सामाजिक समरसता के घटक |Components of social harmony in Hindi

 सामाजिक समरसता के घटक
Components of social harmony in Hindi

सामाजिक समरसता के घटक |Components of social harmony in Hindi



सामाजिक समरसता के घटकों को निम्नानुसार समझ सकते है -


मूल घटक या अन्तर्वस्तु

सामाजिक समसरता के निम्नलिखित मूल घटक हैं, जिन्हें ही सामाजिक समरसता की अंतर्वस्तु माना जाता है- 


शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व- 

  • यह सामाजिक समरसता का एक महत्त्वपूर्ण घटक है क्योंकि समरसता संघर्ष के सिद्धांत पर आधारित नहीं है, इसमें हितों और आकाक्षाओं में संघर्ष नहीं है। यह सामाजिक-सांस्कृतिक व राजनैतिक विरोध से अलग सहअस्तिव और परस्पर निर्भरता की अवधारणा है। सामाजिक समरसता पहचान और अस्मिता का प्रश्न नहीं है, न ही इसमें पृथक् अस्तित्व है। इसमें तो शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व है।


सहिष्णुता - 

  • समरसता का एक प्रमुख घटक सहिष्णुता है। ध्यातत्व है कि समाज के सभी मतों, संस्कृतियों, धर्मों के अस्तित्व को स्वीकार करना तथा उनका सम्मान करना ही सहिष्णुता है, अतः सामाजिक समरसता को बढ़ाने के लिए सहिष्णुता की अवधारणा का होना आवश्यक है।

 

सहकार्य या सहयोग 

  • यह भी सामाजिक समरसता का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। एक साथ मिल-जुलकर कार्य करने और कार्य को साझा करने के भाव को ही सहयोग कहते हैं। अतः साथ मिलकर कार्य करने या सहयोग से समाज में समरसता स्थापित होती है।


बन्धुत्व

  • सामाजिक समरसता एक भावनात्मक अवधारणा है, जिसका एक महत्त्वपूर्ण घटक बन्धुत्व की भावना है।


आत्मीयता

  • समरसता का एक घटक आत्मीयता है। आत्मीयता से समाज में अपनापन एवं स्नेह संबंधों का विकास होता है, जिससे समाज में समरसता स्थापित होती है।


सर्वहित

  • यह भी समरसता का एक महत्त्वपूर्ण घटक है क्योंकि समरसता हेतु आवश्यक है कि व्यक्ति सर्वहित की बात करे न कि मात्र स्वहित की। साथ ही, सरकार को भी सर्वहित को ध्यान में रखकर ही नीति निर्माण करना है। सामाजिक समरसता की मूल भावना सर्वहित पर ही निर्भर करती है।

 

परावलम्बन निर्भरता

  • यह भी सामाजिक समरसता का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। समाज के सभी लोग किसी न किसी काम के लिए परस्पर निर्भर रहते हैं। लोगों में परस्पर निर्भरता या परावलम्बन समाज में समरसता स्थापित करते हैं।

 

सामाजिक समरसता के अन्य मूल घटक

 

समन्वय 

सरोकार 

समूह चेतना 

सदस्यता, आदि।

 

कालक्रम के दृष्टिकोण से सामाजिक समरसता के घटक

उपरोक्त घटकों के अतिरिक्त कालक्रम के दृष्टिकोण से सामाजिक समरसता के घटको को दो भागों में बांटा जा सकता हैजो निम्नानुसार है-


सामाजिक समरसता के- प्राचीनकालीन एवं परम्परागत घटक

 

धार्मिक एवं सामाजिक कार्यक्रम

  • प्राचीन काल से ही विभिन्न धार्मिक एवं सामाजिक कार्यक्रम जैसे- यज्ञ, अनुष्ठान एवं पर्व समाज में समरसता स्थापित करते रहे हैं। क्योंकि इनमें समाज के सभी लोग भाग लेते हैं, जिससे लोग परस्पर एक-दूसरे के करीब आते हैं, जिससे समाज में समरसता बढ़ती है।

 

धार्मिक ग्रंथ

  • ये भी सामाजिक समरसता के एक महत्वपूर्ण घटक हैं। विभिन्न प्रकार के धार्मिक ग्रंथ जैसे- वेद, पुराण, कुरानबाइबिल आदि मनुष्य को एक-दूसरे से प्रेम करना सिखाते हैं। इस प्रकार ये धार्मिक ग्रंथ सामाजिक समरसता का संदेश देते है। 

कला-

  • यह सामाजिक समरसता का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। कला में जाति, वर्ग भेदभाव का स्थान नहीं है अतः यह सामाजिक समानता का प्रतीक है। कला संस्कृति की वाहिका है। अतः कला हमारे सामाजिक सौहार्द्र को बनाए रखती है। सामाजिक कुरीतियों, अस्पृश्यता भेदभाव तथा अभावों का मामिक चित्रण प्रस्तुत करके कला लोगों के हृदय में परिवर्तन लाकर अंत समूह संपर्क को बढ़ाकर समरसता को प्रोत्साहित करती है।

 

संयुक्त परिवार प्रथा 

  • सामाजिक समरसता का एक घटक संयुक्त परिवार प्रथा है। भारत में प्राचीन काल में संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलन में रही है, जो लोगों में भावनात्मक सहयोग, चरित्र निर्माण एवं भावी पीढ़ी के समुचित विकास में सहायक रही है। इस प्रकार संयुक्त परिवार प्रथा सदस्यों के बीच समरसता की भावना का विकास करती है।

 

ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था 

  • ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था की सबसे प्रमुख विशेषता सामाजिक समरूपता का होना है। ग्रामीणों के जीवन स्तर में नगरों की भांति जमीन-आसमान का अंतर नहीं पाया जाता है। यहां सभी लोग एक जैसी संस्कृति जैसे-भाषा-त्यौहार, खान-पान, रहन-सहन का प्रयोग करते हैं। साथ ही ग्रामीण समाज में हर क्षेत्र में परस्पर आत्म निर्भरता पाई जाती है। इस प्रकार ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था सामाजिक समरसता का संदेश देती है।

 

सामाजिक समरसता के अन्य प्राचीन घटक

 

  • प्राचीन सांस्कृतिक भाषाशैली  जजमानी प्रथा। 
  • विशेष संस्कृति जैसे विशिष्ट खानपान, रीति-रिवाज पहनावा आदि।

 

सामाजिक समरसता के आधुनिक कालीन घटक

 

संविधान 

  • संविधान से ही सामाजिक समरसता संभव है। यह समाज में सामाजिक न्याय एवं समता की व्यवस्था करता है तथा एक प्रगतिशील समाज की नींव रखता है। संविधान में कई ऐसे प्रावधान किये गये हैं, जो सामाजिक समरसता को बनाये रखने में मदद करते हैं। जैसे- संविधान के अनुच्छेद 14 में विधि के समक्ष समानता का उल्लेख है तथा अनुच्छेद 15 में धर्म, वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान आदि के आधार पर भेदभाव का निषेध किया गया है। इस तरह संविधान समता के मूल अधिकार व भाईचारा बढ़ाने के मूल कर्त्तव्य के माध्यम से सामाजिक समरसता को बढ़ावा देता है।

 

विभिन्न सामाजिक विधान-

  • सामाजिक विधान भी सामाजिक समरसता को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होते हैं, जैसे सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम एवं अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम द्वारा अश्पृश्यता एवं जातिगत भेदभाव को कम कर सामाजिक समरसता को बढ़ावा दिया है।

 

सरकार 

  • सरकार कुछ निश्चित व्यक्तियों का समूह होती हैं जो राष्ट्र तथा राज्यों में निश्चित काल के लिए तथा निश्चित पद्धति द्वारा शासन करती है। प्रायः इसके तीन अंग होते हैं- व्यवस्थापिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका ये सामाजिक समरसता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा अनेक प्रयास किये जा रहे हैं। जैसे- सरकार निम्न वर्ग और महिलाओं को सम्मान दिलाने के लिए आरक्षण प्रदान कर उन्हें प्रगति की ओर बढ़ा रही है।

 

मीडिया सामाजिक समरसता का पोषक

  • मीडिया सामाजिक समरसता का पोषक एवं निर्माता है। सामाजिक समरसता में मोडिया की अहम भूमिका है। अतः मीडिया को भारत की सामाजिक समरसता को ध्यान में रखते हुए समाज में दुर्भावना और जातिगत भेदभाव को फैलाने वाले असामाजिक तत्त्वों को हतोत्साहित करना चाहिए साथ ही सामाजिक सौहार्द्र और एकता को बढ़ावा देने वाले लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए।


साहित्य और सामाजिक समरसता

  • साहित्य, सामाजिक समरसता को बनाये रखने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। साहित्य में सामाजिक सौहार्द्र, एकता, भाईचारे की भावना को विकसित करने की प्रवृत्ति पाई जाती है। प्रायः समाज में जो कुछ घटित हो रहा है, वह साहित्य की विषय वस्तु है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव लोगों पर पड़ता है। साहित्य के सृजन के माध्यम से लोगों में मानसिक परिवर्तन को प्रेरित कर सामाजिक समरसता का विकास संभव होता है।

 

सिविल सोसायटीज

  • यह एक सामाजिक आंदोलन है जो सामाजिक समरसता को बनाये रखने में सहायक है। नागरिक समाज जाति भेद से मुक्त समरस समाज के निर्माण की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, जैसे- ये विवाद की स्थिति में इसे समाप्त करने में मध्यस्थता करके तथा अन्य तरह से परामर्श देकर सामाजिक समरसता को बढ़ावा देते हैं।

 

शिक्षा एवं जागरूकता

  • ये सामाजिक समरसता को बनाए रखने के लिए आवश्यक तत्व हैं, क्योंकि जब समाज के सभी व्यक्ति शिक्षित एवं जागरूक होंगे तो आपसी सौहार्द्र एवं भाईचारे से सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिलेगा।

 

अन्य आधुनिक घटक

 

  • क्षेत्रीय विषमता को दूर करने के सरकार के प्रयास ।  
  • अत्याधुनिक परिवहन प्रणालियों की स्थापना। 
  • आधुनिक प्रौद्योगिकी एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होना। 

 

सामाजिक समरसता को बढ़ाने के लिए किए गए प्रमुख प्रयास

 

  • 6 दिसंबर को सामाजिक समरसता दिवस मनाना । 
  • शासन द्वारा आयोजित सर्वधर्म सर्वजाति समरसता समारोह । 
  • 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाना। 
  • राज्य सरकार की अंतरजातीय विवाह प्रोत्साहन योजना।  
  • ग्राम उदय से भारत उदय अभियान । 
  • 14 अप्रैल को सामाजिक न्याय दिवस। 
  • आरक्षण व्यवस्था को लागू किया गया। विभिन्न सामाजिक विधानों का लागू किया जाना जैसे- SC/ST एक्ट आदि। 
  • विभिन्न संवैधानिक उपबंध-भारतीय संविधान में भी समरसता स्थापित करने हेतु कई उपलब्ध किये है, जैसे- प्रस्तावना में, मूल अधिकारों में, मूल कर्त्तव्यों में आदि। 

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