मध्य प्रदेश में बांछड़ा और बणजारा (बंजारा) जाति | MP Banchara Aur Banjara Jati
मध्य प्रदेश में बांछड़ा और बणजारा (बंजारा) जाति
- भारत भी कैसा अद्भुत अनुपम और अलबेला देश है। ऐसा लगता है मानो सुन्दर सुवासित अनन्त रंगों वाली कोई स्वप्निल वाटिका हो या फिर सौ पंखुड़ियों वाला किसी सरोवर में खिला कमल हो। जिसकी मुस्कुराती पंखुड़ियाँ गलबाहियाँ लिए सुशोभित हों । एक ऐसा शतदल, मनोरम कमल जिसकी पंखुड़ियाँ पृथक-पृथक होकर भी एक नाल से जुड़ी हों। एक ही नाल से अपना जीवन स प्राप्त कर रही हों ।
- भिन्न-भिन्न धर्म, भिन्न-भिन्न आस्थाएँ, जातियाँ, वेश-भूषाएँ, बोलियाँ, रीति-रिवाज, खान-पान और अपनी-अपनी परम्पराएँ। बावजूद इन सब भिन्नताओं के भी शतदल कमल की पंखुड़ियों की भाँति एक ही भारतीय संस्कृति से सिंचित और पोषित ये सब धर्म-जातियाँ भिन्न होकर भी एक हैं।
- घुमक्कड़ जातियों की बात करें तो उनकी संख्या पचास से भी अधिक गिनी गई हैं। विमुक्त घुमक्कड़ एवं अर्ध घुमक्कड़ विभाग मध्यप्रदेश ने इन्हीं जातियों को पहले घुमक्कड़ कहा, फिर विमुक्त अर्थात् ये जातियाँ घुमक्कड़ भी हैं और विमुक्त भी।
- एक बाँछड़ा जाति और दूसरी बणजारा जाति दोनों जातियाँ पूर्व काल में घुमक्कड़ थीं, फिर विमुक्त हो गई और अब मुक्त हैं। दोनों में कुछ साम्यता भी है और बहुत कुछ असमानता भी।
मध्य प्रदेश में बाँछड़ा जाति
- बाँछड़ा जाति मुख्य रूप से दशपुर अंचल अर्थात् अविभाजित मंदसौर जिले में निवासरत है।
- दक्षिण में जावरा की सीमा तक, पूर्व में झालावाड़ की सीमा तक पश्चिम में राजस्थान की निम्बाहेड़ा की सीमा तक इनके डेरे स्थापित हैं।
- मान्यता यह है कि इनका मूल कंजर जाति से है। कंजर जाति से निकल कर इस जाति ने अपना पृथक से एक विचित्र समाज या जाति का स्वरूप निर्धारित कर लिया।
बाँछड़ा जाति का जीवन यापन
- पूर्वकाल में बाँछड़ा जाति घुमक्कड़ रही। एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थापित विस्थापित रही। इन्होंने अपने जीवन यापन के लिए प्रारंभिक अवस्था में नट कार्य भी किया।
- बाँस की कला प्रदर्शन के कारण लोगों ने इन्हें 'बाँस चड़ा' जाति के नाम से पुकारना शुरू किया। इससे पूर्व इनके पास अपनी कोई जातिगत पहचान नहीं थी । इसलिए इन्होंने यह संबोधन स्वीकार कर लिया । कुछ लोग इन्हें करनटों की शाखा मानते। इनके रिश्ते आज भी राजस्थान के कंजर समाज में होते हैं। इसी से कहा जा सकता है कियह जाति कंजर जाति की ही शाखा है।
- ऐसी ही एक जाति चिड़ीमार जो वन में पक्षियों का शिकार करती थी। नीमच और मनासा के मध्य में उनके डेरे थे । यह स्थान होल्कर और सिंधियाओं का संधि क्षेत्र था ।
- चिड़ीमार होल्कर राज्य में जाते थे। बाद में दोनों राज्यों ने उनके डेरे उखड़वा दिए और उन्हें अन्यत्र दूर किसी राज्य में शरण लेना पड़ी । ऐसी ही घटना इन बाँछड़ों के साथ भी घटी होगी ।
बाँछड़ों का रहन-सहन
- बाँछड़ों का रहन-सहन, कार्य व्यवहार, बोली-भाषा सब कुछ कंजरों से प्रभावित है। इस समुदाय में अपनी सत्यता साबित करने का एक अत्यंत त्रासदीय दण्ड विधान मैं यहाँ बता रहा हूँ। खेत हांकने का एक औजार जिसे 'करी' कहा जाता है। उसका एक लोह खण्ड जिसे पाशा कहा जाता है। उसे आग में तपाया जाता है। फिर परीक्षा देने वाली स्त्री के दोनों हथेलियों पर एक एक पत्ता पीपल का रख कर वह लोह खण्ड उसके हाथों पर रख दिया जाता है। यदि वह सत्य बोल रही होती है तो उसके हाथ नहीं जलेंगे और यदि वह झूठ बोल रही होगी तो हाथ जलेंगे। यह कठोर परीक्षा सभी स्त्रियों पर लागू होती है। इस कठोर परीक्षा के भय से समाज में मर्यादा स्थापित की जाती है ।
- बाँछड़ा समाज में पीपल को देवता के रूप में पूजा जाता है। सामाजिक स्तर पर पीपल देव की साक्षी मानी जाती है। नारसी माता इनकी कुल देवी मानी जाती है। शिक्षा में यह समाज अभी भी पिछड़ा हुआ है। कुछ लड़कियाँ पढ़ कर नर्स बनी हैं। कुछ शिक्षिकाएँ भी हैं। बावजूद इसके वे सामाजिक कुरीतियों और परम्पराओं से मुक्त नहीं हो पातीं कुछ वर्षों पूर्व इस समाज को विमुक्त जाति से हटा कर अनुसूचित जाति में दर्ज किया गया है। शिक्षा का अभाव इस समाज की कुरीतियों की सबसे बड़ी बाधा है।
मध्य प्रदेश में बणजारा (बंजारा) समाज
- मध्य प्रदेश में एक और समाज जिसे बंजारा समाज कहा जाता है । मालवा में यह समाज बामनिया बंजारा कहा जाता है। यह समाज भी किसी समय घुम्मक्कड़ ही रहा है।
- बणजारा शब्द का अर्थ ही घुम्मक्कड़ अर्थ में जाना जाता है, किन्तु इसका स्वाभाविक अर्थ है- 'बणजहारा' अर्थात् व्यापार करने वाला । कुछ लोग इन्हें बाम्यान घाटी से निष्कासित शाखा के कारण 'बामनिया' कहते हैं। इसका कोई पुष्ट प्रमाण उनके पास नहीं है। इतना तो कहा जा सकता है कि यह समाज किसी अन्य अंचल से आकर किसी समय मालवांचल में बसा होगा।
बंजारा शारीरिक संरचना
- राजस्थान में भी बामन्या बंजारों का बाहुल्य है । इनकी कद काठी, इनकी गौरवर्णीय चमड़ी, इनकी नीली आँखें इतना संकेत तो देती हैं कि यह समाज भारत में किसी समय बाहर से आया होगा । इनकी कद काठी तथा प्रकृति न आर्यों से मेल खाती है न द्रविड़ों से न मंगोलों से, हूड़ों या शकों से भी नहीं । यदि हम आर्यों के पूर्व पुरुषों का ध्यान लगाएँ, तब इन्हें उनके वर्ण के निकट अवश्य देख सकते हैं ।
बंजारा जाति के लोगों का पहनावा
- पुरुष वर्ग धोती-कमीज सिर पर बड़ा साफा तथा हाथ में लम्बी लट्ठ रखकर अपनी पृथक पहचान बनाता है। स्त्री वर्ग लगभग मालवी- राजस्थानी वेशभूषा धारण करती है। लूगड़ा घाघरा और कंचुकी बंजारा महिलाओं की वेशभूषा है ।
- वस्त्रों पर चमकीली तड़क भड़क होती है। हाथों में कलाई से कंधे तक चूड़ला, पैरों में कड़े, कमर में कंदोरा, भाल पर स्वर्ण टीका, कानों में झेले बंजारण की पहचान है। गले में स्वर्ण भूषण भी पहने जाते हैं। पुरुष वर्ग भी कानों में स्वर्ण बाली, गले में कंठा और हाथों में चाँदी का कड़ा विशेष रूप से पहनते हैं ।
- अब नये युवकों की पीड़ी में पैंट शर्ट पहनी जाने लगी है किन्तु शेष वेश-भूषा पूर्व जैसी है। बंजारा समाज विमुक्त जाति में मान्य है।
बंजारा जाति के लोगों की आर्थिक गतिविधियां
- बंजारा जाति के लोगों का घुम्मक्कड़ी जीवन थमा है। टांडों के स्थान पर पक्के मकान बने हैं।
- पूर्व काल में बंजारे बैलों पर नमक मिश्री लाद कर देश के इस पार से उस पार उत्तर दक्षिण, पूर्व पश्चिम व्यापार के लिए - जाते थे मिश्री और नमक का व्यापार खास था ।
- बैलों पर लदान के कारण बालदिया कहा जाता था। इनकी लदान बालद कही जाती थी । बणजारे अपने दल बल परिवार सहित व्यापार करने जाते थे। इन बणजारों ने पूरे देश को एक सेतुबंध की तरह एक सूत्र में बाँध दिया था। जहाँ जहाँ भी इनके पड़ाव होते थे। वहाँ ये लोग जल सुविधा हेतु तालाब खुदवाते थे ।
- पूरे मालवा राजस्थान में अनेक तालाब बणजारों द्वारा खोदे गए हैं । व्यापार बणजारों ने आज भी जारी रखा है। अब ये समाज अपनी लदान बैलों पर नहीं लादता। आवागमन के कई साधन उपलब्ध हैं।
- ये समाज कभी कम्बल बेचता है, कभी दरियाँ, चद्दरें बेचता, कभी कुर्सियाँ बेचता देश के किसी भी नगर, गाँव में मिल जाएगा। 2-3 महीनों तक यह बणजारा समाज बणज करने पूरे देश में आता-जाता रहता है ।
- इस समाज की महिलाएँ अधिक श्रमशील व बलिष्ठ होती हैं। जब पुरुष वर्ग बणज के लिए बाहर जाता है, तब ये महिलाएँ पूरी सावधानी से घर की रक्षा भी करती हैं और कृषि कार्य भी संभालती हैं ।
बणजारा समाज का सामाजिक न्याय
- बणजारा समाज का सामाजिक न्याय प्रसिद्ध है। जब भी कोई विवाद होता है, तब दोनों पक्ष आसपास के मुखिया (नायक) को आमंत्रित करते हैं। अच्छी तरह बहस करने के बाद सहमति से फैसला सुनाते हैं । पंचायत का फैसला सर्वमान्य होता है ।
साभार डॉ. पूरन सहगल Source of Content बांछड़ा और बणजारा
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