लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का योगदान |Lokmanya Bal Gangadhar Tilak's Impact on Indian society
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का योगदान
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का भारतीय समाज पर व्यापक प्रभाव
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का भारतीय समाज पर व्यापक प्रभाव रहा। उन्होंने अपने अथक प्रयासों के माध्यम से भारतीयों में राजनीतिक चेतना लाने का प्रयास किया। उनको योगदान को हम निम्नलिखित शीर्षकों से प्रस्तुत कर सकते हैं
1 भारतीय गौरव में विश्वास
- तिलक का भारतीय संस्कृति एवं धर्म के प्रति दृढ़ विश्वास था। उनका मत था कि भारतीय धर्म एवं संस्कृति विश्व की प्राचीनतम धर्म एवं संस्कृति में से एक है। इसने जो मानव सभ्यता एवं समाज को जो कुछ दिया है वे अपने इसीलिए भारत को विश्वगुरु कहा जाता है। वे धर्म को राष्ट्रवाद का प्राण मानते थे। इसलिए उनके दर्शन में धर्म एवं राजनीति एक दूसरे महत्वपूर्ण है। के पर्याय हैं। इस धारणा को उन्होंने अपने दो ग्रन्थों ऑरायन तथा वैदिक क्रोनोलोजी एण्ड वेदांग ज्योतिष में प्रतिपादित किया है।
2 एक आदर्श प्रेरक
- तिलक का जीवन एक कर्मयोगी देशभक्त का जीवन है जो हम सबके लिए प्रेरणा स्रोत है। तिलक ने देश को निरन्तर 40 वर्षों तक सेवा की। उन्होंने देशहित एवं समाज हित के लिए निजी हितों की कभी भी परवाह । अकाल व प्लेग में अपने स्वास्थ्य और जीवन की परवाह करते हुए उन्होंने देशवासियों की निरन्तर सेवा की। महाराष्ट्र केसरी ही नहीं भारत केसरी थे। तिलक का जीवन त्याग, बलिदान, राष्ट्रभक्ति व समाज सेवा का आदर्श उदाहरण है, जो हमें निरन्तर प्रेरणा देता रहेगा।
3 राष्ट्रवाद व स्वराज्य के उन्नायक
- तिलक भारतीय राष्ट्रवाद एवं स्वराज्य के उग्र समर्थक थे। भावना, उस समय अभिव्यक्त की जब भारतीय समाज गहरे अन्धकार में डूबा हुआ था। एक ऐसे सुधारक की आवश्यकता उस समाज में चेतना का विकास कर उन्हें एक मंच प्रदान कर दे इस कार्य को वास्तविकता प्रदान करने का कार्य तिलक ने किया। उन्होंने राष्ट्रवादी भावनाओं के प्रचार प्रसार के लिए धार्मिक उत्सवों का सहारा लिया। उन्होंने युवाओं को महापुरुषों के आदर्श पर चलने सलाह दी।
- राष्ट्रवाद के साथ ही साथ स्वराज्य का भी प्रबल समर्थन किया उनका तर्क था कि "स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार इसे लेकर रहूंगा।" उनकी दृष्टि में स्वराज्य के बिना राजनीतिक एवं धार्मिक सहिष्णुता के प्रबल समर्थक थे। उनका मानना था अंग्रेजों ने धार्मिक कटुता का जो वातावरण पैदा किया है वह हमारे लिए विनाशकारी है और हमें तब तक पराधीता से मुक्ति नहीं मिल जब तक विकसित नहीं होगी।
- 1905 में अंग्रेजों ने अपनी फूट डालो एवं राज करों की नीति को क्रियान्वित देने के लिए बंगाल जिन किया जिसका तिलक ने विरोध किया और भारतीयों को ऐसे कदमों से सचेत रहने की सलाह दी। उन्होंने 1916 में कांग्रेस लखनऊ अधिवेशन में लीग और कांग्रेस के बीच मतभेद समाप्त करने का सफल प्रयास किया। इस प्रकार तिलक ने हिन्दू मुस्लिम के लिए जीवन पर्यन्त संघर्ष किया।
4 एक महान् प्रयोग कर्ता के रूप
- तिलक ने उन्नयन के लिए अनेक प्रयोग किये। उनके प्रयोगों की एक महत्वपूर्ण बात ये थी कि ये सभी संवैधानिक एवं शान्तिपूर्ण थे। को संगठित करने तथा राष्ट्रप्रेम, त्याग व बलिदान की भावना का विकास के लिए उन्होंने 'गणपति उत्सव तथा 'शिवाजी उत्सव' का आयोजन करने की परम्परा डाली। देश भक्ति एवं समाज सेवा के लिए पूर्ण रूप से समर्पित कार्यकर्त्ता तैयार करने के लिए समर्थ विद्यालय की स्थापना की और संवैधानिक सुधार लाने के लिए होमरूल आन्दोलन चलाया।
5 सशक्त एवं निर्भीक पत्रकार के रूप में
- तिलक एक सशक्त एवं निर्भीक पत्रकार थे। उन्होंने एक शिक्षक एवं पत्रकार के रूप में अपना सार्वजनिक जीवन प्रारम्भ किया। पत्रकारिता का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार की गलत नीतियों से जनता को अवगत करवाना तथा सरकार के समक्ष जनता की समस्याओं को उजागर करना होता है। तिलक ने 1881 में सर्वप्रथम एक पत्रकार के रूप में 'मराठा' का सम्पादन किया। इसके पश्चात् 'केसरी' के सम्पादन का भी कार्य अपने हाथ में लिया। इस प्रकार तिलक ने प्रेस की स्वतन्त्रता को आधार मानकर चेतना लाने का प्रयास किया।
6 लोकनीति के प्रणेता
- आधुनिक भारत के इतिहास में सर्वप्रथम लोकमान्य तिलक ने राजनीति को लोकनीति में परिवर्तित करने का कार्य किया। उनके पूर्व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े राजनेता अभिजात्य वर्गों के लिए कार्य कर रहे थे। तिलक ने आम जनता के हित की बात सोचकर उन्हें राष्ट्रीय आन्दोलन के साथ जोड़ने का प्रयास इस तरह तिलक के प्रयासों से ही साधारण जनता में देश भक्ति की भावना का विकास हो सका।
7 कांग्रेस को व्यापक जनाधार प्रदान किया
- कांग्रेस को वैचारिक स्वरूप एवं जनाधार देने में तिलक का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। जब तिलक ने 1889 के कांग्रेस के पूना अधिवेशन में भाग लिया तब उन्होंने देखा कि कांग्रेस के साथ केवल समाज के उच्च वर्ग के लोग ही जुड़े हुए हैं। इस समय तक ग्रेस क गई। कांग्रेस के मंच से स्वदेशी, बहिष्कार तथा राष्ट्रीय शिक्षा के प्रस्ताव पारित किये। इस तरह अनेक चुनौति स रूख अंग्रेजों के प्रति उदार था तिलक ने कांग्रेस को एक ऐसी जन प्रतिनिधि संस्था बनाने का प्रयास किया, जो सरकार की गलत नीतियों एवं दमनकारी नीति का विरोध करे। तिलक के अथक प्रयासों से ही कांग्रेस के प्रत्येक अधिवेशन में सदस्यों को संख्या बढ़ती कांग्रेस को भारतीयों के हितों की संरक्षक संस्था बनाने में सफल रहे।
8 लोकतांत्रिक आदर्शों के पुजारी
- तिलक का लोकतंत्र के महान् सिद्धान्तों स्वतन्त्रता, समानता एवं बन्धुत्व में दृढ़ आस "थी। तिलक इन सिद्धान्तों के लिए जीवन पर्यन्त संघर्ष करते रहे। उनके इस तर्क की पुष्टि इस आधार पर होती है कि उन्होंने स्वतन्त्रता, स्वराज्य एवं स्वशासन प्राप्ति हेतु संवैधानिक एवं शांतिपूर्ण साधनों को अपनाया।
9 आधुनिक भारतीय राष्ट्रवाद के जनक -लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
- महात्मा गांधी ने तिलक को 'नवभारत का निर्माता' कहा है। जवाहरलाल नेहरू ने उनको 'भारतीय राष्ट्रवाद का पिता' कहा है। उन्होंने राष्ट्रवाद का आधार प्राचीन भारतीय धर्मग्रन्थों, वीरनायकों देवी-देवताओं तथा वैदिक धर्म को बनाया।
- उन्होंने राष्ट्रवाद की भावना का विकास हेतु 'गणपति उत्सव' एवं 'शिवाजी उत्सव' को सार्वजनिक उत्सवों के रूप में मनाना प्रारम्भ कियाी तिलक राष्ट्रवाद को एक मनोवैज्ञानिक अवधारणा मानते थे। बंगभंग विरोधी आन्दोलन को तिलक ने राष्ट्रीय स्वरुप प्रदान किया। स्वदेशी आंदोलन को केवल आर्थिक आंदोलन के साथ नहीं जोड़ा बल्कि इसके माध्यम से वे लोगों में वे लोगों में स्वदेश प्रेम, त्याग की भावना भरना चाहते थे। सारांश में, यही कहा जा सकता है कि तिलक भारत के एक महान् राष्ट्रवादी तथा प्रखर राजनीतिक चिन्तक थे।
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