संयुक्त पूँजी कम्पनी के प्रकार |निजी कम्पनी क्या होती हैं |सार्वजनिक कम्पनी क्या होती हैं | Type of Joint Stock Company in Hindi
संयुक्त पूँजी कम्पनी के प्रकार
संयुक्त पूँजी कम्पनी के प्रकार Type of Joint Stock Company
हमारे देश में कई प्रकार की कम्पनियां हैंजिनको उनके निगमन के प्रकार, कार्यक्षेत्र, राष्ट्रीयता और सदस्यता की सीमाओं आदि के आधार पर एक दूसरे से अलग किया जा सकता है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण वे कम्पनियां हैं जो सदस्यों की सीमा पर आधारित हैं जैसे- 1. निजी कम्पनी और 2. सार्वजनिक कम्पनी आइए, इन दोनों के बारे में कुछ और जानकारी प्राप्त करें ।
निजी कम्पनी क्या होती हैं
कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत निजी कम्पनी से अभिप्राय उस कम्पनी से है जिसमें निम्नलिखित विशेषताएं हों
निजी कंपनी की विशेषताएं
(क) इसके सदस्यों की संख्या 50 से अधिक नहीं हो सकती । कम्पनी में काम करने वाले कर्मचारी | इसमें सम्मिलित नहीं हैं।
(ख) यह खुले निमन्त्रण द्वारा जनता को अपने अंश और ऋण-पत्र खरीदने के लिए आमंत्रित नहीं कर सकती।
(ग) यह सदस्यों को उनके अंशों को हस्तांतरित करने अथवा बेचने का अधिकार नहीं देती।
(घ) इसकी चुकता अंश पूँजी कम से कम एक लाख रुपये अवश्य होनी चाहिए ।
निजी कम्पनियों को उपर्युक्त सभी शर्तों का पालन करना आवश्यक है। इन कम्पनियों को अपने नाम के पीछे 'प्रा०लि०' (प्राइवेट लिमिटेड) लिखना अनिवार्य है। इन कम्पनियों का स्वामित्व केवल कुछ लोगों तक ही सीमित रहता है। इसे शुरू करने के लिए कम से कम दो व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। जब कभी साझेदारों को अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिए अधिक पूँजी की आवश्यकता होती वे अपनी फर्म को निजी कम्पनी के रूप में परिवर्तित कर देते हैं। यहां यह जानना आवश्यक है कि निजी कम्पनियों को कम्पनी अधिनियम से अनेक छूट प्राप्त होती हैं। वास्तव में उनको व्यावसायिक संगठन के दोनों स्वरूपों कम्पनी एवं साझेदारी का लाभ प्राप्त हो जाता है।
सार्वजनिक कम्पनी क्या होती हैं Public Sector Company in Hindi
बड़े पैमाने पर व्यवसाय आरंभ करने के लिए बड़ी मात्रा में पूँजी की आवश्यकता होती है। जिसका निजी कम्पनी के पचास सदस्य भी उपलब्ध नहीं कर सकते हैं। तो ऐसी स्थिति में एक सार्वजनिक कम्पनी की स्थापना करना ही उचित होगा। एक सार्वजनिक कम्पनी का अर्थ उस कम्पनी से है जो निजी कम्पनी नहीं है। एक सार्वजनिक कम्पनी में निम्नलिखित विशेषताएं होनी आवश्यक हैं :
सार्वजनिक कम्पनी की विशेषताएं
( क ) यह जनता को अपने अंशों और ऋण-पत्रों को क्रय करने के लिए आमंत्रित कर सकती है।
(ख) सार्वजनिक कम्पनी की स्थापना के लिए न्यूनतम सात सदस्यों की आवश्यकता होती है । इसके सदस्यों की अधिकतम संख्या के लिए कोई सीमा नहीं है ।
(ग) अंशों के हस्तांतरण पर कोई भी प्रतिबंध नहीं है। उदाहरणतया अंशधारक अपने अंशों को जनता को बेचने के लिए स्वतन्त्र हैं।
(घ) कम्पनी की न्यूनतम पांच लाख रुपये की चुकता पूँजी होनी चाहिए।
एक सार्वजनिक कम्पनी को अपने नाम के बाद लिमिटेड लिखना आवश्यक है। रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड, बजाज ऑटो लिमिटेड, हिन्दुस्तान यूनीलीवर लिमिटेड, स्टील अथारिटी, ऑफ इंडिया लिमिटेड आदि सार्वजनिक कम्पनियां है।
उपर्युक्त कम्पनियों के अतिरिक्त आपका ध्यान शायद कुछ अन्य प्रकार की कम्पनियों की ओर भी आकर्षित हुआ होगा, जैसे- सरकारी कम्पनी, सांविधिक कम्पनी, राजपत्रों द्वारा निर्मित कम्पनियां, विदेशी कम्पनी, भारतीय कम्पनी, बहुराष्ट्रीय निगम, नियंत्रक कम्पनी और सहायक | कम्पनी इत्यादि । आइए, इनके बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करें।
कम्पनी के प्रकार एवं अर्थ
(क) सरकारी कम्पनी
- ऐसी कोई कम्पनी जिसमें कम से कम 51 प्रतिशत चुकता पूँजी सरकार के पास हो, सरकारी कम्पनी कहलाती है। उदाहरण:- भारतीय टेलीफोन इन्डस्ट्रीज (आई टी आई), भारत हेवी इलैक्ट्रीकल्स् लिमिटेड (बी.एच.ई.एल.)
(ख) सांविधिक कम्पनी
- संसद अथवा राज्य विधायिका के विशेष अधिनियम द्वारा गठित कम्पनी, सांविधिक कम्पनी कहलाती है। उदाहरण:- भारतीय जीवन बीमा निगम (एल आई सी ), भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (SEBI)
(ग) चार्टर्ड कम्पनी :
- इंग्लैंड के राजा या रानी के घोषणा पत्र के अन्तर्गत गठित कोई कम्पनी उदाहरण-ईस्ट इंडिया कम्पनी |
(घ) विदेशी कम्पनी :
- ऐसी कम्पनी जिसका निगमन भारत से बाहर हुआ है लेकिन उसका व्यवसाय भारत में होता है, विदेशी कम्पनी कहलाती है। उदाहरण सिटी बैंक, हौंडा मोटर्स इत्यादि ।
(ङ) भारतीय / स्वदेशी कम्पनी
- भारतीय कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत कम्पनी भारतीय / स्वदेशी कम्पनी कहलाती है। उदाहरण - एसोसिएटेड सीमेंट कम्पनी (ए सी सी), टाटा स्टील लिमिटेड इत्यादि ।
(च) बहुराष्ट्रीय निगम (कम्पनी):
- ऐसी कम्पनी जिसका पंजीकरण तो एक देश में हुआ हो लेकिन उसका व्यापार कई देशों में चलता हो, बहुराष्ट्रीय निगम/कम्पनी कहलाती है।
(छ) नियंत्रक एवं सहायक कम्पनी :
- यदि एक कम्पनी किसी दूसरी कम्पनी का नियंत्रण करती है तो नियंत्रण करने वाली कम्पनी को 'नियंत्रक कम्पनी' तथा दूसरी को सहायक कम्पनी' के नाम से जाना जाता है।
कोई कम्पनी कब अन्य कम्पनी की सहायक कम्पनी बन जाती है
निम्न परिस्थितियों में कोई कम्पनी किसी अन्य कम्पनी की सहायक कम्पनी बन जाती है:
1. जब किसी कम्पनी की समता अंश पूँजी के सामान्य मूल्य का 50 प्रतिशत या अधिक पर किसी दूसरी कम्पनी का नियंत्रण हो ।
2. जब एक कम्पनी का अन्य कम्पनी के निदेशक मण्डल की नियुक्ति पर नियंत्रण हो ।
3. जब कोई कम्पनी किसी ऐसी अन्य कम्पनी की सहायक कम्पनी हो जो स्वयं किसी दूसरी की सहायक हो । उदाहरण के लिए कम्पनी 'ख' कम्पनी 'क' की सहायक है तथा 'ग' कम्पनी, 'ख' की सहायक है, तब कम्पनी 'ग' भी 'क' की सहायक कम्पनी होगी।
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