सांस्कृतिक विलम्बन (Cultural Lag) |सभ्यता और संस्कृति में अन्तर | Cultural Lag in Hindi

सांस्कृतिक विलम्बन (Cultural Lag) 

सांस्कृतिक विलम्बन (Cultural Lag) |सभ्यता और संस्कृति में अन्तर | Cultural Lag in Hindi


 

 सांस्कृतिक विलम्बन क्या होता है इसकी अवधारणा

  • इस अवधारणा की चर्चा डब्ल्यू.एफ. ऑगबर्न (W.F.Ogburn) ने अपनी पुस्तक सोशल चेन्ज (Social Change) में 1925 में की। ऑगबर्न के अनुसार संस्कृति को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जा सकता है 1. भौतिक एवं 2. अभौतिक

 

  • संस्कृति के ये दोनों भागों समान गति से परिवर्तित नहीं होते हैं। किन्हीं कारणों से एक भाग आगे बढ़ जाता है। दूसरा पीछे छूट जाता है। फलस्वरूप सांस्कृतिक विलम्बना की स्थिति पैदा होती है। इससे समाज में व्याधियाँ उत्पन्न होती है। जैसे ही पीछे छूटे हुए भाग को आगे लाया जाता है तो समाज में परिवर्तन होता है। इस तरह ऑगबर्न के अनुसार सांस्कृतिक विलम्बन समाजशास्त्रियों के हाथ में एक मंत्र है जिसके द्वारा समाज परिवर्तित होता है।

 

  • इन्होंने जितने भी उदाहरण दिए वह सब यही स्पष्ट करते हैं कि भौतिक संस्कृति आगे बढ़ जाती है और अभौतिक पीछे रह जाती है। इसपर इनकी काफी आलोचना हुई। इन आलोचनाओं को स्वीकार करते हुए 1957 में अपनी पुस्तक ऑन सोशल एण्ड कल्चरल चेन्ज (On Social and Cultural Change) में सांस्कृतिक विलम्बन को पूर्ण परिभाषित करते हुए इसे एक सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत किया। 


इनके अनुसार सांस्कृतिक विलम्बन के लिए निम्नलिखित परिस्थितियों का होना जरूरी है

 

i. कोई दो चर चाहे दोनो भौतिक या एक भौतिकएक अभौतिक । 

ii. दोनों चरों के बीच में सह सम्बन्ध होना आवश्यक है। 

iii. दोनों चरों के बीच एक खास समय में अनुकूलन आवश्यक है। 

iv. किसी कारणवश एक आगे बढ़ जाए एक पीछे फलस्वरूप दोनों में विलम्बन हो जाए।

 

सांस्कृतिक विलम्बन उत्पन्न होने के चार कारक हैं

 

1. रूढ़िवादिता 

2. अतीत के प्रति निष्ठा 

3. नए विचारों के प्रति भय 

4. निहित स्वार्थ

 

  • इसकी आलोचना करते हुए मैकाइवर एवं पेज ने कहा है कि Cultural Lag की जगह Technological Lag का प्रयोग होना चाहिए। आज के समाजशास्त्र में Culture Lag महत्वहीन है क्योंकि यह केवल दो चरों की बात करता है जबकि आज किसी भी विज्ञान में Multiple of factors की बात होती है।

 

संस्कृति में परिवर्तन क्यों होता है ?

Culture Change- प्रश्न उठता है कि संस्कृति में परिवर्तन क्यों होता है। समनर ने इसके तीन कारण बताये हैं

 

1. संस्कृति का शत प्रतिशत हस्तान्तरण असम्भव है। 

2. बाह्य दशाओं में परिवर्तन 

3. अनुकूलन का प्रयत्न

 

सभ्यता और संस्कृति में अन्तर

 

सभ्यता और संस्कृति शब्द का प्रयोग एक ही अर्थ में प्रायः लोग करते हैंकिन्तु सभ्यता और संस्कृति में अन्तर है। सभ्यता साधन है जबकि संस्कृति साध्य सभ्यता और संस्कृति में कुछ सामान्य बातें भी पाई जाती हैं। सभ्यता और संस्कृति में सम्बन्ध पाया जाता है। मैकाइवर एवं पेज ने सभ्यता और संस्कृति में अन्तर किया है। इनके द्वारा दिये गये अन्तर इस प्रकार हैं-

 

1. सभ्यता की माप सम्भव हैलेकिन संस्कृति की नहीं- 

  • सभ्यता को मापा जा सकता है। चूँकि इसका सम्बन्ध भौतिक वस्तुओं की उपयोगिता से होता है। इसलिए उपयोगिता के आधार पर इसे अच्छा-बुराऊँचा नीचा उपयोगी अनुपयोगी बताया जा सकता है। संस्कृति के साथ ऐसी बात नहीं है। संस्कृति की माप सम्भव नहीं है। इसे तुलनात्मक रूप से अच्छा-बुराऊँचा-नीचाउपयोगी अनुपयोगी नहीं बताया जा सकता है। हर समूह के लोग अपनी संस्कृति को श्रेष्ठ बताते हैं। हर संस्कृति समाज के काल एवं परिस्थितियों की उपज होती है। इसलिए इसके मूल्यांकन का प्रश्न नहीं उठता। उदाहरण स्वरूप हम नई प्रविधियों को देखें। आज जो वर्तमान है और वह पुरानी चीजों से उत्तम है तथा आने वाले समय में उससे भी उन्नत प्रविधि हमारे सामने मौजूद होगी। इस प्रकार की तुलना हम संस्कृति के साथ नहीं कर सकते। दो स्थानों और दो युगों की संस्कृति को एक-दूसरे से श्रेष्ठ नहीं कहा जा सकता ।

 

2. सभ्यता सदैव आगे बढ़ती हैलेकिन संस्कृति नहीं- 

  • सभ्यता में निरन्तर प्रगति होती रहती है। यह कभी भी पीछे की ओर नहीं जाती। मैकाइवर ने बताया कि सभ्यता सिर्फ आगे की ओर नहीं बढ़ती बल्कि इसकी प्रगति एक ही दिशा में होती है। आज हर समय नयी-नयी खोज एवं आविष्कार होते रहते हैं जिसके कारण हमें पुरानी चीजों की तुलना में उन्नत चीजें उपलब्ध होती रहती हैं। फलस्वरूप सभ्यता में प्रगति होती रहती है ।

 

3. सभ्यता बिना प्रयास के आगे बढ़ती हैसंस्कृति नहीं 

  • सभ्यता के विकास एवं प्रगति के लिए विशेष प्रयत्न की आवश्यकता नहीं होतीयह बहुत ही सरलता एवं सजगता से आगे बढ़ती जाती है। जब किसी भी नई वस्तु का आविष्कार होता है तब उस वस्तु का प्रयोग सभी लोग करते हैं। यह जरूरी नहीं है कि हम उसके सम्बन्ध में पूरी जानकारी रखें या उसके आविष्कार में पूरा योगदान दें । अर्थात् इसके बिना भी इनका उपभोग किया जा सकता है। भौतिक वस्तुओं का उपयोग बिना मनोवृत्तिरूचियों और विचारों में परिवर्तन के किया जाता हैकिन्तु संस्कृति के साथ ऐसी बात नहीं है। संस्कृति के प्रसार के लिए मानसिकता में भी परिवर्तन की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिएयदि कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन करना चाहता हैतो उसके लिए उसे मानसिक रूप से तैयार होना पड़ता हैलेकिन किसी वस्तु के उपयोग के लिए विशेष सोचने की आवश्यकता नहीं होती।

 

4. सभ्यता बिना किसी परिवर्तन या हानि के ग्रहण की जा सकती हैकिन्तु संस्कृति को नहीं 

  • सभ्यता के तत्वों या वस्तुओं को ज्यों-का-त्यों अपनाया जा सकता है। उसमें किसी तरह की परिवर्तन की आवश्यकता नहीं पड़ती। इस एक वस्तु का जब आविष्कार होता हैतो उसे विभिन्न स्थानों के लोग ग्रहण करते हैं। भौतिक वस्तु में बिना किसी परिवर्तन लाये ही एक स्थान से दूसरे स्थान में ले जाया जा सकता है। उदाहरण के लिएतब ट्रैक्टर का आविष्कार हुआ तो हर गाँव में उसे ले जाया गया। इसके लिए उसमें किसी तरह के परिवर्तन की आवश्यकता नहीं पड़ी। किन्तु संस्कृति के साथ ऐसी बात नहीं है। संस्कृति के तत्वों को जब एक स्थान से दूसरे स्थान में ग्रहण किया जाता है तो उसमें थोड़ा बहुत परिवर्तन हो जाता है। उसके कुछ गुण गौण हो जाते हैंतो कुछ गुण जुड़ जाते हैं। यही कारण है कि धर्म परिवर्तन करने के बाद भी लोग उपने पुराने विश्वासोंविचारों एवं मनोवृत्तियों में बिल्कुल परिवर्तन नहीं ला पाते। पहले वाले धर्म का कुछ-न-कुछ प्रभाव रह जाता है।

 

5. सभ्यता बाह्य हैजबकि संस्कृति आन्तरिक 

  • सभ्यता के अन्तर्गत भौतिक वस्तुएँ आती हैं। भौतिक वस्तुओं का सम्बन्ध बाह्य जीवन से बाहरी सुख-सुविधाओं से होता है। उदाहरण के लिएबिजली-पंखाटेलीविजनमोटरगाड़ीइत्यादि। इन सारी चीजों से लोगों को बाहरी सुख-सुविधा प्राप्त होती है। किन्तु संस्कृति का सम्बन्ध व्यक्ति के आन्तरिक जीवन से होता है। जैसे -ज्ञान विश्वासधर्मकला इत्यादि। इन सारी चीजों से व्यक्ति को मानसिक रूप से सन्तुष्टि प्राप्त होती हैइस प्रकार स्पष्ट होता है कि सभ्यता बाह्य हैलेकिन संस्कृति आन्तरिक जीवन से सम्बन्धित होती है।

 

6. सभ्यता मूर्त होती हैजबकि संस्कृति अमूर्त 

  • सभ्यता का सम्बन्ध भौतिक चीजों से होता है। भौतिक वस्तुऐं मूर्त होती हैं। इन्हें देखा व स्पर्श किया जा सकता है। इससे प्रायः सभी व्यक्ति समान रूप से लाभ उठा सकते हैंकिन्तु संस्कृति का सम्बन्ध भौतिक वस्तुओं से न होकर अभौतिक चीजों से होता है। इन्हें अनुभव किया जा सकता हैकिन्तु इन्हें देखा एवं स्पर्श नहीं किया जा सकता। इस अर्थ में संस्कृति अमूर्त होती है।

 

7. सभ्यता साधन है जबकि संस्कृति साध्य-

  • सभ्यता एक साधन है जिसके द्वारा हम अपने लक्ष्यों व उद्देश्यों तक पहुँचते हैं। संस्कृति अपने आप में एक साध्य है। धर्मकलासाहित्यनैतिकता इत्यादि संस्कृति के तत्व हैं। इन्हें प्राप्त करने के लिए भौतिक वस्तुऐं जैसे धार्मिक पुस्तकेंचित्रकलासंगीतनृत्य बाद्य इत्यादि की आवश्यकता पड़ती । इस प्रकार सभ्यता साधन है और संस्कृति साध्य ।

विषय सूची 


संस्कृति का अर्थ एवं परिभाषा , मानव संस्कृति का निर्माण


संस्कृति की प्रकृति या विशेषताएँ 


संस्कृति के प्रकार, भौतिक संस्कृति ,अभौतिक संस्कृति, संस्कृति कितने प्रकार की होती है 


संस्कृति की संरचना ,सांस्कृतिक तत्व, संकुल, प्रतिमान, संस्कृति के प्रकार्य 


सांस्कृतिक विलम्बन (Cultural Lag) ,सभ्यता और संस्कृति में अन्तर


संस्कृति एवं व्यक्तित्व, |व्यक्तित्व  क्या  होता है , व्यक्तित्व के निर्माण के प्रमुख आधार 

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