प्रयोजनमूलक हिन्दी की शैलियाँ और प्रयुक्ति |प्रयोजनमूलक हिंदी का प्रदेय एवं मूल्यांकन | Functional Hindi Details Study
प्रयोजनमूलक हिन्दी की शैलियाँ और प्रयुक्ति
- प्रयोजनमूलक भाषा का संबंध भारत के संदर्भ में सन् 1947 के बाद प्रारम्भ हुआ।1947 में ईसवी से पूर्व भारत वर्ष के अधिकांश कार्यों की भाषा अंग्रेजी थी। कचहरियों में हालाकि देवनागरी को स्वीकृति प्रदान कर दी गई थी, लेकिन वहाँ अंग्रेजी और उर्दू भाषा की ही प्रधानता थी।
- व्यापार की भाषा पर अंग्रेजी भाषा का आधिपत्य था। वही स्थिति कार्यालय तथा प्रशासन की भाषा का भी था। भारतीय संविधान में यह प्रावधान किया गया कि भारतीय संघ की राजभाषा हिन्दी होगी तथा लिपि देवनागरी होगी हिन्दी के राजभाषा के रुप में स्वीकृति के पश्चात् भाषा के मानकीकरण एवं नियोजन की प्रक्रिया को भी बल मिला। भाषा नियोजन की संकल्पनाएँ सामने आई।
- डॉ. दिलीप सिंह ने प्रयोजनमूलक हिन्दी के प्रयुक्तिपरक विश्लेषण पर टिप्पणी करते हुए लिखा है: “आधुनिक भाषा विज्ञान में भाषा को देखने की दो दृष्टियाँ प्रचलित हैं। एक दृष्टि यह बताती है कि भाषा क्या है ? उसकी व्याकरणिक व्यवस्था कैसी है? और संरचना के उसके नियम क्या है? दूसरी दृष्टि भाषा के व्यावहारिक पक्ष से संबद्ध होकर यह बताती है कि भाषा किन प्रयोजनों को साधती है, उसके प्रयोक्ता भाषा से क्या कार्य लेते हैं। इस दूसरी दृष्टि के संदर्भ में यह तथ्य भी स्वीकार्य है कि कोई भाषा व्यवहार में समरुपी नहीं होती। "
- भाषा की विषय विविधता या रुपता भाषा प्रयोग के धरातल पर परखी जाती है | विषय के अनुसार जिस प्रकार भाषा बदलती है, उसी प्रकार उसका प्रकार्यात्मक रुप भी बदलता रहता है। उदाहरण स्वरुप यदि हम इसे समझना चाहें तो कह सकते है कि विधि क्षेत्र की भाषा, बैक, पत्रकारिता, विज्ञान, व्यवसाय, मनोरंजन, साहित्य, कार्यालय इत्यादि की भाषा एक दूसरे से भिन्न होती है।
- डॉ. दिलीप सिंह के अनुसार “भाषा अध्ययन की इस दूसरी दृष्टि ने ही प्रयोग के स्तर पर विषय परक या व्यपहार क्षेत्र बाधित भाषा रूपों को प्रयुक्ति (Register) की संज्ञा दी है। भाषा प्रयुक्ति को समझाने के लिए इसे 'सीमित भाषा रुप' कहा गया है। भाषा के व्यापक स्वरुप को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भाषा के व्यापक स्वरुप से निसृत यह एक सीमित रुप है जो से किसी विशिष्ट व्यवहार क्षेत्र में संप्रेषित होती है।
- भाषा, सामाजिक सम्प्रेषण की प्रक्रिया में ही अस्तित्व ग्रहण करती है। एक सामाजिक व्यक्ति को समाज के अनुरुप कई भूमिकाएँ निभानी पड़ती हैं। आजकल सफल व्यक्ति वही है जो सामाजिक सम्प्रेषण की विभिन्न प्रयुक्तियों से परिचित हो व्यापक सम्प्रेषण की प्रक्रिया से जुटने के लिए व्यक्ति को 'व्यापक कोड' और 'सीमित काड' की भूमिका से परिचित होना पड़ता है।
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- भाषा के संदर्भगत विशिष्ट प्रयोग को ही सीमित काड' कहा गया है। जैसे वैज्ञानिक पाठ का कोड, धार्मिक अनुष्ठान या कर्मकाण्ड का कोड, व्यापार का कोड, अपराध जगत का कोड, सिनेमा मीडिया का कोड, शेयर - बाजार का कोड, कार्यालय का कोड, या किसी भी अन्य कारण से समाज का एक वर्ग जो अन्य लोगों के बिना ही अपनी संप्रेषण की प्रक्रिया पूरी कर पाने में सक्षम सिद्ध हो रहा है। भाषा के इस सीमित कोड को हम ‘प्रयुक्ति' कहते है।
- यहाँ हमें बोलियों और प्रयुक्ति के बीच के अन्तर को समझ लेना चाहिए । जहाँ बोलियों के रुप भेद का कारण “प्रयोक्ता" होता है वहीं प्रयुक्तियों के भेद का आधार 'प्रयोग' अर्थात् विषय होता है।
- भाषा प्रयुक्ति के विभिन्न भाषा रुपों के दो संदर्भ होते हैं - एक, भाषा शैली का संदर्भ और दूसरे, भाषा प्रयुक्ति का संदर्भ भाषा प्रयोग के धरातल पर कई संदर्भों एवं विषयगत प्रयोगों के विश्लेषण के आधार पर संचालित होती है। भाषा प्रयुक्ति पर कार्य करने वाले अध्येता हैलिडे ने प्रयुक्ति का वर्गीकरण कर इसे तीन आयामों में विभक्त किया है वार्ता क्षेत्र, वार्ता प्रकार और वार्ता शैली। तीनों आयामों को हम कुछ उदाहरणों के माध्यम से समझ सकते हैं।
- वार्ता क्षेत्र का संबंध विषय क्षेत्र से है जैसे कार्यालय हिन्दी में भाषा प्रयुक्ति होगी - गोपनीय, तत्काल, कार्रवाही करें, अग्रसारित, आदेशित, सूचित किया जाता है, देख लें 'आख्या हेतु प्रस्तुत ' इत्यादि क्रिकेट की हिन्दी का उदाहरण देखें रन आउट, एल. पी. डब्ल्यू, सिली प्वाइंट, छक्का, - चौका, रन रेट, थर्ड अपांयर, थर्ड मैन, पिच, स्लो, फास्ट, इत्यादि । शेयर बाजार में प्रयुक्त हिन्दी को देखें - चाँदी लुढ़की, सोना उछला, दाल नरम, बाजार तेज, धनिया नरम, चावल गरम, इत्यादि। विज्ञापन में प्रयुक्त भाषा प्रयुक्ति देखें - डर के आगे जीत है, जीवन के साथ भी, जीवन के बाद भी, कुछ मीठा हो जाये, ठंडा मतलब कोका कोला, ठंडा-ठंडा कूल-कूल, ढूढ़ते रह जाओगे, खूबसूरती को और क्या चाहिए, ये दिल माँगे मोर, टेस्ट द ठंडा, देश की धड़कन हीरो होन्डा, इत्यादि ।
- उपर्युक्त उदाहरणो से स्पष्ट है कि विषय क्षेत्रों के आधार पर भाषा रुप बदल जाते हैं और उन भाषा रुपों को वार्ता क्षेत्र की प्रयुक्ति कहा जाता है। वार्ता प्रकार की प्रयुक्ति का सम्बन्ध संदर्भ, प्रयोक्ता और प्रयोजन के निहितार्थ पर आधारित है। एक ही व्यक्ति अपनी सामाजिक भूमिका के अनुसार अलग-अलग शब्द रूपों का व्यवहार करता है। एक व्यक्ति पत्नी, माँ, बहन, भाई, मित्र, कार्यालय, समाज और लेखन में परस्पर भिन्न भाषा का व्यवहार करता है। वार्ता प्रकार को समझने के लिए संस्कृत काव्यशास्त्र का ध्वनि सम्प्रदाय भी हमारी थोड़ी मदद कर सकता हैं। शाम हो गई वाक्य का निहितार्थ अलग-अलग हो सकता है।
- यदि यह वाक्य कोई सास अपने बहू से कहती है तो इसका अर्थ है कि अब रात के खाने पीने का इन्तजाम करो। इसी वाक्य को कोई पुजारी अपने - शिष्य से कहता है तो उसका अर्थ होगा कि अब संध्या पूजन की तैयारी करो। कोई राहगीर दूसरे साथी राहगीर से कहता है तो उसका अर्थ होगा कि अब रात्रि विश्राम की व्यवस्था करो । कह सकते है कि वार्ता प्रकार संदर्भ, प्रकरण, प्रयोक्ता, ग्राहक, काल, इत्यादि कई तत्वों से संयोजित प्रयुक्ति है।
- वार्ता - क्षेत्र एवं वार्ता प्रकार के आधार पर वार्ता - शैली निर्धारित होती है। कह सकते हैं कि प्रयोजनमूलक भाषा की प्रयोजनमूलक शैलियों को ही प्रयुक्ति कहा जाता है। (दिलीप सिंह ) विषय से बँधकर भाषा जिन भेदों को जन्म देती है, वह भेद ही प्रयुक्ति है। विशिष्ट विषय परक प्रयोग ही भाषा की प्रयोजनमूलकता का आधार है।
प्रयोजनमूलक हिंदी का प्रदेय एवं मूल्यांकन
- पूर्व में आपने पढ़ा कि प्रयाजनमूलक हिन्दी की आवश्यकता तब महसूस की जाने लगी, जब भाषा अपनी सामाजिक अभिव्यक्ति /सम्प्रेषणीयता में अक्षम सिद्ध होने लगी। स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व तक हिंदी साहित्य की दृष्टि से तो श्रेष्ठ भाषा बन गई थी, किन्तु इसमें रोजगार के अवसर परम्परागत रूप से अध्यापन को छोड़कर अन्य कुछ न थी | हिंदी समाचार पत्र भी निकल रहे थे, लेकिन उनमें भी वही व्यक्ति सफल था जो साहित्य में था या साहित्यक पत्रकारिता करता था। कुल मिलाकर हिंदी भाषा का तात्पर्य साहित्यिक हिंदी से ही समझा जाता था। सन् 1949 ई. में हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्रदान कर दिये जाने के उपरान्त हिंदी भाषा में सरकारी काम काज की बाध्यता महसूस की जाने लगी। इसी क्रम में संपूर्ण भारतीय क्षेत्र को खण्ड क,ख, एवं ग के रूप में विभक्त किया गया। हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार तो बढा ही, रोजगार के नये अवसर भी बढ़े। भाषा के प्रयोजनमूलक स्वरूप् को ध्यान जाने लगा।
- भारत के सरकारी कामकाज की भाषा से हिंदी बहुत समय से विच्छिन्न रही है। प्राचीन कान में राजदरबार की भाषा संस्कृत बनी, मध्यकान मे फारसी एवं आधुनिक काल में अंग्रेजी । सत्ता और भाषा का गहरा सम्बन्ध होता है। सत्ता को जिस भाषा से वर्चस्व में मदद मिलती है, वह उसे अपनाती है।
- हिंन्दी इस दृष्टि से वर्चस्व एवं सत्ता की भाषा कभी नहीं बनी। लैटिन, फ्रेंच एवं अंग्रेजी की तरह सत्ता एवं बाजार खेल की बजाय यह बराबर लोक भाषा बनी रही। सरकारी कामकाज की भाषा स्वीकृत होने के बावजूद इसने कभी भी आधिपत्यकारी भावनाओं को बढ़ावा नही दिया, हाँलाकि इसके आरोपी इसके ऊपर बराबर यह आरोप लगाते रहे स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हिन्दी के प्रयोजनमूलक रुप ने भारतीय समाज व्यवस्था अर्थव्यवस्था एवं सांस्कृतिक - शैक्षिक उन्नति के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाई ।
- प्रयोजनमूलक हिन्दी ने शब्दों के मानकीकरण, कोश, व्याकरण, शब्दावली के क्षेत्र मे मूलभूत कार्य किया । लोक से जुड़ा व्यक्ति शब्दों का इस्तेमाल किन संदर्भ विशेष में करता है, उसका सामाजिक-सांस्कृतिक अर्थ तो हमें मालूम था, लेकिन उसका व्यावहारिक एवं आर्थिक कारण हमें नहीं मालूम था। प्रयोजनमूलक अवधारणा का मूल सम्बन्ध रोजगार से है। कार्यालय, व्यवसाय, विधि, पत्रकारिता जैसे क्षेत्रों में रोजगार के व्यापक अवसर प्रयोजनमूलक अवधारणा की ही देन है ।
प्रयोजनमूलक हिंदी सारांश
- प्रयोजनमूलक हिंदी से तात्पर्य है कामकाजी हिन्दी या व्यावसायिक हिन्दी से। स्वतंत्रता पूर्व हिन्दी भाषा का तात्पर्य था बोलचाल की हिन्दी या साहित्यिक हिंदी से । लेकिन वर्तमान युग में वही भाषा जीवित रह सकती है जिसके पास समृद्ध साहित्य और संस्कृति तो है ही इसके अतिरिक्त बाजार की जरूरतों के अनुरुप सम्प्रेषण की क्षमता भी हो विधि की भाषा या विज्ञान की भाषा जाहिर है सामान्य बोलचाल की भाषा या साहित्यिक की भाषा से भिन्न होगी। पत्रकारिता या जनसंचार की भाषा, व्यवसाय की भाषा, शेयर मार्केट की भाषा इत्यादि की भाषा बोलचाल की भाषा से भिन्न होती है। भाषा के इसी सीमित प्रयोग को 'प्रयुक्ति' कहा गया है । विषय भेद के अनुसार प्रयुक्तियों के भी उप-विभाजन हो जाते हैं, जिन्हें उप-प्रयुक्ति कहते है। प्रयोजनमूलक हिन्दी के नामकरण के संदर्भ में भी भ्रम फैलाया गया ? वस्तुत: व्यवसाय एवं रोजगार के प्रयोजन से विकसित हिन्दी ही प्रयोजनमूलक हिन्दी है।
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