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धार्मिक सुधार आन्दोलनों का पश्चिमी और दक्षिणी भारत में प्रसार। Spread of Religious Reform Movements in Western and Southern India
धार्मिक सुधार आन्दोलनों का पश्चिमी और दक्षिणी भारत में प्रसार
धार्मिक सुधार आन्दोलनों का पश्चिमी और दक्षिणी भारत में प्रसार
बंगाल के बाद जो सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र जहाँ सुधार आन्दोलन फैले वह था पश्चिमी भारत । बाल शास्त्री बाम्बेकर बम्बई में प्रारम्भिक सुधारकों में से एक थे। उन्होंने ब्राह्मणों की रूढ़िवादिता पर आक्रमण किया और हिन्दु धर्म का सुधार करने का प्रयत्न किया।
1849 में परमहंस मण्डली पूना, सतारा और महाराष्ट्र के अन्य नगरों में स्थापित की गई। इनके अनुयायी एक ईश्वर में विश्वास करते थे और जाति प्रथा का विरोध करते थे। इनकी बैठकों में इनके सदस्य निम्न जाति के लोगों द्वारा बनाया हुआ भोजन करते थे। वे महिलाओं की शिक्षा का समर्थन करते थे और विधवा विवाह के पक्ष में थे। महादेव राणाडे सोचते थे कि सामाजिक सुधारों के बिना राजनैतिक और आर्थिक क्षेत्रों में भी किसी प्रकार की उन्नति कर पाना सम्भव नहीं है। वह हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे।
पश्चिमी भारत के दो अन्य महान सुधारक थे गोपाल हरि देशमुख लोकहितवादी, और ज्योतिराव गोविन्दराव फुले जिन्हें ज्योतिबा फूले के नाम से जाना जाता है। उन्होंने नारियों के उद्धार के लिए कार्य किये, महिलाओं और दलितों के हितों का बीड़ा उठाया। ज्योतिबा फूले ने अपनी पत्नी के साथ 1857 ई. में पूना में एक बालिका विद्यालय खोला। उन्होंनेदलितों के बच्चों के लिए भी एक स्कूल प्रारम्भ किया।
ज्योतिबा फुले महाराष्ट्र में विधवा विवाह आन्दोलन के अग्रणी सेनानी बने। उन्होंने ब्राह्मणों के आधिपत्य को चुनौती दी और जनसामान्य को संगठित करने का प्रयास किया। उन्होंने किसानों के हितों की भी वकालत की और महाराष्ट्र में ग्रामीण विकास के क्षेत्र में सक्रिय योगदान किया। ज्योतिबा को उनके दीन दुःखियों के उद्धार कार्य के लिए 'महात्मा' की उपाधि दी गई। 1873 ई. में उन्होंने अपने आन्दोलन को सशक्त और लोकप्रिय बनाने के लिए 'सत्यशोधक संस्था की स्थापना की।
देश के दक्षिणी भाग में कन्दुकुरी वीरेसलिंगम (1848 ई. 1919 ई.) ने आन्ध्र में विधवा विवाह और बालिकाओं की शिक्षा के समर्थन में आन्दोलन का नेतृत्व किया। मद्रास में 1864 ई. में स्थापित 'वेद समाज' ने जातिगत भेदभाव का खण्डन किया और विधवा विवाह तथा नारी शिक्षा के लिए सक्रिय योगदान किया। इस समाज ने रूढ़िवादी हिन्दूधर्म के अन्ध विश्वासों और रीतिरिवाजों की निन्दा की और एक सर्वोच्च परमात्मा की शक्ति में विश्वास का प्रचार किया। चेम्बेटी श्रीधरालु नायडू वेद समाज के सबसे लोकप्रिय नेता थे। उन्होंने 'वेद समाज' के ग्रन्थों को तमिल और तेलुगु में अनूदित किया।
तथाकथित दलितवर्ग और भारतीय समाज के उत्पीड़ित वर्गों के उत्थान के लिए विशेषरूप से प्रयत्नशील एक महत्त्वपूर्ण आन्दोलन नारायण गुरू द्वारा केरल में (1854 ई. 1928 ई.) में प्रारम्भ किया गया। 1903 में उन्होंने 'श्री नारायण धर्म परिपालन योगम्' नामक संस्था सामाजिक सुधार कार्य को आगे बढ़ाने के लिए स्थापित की। श्री नारायण गुरू जाति के आधार पर भेदभाव को निरर्थक समझते थे और वे अपने प्रसिद्ध विचार एक जाति, एक धर्म और एक ईश्वर' का प्रतिपादन करते थे।
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