व्यापार श्रम एवं पर्यावरण संबंधी मानदंड |Trade Labor and Environment Norms

व्यापार श्रम एवं पर्यावरण संबंधी मानदंड

व्यापार श्रम एवं पर्यावरण संबंधी मानदंड |Trade Labor and Environment Norms


 

व्यापार श्रम एवं पर्यावरण संबंधी मानदंड

  • व्यापार श्रम एवं पर्यावरण संबंधी मानदंडों के बीच संबंधों पर अत्यधिक विचार-विमर्श हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार स्पष्ट रूप से श्रम मानदंडों में अंतर से संबंधित होता है। मज़दूरियों के स्तर पर यह निश्चित रूप से संबंधित होता है। 
  • बहुत देशों में मज़दूरियों के कम होने पर श्रम प्रधान उत्पादों एवं कार्यों के उत्पादन एवं निर्यात में विशिष्टीकरण होने की प्रवृत्ति पाई जाती है। कभी-कभी निहित श्रम नैतिक रूप से असंगत प्रकार का होता है जैसे बाल श्रमिक बलात् / बंधुआ श्रमिक क्या इस प्रकार के बलात् श्रमिकों के रूपों द्वारा उत्पादित वस्तुओं को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की अनुमति दी जानी चाहिए। 
  • यह 2000 के दशक में अत्यधिक विचार-विमर्श का विषय था। भारत सहित अनेक विकासशील देश इस बात पर अड़े रहे कि श्रम मानदंडों की बातों पर विचार-विमर्श करने के लिए व्यापार नीति एक उपयुक्त माध्यम नहीं है या WTO एक उपयुक्त मंच नहीं है। श्रम मानदंडों से संबंधित बातें अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (I.LO) में सम्मिलित की जानी चाहिए। वे इस बात पर अड़े रहे कि व्यापार पहुंच एवं श्रम । मानदंडों के बीच संबंध नहीं होने चाहिए।

 

  • व्यापार नीति के स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय रूप से यह सहमति है कि बाल श्रमिक या बलात् श्रमिकों की सहायता से निर्मित वस्तुओं के आयातों पर रुकावट जैसी व्यापारिक कार्यवाही का उपयोग श्रम मानदंडों को सुधारने लिए प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। एक Nike, Marks एवं Spencer तथा जैसे बड़े क्रेताओं के कोड के अंतर्गतपूर्तिकर्ताओं द्वारा जिन कोडों के पालन किये जाने की आशा की जाती हैउनमें बाल श्रमिकों को रोजगार में न रखना सम्मिलित होता है। यद्यपि भारतीय कानून भी जोखिम रहित कार्यों में 14 वर्ष से अधिक आयु के बाल श्रमिकों को अनुमति प्रदान करता हैं ये वैश्विक क्रेता सामान्यतः 18 वर्ष की विभाजन आयु पद दृढ बने रहते हैं।

 

  • अतः यदि परस्पर सरकारों के स्तर पर व्यापार नीति श्रम मानदंड वास्तविक व्यापारसिले सिलाए वस्त्रों के वास्तविक ठेकों एवं इस प्रकार के अन्य उत्पादों में विचार विमर्श नहीं होते हैं तो बाल श्रमिकों से संबंधित बातें निश्चित रूप से सामने आ जाती हैं। अतः वस्तुतः सिले-सिलाये वस्त्रों के उत्पादन के अनेक क्षेत्रों में बाल श्रमिकों को रोज़गार न देने में कुछ सुधार हुआ है। किंतु इसमें यह भी ध्यान देने योग्य है कि इस प्रकार का रोज़गार न देना वास्तव में अनिवार्य रूप से कारखाना स्तर मात्र पर लागू किया जाता है तथा उसका प्रबंधन किया जाता है। गृहस्थ स्तर पर प्रायः बहिस्रोत किये जाने वाले हाथ की कढ़ाई जैसे कायों में यदि हाथ की कढ़ाई के लिए समुदाय स्तर पर केंद्रों या कारखाना स्तर पर कार्य के रूप में परिवर्तन नहीं किया जाता है तो बाल श्रमिकों को रोजगार न देने का प्रबंधन कार्य कठिन हो जाता है।

 

  • बलात् श्रमिकों या श्रम अधिकारों से संबंधित अनेक अन्य बाते हैं जैसे श्रम संघ बनाने का अधिकारजिनमें उल्लंघन होते रहते हैं किंतु इन बातों पर उतना ध्यान नहीं दिया गया है जितना कि बाल श्रमिकों पर दिया गया है तथापि हाल ही में भारत में नहींकिंतु चीन में अमरीकी ऐपिल कंपनी के लिए ठेके के रूप में कार्य करने वाले एक बड़ी विनिर्माता कंपनी Foxconn में घटिया कार्य एवं मजदूरी की दशाओं के संबंध में अत्यधिक प्रचार हुआ है।

 

  • यदि देशों के बीच व्यापार श्रम मानदंडों में अंतर पर निर्भर करता है तो क्या पर्यावरण संबंधी मानदंडों में अंतरों की उसके समान ही भूमिका होती हैपर्यावरण संबंधी मानदंड सामान्यतः विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में निर्बल एवं घटिया रूप में लागू किये जाते हैं। तो क्या प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों की प्रवृत्ति विकासशील देशों के प्रदूषण स्वर्ग को निर्यात होने की प्रवृत्ति होती है। 


  • क्या न्यून मजदूरियों के अतिरिक्त घटिया पर्यावरण संबंधी मानदंड विकासशील देशों में प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के स्थान निर्धारण में तत्त्व हो गये हैंघटिया पर्यावरण संबंधी मानदंड निश्चित रूप से प्रदूषण फैलाने वाले कार्यों के विकासशील देशों को निर्यात में योगदान करते हैं। पर्यावरण संबंधी मानदंडों को पूरा करने में लागत निहित होती है। इस प्रकार की लागतों से बचाव करने के लिए प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों का विकासशील देशों में निर्यात करने की प्रवृत्ति होगी जहाँ इस प्रकार की मौद्रिक लागतें संबंधित फर्म द्वारा वहन न की जाती हों।

 

  • किंतु यहाँ दो बातें ध्यान देने योग्य हैं: कचरे के रूप में निर्यातित सब कुछ वास्तव में मूल्य रहित नहीं होता है। एक वस्तु जो अब उपयोग करने योग्य नहीं हैइसलिए वह कचरा नहीं होती है। इसमें अनेक उपयोगी पुर्जे हो सकते हैं। इसकी मरम्मत भी हो सकती है तथा द्वितीय श्रेणी (घटिया) के माल के बाजार में पुनर्बिक्री हो सकती है। दूसरी बात यह है कि इस प्रकार के कचरे में लेन-देन प्रायः बहुत बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार प्रदान करता है।

 

  • जहाजों को तोड़ने के काम का उदाहरण लेंजहाज के जीवन की समाप्ति पर उसे भारत में अलग बंदरगाह लाया जाता है। वहाँ यह तोड़ा जाता है। लोहा एवं इस्पात स्टील की पुनर्प्रक्रिया करने वाली मिलों को चला जाता है। समुद्री इंजनों की प्रायः मरम्मत की जाती है तथा उनका उपयोग जनरेटर के रूप में किया जाता है। वास्तव में जहाज निर्माण का अधिकांश भाग अलग कर दिया जाता है तथा वह पुनः उपयोग के लिए बेच दिया जाता है। अतः कचरे के रूप में मूल्य रहित वस्तु की धारणा एक मिथ्या नाम है। कचरा विभिन्न प्रकार के उत्पादन में आगतों के रूप में वापस जाता है। इसके अतिरिक्त इसे तोड़ने एवं उन्हें अलग करने लगा हुआ अधिकांश श्रमश्रम प्रधान होता है। इस प्रकार के कार्यों के विकासशील देशों में स्थित होना अपरिहार्य होता है जहाँ श्रम सापेक्षिक रूप में सस्ता होता है।

 

  • परिणामस्वरूप कचरे के इलाज से कई प्रकार के रोज़गार का सृजन होता है तथा यह नये उत्पादन के कई लाभप्रद आगत उत्पन्न करता है। तथापिजिस बात को देखने की आवश्यकता होती है वह यह है कि जोखिमपूर्ण एवं खतरनाक पदार्थों के अनुपयुक्त तरीके से व्यवहार न किया जाय। उदाहरण के लिएजहाजों में प्रायः अस्बेस्टस एवं पारा होता है। इन दोनों के साथ व्यवहार करनेसावधानी एवं उपयुक्त तकनीक की आवश्यकता होती है। कचरे के निपटान से संबंधित बेसल अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के अनुसार यह आवश्यक होता है कि किसी विकासशील देश में जहाज तोड़ने के लिए भेजने से पूर्व इस प्रकार के जोखिमपूर्ण पदार्थ का उचित प्रकार से व्यवहार किया जाय तथा जहाज से हटा दिया जाय। वास्तव में इसका प्रायः उल्लंघन किया जाता है। किंतु इसकी जाँच की जा सकती है जैसा कि भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने यह आग्रह किया कि फ्रांसीसी हवाई जहाज वाहक 'Clemenceau' तब तक भारत नहीं लाया जा सकता जब तक कि संपूर्ण जोखिमपूर्ण पदार्थ उसमें से हटा न दिये जाएं।

 

  • दूसरी ओरबाल श्रमिकों को हटाने के मामले में यह ध्यान देने योग्य है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भागीदारी से पर्यावरण संबंधी मानदंडों में सुधार उत्पन्न हो सकता है। उदाहरण के लिएअधिकांशतः अनौपचारिक क्षेत्र में होने वाले चमड़ा सिझाने एवं कपड़ों की रंगाई करने की दोनों ही भारतीय प्रक्रियाएँ प्रायः बहुत खतरनाक रसायनों का उपयोग करती हैं। 


  • इस प्रकार के खतरनाक रसायनों से निर्मित चमड़ा उत्पाद एवं सिले सिलाये वस्त्रों का आयात प्रायः विकसित देशों द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसके परिणामस्वरूप इनमें से कुछ पूर्ति श्रृंखलाओं को साफ कर दिया गया है जैसे चैन्नई के आस-पास चमड़ा उत्पाद पूर्ति श्रृंखला किंतु इस प्रकार के सुधरे हुए श्रम एवं पर्यावरण संबंधी मानदंड प्रायः मात्र निर्यात करने वाली श्रृंखलाओं तक ही सीमित रहते हैं। घरेलू बाजार के लिए उत्पादन करने वाली इसी के समान श्रृंखलाएँ इस प्रकार के सुधारों के बिना बनी रहती हैं।

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