हिंदू समाज में विवाह | हिंदू विवाह के स्वरूप या प्रकार | Hindu Samaj Me Vivah
हिंदू समाज में विवाह Marriage in Hindu
हिंदू विवाह
- पश्चिमी समाजों से भिन्न हिंदू समाज में विवाह को एक धार्मिक संस्कार माना जाता है। विवाह के पश्चात् ही कोई हिंदू धार्मिक क्रियाओं को करने का अधिकारी होता है। इसलिए हिंदू विवाह का मुख्य उद्देश्य धार्मिक है। अतः एक हिंदू के जीवन में विवाह अत्यावश्यक माना गया है।
- पी.एन.प्रभु का कहना है कि 'हिंदू विवाह एक संस्कार है' - के. एम. कपाड़िया भी कहते हैं कि हिंदू विवाह एक धार्मिक संस्कार है। यह पवित्र समझा जाता है क्योंकि यह तभी पूर्ण होता है जब यह पवित्र मंत्रों के साथ किया जाए।'
हिंदू विवाह के उद्देश्य:-
- पी.एन. प्रभु तथा के.एम. कपाड़िया ने हिंदू विवाह के उद्देश्यों के तीन बिंदुओं का उल्लेख किया है- धर्म, प्रजा, पुत्र प्राप्ति तथा रति (यौन संतुष्टि)।
हिंदू विवाह के स्वरूप या प्रकार:
- मनु के अनुसार विवाह के आठ स्वरूप हैं जिनमें चार ब्रह्म, दैव, आर्ष, प्रजापत्य, उच्चकोटि के जबकि चार (असुर, गांधर्व, राक्षस व पैशाच) विवाह निम्न कोटि के माने जाते हैं। प्रथम चार विवाहों को प्रशस्ति (श्रेष्ठ) एवं धर्मानुसार व बाद के चार विवाहों को अप्रशस्ति (निकृष्ट कोटि के) विवाह की श्रेणी में रखा गया है।
हिंदू विवाह के स्वरूप निम्नलिखित हैं
1. ब्रह्म विवाहः-
- सुंदर व गुणवान वर को अपने घर बुलाकर वस्त्र आदि देकर कन्यादान करना ही ब्रह्म विवाह है। इस विवाह से उत्पन्न पुत्र इक्कीस पीढ़ियों को पवित्र करने वाला होता है। वर्तमान समय में प्रचलित विवाह ब्रह्म विवाह का ही स्वरूप है।
2. दैव विवाहः-
- यह एक प्रतीकात्मक विवाह है जिसमें यज्ञ कराने वाले पुरोहित को कन्यादान दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि ऐसे विवाह देवताओं के साथ होता है। इससे देवदासी प्रथा का जन्म हुआ जो वेश्यावृत्ति का कारण माना जाता है। अतः इसका विरोध किया जाने लगा है।
3. आर्ष विवाहः-
- आर्ष से तात्पर्य ऋषि से है। जब विवाह के लिए इच्छुक ऋषि द्वारा कन्या के पिता को एक जोड़ी बैल और एक गाय दी जाती है। तब विवाह संपन्न होता है यह वधू मूल्य नहीं है बल्कि पिता को इस बात का आश्वासन है कि वह जिसे अपनी पुत्री सौंप रहा है, वह उसका उचित निर्वाहन का सकेगा।
4. प्रजापत्य विवाहः-
- यह ब्रह्म विवाह के ही समान है लेकिन इसमें कन्या के पिता द्वारा वर बधू को आशीर्वाद देते हुए इस वाक्य का उच्चारण किया जाता है- 'तुम दोनों एक साथ मिलकर आजीवन धर्म का आचरण करो।'
5. असुर विवाह:-
- यह एक निम्न कोटि का विवाह माना जाता है जिसमें कन्या का पिता कन्या का मूल्य लेकर विवाह करता है। इसे सामान्यतः बेटी बेचवा कहकर समाज में आलोचना की जाती है।
6. गांधर्व विवाहः-
- यह प्रेम विवाह है जो आजकल नई पीढ़ी में देखने को मिलता है।
7. राक्षस विवाहः-
- युद्ध में स्त्री का हरण करके जब उससे विवाह किया जाता है तो वह राक्षस विवाह कहलाता था। चूंकि यहां इससे प्रत्यक्ष संपर्क क्षत्रियों का था इस कारण इस प्रकार का विवाह विशेष रूप से क्षत्रियों के लिए था। इसलिए इसे 'क्षत्रिय विवाह' भी कहते हैं।
8. पैशाच विवाहः-
- मनु कहते हैं कि 'सोयी हुई, उन्मत्त, घबराई हुई, मदिरापन की हुई अथवा राह में जाती हुई लड़की के साथ बलपूर्वक कुकृत्य करने के बाद उससे विवाह करना पैशाच विवाह है' यह विवाह सभी विवाहों में निम्नकोटि का विवाह है।
विवाह के परंपरागत स्वरूपों में आज केवल तीन प्रकार के विवाहों का ही प्रचलन है। ये हैं- ब्रह्म विवाह, असुर विवाह तथा गांधर्व विवाह ब्रह्म विवाह का प्रचलन सर्वाधिक है जबकि गांधर्व विवाह का उससे कम।
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