भारतीय संस्कृति की विशेषताएं |Features of Indian Culture in Hindi
भारतीय संस्कृति की विशेषताएं
भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें ?
- प्राचीन भारतीय संस्कृति के मूलभूत तत्त्व जो आज से हजारों वर्ष पूर्व तक भारतीय संस्कृति के महत्त्वपूर्ण अंग थे आज भी किसी न किसी रूप में भारतीय संस्कृति में विद्यमान है और भारतीय संस्कृति की इन्ही विशेषताओं को ध्यान में रखकर भारतीय प्राचीन भारत की परिस्थिति का आकलन कर सकते हैं।
- भारतीय संस्कृति में में धर्म, अध्यात्मवाद, ललितकला ज्ञान, विज्ञान, विविध विद्याए, नीति, विधि-विधान, जीवन प्रणालियां और वे समस्त क्रियाएं और कार्य है जो उसे विशिष्ट बनाते हैं और जिन्होंने भारतीय के सामाजिक और राजनैतिक विचारों को, धार्मिक और आर्थिक जीवन को साहित्यक, शिष्टाचार और नैतिकता में ढाला है।"
इस प्रकार भारतीय संस्कृति की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-
1 प्राचीनता
- भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम में मानी जाती है। विश्व की अनेक संस्कृतियां मिश्र, असीरिया, बेबीलोनिया, क्रीट, यूनान आदि संस्कृतियां समय के साथ नष्ट होती गई। आज इन प्राचीन संस्कृतियों का नाम लेने वाला कोई नहीं बचा है लेकिन भारत की संस्कृति आज भी भारतीय संस्कृति की प्राचीनता वेदों की प्रामाणिकता, महावीर स्वामी एवं गौतम बुद्ध का अहिंसा एवं शान्ति का देवी-देवता, समाज, संस्कार आदि भारतीय संस्कृति में देखे जा सकते हैं।
- मद्रास के निकट पल्लवरम, चिंगलपेट, वैल्लौर, सोहनघाटी के क्षेत्र, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के रिहन्द क्षेत्र मध्य प्रदेश आदि स्थानों से पाषाणकालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं तथा हड़प्पा, मोहनजोदड़ो आदि स्थानों की खुदाई से लगभग 3200 ई.पू. की प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति का पता है निरकार भारतीय संस्कृति लगभग 5200 वर्ष पुरानी हैं।
2. निरन्तरता
- भारतीय संस्कृति की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता उसकी निरन्तरता है। जहां विश्व की अन्य संस्कृतियां समय के साथ जर्जर या लुप्त प्राय हो गई वहीं भारतीय संस्कृति न केवल जीवित है वरन् प्राचीन आदर्श सिद्धान्तों को भी वर्तमान से बांधे है।
- सिन्धु घाटी सभ्यता का उत्खनन कार्य निरन्तर हो रहा है ऐसे ही आज भी संस्कृत भाषा उसी तरह से बोली या पढ़ी जाती है जैसी आज से कई हजारों वर्ष पहले बोली या पढ़ी जाती थी जैसे पाणिनी के समय इसी प्रकार प्राचीनकाल के समान आज भी गंगा, यमुना, गोदावरी नदियों को देवी के रूप में पूजा जाता है।
- वेद, उपनिषद, पुराण आदि साहित्यों को आज भी उतना ही महत्त्वपूर्ण माना जाता है जितना उस काल में इस प्रकार ये सभी तत्त्व भारतीय संस्कृति की निरन्तरता को बरकरार रखते हुये आज भी समाज एवं संस्कृति के महत्त्वपूर्ण अंग बने हुये है। यद्यपि यह पूर्ण रूप से सुरक्षित नहीं है लेकिन भारतीय संस्कृति में किसी न किसी रूप में यह सुरक्षित है।
3 धर्म की प्रधानता
- भारतीय संस्कृति की महत्त्वपूर्ण विशेषता आध्यात्मिकता भी रही है। प्राचीनकाल से ही भारत में धर्म अग्रणीय रहा है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को धर्म से जोड़ा जाता रहा है चाहे विवाह संस्कार हो, वर्ण व्यवस्था हो या फिर आश्रम व्यवस्था आज भी विवाह संस्कार के लिये यही माना जाता है कि वर वधु का चुनाव तो भगवान के घर में ही हो जाता है। भारत में तप, सत्य एवं धर्म को जीवन के लिये श्रेयस्कर बताया है। इस तरह पूरी भारतीय चिन्तन पर आध्यात्मिकता की छाप स्पष्ट दिखाई देती है।
- डॉ. बलदेव उपाध्याय के अनुसार किसी भी संस्कृति की श्रेष्ठता का मापक उसका आध्यात्मिक चिन्तन होता है। जिस संस्कृति के आध्यात्मिक विचार जितने अधिक और गहन होते है वह संस्कृति इतिहास में उतना ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।" भारतीयों ने शुरू से ही स्थूल संसार से परे किसी अलौकिक सत्ता को माना है। भारत की इसी आध्यात्मिकता ने विदेशी जातियो - शक, कुषाण, यवन, मुसलमानों को भी अपने धर्म का अभिन्न अंग बना लिया। मानव जीवन का परम लक्ष्य पर चलते हुए ब्रह्म ज्ञान प्राप्त करना या अन्य साधनों से सांसारिक जीवन से मोक्ष प्राप्त करना माना गया है और आज भी मोक्ष प्राप्त करना भारतीयों का परम लक्ष्य है।
4 ग्रहणशीलता
- ग्रहणशीलता से तात्पर्य होता है किसी भी अन्य वस्तु को अपनाना और भारतीय संस्कृति अन्य विशेषता उसकी ग्रहणशीलता है। जब-जब भारतीयों का अन्य देशों के साथ सम्पर्क हुआ तब-तब उन्होंने अच्छाइयों को ग्रहण किया यही कारण रहा है कि भारत में आई विदेशी जातियों (शक, हूण, मंगोल एवं तुर्क आदि) के रिति रिवाज, धर्म, भाषा, संस्कारों को आत्मसात कर लिया यदि भारतीय भी अन्य देशों की तरह इन्हें ग्रहण नहीं करते तो शायद आज भारतीय संस्कृति सुरक्षित नहीं रह पाती। भारतीय ज्योतिष एवं कला यूनानी एवं इस्लामी प्रभाव से समृद्ध है।
- भारतीयों ने 'जियो और जीने दो के सिद्धान्त को अपनाते हुए विदेशियों की अच्छाइयों को ग्रहण किया परिणामस्वरूप भारतीय संस्कृति और अधिक समृद्ध हो गई। यह तो सब जानते हैं कि भारतीय संस्कृति ने विश्व को शान्ति, अहिंसा सद्भावना, राष्ट्रीयता, मैत्री भाव, अपनत्व का सिद्धान्त दिया है लेकिन इसके साथ भारतीयों ने ग्रहण भी किया है। इसी ग्रहणशीलता के कारण ही भारतीय संस्कृति में विशालता, व्यापकता तथा विविधता परिलक्षित होती है।
5 सहिष्णुता
- भारत में विभिन्न सम्प्रदायों के प्रति सम्मान प्रभाव प्राचीनकाल से ही रहा है। यहां अनेकों धर्मों के अनुयायी रहते हैं कभी भी धर्म को लेकर भारत में कोई संग्राम, रक्तपात नहीं हुआ जबकि यूरोप में कई स्थानों पर धर्म का विषय लड़ाई और झगड़े का कारण बना।
- विश्व में एक धर्म ने अपने ही धर्म की अन्य शाखा को पनपने नहीं दिया इसी कारण सुकरात को विषपान करना पड़ा ईसा मसीह को सूली पर चढ़ा दिया गया लेकिन भारत के इतिहास में ऐसा एक भी पन्ना नहीं लिखा है जिसमें युद्ध का कारण धार्मिक विश्वास, भिन्न-भिन्न पूजा विधियां, विभिन्न रहन सहन, खानपान आदि रहा हो बल्कि भारत में सभी सम्प्रदायों के लोग एक साथ स्वीकृत रहते आये सहिष्णुता का सुन्दर उदाहरण अशोक के बारहवें शिलालेख में भी देखने को मिलता है जिसमें लिखा हैं- "लोग केवल अपने ही सम्प्रदाय का आदर और बिना कारण दूसरे सम्प्रदाय की निन्दा न करे जो व्यक्ति ऐसा करता है, वह अपने सम्प्रदाय को भी क्षति पहुंचाता है और दूसरे सम्प्रदाय का भी अपकार करता है। सभी सम्प्रदाय वाले विद्वान होते है और कल्याण का कार्य करते हैं।" यहीं नहीं वरन् भारतीयों ने ग्रहणशीलता के सिद्धान्त को अपनाते हुए, विदेशों से धार्मिक अत्याचारों पीड़ित होकर आने वाले पारसियों, यहुदियों ओर सीरियन ईसाइयों को अपने यहां शरण दी जो कि भारतीयों की धार्मिक सहिष्णुता का परिचायक है।
6 सर्वांगीणता
- भारतीय संस्कृति ने व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिये शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों के विकास को आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण माना जबकि विश्व की अन्य संस्कृतियों ने भौतिक विकास तो किया मगर आत्मा विज्ञान का विकास नहीं परिणामस्वरूप भारतीय संस्कृति के सर्वांगीणता के सिद्धान्त ने भारतीय संस्कृति की एक अलग ही छवि बना दी विद्वानों ने चार पुरुषार्थी काम अर्थ द्वारा शरीर एवं धर्म मोक्ष के द्वारा आत्मिक विकास का सिद्धान्त दिया पुरुषार्थों की प्राप्ति के लिये चार आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं सन्यास आश्रम का प्रावधान रखा।
- इस तरह भारतीय संस्कृति मनुष्य के किसी एक पक्ष के स्थान पर उसके सर्वांगीण विकास को महत्व देती है जबकि अन्य संस्कृतियों में यह कमी रही है। इस प्रकार भारतीय संस्कृति ने मनुष्य की ऐहिक एवं पारलौकिक उन्नति को बढ़ावा दिया।
7. कर्मवाद
- भारतीय आर्य संस्कृति ने विश्व संस्कृति को कर्मवाद का एक मूलमंत्र दिया। भारतीय मान्यतानुसार प्रत्येक व्यक्ति को उसके अच्छे एवं बुरे कर्मों का फल अवश्य मिलता है और अपने कर्मों को भोगने के लिए बार-बार एक योनि से दूसरी योनि में जन्म लेना पड़ता है और अच्छे एवं बुरे कर्मों से देव योनि या जीव योनि में जन्म लेता है और मोक्ष प्राप्त होने पर जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है।
- श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में कर्म करते रहने एवं फल की इच्छा नहीं करने को कहा है। इस प्रकार कर्मवाद भारतीय संस्कृति का महत्त्वपूर्ण अंग है।
8 शान्ति एवं अहिंसा का सिद्धान्त
- प्राचीन भारत के दो महत्वपूर्ण धर्म जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म ने सम्पूर्ण मानवता को शान्ति एवं अहिंसा का पाठ पढ़ाया तथा समस्त जीव एवं अजीव के प्रति अहिंसा एवं सहानुभूति की भावना रखने को कहा। आज वर्तमान भारत की इसी अहिंसा एवं शान्ति नीति ने विश्व में भारत को अग्रणीय स्थान प्रदान किया। अशोक मौर्य ने भी समस्त जीवों के प्रति प्रेमभाव रखने का सन्देश दिया। समस्त विश्व में शान्ति एवं मित्रता बढ़ाने में जैन धर्म द्वारा प्रदत्त अहिंसा एवं शांति अखण्डित अस्त्र कहा जा सकता है।
9 विश्वबन्धुत्व की भावना का विकास
भारतीयों का एक नारा है-
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः |
सर्वेभद्राणि पश्यन्तु मा कश्च्छि दुखभाग् भवेत ।।
10 विभिन्नता में एकता
- भारतीय संस्कृति की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता विभिन्नता में एकता। भारत अनेक जातियो, समुदायों, धर्मों में विभाजित होने के बावजूद एक है। भारत में अनेक भाषाएं बोली जाती है लेकिन उनमें भाषागत विभिन्नता होते हुए भी एकता विद्यमान है। डॉ. राधाकुमद मुखर्जी के अनुसार भारतवर्ष विभिन्न प्रकार के सम्प्रदायों, रितिरिवाजो, धर्मों, संस्कृति, विश्वासों, भाषाओं, जातियों तथा सामाजिक व्यवस्थाओं का एक संग्रहालय है।" लेकिन इतनी विभिन्नताओं के होते हुए भी भारतीय संस्कृति में एकता स्पष्ट दिखाई देती है। यहां ब्राह्मण, राजपूत, महाज मुस्लिम, भील, संथाल, जैन आदि अनेक जातियों के लोग निवास करते हैं तथा अनेक धर्मों के अनुयायी मुख्यतः हिन्दू, जैन, बौद्ध, इसाई, इस्लाम, पारसी आदि भी रहते हैं लेकिन भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता अनेकता में एकता है ।
भारत की एकता की छवि निम्न बिन्दुओं से आंकी जा सकती है -
राजनीतिक एकता
- भारत एक विशाल देश है यहां पर प्राचीनकाल से राजनीतिक सत्ता के लिये संघर्ष होता रहा है लेकिन इसके बावजूद भारतीयों में राजनीतिक एकता स्पष्ट दिखाई देती है। प्राचीनकाल में मौर्यकाल, गुप्तकाल, वर्धनवंश, चोल, चालुक्यों ने राजनीतिक एकता की परम्परा को बरकरार रखा। इसी तरह मराठा, पेशवाओं ने भारतीय राजनीति को एक करने का प्रयास किया। मुगलकाल में एक भाषा, एक सी राजव्यवस्था, एक कानून ने भारतीयों को राजनीतिक एकता के सूत्र में पिरायो और अंग्रेजी शासन के तहत यह एकता एकदम स्पष्ट हो गई। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद सविधान, शासन व्यवस्था आदि सभी में एकता दृष्टिपात होती है।
भौगोलिक एकता:
- यूं दूखने पर भारत का निर्माण बड़े-बड़े भूखण्डों, नदियों, पर्वतों, वनस्पतियों से हुआ है। इसकी भौगोलिक स्थिति पर नजर डाले तो यह उत्तर में हिमालय, दक्षिण में समुद्री जल सीमा से घिरा है लेकिन इतनी भौगोलिक विषमताओं के बावजूद यहां के निवासी स्वयं को भारतीय कहते हैं विष्णुपुराण में तो स्पष्ट रूप से बताया गया है कि समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण का सारा प्रदेश 'भारत' है और इसके निवासी भारत की सन्तान है।
सांस्कृतिक एकता
- विभिन्न जातियों एवं धर्मों के होने के बीच यहां की सांस्कृतिक एकता स्पष्ट दिखाई देती है। यहां के तीज त्यौहार, खान-पान, रहन-सहन, वस्त्राभूषण, कला साहित्य सभी भारत की सांस्कृतिक एकता का बखान करते हैं।
- भारत की संस्कृति बौद्ध, जैन, हिन्दू, मुस्लिम तथा वैदिक संस्कृतियों का सम्मिश्रण है। भारत में अनेक धर्मों के अनुयायी निवास करते हैं। अलग-अलग धर्म होने के बावजूद इनके नैतिक सिद्धान्तों में मूलभूत एकता है। एकेश्वरवाद, आत्मा का अमरत्व, कर्म, पुनर्जन्म, मोक्ष, निर्वाण, भक्ति, योग, बोधिसत्व और तीर्थंकर आदि प्रायः सभी धर्मों की निधि है। नियम, शील, तप, सदाचार, सत्य, शांति, अहिंसा आदि सिद्धान्तों का सभी धर्मों में जोर है। यही नहीं सभी धर्मों के रिति-रिवाज अलग-अलग होने के बावजूद यहां के निवासी विभिन्न त्यौहारों- होली, दीवाली, ईद, रक्षाबन्धन आदि आपस में मिलजुल कर मनाते हैं जो भारतीय सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है।
- सांस्कृतिक एकता का एक यहां पर अनेक भाषाएं- मराठी, गुजराती, राजस्थानी, बांगला, पंजाबी, हरियाणवी होने के बावजूद हिन्दी को दर्जा दिया गया हैं में भी देखने को मिलता है। कला के प्रतिमानों में यहां सभी धर्मों से सम्बन्धित मस्जिद, मूर्तियां, दरगाह है जो सांस्कृतिक एकता का महत्त्वपूर्ण अंग है।
विषय सूची
संस्कृति का अर्थ एवं परिभाषा , मानव संस्कृति का निर्माण
संस्कृति की प्रकृति या विशेषताएँ
संस्कृति के प्रकार, भौतिक संस्कृति ,अभौतिक संस्कृति, संस्कृति कितने प्रकार की होती है
संस्कृति की संरचना ,सांस्कृतिक तत्व, संकुल, प्रतिमान, संस्कृति के प्रकार्य
सांस्कृतिक विलम्बन (Cultural Lag) ,सभ्यता और संस्कृति में अन्तर
संस्कृति एवं व्यक्तित्व, |व्यक्तित्व क्या होता है , व्यक्तित्व के निर्माण के प्रमुख आधार
Post a Comment