भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली को केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा समवर्ती सूची के अंतर्गत सामूहिक रूप से संचालित किया जाता है। इस संदर्भ में केन्द्र सरकार की भूमिका आवश्यक वस्तुओं का अधिग्रहण (Procurement), उनका भंडारण तथा उन्हें बड़ी मात्रा में गंतव्य स्थान तक पहुँचाने की होती है, जबकि राज्य सरकारों की भूमिका गंतव्य स्थान से वस्तुओं को उठाने एवं उन्हें उचित मूल्य की दुकानों (Fair Price Shops- FPSs) तक पहुँचाने तथा उपभोक्ताओं तक वितरित करने की होती है।
- एक आँकड़े के मुताबिक वर्तमान में पूरे देश में 5 लाख से भी अधिक उचित मूल्य की दुकानों (Fair Price Shops- FPSs) का नेटवर्क है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली -एक देश, एक
राशन कार्ड की भूमिका
- खाद्य, सार्वजनिक वितरण व उपभोक्ता मंत्रालय पूरे देश में ‘एक देश, एक राशन कार्ड’ योजना लागू करने की दिशा में कार्य कर रहा है।
- इस योजना के तहत किसी भी राज्य का व्यक्ति किसी भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकान से राशन ले सकता है। गौरतलब है कि सभी राशन कार्डों को आधार कार्ड से जोड़ने और पॉइंट ऑफ सेल (Point of Sale PoS) मशीन के माध्यम से खाद्यान्न वितरण की व्यवस्था अपने अंतिम चरण में है।
- वर्तमान में आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, राजस्थान, तेलंगाना और त्रिपुरा ऐसे 10 राज्य हैं, जहाँ खाद्य वितरण का 100 प्रतिशत कार्य पॉइंट ऑफ सेल (PoS) मशीनों के जरिये हो रहा है। साथ ही इन राज्यों में सार्वजनिक वितरण की सभी दुकानों को इंटरनेट से जोड़ा जा चुका है। इन राज्यों में लाभार्थी सार्वजनिक वितरण की किसी भी दुकान से अनाज प्राप्त कर सकते हैं।
- गौरतलब है कि पीडीएस के इंटीग्रेटेड मैनेजमेंट के तहत राशन कार्डों की एक सेंट्रल रिपॉजिटरी (केंद्रीय संग्रह केंद्र) बनाई जाएगी, ताकि राष्ट्रीय स्तर पर दोहरीकरण से बचा जा सके। इस नई व्यवस्था के कारण लोग देशभर में एक ही राशन कार्ड का इस्तेमाल कर सकेंगे।
- दरअसल, सरकार की तैयारी है कि आधार कार्ड की तर्ज पर हर एक राशन कार्ड को एक विशिष्ट (यूनिक) पहचान नंबर दिया जाएगा। इससे फर्जी राशन कार्ड बनाना काफी मुश्किल हो जाएगा। इसके साथ ही सरकार ऐसी व्यवस्था करेगी, जिसमें एक ऑनलाइन एकीकृत (इंटीगेटेड) सिस्टम बनाया जाएगा। इस सिस्टम में राशन कार्ड का डेटा स्टोर होगा। इसके बन जाने के बाद अगर देश में कहीं भी कोई फर्जी राशन कार्ड बनवाने की कोशिश करेगा, तो इस सिस्टम के जरिये से पता चल जाएगा। इसके बाद अगर कोई नया राशन कार्ड बनवाने जाता है, तो वह ऐसा कर नहीं पाएगा।
- इस ऑनलाइन सिस्टम का एक बड़ा फायदा यह भी होगा कि कोई भी लाभार्थी देश के किसी हिस्से में और किसी भी राशन की दुकान पर सब्सिडी वाला अनाज ले सकेंगे। एक बार यह ऑनलाइन नेटवर्क तैयार हो गया, तो दूसरे राज्यों में नौकरी के सिलसिले में गए लोगों को कहीं से भी राशन लेने की सुविधा मिल जाएगी। इससे काफी बड़े स्तर पर लोगों को फायदा मिलेगा।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लाभ
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के कई लाभ हैं लेकिन
उनमें से कुछ प्रमुख लाभों की चर्चा निम्नलिखित है-
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली, न केवल खुले बाजार (Open Market) में आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रण में रखती है बल्कि उनके सामाजिक वितरण को भी सुनिश्चित करने में मदद करती है।
- पीडीएस के तहत खाद्यान्न एवं अन्य जरूरी वस्तुओं को उपलब्ध कराया जाता है, इसलिए इसके द्वारा कुपोषण की समस्या से निपटा जा सकता है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में ‘द लैंसेट’ के जर्नल में प्रकाशित ‘द बर्डन ऑफ चाइल्ड एण्ड मैटरनल मालन्यूट्रिशन एण्ड ट्रेंडस इन इट्स इंडीकेटर्स इन द स्टेट्स ऑफ इंडियाः ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज 1990-2017’ में बताया गया है कि भारत में पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की कुल मृत्यु दर और कुपोषण मृत्यु दर में सन् 1990 से 2017 के दौरान गिरावट आयी है, लेकिन कुपोषण अभी भी पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु का सर्वप्रमुख कारक बना हुआ है। इस प्रकार स्पष्ट है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के द्वारा यदि उचित मूल्य पर पोषण युक्त अनाज उपलब्ध कराया जायेगा तो कुपोषण के विभिन्न रूपों (यथा-चाइल्ड स्टंटिंग, चाइल्ड वेस्टिंग, बच्चों व महिलाओं में एनीमिया, चाइल्ड अंडरवेट इत्यादि) से छुटकारा पाया जा सकता है।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली से आवश्यक वस्तुओं को उपलब्ध कराकर भारत से निरपेक्ष गरीबी को कम किया जा सकता है। विदित है कि निरपेक्ष गरीबी में संबंधित व्यक्ति ऊर्जा (Energy) की आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाता है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली में FCI एफसीआई की भूमिका
- खाद्य अनाजों की खरीद, भंडारण और परिचालन हेतु भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) भारत सरकार की नोडल एजेंसी है। एफसीआई, खाद्य अनाज की पहले खरीददारी करती है और फिर सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस), खुली बाजार बिक्री योजना (Open Market Sale Scheme-OMSS) एवं अन्य कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से अनाज का जनता में वितरण करती है। गौरतलब है कि खाद्य मुद्रास्फीति की प्रवृत्तियों को बढ़ाने एवं अन्य योजनाओं हेतु खुले बाजार में अनाज की बिक्री खुली बाजार बिक्री योजना के तहत की जाती है।
एफसीआई की स्थापना 1965 में खाद्य निगम अधिनियम, 1964 के तहत की गयी थी। इस निगम का उद्देश्य राष्ट्रीय खाद्य नीति के लक्ष्यों को सुचारू रूप से क्रियान्वित करते हुए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के द्वारा पूरे देश में खाद्यान्नों का उचित कीमत पर वितरण करना है। इसके अतिरिक्त भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए खाद्यान्नों के परिचालन और बफर स्टॉक के संतोषजनक स्तर को भी बनाये रखती है। वर्तमान में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 का पालन करने हेतु सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत काफी मात्रा में अनाज बाँटा जा रहा है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की समस्याएँ
वर्तमान में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस)
कई प्रकार की समस्याओं एवं कमजोरियों से ग्रस्त है, जिन्हें निम्नलिखित बिन्दुओं के तहत देखा जा सकता है-
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली की सबसे बड़ी कमजोरी है कि इसके द्वारा अभी तक अपेक्षित मात्रा में निरपेक्ष गरीबी को कम नहीं किया जा सका है, अर्थात् पीडीएस से निर्धन लोगों को सीमित मात्रा में ही लाभ मिल पाता है। एक अनुमान के अनुसार, निर्धन लोग अपनी आवश्यकताओं का लगभग 25 प्रतिशत भाग ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली से पूरा कर पाते हैं।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली में अभी अपेक्षित मात्रा में लोगों का समावेश (Inclusion) नहीं हो पाया है। इस समावेशन के न हो पाने के कई कारण हैं जो अब संस्थागत रूप भी ले चुके हैं-यथा-भ्रष्टाचार आदि। इस समावेशन त्रुटि (Inculsion Error) के कारण उच्च आय वाले लोग सार्वजनिक वितरण प्रणाली का अधिक लाभ उठा लेते हैं।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आपूर्ति की जाने वाली वस्तुओं, विशेषतः खाद्यान्न, की गुणवत्ता सही नहीं होती है जिसके कारण लोगों की रूचि कम हो जाती है और उन्हें कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में गुणवत्ता ह्वास के कई कारण हैं, लेकिन उनमें दो प्रमुख कारणों को देखा जा सकता है- अनाज या खाद्यान्न खरीदते समय गुणवत्ता के मानकों को ताक पर रखना और भंडारण समस्या। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बाँटे जाने वाले अनाज या खाद्यान्न के भंडारण में एफसीआई एवं अन्य हितधारकों द्वारा पर्याप्त सावधानी नहीं बरती जाती है। भंडारण में व्याप्त समस्याओं को आगे की दो बिन्दुओं में विस्तृत ढंग से उल्लिखित किया गया है।
- मानसून के मौसम में सरकार द्वारा खरीदे गए अनाज में फँफूदी और कई तरह के कीड़े लग जाते हैं क्योंकि इन खाद्य अनाजों (खाद्यान्न) का भण्डारण उचित नहीं होता है। त्रिपाल व पन्नी आदि को अनाज केऊपर डालकर खुले में छोड़ दिया जाता है, जिससे यह अनाज विषाक्त हो जाता है। इस विषाक्त अनाज को सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से जनता को देती है, जिससे लोगों में विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ जन्म लेती हैं। एक आँकड़े के अनुसार सरकार द्वारा खरीदे गए कुल अनाज का प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत हिस्सा खराब हो जाता है, इसके लिए विभिन्न कारक जिम्मेदार हैं, यथा- भण्डारण, परिवहन आदि। इन सब में अनाज बर्बादी का प्रमुख कारण उचित भण्डारण का न होना है। एक वर्ष में लगभग 18 लाख टन अनाज की बर्बादी उचित भण्डारण के न होने से होती है।
- 2014 में एक आरटीआई के जवाब में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने बताया कि 2005 से लेकर 2013 के बीच के 8 वर्षों में भारत में सरकार द्वारा खरीदे गए अनाज में 1.95 लाख मीट्रिक टन अनाजबर्बाद हो गया, जिसमें सबसे अधिक चावल और गेहूँ की बर्बादी हुई। इसके अलावा उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 60000 टन अनाज की क्षमता के गोदाम 2013 से 2018 के बीचक्षतिग्रस्त हो गए हैं। कुछ इसी प्रकार का आँकड़ा एफएओ (खाद्य एवं कृषि संगठन) भी देता है। एफएओ के मुताबिक भारत का सालाना 14 बिलियन डॉलर का खाद्य उत्पादन क्षतिग्रस्त हो जाता है।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली की लोकप्रियता को लेकर देश में क्षेत्रीय विषमताएं भी देखने को मिलती हैं। ऐसा देखा गया है कि पीडीएस प्रणाली जितनी दक्षिण भारत में लोकप्रिय रही है उतनी उत्तर भारत में नहीं। इसके अतिरिक्त पहाड़ी राज्यों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की स्थिति और भी खराब है। वहीं अगर पीडीएस की लोकप्रियता की तुलना शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में की जाए तो पीडीएस का झुकाव शहरी क्षेत्रों की ओर अपेक्षाकृत अधिक रहा है। हालांकि 1990 के बाद, ग्रामीण क्षेत्रों में उचित मूल्य की दुकानों का काफी अधिक नेटवर्क फैलाया गया किन्तु वह अपेक्षानुरूप परिणाम नहीं दे पाया है।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली में रिसाव (लीकेज) की समस्या काफी गंभीर है जिसका मुख्य कारण सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार है। एनएसएसओ के 68वें चक्र के अनुसार भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में रिसाव का अखिल भारतीय स्तर लगभग 48 प्रतिशत है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली का प्रभाव
- पीडीएस में विभिन्न कमजोरियां या समस्याएं व्याप्त होने के कारण सामाजिक, आर्थिक, स्वास्थ्य एवं अन्य कई नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न हुए हैं। सन् 2014 में इंडिपेन्डेन्ट इवैल्युएशन ऑफिस (Independent Evaluation Office- IEO) के द्वारा किये गये अध्ययन के मुताबिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से एक रुपये के मूल्य का अनाज लोगों को उपलब्ध कराने की लागत लगभग 3.65 रुपये आती है, जो सरकारी खजाने पर अतिरिक्त बोझ का कारण बनती है। इसके अतिरिक्त, सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कार्यप्रणाली में खामियों की वजह से खाद्यान्नों के निजी बाजार पर भी विपरीत प्रभाव रहा है। एक तरफ तो पीडीएस के माध्यम से निर्धनों को अनाज नहीं मिल पा रहा है और दूसरी तरफ इसकी वजह से अनाज के दाम निजी बाजार में अधिक हो जाते हैं, इससे निर्धनों को मजबूरीवश ऊँची कीमतों पर ही खुले बाजार से अनाज खरीदना पड़ता है। इससे स्पष्ट है कि दोहरी बाजार प्रणाली निर्धनों के पक्ष में न जाकर विपक्ष में जा रही है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार की आवश्यकता
सार्वजनिक वितरण प्रणाली में व्याप्त समस्याओं
को दूर करना अति आवश्यक है। अतः इसमें सुधार लाने हेतु निम्न बातों पर ध्यान दिया
जा सकता है-
- आर्थिक सर्वेक्षण 2014-15 में वर्णित किया गया था कि जैम (JAM) योजना सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को सुचारू रूप से चलाने हेतु कारगर है, अतः जैम योजना को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में योजनाबद्ध तरीके से लागू किया जाना चाहिए।
- जैम योजना में लाभार्थी का जनधन खाता, आधार संख्या और मोबाइल नंबर का उपयोग किया जाता है। वैसे भी विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सिर्फ आधार कार्ड से पीडीएस को जोड़ दिया जाये तो इससे न सिर्फ बोगस राशन कार्डों की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है बल्कि लाभार्थियों से जुड़ा हुआ उच्च गुणवत्तायुक्त सूचना आधार भी तैयार होगा।
- हालांकि सरकार वर्तमान में इस दिशा में बढ़ती हुई प्रतीत होती है क्योंकि सरकार ने ‘बापू योजना’ (BAPU- Biometrically Authenticated Physical Uptake) की शुरूआत की है जिसमें लाभार्थियों को आधार कार्ड और पीओएस (Point of Sale) मशीनों के आधार पर पीडीएस की वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। लेकिन इस योजना में कई तकनीकी समस्याएँ (यथा-लाभार्थी क फिंगर प्रिंट नहीं मिल पाना, खराब मौसम में सिंग्नल की समस्या आदि) आ रही है जिन्हें दूर करना आवश्यक है। इस प्रकार सरकार को इस योजना में सुधार करके इसे व्यापक तौर पर लागू करना चाहिए।
- सरकार को पीडीएस की वस्तुओं (मुख्यतः खाद्यान्न) के अधिग्रहण के प्राथमिक स्तर (अर्थात् एफसीआई) से लेकर एफपीएस (Focus Product Scheme) तक की समस्त प्रक्रिया का डिजिटलीकरण करना चाहिए।
- पीडीएस में छत्तीसगढ़ राज्य का मॉडल काफी सराहनीय है, यहाँ एफपीएस के संचालन में सामाजिक क्षेत्र (यथा- एनजीओ, एसएचजी आदि) का सहयोग, डोरस्टेप डिलीवरी (Doorstep Delivery) आदि नवीनप्रयोग काफी सफल रहे हैं। इसी कारण एनएसएसओ के उपभोग के 68वें चक्र में छत्तीसगढ़ में पीडीएस में रिसाव जीरो प्रतिशत पाया गया।
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