सामुदायिक विकास कार्यक्रम एवं ग्रामीण सामाजिक संरचना में परिवर्तन |Changes in Village Social Structure

 

सामुदायिक विकास कार्यक्रम एवं ग्रामीण सामाजिक संरचना में परिवर्तन |Changes in Village Social Structure


सामुदायिक विकास कार्यक्रम एवं ग्रामीण सामाजिक संरचना में परिवर्तन

 

समुदायिक विकास कार्यक्रमों के परिणामस्वरूप ग्रामीण भारत में अनेक परिवर्तन हुए हैं। परिवर्तन की अनेक प्रक्रियाओं ने भी ग्रामीण सामाजिक संरचना को परिवर्तित करने में सहायता प्रदान की है। भारतीय गांवों में परिवर्तनsशील परिदृश्य का विशलेषण निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है

 

(1) परिवार एव बन्धुत्व व्यवस्था में परिवर्तन

  • ग्रामीण रोजगार के नए अवसरों और ग्रामीण युवकों के नगरों की ओर प्रवास से परिवारों की संरचना पर प्रभाव पड़ा है। संयुक्त परिवार का यह परम्परागत रूप (जहां कई पीढ़ियां एक परिवार प्रमुख के शासन में सामान्य सम्पत्तिएक ही निवास स्थान और एक ही रसोई के आधार पर जीवन यापन करते हैं)बदल रहा है। इसके स्थान पर एकाकी परिवारों का उदय हो रहा है।

 

  • जहां तक बन्धुत्व सम्बन्धों का प्रश्न हैइनका सांस्कारिक स्वरूप ढीला हुआ है। ये सम्बन्ध लचीले हुए हैं। लेन-देन की प्रथा में भी ढिलाई आई हैपरन्तु विभिन्न स्वार्थों की पूर्ति के लिए बन्धुत्व व्यवस्था भारतीय गांवों में एक सामाजिक ताने बाने के रूप में अधिक कियाशील हो उठी है। उदाहरणार्थइन सम्बन्धों को नौकरी पानेपदोन्नति या किसी सरकारी कार्यालय में कोई काम करवाने या चुनाव में जीतने के लिए प्रयोग किया जाने लगा है।

 

(2) जाति संरचना में परिवर्तन 

  • नियोजित कार्यक्रमों के परिणामस्वरूप और विशेषत: अनुसूचित जातियोंअनुसूचित जनजातियों एवं कमजोर वर्गों के लिए चलाये गये कार्यक्रमों के परिणामस्वरूप जाति व्यवस्था में गहरे परिवर्तन हुए हैं। निम्न जातियों में जाति चेतना का उदय हो रहा है। मध्यम श्रेणी की जातियां राजनीतिक दृष्टि से अधिक सक्रिय हो उठी हैं। उच्च जातियों का परम्परागत प्रभुत्व कम होने लगा है और उनकी प्रभुता को मध्यम श्रेणी की जातियों से चुनौती मिल रही है। क्षेत्रीय आधार पर प्रभु जाति की अवधारणा क्रियाशील होती दिखाई देती है अर्थात वह जाति प्रभुता ग्रहण करने लगती है जो क्षेत्र विशेष में संख्या के आधार पर या आर्थिक व राजनीतिक सत्ता के आधार पर शक्तिशाली हो । एम० एन० श्रीनिवास के अध्ययन से पता चलता है कि चुनाव के समय वह जाति संगठन वोट बैंक के रूप में सक्रिय हो जाते हैं।

 

(3) नए वर्गों का उदय - 

  • परम्परागत दृष्टि से भारतीय गांव में भूस्वामियोंव्यापारियोंकृषकों एवं भूमिविहीन कृषि मजदूरों के वर्ग थे परन्तु इनके बीच सम्बन्ध मालिक और आसामी सम्बन्ध प्रतिमान के आधार पर थे। भूमि सुधार कानूनों व विकास के अन्य कार्यक्रमों के परिणामस्वरूप कुछ नए हित समूहों का उदय हो रहा है जो वर्ग चेतना के आधार पर क्रियाशील  हैंजैसे- गांव में युवा सभाएंस्त्री सभाएंकृषक संघमजदूर संघ आदि ।

 

(4) शक्ति व सत्ता की संरचना में परिवर्तन

  • परम्परागत रूप से भारतीय ग्रामों में शक्ति और संरचना एक बन्द व्यवस्था का रूप प्रकट करती है जहां शक्ति पद क्रम सोपान में एक कम से दूसरे क्रम में गतिीलता करना प्रायः असम्भव ही है। इसके अतिरिक्त प्रस्थिति संयोजन की स्थिति भी दिखाई देती है अर्थात उच्च जाति ही उच्च वर्ग है और वही शक्ति के सर्वोच्च पद भी ग्रहण किए हुए है। परन्तु पंचायती राज के लागू किये जाने सेसार्वभौमिक वयस्क मताधिकार मिलने से तथा विकास के अन्य कार्यक्रमों के परिणामस्वरूप यह परम्परागत शक्ति संरचना टूटने लगी है।

 

(5) कृषि विविधोकरण पर सरकार का जोर

  • उन्नत बीजउन्नत खाद और सिंचाई के उपलब्ध नए साधनों ने भारतीय ग्रामों में हरित क्रान्ति का श्रीगणे"। किया है। पंजाबहरियाणापचमी उत्तर प्रदे" और तमिलनाडु इस दि" में अग्रणी हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग किया जाना और नकद फसल बोने का प्रयास ही ग्रामीण कृषि व्यवस्था को मजबूत बना सकते हैं। हरित क्रान्ति से किसानों की हालत में सुधार हुआ है। फसलों के विविधीकरण से जिसमें फूलों की खेतीडेयरीमुर्गीपालनमत्स्य पालनदलहन और तिलहन प्रमुख हैंकिसानों को अपने उत्पाद पर अच्छी कमाई के अवसर मिलने लगे हैं। फलस्वरूप उनकी आकांक्षाएं जागी हैं और वे समाज के प्रतिष्ठा शक्ति व समृद्धि के पदों में अपना हिस्सा पाने के लिए आवाज उठाने लगे हैं। परिणामतः परम्परागत सामाजिक संरचना में तनावदरार व टूटन की स्थिति पैदा होने लगी है।

 

(6) आदर्शो एवं मूल्यों में परिवर्तन - 

  • ग्रामीण संस्कृति भी परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। भारतीय ग्रामों में जहां नियोजन के परिणामस्वरूप कुछ समृद्धि आई हैहरित क्रान्ति घटित हुई हैं। वहां भौतिक सुख-सुविधाओं का महत्व बढ़ गया है। नगरों की सभी सुविधाऐंजैसे- क्षायातायातसंचार माध्यमउपभोग की ब्रान्डेड वस्तुऐं तथा मनोरंजक साधन अपनाने में ग्रामवासी पीछे नहीं रहना चाहते । फलस्वरूप गांव का आम आदमी पहले जैसा गांव का गंवार नहीं है। वह अपने हित साधन में चतुर और गुटबाजी में कुल व्यक्ति बनता जा रहा है।

विषय सूची-

 

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