मध्यप्रदेश उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग की स्थापना एवं कार्य |मध्य प्रदेश राज्य कृषि विपणन बोर्ड | MP Horticulture GK
मध्यप्रदेश उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग की स्थापना एवं कार्य
मध्यप्रदेश उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग
- मध्यप्रदेश शासन द्वारा उद्यानिकी के क्षेत्र में प्रदेश को अग्रणी बनाने की दिशा में एवं कृषि पर आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये उद्यानिकी एवं प्रक्षेत्र वानिकी तथा मध्यप्रदेश कृषि उद्योग विकास निगम को मिलाकर, कृषि विभाग से पृथक कर, उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग का गठन किया गया है। जिसकी अधिसूचना दिनांक 22 दिसम्बर 2005 को जारी की गई।
- उद्यानिकी के क्षेत्र में विस्तार हेतु योजनाओं को आधुनिक युग की आवश्यकताओं के अनुरूप तीव्रगामी, समयानुकूल, रूचिकर आकर्षक तथा वृहद कृषक समूह एवं गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले खेतिहर एवं भूमिहीन मजदूरों के लिए उपयोगी बनाने की महती आवश्यकता है।
मध्यप्रदेश उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग की योजनाएं / नीतियाँ
1. राज्य सेक्टर योजना
2. राष्ट्रीय बागवानी मिशन
3. मध्यप्रदेश राज्य औषधीय पादप मिशन
4. लघु सिंचाई योजना (केन्द्र द्वारा संचालित )
5. राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आर के वी)
मध्य प्रदेश राज्य कृषि विपणन बोर्ड
- राष्ट्रीय कृषि आयोग की अनुशंसा के आधार पर मध्यप्रदेश राज्य कृषि विपणन बोर्ड के गठन का प्रावधान वर्ष 1973 में मण्डी अधिनियम में किया गया है। वर्ष 1973 से सतत रूप से प्रदेश की कृषि उपज मण्डियों के विकास के लिये मण्डी बोर्ड निम्न उद्देश्यों के लिये सतत प्रयत्नशील है।
- कृषि उत्पादन के विक्रेता को प्रतिस्पर्धात्मक मूल्य दिलाना सही तौल के लिये व्यवस्थायें करना एवं उत्पादक को उसी दिन मूल्य का भुगतान कराना।
- मण्डियों की स्थापना के लिये सर्वेक्षण, साईट प्लान्स एवं मास्टर प्लान का सम्पादन । मण्डी प्रांगणों एवं उपमण्डी प्रांगणों में सुचारु विपणन के लिये नियोजित तरीके से मूलभूत सुविधायें विकसित करना।
- वित्तीय रूप से कमजोर मण्डी समितियों को धन अथवा अनुदान देना ।
- कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिये कृषि आदानों को मण्डी प्रांगण में उपलब्ध कराना।
- मण्डी अधिनियम तथा उसके अधीन बनाये गये नियमों तथा उपविधियों के उपबंधों को कार्यान्वित करना, सुचारु एवं बेहतर विपणन व्यवस्था स्थापित करने के लिये अधिनियम एवं तदाधीन नियमों में आवश्यक संशोधन के लिये समय-समय पर राज्य शासन को सुझाव प्रस्तुत करना ।
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