बेरोजगारी का माप | भारत में बेरोजगारी के कारण |भारत में श्रम शक्ति में वृद्धि के कारण | Reason of Unemployment in Hindi
बेरोजगारी का माप, भारत में बेरोजगारी के कारण, भारत में श्रम शक्ति में वृद्धि के कारण
बेरोजगारी का माप
बेरोजगारी दर क्या है? भारत में इसे कैसे मापा जाता है?
बेरोजगारी की दर श्रम शक्ति का वह प्रतिशत है, जो बिना कार्य के है। इसकी गणना निम्न प्रकार से की जाती है-
बेरोजगारी की दर = बेरोजगार श्रमिक / कुल श्रम शक्ति x 100
बेरोजगारी की गणना
बेरोजगारी का माप एक कठिन कार्य है। भारत में रोजगार व बेरोजगारी पर सबसे अधिक विस्तृत और विश्वसनीय आंकड़े राष्ट्रीय निदर्श सर्वेक्षण संगठन द्वारा संकलित किए जाते हैं, भिन्न-भिन्न अवधियों पर आधारित जैसे एक वर्ष, एक सप्ताह तथा सप्ताह के प्रत्येक दिन राष्ट्रीय निदर्श सर्वेक्षण संगठन रोजगार व बेरोजगारी के चार विभिन्न चार माप उपलब्ध कराता है। बेरोजगारी को मापने की कुछ विधियां निम्नलिखित हैं
बेरोजगारी को मापने की कुछ विधियां
1- सामान्य प्रमुख अवस्था बेरोजगारी (UPS)
- इसको उन व्यक्तियों की संख्या के आधार पर मापा जाता है, जो वर्ष के प्रमुख भाग में बेरोजगार रहें। इस सर्वेक्षण में शामिल व्यक्तियों का वर्गीकरण उन व्यक्तियों में किया जाता है, जो कार्य कर रहे हैं और अथवा अपनी मुख्य क्रिया में कार्य के लिए उपलब्ध है और वे व्यक्ति, जो कार्य कर रहे हैं अथवा किसी सहायक क्रिया में कार्य के लिए उपलब्ध हैं अर्थात् एक क्षेत्र, जो उनकी मुख्य क्रिया से दूसरा है। इसलिए सामान्य अवस्था की अवधारणा के अंतर्गत अब अनुमान सामान्य मुख्य अवस्था तथा सामान्य मुख्य अवस्था व सहायक सामान्य अवस्था के आधार पर लगाए जाते हैं।
- सामान्य अवस्था बेरोजगार दर एक व्यक्तिगत दर है और स्थायी बेरोजगारी को बताती है, क्योंकि वे सभी जो निर्देषित वर्ष में सामान्य रूप से बेरोजगार पाए जाते हैं, उनकी गणना बेरोजगारों में की जाती है। यह माप उनके लिए अधिक उपयुक्त है, जो नियमित रोजगार की तलाश में होते हैं। उदाहरण के लिए, शिक्षित व कुशल व्यक्ति जो आकस्मिक कार्य स्वीकार नहीं करते। इसे खुली बेरोजगारी भी कहा जाता है।
2- सामान्य प्रमुख तथा सहायक अवस्था बेरोजगारी (UPSS )
- यहां वह व्यक्ति बेरोजगार समझा जाता है, जो सामान्य प्रमुख अवस्था के अलावा सहायक कार्यों के लिए उपलब्धता है, किंतु किसी वर्ष में कार्य पाने में असमर्थ होते हैं।
3-वर्तमान साप्ताहिक अवस्था बेरोजगारी (CWS)
- इससे तात्पर्य उन व्यक्तियों की संख्या से हैं, जिन्हें सर्वेक्षण सप्ताह में एक घंटे का कार्य भी नहीं मिलता।
4-वर्तमान दैनिक अवस्था बेरोजगारी (CDS)
- इससे तात्पर्य उन व्यक्तियों की संख्या से है, जिन्हें सर्वेक्षण सप्ताह में एक दिन या किसी दिन भी रोजगार नहीं मिलता।
विभिन्न अवधारणाओं पर आधारित बेरोजगारी की दरों में अंतर होता है। सामान्य प्रमुख अवस्था तथा सामान्य प्रमुख तथा सहायक अवस्था के माप दीर्घकालीन बेरोजगारी को दर्शाते हैं। वर्तमान साप्ताहिक अवस्था का माप अल्पकालीन अवधि की बेरोजगारी को दर्शाता है, किंतु एक सप्ताह से कम बेरोजगारी को अनदेखा कर देता है। वर्तमान दैनिक अवस्था का माप खुली और आंशिक बेरोजगारी दोनों को दर्शाता है।
भारत में बेरोजगारी के कारण
1 धीमी आर्थिक संवृद्धि
- आयोजन काल में संवृद्धि दर का झुकाव लक्ष्य दर से काफी कम था। इसलिए पर्याप्त मात्रा में रोजगार का सृजन नहीं हुआ। इसके अतिरिक्त आर्थिक संवृद्धि स्वयं बेरोजगार की समस्या को हल नहीं करती। हाल के कुछ वर्षों में आर्थिक संवृद्धि में वृद्धि होते हुए भी रोजगार संवृद्धि में गिरावट आई है। इसकी व्याख्या के लिए, निर्माण कार्य के अलावा आर्थिक गतिविधि के प्रमुख क्षेत्रकों में उत्पादन में परिवर्तन के साथ रोजगार की मात्रा में लगातार गिरावट हुई है। टी. एस. पपोला के अनुसार, कुछ समय अवधि में कृषि और विनिर्माण क्षेत्रकों में उत्पादन वृद्धि तकनीक गहन अधिक तथा श्रम गहन कम रही है। इसके अतिरिक्त, क्षेत्रकों की संवृद्धि की बनावट भी बेरोजगारी की मुख्य निर्धारक है। कृषि पर अधिक निर्भरता तथा गैर कृषि गतिविधियों - की धीमी संवृद्धि रोजगार सृजन को सीमित करती है।
भारत में श्रम शक्ति में वृद्धि के क्या कारण हैं?
2 श्रम शक्ति में वृद्धि
श्रम शक्ति में वृद्धि लाने वाले दो महत्त्वपूर्ण कारक हैं, जो निम्नलिखित हैं—
(i) जनसंख्या में तीव्र वृद्धि : बढ़ती हुई जनसंख्या श्रम की पूर्ति में वृद्धि का कारण हुई हैं तथा बढ़ती हुई श्रम शक्ति के अनुसार, रोजगार अवसरों में वृद्धि न होने के कारण बेरोजगारी की समस्या और अधिक बढ़ गई है।
(ii) सामाजिक कारक : स्वतंत्रता के पश्चात् स्त्रियों की शिक्षा ने रोजगार के प्रति दृष्टिकोण को बदल दिया है। उनमें से बहुत-सी, अब श्रम बाजार में रोजगार के लिए पुरुषों के साथ प्रतियोगिता करती हैं। किंतु अर्थव्यवस्था इन चुनौतियों का सामना करने में असफल रही है और इसका शुद्ध परिणाम यह है स्थाई बेरोजगारी में लगातार वृद्धि हुई है।
3 ग्रामीण-शहरी प्रवासन
- शहरी क्षेत्रों के बेरोजगारी मुख्य रूप से काफी मात्रा में ग्रामीण जनसंख्या का शहरी क्षेत्रों को पलायन के कारण हुई है। ग्रामीण क्षेत्र कृषि तथा संबद्ध कार्यकलापों में जीविकोपार्जन देने में असमर्थ रहे हैं, इसलिए शहरों के लिए बड़े पैमानों पर प्रवासन हो रहा है। शहरों में आर्थिक विकास नए आने वाले श्रमिकों को काफी अतिरिक्त रोजगार देने में असफल रहा है। इस प्रकार, केवल कुछ ही शहरों में आने वाले उत्पादन गतिविधियों में लग पाते हैं तथा शेष बेरोजगारों की फौज में वृद्धि करते हैं ।
4 अनुपयुक्त तकनीक
- भारत में, यद्यपि पूँजी का अभाव है, श्रम अधिक मात्रा में उपलब्ध है फिर भी उत्पादक श्रम के स्थान पर पूँजी का अधिक प्रयोग कर रहे हैं। इस नीति के परिणामस्वरूप बेरोजगारी में वृद्धि हुई है। श्रम की अधिकता होने पर भी भारत में पूँजी - गहन तकनीक को अपनाया जा रहा है, क्योंकि श्रम के नियम कठोर हैं। आसानी से काम पर लगाना तथा आसानी से हटाने की नीति को अपनाना बहुत कठिन है। इसलिए, उद्योगों में श्रमिकों की उचित मात्रा का प्रयोग कठिन है। श्रम शक्ति को घटाना कठिन है। इसके अतिरिक्त श्रमिकों में अशांति तथा काम करने के उचित आचरण में कमी आदि से श्रम की कार्य कुशलता में कमी आई है। जिससे संस्थानों द्वारा श्रम बचाओं तकनीकी के प्रयोग को प्रोत्साहन दिया जाता है। परिणामस्वरूप बेरोजगारी बढ़ी है।
5 दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली
- वर्तमान शिक्षा प्रणाली सैद्धांतिक पक्ष पर अधिक आधारित है और व्यावहारिक उद्देश्य के लिए इसमें सीमित उपयोगिता है। यह कौशल और तकनीकी योग्यता पर बल नहीं देती, जिसकी आवश्यकता विभिन्न कार्यों में रोजगार की तलाश के लिए है। इससे कौशल और शिक्षण की आवश्यकता तथा उपलब्धता में असंतुलन उत्पन्न हो गया है, जिसके कारण विशेष रूप से युवक और शिक्षित लोगों में बेरोजगारी बढ़ गई है। जबकि तकनीकी और विशिष्ट योग्यता प्राप्त व्यक्तियों की कमी जारी है।
6 आधारिक संरचना के विकास में कमी
- निवेश तथा आधारिक संरचना के विकास की कमी विभिन्न क्षेत्रकों की संवृद्धि तथा उत्पादन क्षमता को सीमित करती है, जिससे अर्थव्यवस्था में रोजगार के पर्याप्त अवसरों का सृजन नहीं होता है।
7 रोजगार की योग्यता में कमी
- भारत को खराब स्वास्थ्य तथा पोषण की समस्या का सामना करना पड़ता है, जिससे लोगों की कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है और यह बेरोजगारी का कारण बनती है।
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