कृषि तथा उद्योग के बीच अर्न्तसंबंध | औद्योगिक क्षेत्र का कृषि क्षेत्र को अंशदान | कृषि क्षेत्र का औद्योगिक क्षेत्र को अंशदान | interrelationship between agriculture and industry
कृषि तथा उद्योग के बीच अर्न्तसंबंधInterrelationship between agriculture and industry
- औद्योगिक एवं विकसित देशों की तुलना में सभी अल्पविकसित एवं विकासशील देशों में कृषि उत्पादकता बहुत कम है। भारत एक कृषि प्रधान देश है, लेकिन इसकी प्रति एकड़ उत्पादन जर्मनी, इंग्लैण्ड, अमेरिका, फ्रांस, आस्ट्रेलिया तथा जापान आदि देशों की तुलना में बहुत ही कम है।
- सभी विकसित देशों में देश की 80 प्रतिशत जनसंख्या उद्योगों में कार्यरत है तथा 8 प्रतिशत से भी कम जनसंख्या कृषि क्षेत्र में लगी हुई है, लेकिन उनका कृषि क्षेत्र बहुत ही विकसित है । विकसित देशों में ज्यादा से ज्यादा मशीनों, उर्वरकों, कीटनाशकों तथा अन्य आगतों का प्रयोग किया जाता है। यदि हम विभिन्न देशों के आर्थिक विकास के इतिहास का अध्ययन करे तो यह स्पष्ट हो जाता है कि कृषि ने औद्योगिक विकास में सहायता की है तथा औद्योगिक विकास ने कृषि उत्पादकता बढ़ाने में सहायता की है।
- इस प्रकार कृषि तथा उद्योग अर्थव्यवस्था के दो पहिए है। एक क्षेत्र का विकास दूसरे क्षेत्र के विकास पर निर्भर करता है। जब कृषि उत्पादन बढ़ता है तो इससे कृषकों का जीवन स्तर भी बढ़ता है। इससे कृषकों की क्रय शक्ति, कृषि सम्बन्धी उद्योगों के लिए कच्चे माल की पूर्ति, उद्योगों के लिए श्रमिकों की प्राप्ति, विदेशी मुद्रा की प्राप्ति इत्यादि में वृद्धि होती है। इस तरह से कृषि उत्पादन में वृद्धि उद्योगों के विकास में सहायक होती है। दूसरी तरफ उद्योगों का विकास भी कृषि उत्पादन के वृद्धि एवं विकास में सहायक होता है। कृषि में मशीनों, उर्वरकों एवं अन्य आगतों की उपलब्धता भी उद्योगों के विकास पर ही निर्भर करता है। बिना औद्योगिक विकास के अधिक से अधिक आगतों की पूर्ति सम्भव नहीं है।
- औद्योगिक क्षेत्र बहुत से कृषि श्रमिकों को रोजगार प्रदान करता है, इससे कृषि पर जनसंख्या के दबाव में कमी आती है। उद्योग क्षेत्र कृषि क्षेत्र को बहुत सी उपभोग वस्तुएं उपलब्ध कराता है। इस प्रकार कृषि तथा उद्योग में बहुत ही निकट का सम्बन्ध है। यह बात स्पष्ट हो गयी है कि कृषि तथा उद्योग एक दूसरे के पूरक है, प्रतियोगी नहीं। अतः कृषि तथा औद्योगिक क्षेत्र का साथ-साथ विकास होना चाहिए ।
औद्योगिक क्षेत्र का कृषि क्षेत्र को अंशदान
कुछ समय पश्चात् कृषि क्षेत्र की औद्योगिक क्षेत्र पर निर्भरता बढ़ जाती है। आर्थिक विकास की प्रक्रिया में औद्योगिक क्षेत्र, कृषि क्षेत्र की निम्न प्रकार से सहायता करता है।
1. कृषि क्षेत्र के उत्पाद को बाजार प्रदान करना
- निःसंदेह विकास की प्रारम्भिक अवस्था में कृषि क्षेत्र का औद्योगिक क्षेत्र को अधिक सहयोग होता है। परन्तु विकास पाश्चात्य अवस्था में औद्योगिक क्षेत्र का कृषि क्षेत्र को सहयोग बढ़ता जाता है। जब उद्योग परिपक्व हो जाते है और खनिजों को कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है तो इसकी पूंजी, श्रम और कच्चे माल पर निर्भरता कम हो जाती है।
2. कृषि आगतों को प्रदान करना
- औद्योगिक क्षेत्र कृषि क्षेत्र को नयी तकनीक प्रदान करता है, विकसित देश में कृषि भी पूंजी प्रधान व्यवसाय है जिसके उच्च श्रेणी के मशीनों, भारी मात्रा में रासायनिक खाद, कीटनाशक दवाइयां और उच्च कोटि के बीजों का प्रयोग किया जाता है। ये सब प्रकार की आगतें औद्योगिक क्षेत्र से ही प्राप्त होती है ।
3. उपभोग वस्तुओं की पूर्ति
- औद्योगिक क्षेत्र कृषि क्षेत्र को केवल आगतों की पूर्ति नहीं करता है, बल्कि कई प्रकार के उपभोग वस्तुओं की पूर्ति करता है। कृषक भी कुछ आरामदायक एवं ऐश्वर्य वाली वस्तुओं का उपभोग करने लगते है जिससे उसका जीवन स्तर भी ऊँचा और अधिक काम करने की प्रेरणा देता है ।
4. भूमि पर जनसंख्या के दबाव को कम करना
- भारत जैसे विकासशील देशों में कृषि पर जनसंख्या का दबाव बहुत अधिक होता है। जैसे-जैसे औद्योगिक क्षेत्र का विकास होता है कृषि क्षेत्र से श्रमिकों का प्रवाह औद्योगिक क्षेत्र की ओर होता है, जिससे भूमि पर जनसंख्या का दबाव कम हो जाता है। अधिक जनसंख्या के कारण ही कृषि क्षेत्र में उत्पादकता कम रही है तथा जोतों के उपविभाजन और विखण्डन की समस्या पैदा हुई। है। औद्योगिकरण के कारण ही कुछ विकसित देशों जैसे अमेरिका और इंग्लैण्ड में जोतों का आकार बड़ा हुआ है तथा कृषि की उत्पादकता में भी वृद्धि हुई है।
5. बुद्धिमत्ता वाला वातावरण
- जब कृषि क्षेत्र औद्योगिक क्षेत्र के सम्पर्क में आता है तो परम्परागत वातावरण नये वातावरण में परिवर्तित हो जाता है। यह नया वातावरण, नया कौशल, पूंजी निर्माण, जन्म दर में कमी तकनीकी आविश्कार और इससे भी अधिक महत्वपूर्ण उद्यम वर्ग को पैदा करने में सक्षम होता है जिसमें कृषि क्षेत्र का और अधिक विकास होता है।
6. कृषि विकास के लिए अधोसंरचना
- कृषि का विकास आधुनिक कृषि आगतों पर निर्भर करता है। परन्तु इनके उपयोग के लिए कई प्रकार की सहायक क्रियाओं की आवश्यकता होती है। जैसे यातायात के साधन, ऊर्जा कृषि अनुसंधान प्रयोगशालाएं आदि औद्योगिक क्षेत्र की ही देन है।
कृषि क्षेत्र का औद्योगिक क्षेत्र को अंशदान
कृषि क्षेत्र औद्योगिक क्षेत्र को निम्न प्रकार से सहायता करता है।
1. उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति
- उद्योगों में प्रयोग होने वाला कच्चा माल कृषि क्षेत्र से ही प्राप्त होता है। जब कृषि क्षेत्र का विकास होता है तो औद्योगिक क्षेत्र का भी विकास होता है क्योंकि औद्योगिक क्षेत्र को कच्चे माल की आपूर्ति अधिक होती है।
खाद्यान्नों की आपूर्ति
- जब खाद्यान्न बाजार में पहुँचता है तो गैर कृषि क्षेत्र को प्राप्त है।
कृषि तथा विदेशी व्यापार
- यद्यपि स्वतंत्रता के बाद भारत अनाज का आयात करता था, फिर भी यहाॅ से कृषि आधारित उद्योगों को कृषि उत्पादों का निर्यात भी करता रहा है । इस प्रकार देश को अनिवार्य विदेशी विनिमय भी प्रदान करता रहा है जिसकी वजह से पूंजीगत वस्तुओं का आयात किया जाता है ।
4. औद्योगिक क्षेत्र के बाजार का विस्तार
- कृषि का विकास होने पर कृषकों की आय में वृद्धि होती है जिसकी वजह से इन कृषकों की औद्योगिक वस्तुओं की मांग में विस्तार होता है।
5. गैर कृषि क्षेत्र को श्रम तथा पूंजी की आपूर्ति
- विकास की प्रारम्भिक अवस्था में कृषि क्षेत्र ही श्रम तथा पूंजी का एक मात्र श्रोत होता है इसलिए इसे औद्योगिक क्षेत्र का संरक्षक भी कहा जाता है । इग्लैण्ड तथा जापान में बहुत से उद्योग किसानों द्वारा सुरू किए गये थे । भारत में भी सूती वस्त्र उद्योग अधिकतर किसानों द्वारा सुरू किए गये थे।
इस प्रकार उपरोक्त कथन से यह निष्कर्ष निकला जा सकता है कि कृषि क्षेत्र का विकास होने से औद्योगिक क्षेत्र का विकास होता है और औद्योगिक क्षेत्र का विकास होने से कृषि क्षेत्र का विकास होता है। इस प्रकार दोनों क्षेत्रों का विकास होना चाहिए। एक क्षेत्र की गतिहीनता दूसरे क्षेत्र को भी गतिहीन बना देती है। परिणाम स्वरूप सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का विकास रूक जाता है।
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