कर प्रतिस्पर्धा और कर मुक्त क्षेत्र |कर प्रतिस्पर्धा का अर्थ |Tax competition and tax free zones

कर प्रतिस्पर्धा और कर मुक्त क्षेत्र
कर प्रतिस्पर्धा का अर्थ

कर प्रतिस्पर्धा और कर मुक्त क्षेत्र |कर प्रतिस्पर्धा का अर्थ |Tax competition and tax free zones



कर प्रतिस्पर्धा और कर मुक्त क्षेत्र

 

हाल के वर्षों में कर प्रतिस्पर्धा के इर्द-गिर्द दो प्रश्न उठ खड़े हुए हैं- 

(i) क्या कर प्रतिस्पर्धा अच्छी बात हैऔर 

(ii) क्या कोई देश कर प्रतिस्पर्धा का सहारा लेकर लाभ उठा सकता है


कर प्रतिस्पर्धा का अर्थ

  • कर प्रतिस्पर्धा का अर्थ है- अन्य कर प्राधिकरणों की कार्रवाई को ध्यान में रखते हुए विभिन्न कर अधिकार क्षेत्रों द्वारा युक्तिपूर्ण कर निर्धारण कोई भी देश सभी करों अथवा विशिष्ट करों (जैसे- लाभ पर) में कर प्रतिस्पर्धा कर सकता है। 


  • आधुनिक व्यवस्था में प्रतिस्पर्धा मुख्यतः इस बात पर केंद्रित होती है कि देश में पूँजी पर कर कैसे लगाया जाता है और यह कर स्रोत के आधार पर लगाया जाता है अथवा निवास के आधार पर 


  • ऐसे देश जहाँ विदेशी इकाइयों के लिए उदार कराधान नीतियाँ विद्यमान हों, 'कर- मुक्त क्षेत्रया 'कर स्वर्गकहलाते हैं। 


किसी भी देश को कर मुक्त क्षेत्र के रूप में मान्य दर्शाने हेतु पहचान प्राप्त नियमों में शामिल हैं- 

(i) सूचना साझा करने में दुराव और अनिच्छातथा 

(ii) ऐसी नकली कंपनियों को काम करने देना जिनका कोई वास्तविक व्यापारिक क्रियाकलाप अस्तित्व ही न रखता हो (जिसे 'घेराबंदीकहा जाता है)। 


कर मुक्त क्षेत्रों के सामान्य अभिलक्षण हैं- 

  • ये छोटे देश होते हैंइनकी आबादी दस लाख से कम होती है परंतु ये उत्तम प्रशासन सम्पन्न होते हैं। 'शून्य कर वाले ऐसे देशों के उदाहरण हैं- बहमासबरमुडा और केमन द्वीपसमूह मूह 'निम्न कर वाले कर मुक्त क्षेत्र / देश हैं- मॉरीशसहांगकांगब्रिटिश वर्जिन द्वीपसमूहआयल ऑफ मैन एवं चैनल द्वीपस। 


  • स्विट्जरलैंड एक ख़ास देश है जो बैंकिंग दुराव से लेकर निवेश तक विशेष सुविधाएँ प्रस्तुत करता है। किसी कर मुक्त क्षेत्र में निवेशकों लिए कुछ नुकसान भी दिखाई पड़ते हैं। जबकि करमुक्त क्षेत्र में अर्जित लाभ निम्न स्थानीय कर के अधीन होते हैंजब वे उन लाभों को गृह देश प्रत्यावर्तित करने का प्रयास करते हैं तो उन्हें भारी कर का सामना करना पड़ता है। 


  • यह स्पष्ट है कि कोई भी देश कर मुक्त क्षेत्रों के साथ किसी दोहरी कराधान संधि की अनुमति नहीं देता। आज भी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उक्त समझौतों (DTAAs) से बचाव के रास्ते ढूँढ़ रही हैं और उन्हें 'पुनः चक्रितके लिए प्रयोग करते हैं। इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं- भारत-मॉरीशस और भारत-सिंगापुर के बीच उक्त समझौते (DTAAs)

 

आधार अपरदन और लाभांतरण (BEPS)

 

  • OPLE'S गत वर्षों में देखा गया है कि अनेक व्यक्ति एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उक्त समझौतों (DTAAs) का लाभ उठाते हैंजहाँ वे क्रियाकलाप गुप्त रखते हैं और दोनों ही सिरों पर दोहरे कराधान को शून्य कराधान पर ले आते हैं। आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) के आकलनानुसारदुनियाभर में आधार अपरदन और लाभांतरण (IBEPS) की वजह से प्रति वर्ष 100 से 240 अरब अमेरिकी डॉलर की राजस्व हानि होती है। 


  • वर्ष 2013, जी-20 और उक्त संगठन (OECD) ने ऐसी गड़बड़ी (BEPS) के अवसर पैदा करने वाली अंतर्राष्ट्रीय कर प्रणाली की त्रुटियों को दूर करने के लिए। संयुक्त कार्रवाई की। लगभग 15 कार्य योजनाओं की व्यापक श्रृंखला में विस्तीर्ण इस गड़बड़ी की सूची में अनेक प्रकार की आय हैंजैसे- नए न्यूनतम मानकवर्तमान मानकों एवं सामान्य दृष्टिकोणों का पुनरीक्षणआदि। ये उपाय राष्ट्रीय कार्य-व्यवहार में अभिसरण अर्थात् केंद्राभिमुखता लाने में मददगार होते हैं और उसे सरल बनाते हैं।

 

विदेशी खाता कर अनुपालन अधिनियम (FATCA)

  • वर्ष 2010 मेंअमेरिका ने 'विदेशी खाता कर अनुपालन अधिनियम (FATCA) नामक एक कानून लागू कियाजिसका उद्देश्य था- अमेरिकी निवासियों एवं नागरिकों द्वारा चलाए जाने वाले अपतटीय वित्तीय खातों के संदर्भ में सूचना प्राप्त कर कर वंचना से निपटना। भारत और अमेरिका ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किएजिससे सूचना का आदान-प्रदान सरल हुआ है। अब जी-20 और उक्त संगठन (OECD) से जुड़े देश भी मिलकर स्वतः सूचना विनिमय (AEOI) पर एक सर्वमान्य रिर्पोटिंग मानक (CRS) विकसित कर रहे हैं।

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