मध्यप्रदेश में कुपोषण| मध्यप्रदेश में कुपोषण के कारण |MP Me Kuposhan
मध्यप्रदेश में कुपोषण,मध्यप्रदेश में कुपोषण के कारण
मध्यप्रदेश में कुपोषण
- कुपोषण से तात्पर्य उत्तम पोषण को विपरित दिशा से है। कुपोषण में भोजन का उचित रूप से पूर्ति नहीं होती। अर्थात पोषण संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य भोजन तत्वों कि प्राप्ति शरीर के लिए अनिवार्य है। यदि वे भोजन से उचित मात्राओं में न हो तो उसे कुपोषण कहते है।
- कुपोषण एक गम्भीर और व्यापक समस्या है जिसके गम्भीर परिणाम होते है जैसे प्रतिरोधक तंत्र कमजोर होना और बीमारी को और गम्भीर कर देना।
- प्रत्येक प्रकार के कुपोषण सूक्ष्म पोषण तत्वों जैसे विटामिन 15 आयरन, आयोडीन, जिंक, कौलिक एसिड कि कमी है। अच्छे पोषण का सबसे अच्छा उदाहरण लम्बे, मजबूत, स्वस्थ बच्चे जो स्कूल में खूब लीखते है तथा अनाज में अपना योगदान देते है।
- कुपोषण की स्थिति अधिकांशता प्रोटीन की कमी के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है त्रुटिपूर्व अर्थात जिसमे पोषण तत्व आवश्यकता से बहुत ही कम या अधिक मात्राओं में रहते है कुपोषण कहलाते हैं। कुपोषण का चक्र पीढ़ी दर पीढ़ी अपना प्रभाव डालता रहता है। जिससे बच्चों का विकास अच्छा नहीं हो पाता है अच्छा एवं पोषण युक्त भोजन न मिलना, विशेषकर बढ़ते हुए बच्चों में कुपोषण का कारण है।
मध्यप्रदेश में कुपोषण की स्थिति :
- म. प्र. में शिशु मात्र सुरक्षा के समक्ष कुपोषण एक बड़ी चुनौती के रूप में विद्यमान है। आज भी यह म.प्र. की एक जन स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है।
- भारत के सारे राज्यों में कुपोषण के मामले में म.प्र. का प्रथम स्थान है। इसी कारण भारत का इथोपिया कहा जाता है।
मध्यप्रदेश के कुपोषण संबंधी आंकड़े :
- प्रदेश में कुपोषण दर 64 प्रतिशत से बढकर 67 प्रतिशत हो गई है जबकि जनजाति क्षेत्र में यह 80 प्रतिशत है। जो यह सिद्ध करता है कि कुपोषण कम होने की बजाय बढ़ रहा है।
- म. प्र. 15-49 आयु वर्ग के 52.5 प्रतिशत किशोरी एवं महिलाएं तथा 25.5 प्रतिशत पुरूष एनीमिया से ग्रसित है।
- 0-3 वर्ष के बच्चों में 4 में से 3 बच्चे एनीमिया से ग्रसित है।
- 42 प्रतिशत बच्चे ठिगनें पन के शिकार है।
- कुपोषण के साथ - साथ प्रदेश शिशु मृत्यु दर भी शीर्ष स्थान पर है। प्रतिवर्ष बच्चे भूख से मरते है।
- कुपोषण का मुख्य कारण शिक्षा का अभाव, अधिक जनसंख्या, बाल विवाह इत्यादि कारण है।
मध्यप्रदेश में कुपोषण के कारण :
- राज्य में अधोसंरचनात्मक स्थिति का कमजोर होना
- लैंगिक असमानता
- राजनैतिक इच्छा शक्ति की कमी
- बाल विवाह
- बजट में कुपोषण की स्थिति का अभाव
- अधिक जनसंख्या
- अंधविश्वास एवं रूढ़िवादी विचारधारा का प्रभाव
- सरकार की जवाबदेहिता में कमी
- अशिक्षा एवं बेरोजगारी
- सामाजिक अर्थ व्यवस्था में वर्गभेद की अवधारणा
- जनजातीय व आदिवासी के प्रति सहयोगपूर्ण रवैया न होना ।
- आंगनवाडियों का विस्तार न होना
कुपोषण के लक्षण :
- जन्म के समय वजन कम
- बचपन में बाधित विकास
- विटामिन ए की कमी
- मोटापा
- अल्परक्तता
- बाल रूखे तथा चमक रहित होना
- बच्चे की उम्र एवं उंचाई के अनुरूप उसका वनज कम होना
- उसके हाथ पैर पतले और कमजोर होना और पेट बड़ा होना
- आयोडीन कमी संबंधी बीमारियां
- बच्चे को बार-बार संक्रमण होना और पेट बड़ा होना
- कार्य करने पर शीघ्र थकान होना
- मांसपेशियों का ढीला होना
कुपोषण एक जटिल समस्या है, जिसका मूल कारण है खाद्य असुरक्षा। अतः घरेलू खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए गरीब समर्थक नीतियां बनाई जाएँ, जो कुपोषण और भूख को समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध हों।
कुपोषण निवारण हेतु निम्न पहलुओं पर भी ध्यान देना आवश्यक है -
शिक्षा एवं जागरूकता का सृजन
- कुपोषण के निवारण तथा उचित पोषण हेतु जागरूता सृजन की आवश्यकता है। जैसे पोस्टर, सोशल मीडिया का उपयोग कैम्प, कठपुतली आदि से जागरूकता किया जा सकता है।
उपभोग को बढ़ावा देना -
- ऐसे समुदाय जो कुपोषण की समस्या से ग्रत्त है, पोषण स्थिति में सुधार करने के लिए स्वं उपभोग को बढावा देने पर बल दिया जाना चाहिए। लक्षित गांव की पोषण स्थिति में सुधार को प्रभावित लक्ष्यों में शामिल होना चाहिए।
गरीबी निवारण
- गरीबी एवं अनभिज्ञता के कारण बच्चों को अपर्याप्त मात्रा में भोजन दिया जाता है। जिसमें पानी की मात्रा अधिक होती है। यह भोजन बच्चों की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाता।
स्वयंसेवियों की नियुत्ति पहचान तथा उनका प्रशिक्षण
- कुपोषण लक्षित दोशों में स्वयंसेवक ग्राम स्वास्थ्य गाइड विद्यालयों के अध्यापक आदि के माध्यम से कुपोषण खत्म करने के प्रयास किए जाने चाहिए।
मध्यप्रदेश में कुपोषण कारण
1 अपर्याप्त भोजन
- शरीर को पोषण मिलने का प्रमुख माध्यम भोजन ही होता है। हर आयु वर्ग में अपनी अपनी कार्यशैली के अनुसार पोषण की अलग अलग मात्रा में जरूरत होती है। यदि भोजन में पोषण की मात्रा जरूरी स्तर से कम होती है और लगातार काफी समय तक ऐसा ही कम पोषक तत्वों वाला भोजन किया जाये तो कुपोषण, (MARASMUS) रोग होने की सम्भव जाती है।
2 गलत भोजन
- यदि स्वास्थय के नजरिये से देखा जाये तो कुछ भोज्य पदार्थ खाने में तो स्वादिष्ट होते हैं किंतु स्वास्थ्य के लिये बहुत हानिकारक होते हैं। इन भोज्य पदार्थों के सेवन से पेट तो अच्छे से भर जाता है किंतु इनमें पोषण की मात्रा बहुत कम होती है साथ ही ये पाचन तंत्र की क्रियाशीलता को भी खराब करते हैं। आजकल बहुतायत में सेवन किये जाने वाले जंक फूड, फास्ट फूड और इसी तरह के अन्य अटरम-शटरम पदार्थ खानें पर सिर्फ पेट को ही भरते है किंतु पोषण के नाम पर ये शून्य होते हैं। जिस कारण से इनको खाने वाला धीरे-धीरे से कुपोषण का रोगी बनता जाता है।
3 अनुपयुक्त भोजन
- विभिन्न आयुवर्ग कार्यशीलता जीवन की अलग-अलग अवस्थाओं और स्त्री एवं पुरुष भेद से अलग-अलग पोषक मात्रा में भोजन जरूरी होता है और विशिष्ट वर्ग में विशेष पोषक भोजन ही उपयोगी होता है। उदाहरण के लिये सामान्य स्त्री की तुलना में गर्भवती स्त्री को ज्यादा पोषण की आवश्यकता होती है। ऐसे ही 6 माह तक के बच्चों को दिया जाने वाला बेबीफूड 3 साल के बच्चे को जरूरी पोषण नही प्रदान कर सकता है। अतः अगर अवस्था के अनुसार सही पोषण ना प्राप्त हो तो कुपोषण की समस्या हो जाती है।
4 आर्थिक और सामाजिक कारण
- विश्व के अलग अलग भागों में मौजूद आर्थिक और सामाजिक कारण भी कुपोषण की समस्या का एक विशेष कारण हैं। अधिक पोषक तत्व सामान्यतः कुछ अधिक कीमत में मिलते हैं और आर्थिक रूप से कमजोर लोग बस पेट भर जाये इस चिंता में कम पोषण वाला भोजन खाकर कुछ पैसे बाकि जरूरतों के लिये बचा लेने की कोशिश में रहते हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न सामाजिक बंधन भी कुपोषण होने में विशेष भूमिका निभाते हैं।
5 जागरूकता की कमी
- जागरूकता की कमी एक ऐसा कारण है जो धनाड्य और अपेक्षाकृत निर्धन वर्ग में समान रूप से कुपोषण पैदा करता है। अधिकाँश महिलाओं को कच्चे चावल, चॉक, खड़िया, मुल्तानी मिट्टी आदि खाने की आदत होती है और ये सब खाने में उनको विशेष स्वाद आता है और ज्यादा टोकने और मना करने पर छुप हैं। क्योंकि उनको इस बात की जागरूकता ही नहीं होती कि ये सब चीजे खाने का उनका मन इसलिये करता है क्योकि वो कुपोषण की शिकार हैं।
6- अस्वच्छ वातावरण अस्वच्छ वातावरण
- कुपोषण की समस्या पैदा करने में छिपी हुयी भूमिका निभाता है। किसी जगह घर ऐसा भी होता है कि पोषण के बारे में बहुत जागरूक इन्सान उपरोक्त सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुये बहुत अच्छी और पोषक वस्तुएँ सेवन के लिये लाता है किंतु उसके आसपास का वातावरण इतना प्रदुषित होता है कि सेवन करने से पहले ही भोज्य पदार्थों के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। ऐसे पदार्थों का लम्बे समय तक सेवन करते रहने से पोषण की प्राप्ति नहीं हो पाती और शरीर में कुपोषण की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
7- नींद की कमी
- नींद की कमी भी निश्चित ही कुपोषण को पैदा करती है। सामान्य एक व्यक्ति को एक दिन-रात में आठ घण्टे की नींद चाहिये होती है और नींद पूरी ना होने से शरीर में वायु दोष की वृद्धि होती है और शरीर का मेटाबॉलिज़म गड़बड़ होकर कुपोषण पैदा करता है। कई बार कार्यस्थल पर ज्यादा काम करने के कारण व्यक्ति लम्बे समय तक पर्याप्त नींद नहीं ले पाता है और कार्य की हड़बड़ी में भोजन भी समुचित रूप से नहीं करता है। ऐसे लोग सब कुछ बहुत अच्छा होने के बावजूद खुद को कुपोषण का रोगी बना सकते हैं।
मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य की दुर्दशा के कारण
- जनसंख्या का अधिक होना
- संसाधनों की कमी
- स्टाफ एंव कर्मचारियों की कमी
- आधार भूत संरचना की कमी जैसे स्वास्थ्य केंद्रो की कमी स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकारी व्यय का नम होना
- तकनीकी एंव प्रशिक्षण का अभाव
- चिकित्सकों एंव अन्य स्टाफ व असंवेदनशील होना धार्मिक व सामाजिक रूढ़ियां
- राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव
- भ्रष्टाचार
स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार हेतु सुझाव
- सरकार द्वारा स्वास्थ्य क्षेत्र में व्यय को बढ़ावा देना ।
- स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना तथा उनमें आधुनिकता लाने का प्रयास किया जाना चाहिए।बीमारियों की रोकथाम व उपचार के लिए सुविधाएं, संसाधन एंव तकनीकी उपलब्ध कराना।
- नीतियों के समावेशन में यह ध्यान रहें कि खर्च रोगों के इलाज में कम तथा रोगों के रोकथाम में अधिक रहें हो।
- लोगों को शिक्षित व जागरूक करने हेतु प्रयास किए जाने चाहिए।
- स्वास्थ्य सेवाओं हेतु निजी क्षेत्र एंव स्वैच्छिक संगठनों की सहायता ली जानी चाहिए।
- सरकार को स्वास्थ्य संबंधी नीतियों एंव कार्यक्रमों की नए सिरें से समीक्षा करनी चाहिए।
- नई स्वास्थ्य नीति लागू की जानी चाहिए जिसमें स्वास्थ्य के अधिकार को कानूनी रूप प्रत्येक राज्य हेतु एक जैसी स्वास्थ्य संस्थाओं की स्थापना की जानी चाहिए।
- मेडिकल कॉलेज की और अधिक स्थापना की जानी चाहिए साथ ही साथ चिकित्सकीय स्टाफ को भी बढ़ाना चाहिए।
- चिकित्सकीय नैतिकता पर भी जोर ।
- दूर दराज के इलाकों एंव ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य कैंप लगाए
- जन्मदर, मृत्युदर को नियंत्रित किया जाना चाहिए।
- परिवार नियोजन के प्रति लोगों को जागरूक करना चाहिए।
- सरकार को सभी को संपूर्ण और मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना चाहिए।
- विशेष स्वास्थ्य कार्यक्रम लागू किए जाने चाहिए।
- नीति व योजना का सही ढंग से क्रियांवन न हो पाना
- गरीबी एवं लापरवाही
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