लोकतंत्र और विलगाव |लोकतंत्र और जनमत |लोकतंत्र और इंटरनेट |Democracy and the Internet
लोकतंत्र और विलगाव, लोकतंत्र और जनमत, लोकतंत्र और इंटरनेट
लोकतंत्र और विलगाव (ALIENATION)
- विलगाव का अर्थ अपने वास्तविक या आवश्यक स्वभाव से अलग होना है। व्यवहार में, अधिकतर प्रजातांत्रिक प्रणालियों का कार्य निजी स्वायत्तता और लोकप्रिय शासन के मापदण्डों के संदर्भ में स्तर से नीचे होता है। आधुनिक संसार में लोकतंत्र सीमित और लोकतंत्र के अप्रत्यक्ष रूप के दौर से गुजर रहा है और इस प्रकार से स्वतंत्र नागरिक को विलगाव की ओर ले जाता है।
- यह लोकतंत्र उससे कुछ ज्यादा नहीं है, जिसको जोसेफ शममपीटर (Joseph Schumpeter) ने "संस्थानिक व्यवस्था की संज्ञा दी है और जो उन, राजनीतिक निर्णयों तक पहुँचने के लिए होता है, जिसके तहत व्यक्ति मतों के प्रतियोगी संघर्ष के माध्यम से निर्णय लेने की शक्ति प्राप्त करते हैं।
- इस संस्थानिक व्यवस्था के अर्थविहीन कर्मकांड में लोकप्रिय सहभागिता को कम करने के लिए उग्र लोकतंत्रवादियों ने आलोचना की है। जैसे राजनीतिज्ञों को हटाकर मात्र दूसरे राजनीतिज्ञों को लाने के लिए प्रत्येक कुछ वर्षों में मतदान करना । संक्षेप में, लोग कभी भी शासन नहीं करते हैं और सरकार और लोगों के बीच बढ़ती दूरी अचलता, उदासीनता और विलगाव के फैलने के रूप में झलकती है।
लोकतंत्र और जनमत
- बहुत हद तक लोकतंत्र जनमत पर निर्भर करता है। प्रतिनिधि लोकतंत्र में प्रत्येक सरकार को अपनी नीतियों के प्रति जनता की क्या प्रतिक्रिया होगी, यह सोचना पड़ता है। सभी दल शक्ति को हथियाना तथा बरकरार रखना चाहते हैं। अगले चुनाव में सत्ता में आना इस बात पर निर्भर करता है कि जनता उनके कार्य के बारे में क्या सोचती है, जब दल सत्ता में था.
- सशक्त जनमत सत्ता में आने तथा एक दल या दलों के गठजोड़, जिसे मोर्चा कहा जाता है, सरकार के गठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि जनता सजग तथा समझदार है तथा अपने आप जानकारी प्राप्त करती है, तब सरकार जनता की आकाक्षाओं की अवहेलना का साध्य नहीं कर सकती है।
- यदि सरकार उनकी आकांक्षाओं का अनादरकरती है, वह तत्क्षण अलोकप्रिय हो जाती है। दूसरी तरफ, यदि जनता सजग और समझदार नहीं है, तो सरकार गैरजिम्मेदार बन सकती है। उस वक्त यह लोकतंत्र के आधार स्तंभ के लिए खतरा बन सकती है।
जनमत का निर्माण
- जनमत विभिन्न प्रकार और कई संस्थाओं के योगदान से बनाया जाता है। स्वस्थ जनमत के लिए, नागरिकों को उनके चारों ओर उनके अपने देश में, और संसार में क्या हो रहा है, जानना चाहिए। एक देश की सरकार सिर्फ आन्तरिक समस्याओं के लिए ही नीतियाँ नहीं निर्धारित करती है, बल्कि विदेश नीति भी तय करती है। नागरिक को अपना निर्णय लेने से पहले विभिन्न मतों का ख्याल रखना चाहिए । यद्यपि लोकतंत्र के अच्छे संचालन के लिए, नागरिकों को विभिन्न दृष्टिकोणों से भली भाँति अवगत होने की आवश्यकता है। उन अभिकरणों में, प्रेस, इलेक्ट्रोनिक माध्यम और चलचित्र आते हैं जो स्वस्थ जनमत निर्माण में मदद करते हैं ।
- लोकतंत्र निर्णय प्रक्रिया में व्यक्ति को अपनी राय जाहिर करने का मौका देता है। इन सब के लिये मुक्त वादविवाद तथा बहस की आवश्यकता होती है। प्रजातांत्रिक सरकार साधारण नागरिक को बहुत स्वतंत्रता प्रदान करती है। फिर भी, नागरिकों को स्वतंत्रता का प्रयोग जिम्मेदारी, बंधन और अनुशासन के साथ करना चाहिए। यदि लोगों को शिकायत है तो, उन्हें प्रजातांत्रिक प्रणाली के अभिकरणों के माध्यम से अवश्य दर्शाना चाहिए। नागरिकों के अनुशासनहीनतापूर्ण कार्यों से प्रजातांत्रिक व्यवस्था में रुकावटें पैदा हो सकती.
लिंग और लोकतंत्र सहभागिता और प्रतिनिधित्व
- लोकतंत्रीकरण के तीसरे चरण की शुरुआत 1970 के मध्य से, लैटिन अमेरिका पूर्वी और केन्द्रीय यूरोप के अनेक देशों और अफ्रीका तथा एशिया के कई भागों में हुई और इसने स्पर्द्धात्मक चुनावी राजनीति को प्रारंभ किया। इसे लोकतंत्र की विजय के रूप में देखा गया क्यूंकि निर्वाचक लोकतत्रों की संख्या 1974 में 39 से 1998 में 117 हो गयी।
- फिर भी, पूर्व के लम्बे समय से कार्यरत लोकतंत्रों की तरह, नये लोकतंत्रों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व विधायिकाओं और कार्यपालिकाओं, दोनों में कम है। राजनीतिक नागरिकता लम्बे समय से महिला आन्दोलनों के संघर्ष का महत्त्वपूर्ण लक्ष्य था। व्यस्क मताधिकार के लिए आंदोलन 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध और 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में संसार के अनेक भागों में हुए, उनका आधार यह था कि मतदान का अधिकार और चुनावी प्रक्रियाओं में भाग लेना, नागरिकता का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा थे।
- यदि लोकतंत्र अब सभी नागरिकों को राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने के अधिकार का आश्वासन देता है, तो महिलाओं का प्रतिनिधित्व इतना कम क्यों होता है? क्या महिलाओं की कम सहभागिता का यह अर्थ है कि लोकतंत्र अप्रजातांत्रिक होते हैं?
जैसा कि बताया गया लोकतंत्रीकरण के सिद्धांतकारों ने लोकतंत्र के बारे में अलग अलग परिभाषाएं दी हैं :
- एक छोर पर यह न्यूनतम परिभाषा है, तुलनात्मक निर्वाचन ही सभी कुछ और पर्याप्त है।
- मध्यम परिभाषाएँ स्वतंत्रता और बहुलवाद की आवश्यकता पर भी जोर देती है, जैसे नागरिक अधिकार और वाक स्वतंत्रता, जिससे राज्य को एक उदारवाद लोकतंत्र माना जा सके।
- ये परिभाषाएं सहभागिता के अधिकार और सहभागिता के लिए सामर्थ्य के बीच कोई अंतर स्थापित नहीं करती हैं। केवल अत्यधिक काल्पनिक परिभाषाएं जोकि लोकतंत्र की गुणवत्ता को स्वीकार करती हैं, वे इस बात पर जोर देती है कि वृहद् अर्थ लोकतंत्र पूरी नागरिकता की सुविधाओं का आनंद भी है।
- नागरिकता सिर्फ नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के ही संदर्भ में व्यक्त नहीं की जाती है, बल्कि आर्थिक और सामाजिक अधिकारों के संदर्भ में भी, ताकि राजनीतिक क्षेत्र में सभी को पूर्ण सहभागिता का अवसर प्राप्त हो । लोकतंत्र तभी सशक्त और प्रभावकारी हो सकता है, जब नागरिक समाज में एक सक्रिय नागरिक भाग लें।
'सार्वजनिक' और 'निजी'
- स्त्रीवादियों ने लम्बे समय से तर्क दिया है कि जिस ढंग से लोकतंत्र की व्याख्या, सैद्धांतिकरण और प्रैक्टिस की जाती है, उसमें अनेक समस्याएं है। उदारवादी राजनीतिक सिद्धांत सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बीच विभाजन पर आधारित है। इस ढाँचे के अंतर्गत पुरुष घर के प्रमुख होते हैं और सार्वजनिक जीवन में मूर्त्त व्यक्तियों की तरह सक्रिय होते हैं, जबकि महिलाओं को परंपरा की तरह निजी जिन्दगी तक सीमित रखा जाता है। अतः 'राजनीतिक' को एक अति गंभीर अर्थ में पुलिंग की तरह माना जाता है।
- व्यावहारिक तौर पर, लोकतंत्रों में जिस तरीके से राजनीतिक गतिविधियाँ संचालित होती हैं और जिस प्रकार का महिलाओं का आम तौर पर स्वभाव होता है, कि वे खासकर परम्परावादी राजनीतिक गतिविधियों के उच्च स्तरों पर पुरुषों की तुलना में बहुत कम भाग लेती हैं।
जैसे-
- अनेक महिलाएँ राजनीति की शैली और सार को रुकावट मानती हैं।
- यदि वे राजनीतिक जीवन अपनाने का निर्णय करती हैं, तो अक्सर विजयी होने वाले सीट पर भी पार्टी सूची में जगह पाने में कठिनाइयाँ महसूस करती हैं।
- इसके अलावा, सार्वजनिक जीवन के दूसरे क्षेत्रों की ही तरह महिलाएँ निजी जीवन में अपनी जिम्मेदारियों की वजह से परम्परावादी राजनीतिक गतिविधि में पुरुषों के समानार्थ हिस्सा नहीं ले पाती हैं।
- यह कहना गलत होगा कि लोकतंत्र की प्रकृति पर सहमति है लेनिन ने तर्क दिया था कि उदावादी लोकतंत्र एक स्क्रीन है, जो जनता के शोषण और दमन को छिपाता है। हाल में कैरोल पेटमैन ने तर्क दिया है कि लोकतंत्र को कार्यस्थल तक लागू होना चाहिए - जहाँ अधिक लोग अपने दिन का अधिकांश समय बिताते हैं इससे पहले कि हम यह कहें कि हम प्रजातांत्रिक शर्तों के अनुसार जी रहे हैं।
- लोकतंत्र की आलोचना का एक विभिन्न प्रकार यह तर्क देता हैं कि लोकतंत्र भी खतरनाक रूप से गलत हो सकता है। अरस्तु ने हमें बताया था कि लोकतंत्र के उचित ढंग से संचालन के लिए उसे एक स्थिर कानून व्यवस्था की जरूरत होती है। अन्यथा लोकतंत्र अनेक लोगों के दमनात्मक निरंकुश तंत्र के रूप में भीड का शासन बन सकता है। इसी तरह का विचार द टॉकवी का था कि लोकतंत्र एक नये प्रकार का अधिनायकवाद (बहुमत का अधिनायकवाद ) की संभावना को उत्पन्न करता है। मेडिसन ने वर्गवाद के खतरे से आगाह किया था, जिसके अंतर्गत एक बड़ा या छोटा समूह लोगों के आमहित से कोई संबंध नहीं रखता है और जिसका प्रयास अपने हितों के लिए प्रजातांत्रिक प्रणाली से विमुख होना होता है।
- आधुनिक लोकतंत्र अपने लिए नौकरशाही ढाँचे का निर्माण करता है। मैक्स वैबर के अनुसार नौकरशाही ढाँचा लोकतंत्र के संचालन में रोड़े अटकाता है, क्योंकि लोकतंत्र से उत्पन्न नौकरशाही का झुकाव प्रजातांत्रिक प्रक्रिया का खात्मा करना होगा। पॉरेटो ने कहा था कि यद्यपि प्रजातांत्रिक समाज होने का दावा किया जा सकता है, लेकिन इस शासन व्यवस्था की बागडोर शक्तिशाली अभिजात्यवर्ग के हाथ में अनिवार्य रूप से होगी।
- लेकिन, यह तर्क दिया जा सकता है कि शक्ति के पृथकरण और नियंत्रण और संतुलन की अवधारणाएँ निरंकुशतावाद को बहुत हद तक रोक सकती हैं। इससे ज्यादा हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि जो लोग कानून का निर्माण करते हैं, वे उनको लागू भी करें।
लोकतंत्र और इंटरनेट
- कोई भी दूसरा आविष्कार इस नये तकनीकी युग में इंटरनेट की तरह इतनी शीघ्रता से जन मानस पर नहीं छाया है। इंटरनेट ने बड़ी शीघ्रता से सामूहिक प्रभाव और अतः निर्भरता को विकसित करने में अन्तर्राष्ट्रीय संबंध के विकास को गति प्रदान की है।
- इंटरनेट ने लोकतंत्र को कई तरीकों से प्रभावित किया है। वास्तव में सर्वाधिकारीवादी शासन का विरोध करने में इसकी भूमिका सकारात्मक है, यह सूचना पहुँचाने में मदद करता है और इस प्रकार, प्रश्न के द्वारा सरकार के एकाधिकार की जड़ खोदता है।
- दूसरी तरफ, इंटरनेट लोकतंत्र के लिए इस सीमा तक समस्याएं उत्पन्न करता है, कि राज्य की नियामक क्षमता कम हो जाती है। इंटरनेट द्वारा समाजों की अंतर्राष्ट्रीय व्याख्या, सरकार की प्रभावकारी ढंग से शासन की क्षमता को समाप्त करता है। जहाँ तक राष्ट्रीय सुरक्षा का संबंध है, इंटरनेट ने आसमान संघर्ष के लिए नये द्वार खोल दिये हैं। राज्य जनव्यापी आक्रमणों की, अन्य राज्यों से नहीं बल्कि व्यक्तियों से झेल सकता है । यद्यपि, नई सूचना तकनीक संभवया, संतुलन में देखें तो, निहित शक्ति संरचनाओं को कमजोर करने की अपेक्षा बरकरार रखती है ।
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