ब्रिटिश शासन का भारत में सांस्कृतिक टकराव तथा सामाजिक परिवर्तन|British Shsan Ke Dauran Samajik Aur Sanskritik Parivartan

 ब्रिटिश शासन  का  भारत में सांस्कृतिक टकराव तथा सामाजिक परिवर्तन

ब्रिटिश शासन  का  भारत में सांस्कृतिक टकराव तथा सामाजिक परिवर्तन|British Shsan Ke Dauran Samajik Aur Sanskritik Parivartan


 

  • अंग्रेजों द्वारा शासित और अधीन किए गए लोगों का अनुभव उस समय छाई स्थितियों के आधार पर तेजी से बदल रहा था जब वे इस नई उपनिवेशी दुनिया में शामिल हुए थे। उनकी प्रतिक्रिया ने उनकी क्षेत्रीय सभ्यतासामाजिक वंशवाद में उनका स्थान और विशेष धार्मिक समुदाय में उनकी सदस्यता ने आकार लिया था। 
  • जैसे 18वीं सदी ने 19वीं सदी को और 19वीं सदी ने 20वीं सदी को रास्ता दियाअंग्रेजों ने भी अपना दृष्टिकोण व सभ्यता बदली। यह 'उपनिवेशी संबंधशब्द उस समय और क्षेत्र के लिए प्रयोग किया जा सकता है जब भारत उपमहाद्वीप की स्वदेशी सभ्यता अंग्रेजी सभ्यता के व्यावहारिक पक्ष में आई।

 

  • पहले सैन्य और राजनैतिक नियंत्रण की स्थिति स्थापित की गई जबकि अधीन किए गए प्रदेश में सांस्कृतिक मेलजोल का क्षेत्र धीरे-धीरे बना अधीनता कभी भी किसी व्यक्ति या दिए गए क्षेत्र में उपनिवेशवाद पैदा नहीं करतीयह तो उन लोगों के मानव व्यवहार से पैदा होती है जो ज्यादा से ज्यादा या आवश्यक रूप से इस नए उपनिवेशी संसार का और उसकी संस्कृति का हिस्सा बनना चाहते थे।

 

  • उपनिवेशों संबंधों और सामाजिक-धार्मिक मतभेदों के स्वदेशी रूप से आग्रह के असमान विकास के कारण अंग्रेजी व्यवस्था के समय में दो भिन्न रूपों के आंदोलन पैदा हुए।


  • पहला परिवर्तनकारी (Transitional Movement) व दूसरा सांस्कृतिक (Acculturative Movement) परिवर्तनकारी आंदोलन का उद्भव पूर्व उपनिवेशी संसार से हुआ था और वह सामाजिक धार्मिक स्वदेशी मतभेदों से उत्पन्न हुआ थाजिन पर उपनिवेशी संबंधों का कम या बिल्कुल प्रभाव नहीं पड़ा था। यह इसलिए भी कि वह तब तक स्थापित नहीं हुआ था या फिर वह निश्चित आंदोलन में प्रवृत्त लोगों को प्रभावित करने में असफल रहा।

परिवर्तनकारी (Transitional Movement) 

  • 'परिवर्तन आंदोलनका स्पष्ट निश्चय था कि उसके नेताओं में अंग्रेजी ढंग की कमी थी और उपनिवेशी दुनिया के विचार और कार्यक्रम के साथ सामंजस्य वे जरूरी नहीं समझते थे। 'परिवर्तन आंदोलनने पूर्व उपनिवेशी समय को अंग्रेजी राजनैतिक प्रधानता के युग से जोड़ दिया और यदि सफल हुए तो कुछ समय बाद उपनिवेशी संबंधों से भी एक बार इसके संपर्क में आने के बाद 'परिवर्तन आंदोलनने वातावरण के साथ सीमित सामंजस्य कर लिया।

 
सांस्कृतिक (Acculturative Movement)

  • दो प्रकार के सामाजिक-धार्मिक आंदोलनों में दूसरा था-सांस्कृतिक आंदोलन (Acculturative movement) जो उपनिवेशी संबंधों में से उत्पन्न हुआ था और उसका नेतृत्व उन लोगों ने किया था जो सांस्कृतिक आदान-प्रदान के कर्त्ता थे।
  • इस आंदोलन के संस्थापक अंग्रेजी संस्कृति के संसार में से भी थे और बाहर से भी। लेकिन इसके अनुयायी और सभी जिन्होंने इसका नेतृत्व किया थावे सब ज्यादातर अंग्रेजी पढ़े भारतीय थे जो इंग्लैंड की विशिष्ट संस्कृति से प्रभावित थे।
  • 'सांस्कृतिक आंदोलनइस तथ्य को - कि अंग्रेज सर्वोच्च हैंउपनिवेशी संबंधों में जगह दी जो कि सर्वोच्च सत्ता (Supremacy) ने ही बनाए थे और उपनिवेशी संसार के सदस्यों को व्यक्तिगत स्थान भी दिलवाया।

 

  • इन दोनों आंदोलनों का आधार और घोषित उद्देश्य सामाजिक-धार्मिक विरोध की स्वदेशी परंपरा था। किसी भी तरह से सांस्कृतिक आंदोलन (Acculturative Movement) बिल्कुल नया नहीं था या वह भारत को स्थापित संस्कृति और किसी भी दिए गए प्रदेश की विशिष्ट संस्कृति में बिना आधार का नहीं था इसलिए परिवर्तन और सांस्कृतिक आंदोलन के बीच अंतर प्राथमिक रूप से यह उनका उद्भव बिंदु था। किसी भी दिए गए क्षेत्र के सामाजिक-धार्मिक आंदोलन की परीक्षा करने के लिए स्थानीय और प्रादेशिक संस्कृति के रूप में और अलग-अलग धार्मिक समुदाय के आपसी विचार-विमर्श के रूपों को अंग्रेजी प्रभाव और राजनैतिक प्रधानता के संबंध में परीक्षित करना चाहिए। 
  • सामाजिक धार्मिक आंदोलन का ऐतिहासिक भाग तभी समझा जा सकता है जब उस संदर्भ को समझा जाए जिनसे ये पैदा हुआ और इसके लिए कार्य किया।

विषय सूची :- 

ब्रिटिश राज (शासन) का भारत पर का आर्थिक प्रभाव

ब्रिटिश शासन के समय  भूमि राजस्व बंदोबस्त

भारतीय रेल के विकास के चरण

ब्रिटिश शासन में कृषि का वाणिज्यीकरण

भारतीय  उद्योगों का पतन  एवं आधुनिक उद्योगों का विकास

भारत में सांस्कृतिक टकराव तथा सामाजिक परिवर्तन

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