क्षेत्रीय व्यापार | Regional trade GK in Hindi

क्षेत्रीय व्यापार Regional trade GK in Hindi

क्षेत्रीय व्यापार | Regional trade GK in Hindi


 

क्षेत्रीय व्यापार

  • क्षेत्रीय व्यापार दक्षिणी एशिया में बहुत सीमित मात्रा में होता है। यह बहुत समय तक दक्षिण एशियाई देशों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का मात्र लगभग 3 प्रतिशत रहा है तथा अब यह 5 प्रतिशत से कम है। इसकी तुलना पूर्वी एशिया एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया के 30 प्रतिशत के क्षेत्रीय व्यापार से की जानी चाहिए। दक्षिण एशियाई सीमाओं के सभी ओर क्षेत्रीय व्यापार में वृद्धि करने से संबंधित आशंकाएँ हुई हैं। इस क्षेत्र में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के कारण भारत पर क्षेत्रीय व्यापार को प्रोत्साहित करने का सुस्पष्ट उत्तरदायित्व है।

 

  • गुजराल सिद्धांत से प्रारंभ करते हुए क्षेत्रीय व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार ने पड़ोसी देशों को एक पक्षीय छूट प्रदान करने के लिए अपनी मंशा की घोषणा की। अभी हाल ही में सरकार ने बांग्लादेश से सिले-सिलाये वस्त्रों के आयातों पर सभी प्रकार के प्रतिबंधों को हटाने की घोषणा की है। इसने नेपाल के साथ भी विनियोग संरक्षण संधि किया। यह सब बातें क्षेत्रीय व्यापार को प्रोत्साहित करने में सहायता करेंगी।

 

  • किंतु संरक्षणात्मक अवरोधों को कम करने के प्रयासों को अब भी दक्षिण एशियाई देशों की सापेक्षिक रूप में अंतः उन्मुखी आर्थिक नीतियाँ संयुक्त विरोध का सामना करती हैं। प्रत्येक देश में राजनीतिक रूप से मजबूत वे सोच हैं जो प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए उत्पादकता में वृद्धि के तरीके के रूप में देखने के बजाय अनुदानों को प्रतिस्पर्धाशक्ति की हानि की समस्या से निपटने के एक तरीके के रूप में उसे सामान्य नीति के रूप में समर्थन करती हैं। उदाहरण के लिएजब भारत-श्रीलंका स्वतंत्र व्यापार समझौते के परिणामस्वरूप श्रीलंका से मसालों का आयात होने लगाजिसने स्थानीय मसाला उत्पादों को विस्थापित कर दिया तो तुरंत ही केरल के मसाला उत्पादकों द्वारों श्रीलंका के आयातों के विरुद्ध संरक्षण की मांग की जाने लगी। यह भारत में अस्वाभाविक नहीं है। ये सोच व्यापार को खोलने से संबंधित उपायों के विरुद्ध बनी रहती हैं यदि उनके बाजारों के प्रभावित होने की संभावना होती है। अनुदानों के बाजार उन उपायों की ओर आगे बढ़ना अग्रामी तरीका है जो प्रतिस्पर्धा शक्ति में वृद्धि करेंगे।

 

  • भारत पाकिस्तान व्यापार अधिकांशतः दुबई के मार्ग से किया जाता है जो स्वाभाविक रूप से व्यापार की लागत में वृद्धि कर देता है। इस लागत वृद्धि के बावजूद दुबई होकर भारत-पाकिस्तान व्यापार लगभग $2 बिलियन प्रति वर्ष होता है। यदि व्यापार को अधिक प्रत्यक्ष रूप से किया जाता तो दोनों देशों के बीच स्पष्ट रूप से अधिक व्यापार होता। वर्तमान में भारत में आधारभूत ढाँचे के निर्माण पर अधिक जोर होने के कारण उसने पाकिस्तान से पर्याप्त मात्रा में सीमेंट का आयात किया है। यह दुबई रास्ते के बजाय भूमि मार्ग के उपयोग द्वारा सुविधाजनक हुआ है।

 

  • पाकिस्तान द्वारा अनेक रसायनों का आयात किया जाता है। किंतु इन आयातों के अतिरिक्त उन नकारात्मक मदों की लंबी सूची है जिनका आयात नहीं किया जाना होता है। इसके अंतर्गत औषधियाँ सम्मिलित हैं जिनमें प्रजातीय उत्पादन करने वाली भारतीय फर्मे वर्तमान पाकिस्तान उत्पादन की अपेक्षा बहुत सस्ती होती हैं। किंतु घरेलू उत्पादन का संरक्षण करने की इच्छा रखने वाली मजबूत सोचें लंबी नकारात्मक सूची के रूप में परिणाम होती हैं।

 

  • इसके साथ हीयह ध्यान देने योग्य है कि उन सोचों की शक्ति में वृद्धि हुई है। जो व्यापार के खोले जाने का समर्थन करती हैं। भारत एवं पाकिस्तान के बीच वस्तुओं के निर्यातों से संबंधित हाल की परिस्थिति में कुछ व्यापारिक सोचों ने स्पष्ट रूप से राजनीतिक हितों के विरुद्ध काम किया है। 


  • जबकि पाकिस्तानी व्यापारी स्वाभाविक रूप से भारत में प्याज की कमी का लाभ उठाना चाहते थे किंतु बढ़ा हुआ निर्यात उस पाकिस्तान के राजनीतिक हितों द्वारा कुचल दिया गया जो इन निर्यात को प्रतिबंधित करना चाहते थे। इसी प्रकार जब भारतीय कपास व्यापारी कच्ची कपास के पाकिस्तान को निर्यात में वृद्धि करना चाहते थे (जहाँ बाढ़ के कारण कपास की फसल प्रभावित हो गयी थी.) तो इसका उन भारतीय कपड़ा मिल मालिकों द्वारा विरोध किया गया था जो बहुत अच्छी भारतीय फसल से लाभ उठाना चाहते थे। 


  • निर्यात न होने की स्थिति में बहुत अच्छी कपास की फसल से कच्ची कपास की कीमतों में भारी कमी आयेगी जो कपड़ा मिल मालिकों के लिए लाभदायक होगा।

 

  • क्षेत्रीय व्यापार नीति का आधार क्या होना चाहिएयह अत्यधिक विवाद ग्रस्त विषय है। विकास की सीढ़ी में 'विकासशील अर्थव्यवस्था', 'कम विकसित देश एवं उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के बीच अंतर होता है। भारत एवं चीन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के पास LDC एवं अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की अपेक्षा अधिक तकनीक एवं पैमाने के लाभ हैं।

 

  • अधिकांश क्षेत्रीय स्वतंत्र व्यापार समझौते (RFTA) एक-दूसरे के बाजारों को समान पहुँच के सिद्धांत पर आधारित होते हैं। तथापिजब देश विकास के भिन्न-भिन्न स्तरों पर होते हैं तो समान पहुँच से असमान व्यापारिक परिणाम उत्पन्न होने की संभावना होती है। पूँजीतकनीक एवं पैमाने की भिन्न-भिन्न पहुँच के कारण भिन्न आर्थिक क्षमताओं वाले देश समान रूप से प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं होंगे। परिणामस्वरूपविकास कार्यसूची सहित एक RFTA में गैर-पारस्परिक पहुँच प्रणाली को सम्मिलित करने की अधिक विकसित अर्थव्यवस्थाएँ कम विकसित अर्थव्यवस्थाओं को एकपक्षीय छूट प्रदान करें। अतः भारत ने बदले में बांग्लादेश द्वारा समान कार्य की माँग किये बिना सिले सिलाये वस्त्र क्षेत्र को खोल दिया है। इस प्रकार के गैर-पारस्परिक पहुँच का कारण यह है कि कम विकसित देशों को अधिक विकसित देशों के अपेक्षाकृत बड़े बाजारों में पहुँच की आवश्यकता होती है ।

 

  • LDCs के संबंध में अब गैर-पारस्परिक पहुँच को सामान्यतः स्वीकार किया जाता है। WTO से पूर्व की अवधि में गैर-पारस्परिक पहुँच विशेष एवं विभेदकारी व्यवहार (Special and Differential Treatment DST) के रूप में व्यापार समझौते के अंग थी। तथापिगैर-पारस्परिक पहुँच अनेक बहुपक्षीय व्यापारिक समझौतों में सम्मिलित हो गयी है जैसे यू.एस.ए. की AGOA ( African Growth and Opportunity Act ) एवं EU की अफ्रीका के लिए अस्त्र-शस्त्र छोड़कर कुछ भी (Anything But Arms ) । इस सिद्धांत का विस्तार दक्षिण एशियाई स्वतंत्र व्यापार समझौते (SAFTA) के संबंध में किया जा सकता है। यह इस बात को स्वीकार करेगा कि एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में भारत को अपेक्षाकृत छोटे एवं या निर्धन अर्थव्यवस्थाओं की अपेक्षा अधिक लाभ प्राप्त हैं। इस प्रकार की गैर-पारस्परिक पहुँच SAFTA को क्षेत्र की वृद्धि के इंजन के रूप में कार्य करने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार एवं शक्ति का उपयोग करने में सक्षम बनायेगी।

 

  • SAFTA में गैर-पारस्परिक पहुँच की प्रणाली छोटे दक्षिण एशियाई देशों के डर पर विजय प्राप्त करने में सहायता करेगी जिन्हें भारत द्वारा आधिपत्य जमाने का डर होता है। इसके साथ ही यह भारतीय फर्मों को मूल्य श्रृंखला में ऊपर की ओर जाने के लिए बाध्य करेगी। दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय व्यापार को कई राजनीतिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। किंतु भारत की कल्पनाशील व्यापार नीति क्षेत्र पर प्रभाव डालना प्रारंभ कर रही है।


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