बड़वानी का इतिहास गठन(स्थापना) एवं नामकरण |बड़वानी के दर्शनीय स्थल | Barwani Tourist Place in Hindi
बड़वानी जिले का गठन(स्थापना) एवं नामकरण, बड़वानी के दर्शनीय स्थल
बड़वानी जिले का गठन(स्थापना) एवं नामकरण
- बड़वानी जिले की स्थापना 25 मई 1998 को हुई। पूर्व में यह जिला खरगोन (पश्चिम निमाड़) जिले का एक भाग था।
- बड़वानी जिला मध्य प्रदेश के दक्षिण पश्चिम में स्थित है, नर्मदा नदी इसकी उत्तरी सीमा बनाती है। जिले के दक्षिण में सतपुड़ा एवं उत्तर में विंध्याचल पर्वत श्रेणियां हैं।
बड़वानी नाम की उत्पत्ति
- बड़वानी नाम की उत्पत्ति बड़ के वन से हुई है, जिनसे शहर पुराने समय में घिरा हुआ था । वानी शब्द बगीचे के लिये प्रयोग किया जाता है, इसलिये शहर को बड़वानी नाम से जाना जाता है।
बड़वानी का इतिहास
- शहर बड़वानी 1948 से पहले बड़वानी राज्य की राजधानी था। यह छोटा सा राज्य अपनी चट्टानी इलाकों और कम उत्पादक भूमि के कारण अंग्रेज, मुगलों और मराठों के शासन से "बचा रहा ।
- शहर बड़वानी पूर्व में बड़नगर और सिद्धनगर के नाम सें भी जाना जाता था।
- जिला बड़वानी जैन तीर्थ बावनगजा के लिए भी मशहूर है।
- बड़वानी का एक ऐतिहासिक प्रतीक है जो तीरगोला के नाम से जाना जाता है । यह खंडवा-बड़ौदा मार्ग पर सागर विलास पेलेस के सामने स्थित है, और राजा रणजीत सिंह के दिवंगत बेटे की याद में बनाया गया था। आजादी से पहले बड़वानी शहर निमाड़ के पेरिस के रूप में जाना जाता था।
बड़वानी के दर्शनीय स्थल Barwani Toursit Attractions
बावनगजा Bawan Gaja
- बावनगजा बड़वानी से दक्षिण दिशा में आठ किलोमीटर दूर है, जहां 1,220 मीटर ऊंचे सतपुड़ा पर्वत के मध्य भाग में जैन धर्म के आदि तीर्थंकर भगवान आदिनाथ (ऋषभदेव की 25.6 मीटर) ऊंची (मोनोलिथ) प्रतिमा पहाड़ पर ही उकेरी गई है। यह प्रतिमा बावनगजा के नाम से प्रसिद्ध और विश्व की सर्वोत्तम विशाल, शिल्प- वैभव संपन्न जैन प्रतिमा मानी जाती है। बावनगजा की प्रतिमा में केवल आकार में ही ऊंचाई नहीं, वरन् वीतरागता, सौम्यता एवं कला और भाव प्रवणता की ऊंचाईयां भी विद्यमान हैं।
- प्रतिमा का शिल्प विधान भी अनूठा और समानुपातिक है, उसके अंग प्रत्यंग सुडौल हैं और मुख पर विराग, करूणा और हास्य की छवि मुखरित है। प्रतिमा के दाएं-बाएं भगवान के सेवक के रूप में यक्ष- यक्षिणी की मूर्तियां भी उत्कीर्ण हैं। इस प्रतिमा के निर्माण-काल की पूर्ण प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन बारहवीं तेरहवीं शताब्दी के एक विद्वान और अर्जुन वर्मन परमार (1210-18) के दरबार रत्न भट्टारक मदन् कीर्ति द्वारा लिखित शासन चतुस्त्रिंशिका नामक ग्रंथ में इस प्रतिमा का ऐसा उल्लेख अवश्य मिलता है, कि वृहत्पुर (बड़वानी का प्राचीन नाम ) नामक नगर में बावन हाथ ऊंची भगवान आदिनाथ की एक मूर्ति साधनावस्थित है, जिसे वृहद् देव (बावनगजा) कहा जाता है। मूर्ति का निर्माण अर्क कीर्ति नाम के राजा ने करवाया था। इससे यह अनुमान अवश्य लगता है, कि यह प्रतिमा भट्टारक कीर्ति के समय में भी अवस्थित थी। मदन कीर्ति का इतिहास सम्मत समय 12वीं 13वीं शताब्दी है।
- कुछ विद्वानों की यह भी मान्यता है, कि बावनगजा प्रतिमा बीसवें तीर्थंकर मुनि सुव्रतनाथ की समकालीन है और इसे रामायणकालीन शिल्पियों ने तैयार किया था। जनश्रुति है, कि प्राचीन समय में हाथ को गज मानने की परम्परा प्रचलित होने के कारण ही इस प्रतिमा का नाम बावनगजा पड़ा ।
चूलगिरी Chulgiri
- बावनगजा की मूर्ति के अतिरिक्त सतपुड़ा की सघन हरी-भरी पर्वत श्रेणियों में तलहटी से लेकर चूलगिरी शिखर के नाम से प्रसिद्ध सतपुड़ा की 1,230 मीटर ऊंची पहाड़ी तक के क्षेत्र में निर्मित 30 प्राचीन जैन मंदिर और सवा अठारह मीटर ऊंचा एक भव्य मान स्तंभ भी आकर्षण का केन्द्र है।
- चूलगिरी शिखर पर स्थित कलात्मक मंदिर क्षेत्र का प्राचीन और मुख्य मंदिर माना जाता है। मंदिर के गर्भालय में ही एक वेदी पर इंद्रजीत और कुंभकरण के चरण युगल भी बने हुए हैं जो उस अतीत की याद दिलाते हैं कि इंद्रजीत और कुंभकरण इसी स्थान पर तपस्या करते हुए मुक्त हुए थे। मंदिर के महामंडप में तीर्थंकरों की 36 प्राचीन मूर्तियां भी हैं।
- तलहटी से चूलगिरी शिखर पर स्थित मुख्य मंदिर तक जाने के लिए 988 पक्की सीढियां बनी हुई हैं लेकिन सिर्फ बावनगजा प्रतिमा के निकट (चरणों) तक पहुंचने के लिए 156 सीढ़ियां ही चढ़नी पड़ती हैं। प्रतिमा के सामने एक बहुत बड़ा प्रांगण भी निर्मित है। यहां प्रत्येक बारह वर्ष में महामस्तकाभिषेक व मेला आयोजित होता है।
बीजासन
- बीजासन सेंधवा से करीब 20 किमी. दूर आगरा मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। देवी बीजासनी या दुर्गा को समर्पित यहां के प्राचीन मंदिर में पूजन करने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं।
भंवरगढ़
- बडवानी जिले का यह लोकप्रिय पर्यटन स्थल सेंधवा से करीब 16 किमी. दूर स्थित है। सेंधवा सूती कपड़ों के कारखानों के लिए प्रसिद्ध है। भंवरगढ़ का प्राचीन किला यहां का सबसे लोकप्रिय दर्शनीय स्थल है।
अंजड़
- अंजड़ गांव इस जिले का प्रमुख व्यवसायिक केन्द्र है। यहां के वीरेश्वर महादेव और नागरी माता मंदिर काफी लोकप्रिय हैं।
नागलवाड़ी
- मध्य प्रदेश – महाराष्ट्र सीमा पर स्थित एक अत्यंत दर्शनीय और सुंदर स्थान है। यह सतपुडा हिल रेंज में स्थित है। पहाड़ी की चोटी पर एक बहुत प्रसिद्ध भिलाट देव मंदिर तीर्थयात्रियों के लिए मुख्य आकर्षण है।
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