मध्य प्रदेश शासन के विभाग और उनकी जानकारी | Madhya Pradesh Shasan Ke Vibhagon Ki jaankari
मध्य प्रदेश शासन के विभाग और उनकी जानकारी
चिकित्सा एवं होम्योपैथी की भारतीय प्रणाली (आयुष)
- म.प्र. शासन ने 15 जून 1995 को लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण में से चिकित्सा शिक्षा विभाग के नाम से एक नये विभाग का सृजन किया गया। म०प्र० में आयुर्वेद यूनानी एवं होम्योपैथी चिकित्सा पतियों द्वारा स्वास्थ्य उन्ननयन, रोगों की रोकथाम एवं चिकित्सा सेवायें प्रदान की जाती है।
- आयुर्वेद महाविद्यालय के माध्यम से आयुर्वेद, यूनानी तथा होम्योपैथी चिकित्सा की स्नातक उपाधि प्रदान की जाती है। भारतीय चिकित्सा केन्द्रीय परिषद एवं केन्द्रीय होम्यापैथिक परिषद के मापदण्डों के अनुसार आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी महाविद्यालयों चिकित्सालयों में शिक्षण एवं प्रशिक्षण दिया जाता है। इन महाविद्यालयीन चिकित्सालयों आरा प्रदेश की जनता को चिकित्सा सेवायें प्रदान की जाती है। इन महाविद्यालयों में अध्यापकों एवं चिकित्सकों हेतु रिआरियेन्टेशन प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जाते है।
योजनाएं / नीतियाँ
1) मध्य प्रदेश अधिनियम, 19,1976 मध्य प्रदेश होम्योपैथी परिषद अधिनियम, 1976
2) 1971 मध्य प्रदेश अधिनियम संख्या 5
(3) मध्य प्रदेश आयुर्वेदिक यूनानी टाटा प्राकृतिक चिकित्सा व्यवसायी
अधिनियम 1970
आयुष विभाग के अंतर्गत संस्थान और संगठन
- पंडित के. एल. शर्मा आयुर्वेद कॉलेज और संस्थान
- मध्य प्रदेश होम्योपैथी राज्य परिषद, भोपाल
मध्य प्रदेश पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण विभाग
पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक संचालनालय के उद्देश्य :
1. पिछड़े वर्ग तथा अल्पसंख्यक कल्याण के हित में बनाये गये उपबन्धों तथा उन्हें उपलब्ध सुविधाओं के संदर्भ में अधिकारों को संरक्षण प्रदान करना ।
2. पिछड़े वर्ग तथा अल्पसंख्यकों के कल्याण और विकास के लिये योजना और नीतियां तैयार करना ।
3. पिछड़े वर्ग तथा अल्पसंख्यक वर्ग के व्यक्तियों को अधिकाधिक लाभ पहुंचाने की दृष्टि से विभिन्न शैक्षणिक, सामाजिक तथा आर्थिक विकास के कार्यक्रय तैयार करना ।
पिछड़े वर्ग तथा अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की प्राथमिकताऐं :
- पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक कल्याण वर्ग के लोगो को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने की दिशा में प्रभावी उपाय करना।
- पिछड़े वर्ग तथा अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक, सामाजिक तथा आर्थिक उत्थान के लिये विभिन्न योजनाओं का क्रियान्वयन
- पिछड़े पन का अहसास समाप्त कराने और आत्मविश्वास बढ़ाने के लिये स्वेच्छिक नवोत्थान की योजना का क्रियान्वयन करना ।
- पिछड़ा वर्ग के जाति प्रमाण प्राप्त करने की प्रक्रिया का सरलीकरण ।
- परम्परागत तकनीकी एवं औद्योगिक क्षेत्र में शिक्षा हेतु डिप्लोमा डिग्री का प्रावधान कर इन उपाधियों को हर क्षेत्र में मान्यता देना।
- सामाजिक पिछड़े पन को दूर करने के लिये प्रत्येक क्षेत्र में विशेष प्राथमिकता प्रदान करना ।
- आर्थिक रूप से कमजोर पिछड़े वर्ग के लोगो की कन्याओं के लिये जिला स्तर पर छात्रावास का निर्माण तथा उच्च शिक्षा के लिये विद्यार्थियों को शिक्षण सुविधायें एवं छात्रवृत्ति प्रदान करना ।
- मस्जिद, दरगाहों एवं गुरूद्वारा इत्यादि भूमि / भवनों का सर्वेक्षण कर अवैध कब्जों को हटाना।
- वक्फ संपत्तियों का उपयोग अल्पसंख्यकों के हित में करना।
- उर्दू भाषा के संरक्षण एवं संवर्धन के लिये उचित प्रयास करना तथा प्रदेश के साहित्यकारों का सम्मान करना।
पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक संचालनालय की योजनाएं व नीतियाँ :
1. मध्य प्रदेश में वर्तमान में कुल 91 जाति / उपजाति / वर्ग समूह पिछड़ा वर्ग घोषित है। प्रदेश में पिछड़ा वर्ग जातियों की अनुमानित आबादी 50.25 लाख है ।
2. अतः इन वर्गों के विकास कार्यक्रमों को राज्य सरकार द्वारा अपेक्षित महत्व दिया जा रहा है। शोषण से मुक्ति तथा अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने हेतु शिक्षा का अपना महत्व है। अतः शिक्षा विषयक योजनाएं विभाग की पहली प्राथमिकता है ।
3. राज्य की महिला नीति के अंतर्गत विभाग की राज्य एवं पोस्टमैट्रिक छात्रवृत्ति अंतर्गत लाभांवित विद्यार्थियों में लगभग 35 प्रतिशत छात्राएं लाभांवित होती है, जबकि प्रावीण्य छात्रवृत्ति तथा सामूहिक विवाह योजनाओं में पात्रतानुसार लाभांवितों में 50 प्रतिशत महिलाएं लाभांवित होती है।
4. आर्थिक विकास एवं स्वरोजगार संचालित करने हेतु वित्तीय वर्ष 1994-95 में म.प्र. पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम की स्थापना की गई है। निगम द्वारा पिछड़े वर्ग के पात्र हितग्राहियों को स्वरोजगार स्थापित करने हेतु निम्न ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराया जाता है ।
5. राज्य छात्रवृत्ति अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2006-07 में 18.57 लाख विद्यार्थियों को तथा पोस्टमैट्रिक छात्रवृत्ति अंतर्गत 2.56 लाख विद्यार्थियों को लाभांवित किया गया है.
6. राज्य शासन द्वारा संचालित योजनाऐं मध्यप्रदेश में पिछड़े वर्ग के
कल्याण हेतू संचालनालय पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक कल्याण विभाग द्वारा निम्नांकित
कार्यक्रम संचालित किए जा रहे है :
पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक संचालनालय की छात्रवृति योजना :
- राज्य छात्रवृति
- पोस्ट मेट्रिक छात्रवृति
- प्रावीण्य छात्रवृति
- छात्रावासों का संचालन
- दिल्ली छात्रगृह योजना,
- विद्यार्थी कल्याण योजना
- छात्रगृह योजना
- पिछड़े वर्ग के अभ्यर्थियों को परीक्षा पूर्व प्रशिक्षण योजना
- म.प्र. रामजी महाजन पिछड़ा वर्ग सेवा राज्य पुरस्कार योजना
- राज्य एवं संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में पिछड़ा वर्ग विद्यार्थियों को प्रोत्साहन योजना
- संभाग स्तर पर 100 सीटर बालक छात्रावासों का निर्माण
- जिला स्तरीय कन्या छात्रावास भवन निर्माण
- स्वरोजगार हेतु ऋण योजना
वन्या प्रकाशन विभाग
- वन्या प्रकाशन की स्थापना वर्ष 1980 में म.प्र. शासन, आदिम जाति कल्याण विभाग के उपक्रम के रूप में हुई है।
- वन्या का पंजीयन मध्यप्रदेश एवं सोसायटीज म.प्र. भोपाल द्वारा किया गया। मध्यप्रदेश के आदिवासियों के हित में आदिवासी संस्कृति से संबंधित श्रेष्ठ साहित्य को आदिवासी समाज में पहुँचाना।
वन्या प्रकाशन के उद्देश्य :
- नव साक्षर एवम् शिक्षित आदिवासियों के लिए श्रेष्ठ साहित्य की खरीदी, निर्माण प्रकाशन एवं वितरण ।
- प्रमुख आदिवासी बोलियों में श्रेष्ठ साहित्य एवं पाठ्य पुस्तकों का प्रकाशन ।
- आदिवासी क्षेत्रों एवं आदिवासी जन-जीवन से संबंधित मूल्यवान पुराने अभिलेखों का संपादन एवं प्रकाशन तथा पूर्व प्रकाशित दुर्लभ साहित्य का पुर्नप्रकाशन।
- आदिवासी क्षेत्रों में अनुसंधान सामग्री का प्रकाशन।
- भारतीय संस्कृति एवं महापुरूषों से संबंधित चुनी हुई सामग्री का प्रकाशन एवं इनके संबंध में पूर्व प्रकाशित सामग्री का मूल प्रकाशकों से अनुबंध कर प्रकाशन तथा आदिवासी क्षेत्रों में उनका वितरण ।
- अन्य प्रकाशकों के द्वारा प्रकाशित चुनी गई पुस्तकों को आदिवासी क्षेत्रों, छात्रों तथा संस्थाओं के लिए खरीद एवं वितरण तथा उनके विशेष संस्करणों का प्रकाशन ।
- आदिवासी संस्कृति का अनुरक्षण तथा उसके प्रसार के लिए आवश्यकतानुसार उपर्युक्त सामग्री का संकलन एवं प्रकाशन ।
संचालक मण्डल की सहमति से अन्य कल्याणकारी योजनाओं को कार्यान्वित करना, जिन से अनुसूचित जाति, आदिवासी छात्र/छात्राओं के शैक्षणिक स्तर का उन्नयन हो सके तथा इस निमित्त दान एवं आर्थिक सहयोग देना। जनजातीय जीवन, संस्कृति, समाज, परम्परा, लोकसंपदा एवं विभिन्न विषयों केन्द्रित बहुविध आयोजन करना तथा फिल्म, वीडियो, आडियो एवं अन्य पारंपरिक तथा आधुनिक तकनीको के माध्यम से कार्यक्रमों का निर्माण एवं प्रसारण करना।
मध्य प्रदेश शासन विमानन विभाग
- राज्य शासन के विमानन विभाग एवं विमानन संचालनालय का गठन दिनांक 01.06.1982 से किया गया है। विमानन संबंधी विषय केन्द्रीय अनुसूची का है परन्तु राज्य शासन के पास अपने स्वयं के विमान / हेलीकॉप्टर होने तथा प्रदेश में हवाई यातायात के विकास के कारण इस विभाग का निर्माण हुआ है.
- विमानन विभाग का कार्य अतिविशिष्ट व्यक्तियों की उड़ान व्यवस्था पर केंद्रित है। विभाग का आम जनता से कोई सीधा संबंध नहीं है। राज्य स्तरीय कार्यालय होने से स्थानांतरण नहीं होते हैं। स्टाफ सीमित होने से स्थापना संबंधी कोई उल्लेखनीय गतिविधि नहीं है। बजट का यथासंभव प्रयोग वित्तीय वर्ष में किया जाता है ।
राज्य शासन के विमानन विभाग के प्रमुख कार्य
1. अतिविशिष्ट व्यक्तियों के लिये शासकीय विमान/ हेलीकॉप्टर उपलब्ध कराना, शासन के विमान / हेलीकॉप्टर का अनुरक्षण तथा परिचालन ।
2. प्रदेश में वायु यातायात सेवाओं के विस्तार के लिये स्वयं के संसाधनों से हवाई पट्टियों का विकास कार्य ।
3. उड्डयन प्रशिक्षण के क्षेत्र में आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को छात्रवृत्तियाँ प्रदान करना ।
मध्य प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग
- संविधान के अनुच्छेद 243 (य क) में यह उपबन्ध है कि नगरपालिकाओं के लिये कराए जाने वाले सभी निर्वाचनों के लिए निर्वाचक नामावली तैयार कराने का और उन सभी निर्वाचनों के संचालन का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण संविधान के अनुच्छेद 243 (ट) के अन्तर्गत गठित राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होगा। अनुच्छेद 243- (ट) के अनुसार राज्य निर्वाचन आयेग में राज्यपाल द्वारा नियुक्त एक राज्य निर्वाचन आयुक्त होगा, राज्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से उसी रीति से और उन्हीं आधारों पर हटाया जा सकेगा जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के मामले में निर्धारित है। राज्य निर्वाचन आयुक्त की सेवा शर्तों में नियुक्ति के पश्चात् उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किए जायेंगे। यह भी उपबन्ध है कि जब राज्य निर्वाचन आयोग ऐसे अनुरोध करे तब उसे अपने कर्तव्यों के निर्वहन के लिए राज्यपाल द्वारा आवश्यक कर्मचारी उपलब्ध कराये जाएँगे।
- उक्त प्रावधानों के अन्तर्गत मध्यप्रदेश शासन सामान्य प्रशासन विभाग की अधिसूचना दिनांक 1 फरवरी, 1994 द्वारा राज्य निर्वाचन आयोग का गठन किया गया।
मध्य प्रदेश लोकायुक्त
- मध्यप्रदेश लोकायुक्त और उप-लोकायुक्त अधिनियम, 1981 (बाद में अधिनियम) के बाद मध्य प्रदेश में लोकायुक्त संगठन 1981 में अस्तित्व में आया था, जिसे राज्य विधानमंडल द्वारा अधिनियमित किया गया था। राज्य प्रशासनिक सुधार आयोग ने सिफारिश की है कि राज्य सतर्कता आयोग, जो भ्रष्टाचार को रोकने, जांचने के लिए एक साधन के रूप में काम कर रहा था, को एक संगठन द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए। लोकपाल की तर्ज पर एक स्वतंत्र संगठन स्थापित करने का प्रयास 70 के दशक के मध्य में शुरू हुआ था। सांविधिक आधार और शक्तियों के साथ राज्य सतर्कता आयोग की भूमिका और सीमाओं की जांच करते हुए, एआरसी ने पाया था कि संवैधानिक या इसकी स्थिति की सांविधिक मान्यता की अनुपस्थिति में, सतर्कता आयोग भ्रष्टाचार की जांच के लिए सरकार के एक विभाग के रूप में सर्वश्रेष्ठ कार्य कर सकता है।
- एआरसी के उपरोक्त अवलोकनों और भारत सरकार से प्राप्त विभिन्न सिफारिशों के आधार पर एम.पी. में एक बिल ले जाया गया था। विधानसभा द्वारा पारित होने के बाद राष्ट्रपति की सहमति के लिए वर्ष 1975 में विधान सभा। लेकिन केंद्र सरकार के स्तर पर कुछ पुनर्विचार के कारण बिल पुनर्विचार के लिए राज्य सरकार को वापस कर दिया गया था और इसे कुछ संशोधनों के साथ अप्रैल 1981 में पारित किया गया था।
- सितंबर 1981 में राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त करने के बाद पारित बिल अधिनियम बन गया। अधिनियम के तहत गठित लोकायुक्त संगठन ने सतर्कता आयोग को बदल दिया। सांविधिक आधार प्राप्त करने के बाद लोकायुक्त संगठन कार्यकारी प्रभाव से पूरी तरह मुक्त है। दरअसल, संगठन विधायिका द्वारा कार्यकारी पर नियंत्रण के साधन के रूप में कार्य करता है क्योंकि इसकी वार्षिक रिपोर्ट राज्य विधान सभा में रखी जाने और चर्चा करने के लिए राज्यपाल को जमा की जाती है।
मध्यप्रदेश कुटीर एवं ग्रामोद्योग विभाग
- महात्मा गांधी ने ग्राम स्वराज में गांव के कुटीर, लघु और कृषि उद्योग को शिक्षा के साथ जोड़ने पर जोर दिया था। उन्होंने स्थानीय संगठनों को योग्य एवं कुशल बनाने और पारम्परिक संसाधनों के अधिकाधिक विवेकपूर्ण उपयोग की भी बात की थी। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु मध्यप्रदेश शासन ने मई 1990 में ग्रामोद्योग विभाग की स्थापना की है। तब से विभाग निरंतर ग्रामोद्योगों के सुदृढ़ीकरण की दिशा में अग्रसर है। कुटीर एवं ग्रामोद्योग विभाग का नेतृत्व कुटीर एवं ग्रामोद्योग मंत्री द्वारा किया जाता है। प्रशासनिक स्तर पर अपर मुख्य सचिव, दो उप सचिव, एक अवर सचिव और दो अनुभाग अधिकारी की सेवाएं कुटीर एवं ग्रामोद्योग विभाग को उपलब्ध हैं।
कुटीर एवं ग्राम उद्योग विभाग के अंतर्गत विभाग
- हाथकरघा एवं हस्तशिल्प, मध्यप्रदेश, भोपाल
- रेशम संचालनालय, मध्यप्रदेश, भोपाल
विकास कार्यों की समुचित व्यवस्था के लिये इस विभाग के अंतर्गत तीन सार्वजनिक उपक्रम और दो राज्य स्तरीय सहकारी संघ कार्यरत हैं।
सार्वजनिक उपक्रम
- मध्यप्रदेश खादी तथा ग्रामोद्योग बोर्ड, भोपाल
- संत रविदास मध्यप्रदेश हस्तशिल्प एवं हाथकरघा विकास निगम, भोपाल
- मध्यप्रदेश माटी कला बोर्ड, भोपाल
राज्य स्तरीय सहकारी संघ
- मध्यप्रदेश राज्य हाथकरघा बुनकर सहकारी संघ मर्यादित जबलपुर ( परिसमापन अन्तर्गत)
- मध्यप्रदेश स्टेट सेरीकल्चर डेव्हलपमेंट एण्ड ट्रेडिंग को-आपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड, भोपाल।
कुटीर एवं ग्रामोद्योग विभाग के कार्य एवं गतिविधियाँ
कुटीर एवं ग्रामोद्योग विभाग की भूमिका मध्य प्रदेश के परंपरागत ग्रामोद्योगों के संवर्धन, समग्र विकास, रोजगार बढ़ाने, ग्रामोत्पादों की गुणवत्ता का विकास, कौशल उन्नयन, ग्रामोत्पादों को बाजारोन्मुखी बनाना एवं उनके विपणन को प्रोत्साहित करने से है।
विभाग की प्रमुख गतिविधियाँ निम्नानुसार हैं -
- ग्रामोद्योगों के माध्यम से स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराना।
- ग्रामोद्योग विकास में महिलाओं की भागीदारी को प्राथमिकता देते हुए ग्रामोद्योग स्थापित करने के लिए बुनियादी एवं कौशल उन्नयन प्रशिक्षण, उन्नत प्रौद्योगिकी, उच्चगुणवत्ता आदि के विकास के लिए सहयोग देना।
- क्लस्टर अप्रोच अपनाते हुए ग्रामोद्योग के विकास में निजी क्षेत्र, स्वसहायता समूहों / अशासकीय संस्थाओं / सहकारी संस्थाओं एवं अन्य स्टेकहोल्डर्स की भागीदारी को प्रोत्साहित करना ।
- कृषि उपज आधारित ग्रामीण उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहन देना।
- ग्रामोद्योग के उत्पादों के बारे में प्रदेश के भीतर एवं बाहर की मांग का आकलन कर, विपणन तंत्र को चिन्हित कर विकसित करना, गुणवत्ता के अनुरूप वस्तुओं के उत्पादन हेतु बेकवर्ड तथा फारवर्ड लिंकेज उपलब्ध कराना तथा उत्पादन के विपणन को प्रोत्साहित करना ।
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