रोगों के प्रकार | संक्रामक रोग (संचारी रोग ) |असंक्रामक रोग (गैर संचारी रोग ) |communicable disease and non-communicable diseases

संक्रामक रोग (संचारी रोग )
असंक्रामक रोग (गैर संचारी रोग )

रोगों के प्रकार | संक्रामक रोग (संचारी रोग ) |असंक्रामक रोग (गैर संचारी रोग ) |communicable disease and non-communicable diseases



रोग क्या है?

 

  • कोई भी स्थिति जो शरीर के सामान्य कार्य में बाधा पहुँचाती है रोग कहलाती है। दूसरे शब्दों में रोग को पोषण की अल्पता, शरीर क्रियात्मक अव्यवस्था, आनुवंशिक गड़बड़ी, रोगजनक या किसी अन्य कारण से उत्पन्न शारीरिक, मनोवैज्ञानिक या सामाजिक स्थिति में व्यतिक्रम को कहते हैं। 

  • अंग्रेजी में Disease का शाब्दिक अर्थ विकार है- लैटिन dis= दूर + ease = आराम सुख चैन) यानी सुख-चैन का दूर या समाप्त हो जाना।


  • यह एक प्राचीन फ्रांसिसी शब्द desaise का से उत्पन्न शब्द है जिसका | अर्थ है des = away + aise=ease यानि आराम सुख चैन का न रहना।

 

रोगों के प्रकार

मानव रोगों का वर्गीकरण

  • जन्मजात रोग (जन्म से ही विद्यमान )
  • उपार्जित रोग (जन्म के बाद विकसित) 


उपार्जित रोग (जन्म के बाद विकसित)
 

  • संचारी रोग (संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में फैलते हैं)
  • गैरसंचारी रोग (एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे स्वस्थ व्यक्ति में नहीं फैलते)

 

गैरसंचारी रोग (एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे स्वस्थ व्यक्ति में नहीं फैलते)

  • व्यपजनन रोग (शरीर के मुख्य अंगों के सुचारू रूप से कार्य न करने के कारण 
  • हीनता/न्यूनता रोग (आहार में पोषक तत्वों की कमी के कारण) 
  •  ऐलर्जी (कुछ बाह्य पदार्थों के लिए शरीर की अति संवेदनशीलता के कारण)
  • (कोशिकाओं या ऊतकों की अनियंत्रित वृद्धि के कारण) 
  • अन्य रोग ( विभिन्न भौतिक कारकों या अन्य कारणों से)

 

A- जन्मजात रोग रोग

  • जो जन्म के समय ही विद्यमान होते हैं (उदाहरणतया शिशुओं के हृदय में छिद्र ) । यह रोग आनुवंशिक या उपापचयी गड़बड़ी अथवा किसी अंग के सुचारू रूप से कार्य न करने के कारण होता है।

 

B-उपार्जित रोग 

  • यह रोग जन्म के बाद किसी व्यक्ति के जीवनकाल में हो सकते हैं।

 

उपार्जित रोगों को सामान्यतया निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जाता हैं : 

(i) संक्रामक रोग रोग जो एक रोगग्रस्त व्यक्ति से दूसरे स्वस्थ व्यक्ति में संचारित हो सकते हैं। उदाहरणतया खसरा 

(ii) ह्रास के कारण उत्पन्न रोग ये रोग किसी प्रमुख अंग के सुचारू रूप से कार्य न कर पाने के परिणामस्वरूप होते हैं। उदाहरणतया हृदु-पात यानी हृदय गति का रूक जाना। 

(iii) हीनता जन्य रोग ये रोग (आहार में पोषकों जैसे खनिजों व विटामिनों की कमी) के कारण होते हैं, जैसे लौह तत्व की कमी के कारण अरक्तता, विटामिन B की कमी के कारण बेरी-बेरी।  

(iv) कैंसर यह कोशिकाओं की असामान्य, अनियंत्रित व अवांछित वृद्धि है जैसे स्तन कैंसर, गर्भाशय ग्रीवा कैंसर आदि ।

 

उपार्जित रोगों का अध्ययन दो वर्गों के अन्तर्गत किया जाता है 

(i)संचारी रोग ये रोग संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में संचारित होते है। 

(ii) गैर-संचारी रोग ये रोग रोगग्रस्त व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में संचारित नहीं होते।

 

संक्रामक रोग (संचारी रोग ) की विशेषताएँ 

 

1. किसी जैव कारक या रोगजनक के कारण होते हैं, जैसे विषाणु, जीवाणु, प्रोटोजोआ, कृमि द्वारा 

2. एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में दूषित जल, वायु, व आहार, व संपर्क में आने से फैलते हैं। 

3. ये सामाजिक चिन्ता का विषय है क्योंकि ये समुदाय के पूरे स्वास्थ्य से संबंधित है।

 

असंक्रामक रोग (गैर संचारी रोग ) की विशेषताएँ 

 

  • किन्हीं विशेष कारणों जैसे किसी मुख्य अंग के सुचारू रूप से कार्य न करने या पोषकों की न्यूनता/ कमी के कारण होते हैं। 
  • एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संपर्क द्वारा संचारित नहीं होते। 
  • ये केवल व्यक्तिगत चिन्ता का विषय है।

 

 संचारी रोग एक संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में निम्न प्रकार फैलते है :

 

सीधा या प्रत्यक्ष संचरण 

रोगजनक बिना मध्यस्थ कारक के सीधे ही एक स्वस्थ व्यक्ति में संक्रमण उत्पन्न करते है। यह विभिन्न प्रकार से हो सकता है; जैसे

 

(i) संक्रमित व्यक्ति व स्वस्थ व्यक्ति के बीच सीधा संपर्क -चेचकछोटी मातासिफिलिस (उपदंश), सुजाक सीधे संपर्क से फैलते हैं। 

 

(ii) बिन्दुक संक्रमण संक्रमित व्यक्ति खांसते, छींकते व थूकते समय छोटे-छोटे श्लेष्म बिन्दुकों (थूक-कणों आदि) (ड्रॉपलेटों) को बाहर छोड़ता है। इन बिन्दुकों में रोगजनक विद्यमान हो सकते हैं। इन बिन्दुकों युक्त वायु को सांस के साथ अन्दर लेने से एक स्वस्थ व्यक्ति संक्रमित हो सकता है। सर्दी, निमोनिया, फ्लू, खसरा, यक्ष्मा (तपेदिक) व कुकुर खाँसी बिन्दुक संक्रमण द्वारा फैलती हैं।

 

(iii) मिट्टी से संपर्क में आने पर रोग फैलाने वाले विषाणुओं, जीवाणुओं आदि से संदूषित मिट्टी से संपर्क के कारण।

 

(iv) जानवरों द्वारा काटे जाने पर - रेबीज़ (अलर्क) रोग से पीड़ित पशुओं विशेषकर कुत्तों के काटे जाने से उत्पन्न घाव के माध्यम से रेबीज़ के विषाणु प्रवेश पाते हैं। ये विषाणु रेबीज़ ग्रस्त पशु की लार में विद्यमान रहते हैं।

 

अप्रत्यक्ष संचरण

कुछ रोगजनक मानव शरीर में कुछ मध्यस्थ कारकों द्वारा पहुँचते हैं। यह विभिन्न प्रकार से हो सकता | है, जैसे

 

(i) घरेलू मक्खी, मच्छर व तिलचट्टा आदि रोगवाहकों द्वारा-

  • उदाहरणतया घरेलू मक्खियाँ हैजे (विसूचिका) के कारक जीवाणु संक्रमित व्यक्ति के मल व थूक से अपनी टांगों व मुंह में लेकर भोजन व पेय पदार्थों को संदूषित करती हैं। जब यह संदूषित आहार एक स्वस्थ व्यक्ति द्वारा ग्रहण किया जाता है तो वह भी संक्रमित हो जाता है। इसी प्रकार मच्छर डेंगू के विषाणुओं के वाहक हैं व मलेरिया परजीवी के कारण मलेरिया रोग होता है।

 

(ii) वायु वाहित (air borne वायु द्वारा ले जाया गया )

  • मानव शरीर में रोगाणु हवा व धूल कणों द्वारा भी पहुँच सकते हैं। जानपदिक (महामारी) टाइफस रोग ( epidemic typhus ) संक्रमित मक्खी के शुष्क विष्ठा के सांस द्वारा अंदर लिये जाने से फैलती है।

 

(iii) वस्तु वाहित (fomites borne संक्रमित वस्तु वाहित )

  • कई रोग संक्रमित वस्तुओं जैसे वस्त्रों, बर्तनों, खिलौनों, दरवाजों के हत्थों, नलों, सुइयों व शल्य उपकरणों आदि के माध्यम से संचारित होते हैं। फोमाइट्स लैटिन भाषा के fomes शब्द का बहुवचन है इसका अर्थ है आहार को छोड़कर अन्य संक्रमित वस्तुएँ जैसे बिस्तर, कपड़े आदि ।

 

(iv) जल वाहित (water borne )

  • यदि पेय जल हैजा, दस्त, यकृत शोथ व पीलिया के - रोगजनकों से संदूषित है तो स्वस्थ व्यक्ति द्वारा ऐसे जल को पिये जाने से ये रोगजनक स्वस्थ व्यक्ति में पहुँच जाते है।

 

रोग से संबन्धित शब्दावली 

 

रोगजनक (Pathogen): एक जीव जो रोग उत्पन्न करने का कारण हो । 

परजीवी (Parasite) : परपोषी से भोजन व आश्रय प्राप्त करने वाला जीव । 

परपोषी (Host) : एक जीवित शरीर जिसके ऊपर या अंदर एक रोगजनक जीव आश्रय पाता है।

ग्रसन (Infestation) : परपोषी के शरीर की सतह या वस्त्रों में बहुत अधिक संख्या में परजीवियों की उपस्थिति। 


रोगवाहक (Vector): वह जीव जो रोगजनकों को आश्रय प्रदान करता है और इसे अन्य व्यक्ति में स्थानांतरित ( संचारित) करके रोग उत्पन्न कर सकता है। उदाहरणतया एनोफिलिस नामक मच्छर मलेरिया के परजीवियों को आश्रय प्रदान करते हैं और उन्हें मनुष्यों में संचारित करते हैं ।

 

वाहक (Carrier): यह एक जीव है जो स्वयं रोगजनक को आश्रय प्रदान नहीं करता है लेकिन शारीरिक रूप से दूसरे व्यक्ति में संचारित करता है। (घरेलू मक्खी हैजे (विसूचिका /कॉलरा) के रोगाणुओं की वाहक है।)

 

आशय (Reservoir): एक जीव जो बहुत अधिक संख्या में रोगाणुओं को आश्रय प्रदान करता है लेकिन स्वयं प्रभावित नहीं होता है।

 

जानपदिक (महामारी) (Epidemic) : एक ही स्थान, समय और कुछ ही समय संख्या में फैलने वाला रोग, जिससे काफी लोग मर भी जाते हैं। उदाहरणतया प्लेग ।

 

स्थानिक (Endemic ): वह रोग जो नियमित रूप से एक क्षेत्र या देश विशेष के एक समूह विशेष के लोगों के बीच पाया जाता है, उदाहरणतया घेंघा

 

विश्वमारी ( विश्वव्यापी) रोग (Pandemic) : रोग जो विश्व के सभी भागों में पाया जाता है, जैसे कोरोना, एड्स

 

इंटरफेरॉन (Interferon) : एक जीवाणु द्वारा आक्रमण किये जाने पर संक्रमित कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न प्रोटीन का वह प्रकार जो उस जीवाणु के और अधिक परिवर्धन को रोकता है।

 

निवेशन (Inoculation) : प्रतिजनी द्रव्य को शरीर के अंदर डालने की विधि ताकि व्यक्ति रोग से पीड़ित न हो या रोग होने से रोका जा सके। इसे टीका लगाना भी कहा जाता है। 


टीकाकरण (Vaccination) : विशेष जीवाणु के एक दुर्बल प्रभेद (स्ट्रेन) / अंश का इंजेक्शन जिससे उसी रोग के प्रति प्रतिरक्षा उत्पन्न की जाती है। इसे प्रतिरक्षीकरण या प्रतिरक्षण भी कहते है।

 

उद्भवन अवधि (Incubation period): किसी स्वस्थ शरीर में रोगजनक का प्रवेश व रोग के लक्षण प्रकट होने के बीच की अवधि।

 

लक्षण (Symptoms ) : रोगग्रस्त व्यक्ति में प्रकट होने वाली विशिष्ट अभिव्यक्ति (आकार/ शरीर क्रियात्मक संबंधी) जिससे रोग की पहचान की जा सकती है, लक्षण कहलाते हैं।


विषय सूची : 







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