मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग का गठन, उद्देश्य एवं कार्य |मध्य प्रदेश राज्य मुख्य सूचना आयुक्त | MP Rajya Suchna Ayog Gathan Karya

मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग का गठन, उद्देश्य  एवं कार्य 

मध्य प्रदेश राज्य मुख्य सूचना आयुक्त 

मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग का गठन, उद्देश्य  एवं कार्य |मध्य प्रदेश राज्य मुख्य सूचना आयुक्त | MP Rajya Suchna Ayog Gathan Karya


 

मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग का गठन

  • अधिनियम की धारा 15 के अनुसार प्रत्येक राज्य सरकार को राज्य सूचना आयोग का गठन करना है। 
  • मध्य प्रदेश में राज्य सूचना आयोग का गठन राज्य सरकार की अधिसूचना क्रमांक एफ-11-11/05/1/9 दिनाक 22 अगस्त,  2005 द्वारा किया गया है। 
  • धारा 15 के अनुसार राज्य सूचना आयोग में राज्य मुख्य सूचना आयुक्त के अलावा राज्य सूचना आयुक्तों की संख्या जो कि 10 से अधिक नहीं होगीआवश्यकता अनुसार रखी जा सकेगी।

 

मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग के उद्देश्य 

  • इस अधिनियम का मूल मंतव्य यह है कि लोकतांत्रिक शासन में सरकार और सरकारी मशीनरी जनता के प्रति जवाबदेह हो तथा सरकारी मशीनरी के क्रियाकलाप में पारदर्शिता हो। अधिनियम के माध्यम से भारत के प्रत्येक नागरिक को लोक प्राधिकारियों के नियंत्रण में जो कोई भी सूचनाएं उनके कार्य-कलापों के संबंध में उपलब्ध होती हैं उन्हें देने की व्यवस्था की गई है । 
  • इसका उद्देश्य लोक प्राधिकारियों के कार्यकलापों में पारदर्शिता लाना है और जवाबदेह बनाना है । 
  • प्रत्येक कार्यालय को सूचना देने के लिए लोक सूचना अधिकारी का नामांकन किया जाना आवश्यक है। उनका दायित्व है कि वह सभी विषयों में किसी भी नागरिक के द्वारा आवेदन पर मांगी गई सूचना प्रदान करेंयदि सूचना अधिनियम की धारा 8(1) के अंतर्गत नहीं आती है तो अधिनियम में यह व्यवस्था भी की गई है कि सूचना चाहे जाने पर यदि लोक सूचना अधिकारी द्वारा समय पर संबंधित को जानकारी उपलब्ध नहीं करायी जाती है तो ऐसे अधिकारियों को केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सरकार द्वारा गठित राज्य सूचना आयोग द्वारा दंडित किया जा सकता है।

 

  • इस अधिनियम के माध्यम से नागरिकों को जो जानकारी कार्यालयां से प्राप्त नहीं होती थी उन्हें प्राप्त करने में उनको सुलभता होगी। यह अधिनियम जम्मू कश्मीर राज्य को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में दिनाँक 12 अक्टूबर 2005 से लागू हो चुका है।
  • केंद्र के सूचना का अधिकार कानून के तहत वर्तमान में मध्य प्रदेश के  राज्य मुख्य सूचना आयुक्त श्री ए.के शुक्ला हैं। 
  • । कानून सूचना आयुक्त पद का कार्यकाल पाचं वर्ष अथवा 65 वर्ष की आयु पूर्ण करना होता है। मध्यप्रदेश सरकार ने पांच सूचना आयुक्तों की नियुक्ति का फैसला लिया है। 
  • पुलिस महानिदेशक रहे सुरेंद्र सिंहआईएएस अफसर रहे अरुण पांडे और डीपी अहिरवारमुख्यमंत्री सचिवालय में पदस्थ आरके माथुर और पत्रकार विजय मनोहर तिवारी के नाम की सिफारिश राज्यपाल के पास भेजी गई है। 
  • सूचना का अधिकार कानून में उल्लेख है कि राज्य सरकार जितना उचित समझे उतनी संख्या में राज्य सूचना आयुक्त नियुक्त कर सकती है लेकिन इनकी कुल संख्या दस से ज्यादा नहीं हो सकेगी। 
  • प्रदेश में सूचना आयुक्त के 10 पद हैं। 
  • सूचना का अधिकार कानून के तहत सूचना आयुक्तों का कार्यकाल पांच साल और अधिकतम आयु 65 साल रखी गई है। एक बार नियुक्ति होने के बाद यदि किसी सूचना आयुक्त के खिलाफ कोई गंभीर शिकायत आती है तो सरकार राज्यपाल से जांच कराने की सिफारिश कर सकती है। मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश से जांच कराई जा सकती है। इसमें यदि आपत्ति प्रमाणित पाई जाती है तो सूचना आयुक्त को हटाया जा सकता है


मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग के बारे में विस्तृत जानकारी 

  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 22, 2005, भारत के राजपत्र असाधारण भाग-2 खण्ड-1, जून 21, 2005 विधि एवं न्याय मंत्रालय, पृष्ठ 1, लगायत 22 पर प्रकाशित हुआ है। इस अधिनियम का मूल मन्तव्य यह है कि लोकतांत्रिक शासन में सरकार और सरकारी मशीनरी जनता के प्रति जवाबदेह हो तथा सरकारी मशीनरी के क्रियाकलापों में पारदर्शिता हो। इस अधिनियम के माध्यम से ऐसी व्यवस्था की गई है जिसके अंतर्गत कोई भी नागरिक लोक प्राधिकारी के कार्यकलापों के सम्बन्ध में सूचना प्राप्त कर सके।
  • लोक प्राधिकारी की परिभाषा इस प्रकार की है जिससे न केवल प्रशासनिक तंत्र के सम्बन्ध में कोई भी नागरिक जानकारी प्राप्त कर सकता है बल्कि उन सभी निकायों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त कर सकता है जो लोक प्राधिकारी से नियंत्रित होते हैं या अधिक मात्रा में वित्तीय सहायता प्राप्त करते हैं। 
  • अधिनियम में यह व्यवस्था की गई है कि यदि लोक सूचना अधिकारी द्वारा सम्बन्धित को समय पर सूचना उपलब्ध नहीं कराई जाती है, तो ऐसे अधिकारियों को राज्य सरकार द्वारा गठित राज्य सूचना आयोग द्वारा दण्डित किया जा सकता है। 
  • सूचना का अधिकार अधिनियम सम्पूर्ण भारत में दिनांक 12 अक्टूबर, 2005 से लागू किया गया है।.
  • मध्यप्रदेश शासन द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 15 के अनुसार राज्य सूचना आयोग का गठन, अधिसूचना क्रमांक: एफ 11-11/05/1-9 दिनांक 22 अगस्त, 2005 द्वारा किया गया है।.

 

राज्य सूचना आयोग का गठन 

 

मध्यप्रदेश में राज्य सूचना आयोग का गठन राज्य सरकार की अधिसूचना क्रमांक एफ-11-11/05/1/9 दिनांक 22 अगस्त, 2005 द्वारा किया गया है। 

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 15 के अनुसार राज्य सूचना आयोग में राज्य मुख्य सूचना आयुक्त के अलावा राज्य सूचना आयुक्तों की संख्या जो कि 10 से अधिक नहीं होगी, आवश्यकता अनुसार रखी जा सकेगी। 


मध्य प्रदेश राज्य मुख्य सूचना आयुक्त के नाम और उनका कार्यकाल 

मध्य प्रदेश के प्रथम राज्य मुख्य सूचना आयुक्त श्री टी.एन.श्रीवास्तव 

  • मध्यप्रदेश में आयोग का गठन होने के उपरान्त राज्य मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर भारतीय प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी श्री टी.एन.श्रीवास्तव को नियुक्त किया गया था, जो मध्य प्रदेश के प्रथम मुख्य सूचना आयुक्त हुये जिन्होंने शपथ ग्रहण कर अपने पद का कार्यभार दिनांक 14 अक्टूबर, 2005 को ग्रहण किया। श्री श्रीवास्तव दिनांक 30.10.2006 को 65 वर्ष की आयु पूर्ण करने के पश्चात् सेवानिवृत्त हुए।

मध्य प्रदेश के द्वितीय राज्य मुख्य सूचना आयुक्त श्री पद्मपाणि तिवारी

  • तत्पश्चात् मध्यप्रदेश शासन द्वारा मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर मध्यप्रदेश के उच्च न्यायिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी तथा मध्यप्रदेश शासन के विधि एवं विधायी कार्य विभाग के प्रमुख सचिव श्री पद्मपाणि तिवारी को नियुक्त किया गया। उनके द्वारा दिनांक 26.03.2007 को शपथ ग्रहण कर आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर कार्यभार ग्रहण किया गया। 

मध्य प्रदेश के तीसरे राज्य सूचना आयुक्त श्री इकबाल अहमद 

  • मध्यप्रदेश शासन द्वारा माह फरवरी-2008 में भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी श्री दिनेश चन्द्र जुगरान, भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी श्री इकबाल अहमद एवं वरिष्ठ पत्रकार श्री महेश पाण्डे को आयोग में सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्त किया गया। इन तीनों द्वारा दिनांक 10.01.2008 को सूचना आयुक्त के पद पर कार्यभार ग्रहण किया गया।
  • श्री पी.पी. तिवारी दिनांक 25 मार्च, 2012 तक मुख्य सूचना आयुक्त रहे। 
  • सूचना आयुक्त के पद पर श्री दिनेश चन्द्र जुगरान दिनांक 24.07.2010 तक श्री महेश पाण्डे दिनांक 21.02.2012 तक तथा श्री इकबाल अहमद दिनांक 03.08.2012 तक रहे। 
  • श्री इकबाल अहमद आयोग के तीसरे मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्त हुए एवं उनका कार्यकाल दिनांक 04.08.2012 से 31.12.2012 तक रहा।


 मध्य प्रदेश चौथे मुख्य सूचना आयुक्त श्री के.डी. खान

  • मध्यप्रदेश शासन द्वारा आयोग के चौथे मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर मध्यप्रदेश के उच्च न्यायिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी तथा मध्यप्रदेश शासन के विधि एवं विधायी कार्य विभाग के प्रमुख सचिव श्री के.डी. खान को नियुक्त किया गया, वे दिनांक 11.02.2014 से 10.02.2019 तक मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर आसीन रहे। 
  • श्री खान के साथ ही राज्य शासन द्वारा राज्य सूचना आयुक्त के 05 पदों पर विधि क्षेत्र के श्री गोपालकृष्ण दण्डौतिया, पत्रकारिता क्षेत्र के श्री आत्मदीप एवं श्री जयकिशन शर्मा, भारतीय प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृत्त अधिकारी श्री हीरालाल त्रिवेदी तथा भारतीय पुलिस सेवा से सेवानिवृत्त अधिकारी श्री सुखराज सिंह को नियुक्त किया गया। 
  • श्री सुखराज सिंह के अतिरिक्त उक्त चारों सूचना आयुक्तों द्वारा दिनांक 11.02.2014 को आयोग में कार्यभार ग्रहण किया गया। श्री सुखराज सिंह द्वारा दिनांक 01.03.2014 को सूचना आयुक्त का पदभार ग्रहण किया गया। 
  • सूचना आयुक्त के पद पर श्री गोपालकृष्ण दण्डौतिया का कार्यकाल 23.08.2016 तक, श्री जयकिशन शर्मा का कार्यकाल 29.09.2016 तक, श्री हीरालाल त्रिवेदी का कार्यकाल दिनांक 28.02.2018 तक, श्री आत्मदीप का कार्यकाल दिनांक 10.02.2019 तक तथा श्री सुखराज सिंह का कार्यकाल दिनांक 28.02.2019 तक रहा। 
  • मुख्य सूचना आयुक्त श्री के.डी. खान के कालखण्ड में ही राज्य शासन द्वारा पाँच सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की गई; भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी श्री डी.पी. अहिरवार, भारतीय पुलिस सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी श्री सुरेन्द्र सिंह, भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी श्री राजकुमार माथुर, पत्रकारिता क्षेत्र के श्री विजय मनोहर तिवारी एवं भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी डॉ. अरुण कुमार पाण्डेय। इन पाँचों के द्वारा दिनांक 31.10.2018 को शपथ ग्रहण किया। 

मध्य प्रदेश पाँचवें मुख्य सूचना आयुक्त श्री अरविन्द कुमार शुक्ला

  • तत्पश्चात् मध्यप्रदेश शासन द्वारा आयोग के पाँचवें मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर माननीय उच्च न्यायालय, मध्यप्रदेश, जबलपुर के रजिस्ट्रार जनरल श्री अरविन्द कुमार शुक्ला को नियुक्त किया गया। श्री शुक्ला द्वारा दिनांक 30.03.2019 को शपथ ग्रहण कर राज्य मुख्य सूचना आयुक्त का पद ग्रहण किया गया, उनका कार्यकाल निरंतर है। 
  • साथ ही राज्य शासन द्वारा भारतीय वन सेवा के वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी श्री गोल्ला कृष्णमूर्ति तथा पत्रकारिता क्षेत्र के श्री राहुल सिंह को राज्य सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्त किया गया, जिनके द्वारा शपथ ग्रहण कर दिनांक 30.03.2019 को राज्य सूचना आयुक्त का पदभार ग्रहण किया गया, उनका कार्यकाल निरंतर है।


मुख्य सूचना आयुक्त / सूचना आयुक्त के नियुक्ति मानदंड एवं तरीका 

 

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 15(3) में विहित है कि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा निम्नलिखित से मिलकर बनी किसी समिति की सिफारिश पर की जाएगी:-

  • मुख्यमंत्री, जो समिति का अध्यक्ष होगा
  • विधान सभा में विपक्ष का नेता और
  • मुख्यमंत्री द्वारा नामनिर्देशित किया जाने वाला मंत्रिमंडल का सदस्य।

स्पष्टीकरण- शंकाओं को दूर करने के प्रयोजनों के लिए यह घोषित किया जाता है कि जहां विधान सभा में विपक्षी दल के नेता को उस रूप में मान्यता नहीं दी गई है, वहां विधान सभा में सरकार के विपक्षी एकल सबसे बड़े समूह के नेता को विपक्षी दल का नेता समझा जाएगा।

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 15(5)

  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 15(5) में विहित है कि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त विधि, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, समाजसेवा, प्रबंध, पत्रकारिता, जनसम्पर्क माध्यम या प्रशासन और शासन में व्यापक ज्ञान और अनुभव वाले समाज में प्रख्यात व्यक्ति होंगे।

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 15(6) 

  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 15(6) में विहित है कि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त या राज्य सूचना आयुक्त, यथास्थिति संसद् का सदस्य या किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के विधान-मंडल का सदस्य नहीं होगा या कोई अन्य लाभ का पद धारण नहीं करेगा या किसी राजनीतिक दल से संबद्ध नहीं होगा या कोई कारबार नहीं करेगा या कोई वृत्ति नहीं करेगा।


मुख्य सूचना आयुक्त की सेवा शर्त एवं पदावधि 

 सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 16 

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 16 में विहित है कि:-

  • 16(1) राज्य मुख्य सूचना आयुक्त उस तारीख से, जिसको वह अपना पद ग्रहण करता है, पाँच वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेगा और पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होगा: परन्तु कोई राज्य मुख्य सूचना आयुक्त पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त करने के पश्चात् उप रूप में पद धारण नहीं करेगा। परन्तु प्रत्येक राज्य सूचना आयुक्त, इस उपधारा के अधीन अपना पद रिक्त करने पर, धारा 15 की उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट रीति से राज्य मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्ति के लिए पात्र होगा। परन्तु यह और कि जहाँ राज्य सूचना आयुक्त की राज्य मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्ति की जाती है, वहाँ उसकी पदावधि राज्य सूचना आयुक्त और राज्य मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में कुल मिलाकर पाँच वर्ष से अधिक नहीं होगी।
  • 16(3) राज्य मुख्य सूचना आयुक्त अपना पद ग्रहण करने से पूर्व राज्यपाल या इस निमित्त उसके द्वारा नियुक्त किये गए किसी अन्य व्यक्ति के समक्ष पहली अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए उपवर्णित प्ररूप के अनुसार शपथ या प्रतिज्ञान लेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा।
  • 16(4) राज्य मुख्य सूचना आयुक्त, किसी भी समय, राज्यपाल को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपने पद का त्याग कर सकेगा: परन्तु राज्य मुख्य सूचना आयुक्त को धारा 17 में विनिर्दिष्ट रीति से हटाया जा सकेगा।
  • 16(5)(क) राज्य मुख्य सूचना आयुक्त को संदेय वेतन और भत्ते तथा सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें वही होंगी, जो किसी निर्वाचन आयुक्त की हैं; परन्तु यदि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त अपनी नियुक्ति के समय भारत सरकार के अधीन या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी पूर्व सेवा के सम्बन्ध में कोई पेंशन, अक्षमता या क्षति पेंशन से भिन्न, प्राप्त कर रहा है तो राज्य मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में सेवा के सम्बन्ध में उसके वेतन में से उस पेंशन की रकम को, जिसके अंतर्गत पेंशन का ऐसा भाग जिसे सारांशीकृत किया गया था और सेवानिवृत्ति उपदान के समतुल्य पेंशन को छोड़कर अन्य प्रकार के सेवानिवृत्ति फायदों के समतुल्य पेंशन भी है, कम कर दिया जाएगा: परन्तु यह और कि जहां राज्य मुख्य सूचना आयुक्त, अपनी नियुक्ति के समय, किसी केन्द्रीय अधिनियम या राज्य अधिनियम द्वारा या उसके अधीन स्थापित किसी निगम या केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन किसी सरकारी कंपनी में की गई किसी पूर्व सेवा के सम्बन्ध में सेवानिवृत्ति फायदे प्राप्त कर रहा है, वहां राज्य मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में सेवा के सम्बन्ध में उसके वेतन में से सेवानिवृत्ति के फायदों के समतुल्य पेंशन की रकम कम कर दी जाएगीः परन्तु यह और कि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन, भत्तों और सेवा की अन्य शर्तों में उनकी नियुक्ति के पश्चात् उनके लिए अलाभकारी रूप में परिवर्तन नहीं किया जाएगा।


सूचना आयुक्त की सेवा शर्त एवं पदावधि 

 

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 16 में विहित है कि:-

  • 16(2) प्रत्येक राज्य सूचना आयुक्त उस तारीख से, जिसको वह अपना पद ग्रहण करता है, पांच वर्ष की अवधि के लिए या पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, इनमें से जो भी पूर्वतर हो, पद धारण करेगा और राज्य सूचना आयुक्त के रूप में पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होगा:


  • 16(3) राज्य सूचना आयुक्त अपना पद ग्रहण करने से पूर्व राज्यपाल या इस निमित्त उसके द्वारा नियुक्त किये गए किसी अन्य व्यक्ति के समक्ष पहली अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए उपवर्णित प्ररूप के अनुसार शपथ या प्रतिज्ञान लेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा।


  • 16(4) राज्य सूचना आयुक्त, किसी भी समय, राज्यपाल को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपने पद का त्याग कर सकेगा: परन्तु राज्य सूचना आयुक्त को धारा 17 में विनिर्दिष्ट रीति से हटाया जा सकेगा।


  • 16(5)(ख) राज्य सूचना आयुक्त को संदेय वेतन और भत्ते तथा सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें वही होंगी, जो राज्य सरकार के मुख्य सचिव की हैं; परन्तु यदि राज्य सूचना आयुक्त अपनी नियुक्ति के समय भारत सरकार के अधीन या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी पूर्व सेवा के सम्बन्ध में कोई पेंशन, अक्षमता या क्षति पेंशन से भिन्न, प्राप्त कर रहा है तो राज्य सूचना आयुक्त के रूप में सेवा के सम्बन्ध में उसके वेतन में से उस पेंशन की रकम को, जिसके अंतर्गत पेंशन का ऐसा भाग जिसे सारांशीकृत किया गया था और सेवानिवृत्ति उपदान के समतुल्य पेंशन को छोड़कर अन्य प्रकार के सेवानिवृत्ति फायदों के समतुल्य पेंशन भी है, कम कर दिया जाएगा: परन्तु यह और कि जहाँ राज्य सूचना आयुक्त, अपनी नियुक्ति के समय, किसी केन्द्रीय अधिनियम या राज्य अधिनियम द्वारा या उसके अधीन स्थापित किसी निगम या केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन किसी सरकारी कंपनी में की गई किसी पूर्व सेवा के सम्बन्ध में सेवानिवृत्ति फायदे प्राप्त कर रहा है, वहां राज्य सूचना आयुक्त के रूप में सेवा के सम्बन्ध में उसके वेतन में से सेवानिवृत्ति के फायदों के समतुल्य पेंशन की रकम कम कर दी जाएगी: परन्तु यह और कि राज्य सूचना आयुक्त के वेतन, भत्तों और सेवा की अन्य शर्तों में उनकी नियुक्ति के पश्चात् उनके लिए अलाभकारी रूप में परिवर्तन नहीं किया जाएगा।

 
राज्य सूचना आयोग की शक्तियाँ और कृत्य
 

 

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 18, 19 एवं 20 में आयोग की शक्तियां एवं कृत्य विहित किये गए हैं:-

धारा-18 शिकायत:

(1) इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य सूचना आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह निम्नलिखित किसी ऐसे व्यक्ति से शिकायत प्राप्त करे और उसकी जांच करे -

 (क) जो, राज्य लोक सूचना अधिकारी को, इस कारण से अनुरोध प्रस्तुत करने में असमर्थ रहा है कि इस अधिनियम के अधीन ऐसे अधिकारी की नियुक्ति नहीं की गई है या, राज्य सहायक लोक सूचना अधिकारी ने इस अधिनियम के अधीन सूचना या अपील के लिए धारा 19 की उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट राज्य लोक सूचना अधिकारी अथवा ज्येष्ठ अधिकारी या, राज्य सूचना आयोग को उसके आवेदन को भेजने के लिए स्वीकार करने से इंकार कर दिया है

 (ख) जिसे इस अधिनियम के अधीन अनुरोध की गई कोई जानकारी तक पहुंच के लिए इंकार कर दिया गया है ;

 (ग) जिसे इस अधिनियम के अधीन विनिर्दिष्ट समय-सीमा के भीतर सूचना के लिए या सूचना तक पहुंच के लिए अनुरोध का उत्तर नहीं दिया गया है ;

(घ) जिससे ऐसी फीस की रकम का संदाय करने की अपेक्षा की गई है, जो वह अनुचित समझता है या समझती है ;

 (ङ) जो यह विश्वास करता है कि उसे इस अधिनियम के अधीन अपूर्ण, भ्रम में डालने वाली या मिथ्या सूचना दी गई है ; और

 (च) इस अधिनियम के अधीन अभिलेखों के लिए अनुरोध करने या उन तक पहुंच प्राप्त करने से सम्बन्धित किसी अन्य विषय के सम्बन्ध में ;

(2) जहां राज्य सूचना आयोग का यह समाधान हो जाता है कि उस विषय में जांच करने के लिए युक्तियुक्त आधार हैं, वहां वह उस सम्बन्ध में जांच आरंभ कर सकेगा।

(3) राज्य सूचना आयोग को, इस धारा के अधीन किसी मामले में जांच करते समय वही शक्तियां प्राप्त होंगी, जो निम्नलिखित मामलों के सम्बन्ध में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन किसी वाद का विचारण करते समय सिविल न्यायालय में निहित होती हैं, अर्थात्:-

 (क) किन्ही व्यक्तियों को समन करना और उन्हें उपस्थित कराना तथा शपथ पर मौखिक या लिखित साक्ष्य देने के लिए और दस्तावेज या चीजें पेश करने के लिए उनको विवश करना ;

 (ख) दस्तावेजों के प्रकटीकरण और निरीक्षण की अपेक्षा करना ;

(ग) शपथपत्र पर साक्ष्य को अभिग्रहण करना ;

(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रतियां मंगाना ;

(ङ) साक्षियों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिए समन जारी करना ; और

(च) कोई अन्य विषय, जो विहित किया जाए।

(4) यथास्थिति, संसद् या राज्य विधान-मण्डल के किसी अन्य अधिनियम में अंतर्विष्ट किसी असंगत बात के होते हुए भी, राज्य सूचना आयोग इस अधिनियम के अधीन किसी शिकायत की जांच करने के दौरान, ऐसे किसी अभिलेख की परीक्षा कर सकेगा, जिसे यह अधिनियम लागू होता है और जो लोक प्राधिकारी के नियंत्रण में है और उसके द्वारा ऐसे किसी अभिलेख को किन्हीं भी आधारों पर रोका नहीं जाएगा।

धारा-19 अपील:

(1) ऐसा कोई व्यक्ति, जिसे धारा 7 की उपधारा (1) या उपधारा (3) के खंड (क) में विनिर्दिष्ट समय के भीतर कोई विनिश्चय प्राप्त नहीं हुआ है या जो, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी के किसी विनिश्चय से व्यथित है, उस अवधि की समाप्ति से या ऐसे किसी विनिश्चय की प्राप्ति से तीस दिन के भीतर ऐसे अधिकारी को अपील कर सकेगा, जो प्रत्येक लोक प्राधिकरण में, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी की पंक्ति से ज्येष्ठ पंक्ति का है: परन्तु ऐसा अधिकारी, तीस दिन की अवधि की समाप्ति के पश्चात् अपील को ग्रहण कर सकेगा, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी समय पर अपील फाइल करने में पर्याप्त कारण से निवारित किया गया था।

(2) जहां अपील धारा 11 के अधीन, यथास्थिति, किसी केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या किसी राज्य लोक सूचना अधिकारी द्वारा पर व्यक्ति की सूचना प्रकट करने के लिए किये गए किसी आदेश के विरुद्ध की जाती है वहां सम्बन्धित पर व्यक्ति द्वारा अपील, उस आदेश की तारीख से तीस दिन के भीतर की जाएगी।

(3) उपधारा (1) के अधीन विनिश्चय के विरुद्ध दूसरी अपील उस तारीख से, जिसको विनिश्चय किया जाना चाहिए था या वास्तव में प्राप्त किया गया था, नब्बे दिन के भीतर केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग को होगी: परन्तु यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग नब्बे दिन की अवधि की समाप्ति के पश्चात् अपील को ग्रहण कर सकेगा, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी समय पर अपील फाइल करने से पर्याप्त कारण से निवारित किया गया था।

(4) यदि यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी का विनिश्चय, जिसके विरुद्ध अपील की गई है, पर व्यक्ति की सूचना से सम्बन्धित है तो, यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग उस पर व्यक्ति को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देगा।

(5) अपील सम्बन्धी किन्ही कार्यवाहियों में यह साबित करने का भार कि अनुरोध को अस्वीकार करना न्यायोचित था, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी पर, जिसने अनुरोध से इंकार किया था, होगा।

(6) उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन किसी अपील का निपटारा, लेखबद्ध किये जाने वाले कारणों से, अपील की प्राप्ति के तीस दिन के भीतर या ऐसी विस्तारित अवधि के भीतर, जो उसके फाइल किए जाने की तारीख से कुल पैंतालीस दिन से अधिक न हो, किया जाएगा।

(7) यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग का विनिश्चय आबद्धकर होगा।

(8) अपने विनिश्चय में, यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग को निम्नलिखित की शक्ति है:-

(क) लोक प्राधिकरण से ऐसे उपाय करने की अपेक्षा करना, जो इस अधिनियम के उपबंधों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हों, जिनके अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं:-

 (i) सूचना तक पहुंच उपलब्ध कराना, यदि विशिष्ट प्ररूप में ऐसा अनुरोध किया गया है ;

(ii) यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी, या राज्य लोक सूचना अधिकारी को नियुक्त करना ;

 (iii) कतिपय सूचना या सूचना के प्रवर्गों को प्रकाशित करना ;

(iv) अभिलेखों के अनुरक्षण, प्रबंध और विनाश से संबंधित अपनी पद्धतियों में आवश्यक परिवर्तन करना ;

(v) अपने अधिकारियों के लिए सूचना का अधिकार के संबंध में प्रशिक्षण के उपबंध को बढ़ाना ;

(vi) धारा 4 की उपधारा (1) के खंड (ख) के अनुसरण में अपनी एक वार्षिक रिपोर्ट उपलब्ध कराना ;

(ख) लोक प्राधिकारी से शिकायतकर्ता को, उसके द्वारा सहन की गई किसी हानि या अन्य नुकसान के लिए प्रतिपूरित की अपेक्षा करना ;

 (ग) इस अधिनियम के अधीन उपबंधित शास्तियों में से कोई शास्ति अधिरोपित करना।

(घ) आवेदन को नामंजूर करना।

(9) यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग शिकायतकर्ता और लोक प्राधिकारी को, अपने विनिश्चय की, जिसके अंतर्गत अपील का कोई अधिकार भी है, सूचना देगा।

(10) यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, अपील का विनिश्चय ऐसी प्रक्रिया के अनुसार करेगा, जो विहित की जाए।

धारा-20 शास्ति:

(1) जहां किसी शिकायत या अपील का विनिश्चय करते समय, यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग की यह राय है कि, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी ने, किसी युक्तियुक्त कारण के बिना सूचना के लिए, कोई आवेदन प्राप्त करने से इंकार किया है या धारा 7 की उपधारा (1) के अधीन विनिर्दिष्ट समय के भीतर सूचना नहीं दी है या असद्भावपूर्वक सूचना के लिए अनुरोध से इंकार किया है या जानबूझकर गलत, अपूर्ण या भ्रामक सूचना दी है या उस सूचना को नष्ट कर दिया है, जो अनुरोध का विषय थी या किसी रीति से सूचना देने में बाधा डाली है, तो वह ऐसे प्रत्येक दिन के लिए, जब तक आवेदन प्राप्त किया जाता है या सूचना दी जाती है, दो सौ पचास रुपये की शास्ति अधिरोपित करेगा, तथापि, ऐसी शास्ति की कुल रकम पच्चीस हजार रुपए से अधिक नहीं होगी: परन्तु, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी को, उस पर कोई शास्ति अधिरोपित किए जाने के पूर्व, सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिया जाएगा: परन्तु यह और कि यह साबित करने का भार कि उसने युक्तियुक्त रूप से और तत्परतापूर्वक कार्य किया है, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी पर होगा।

(2) जहां किसी शिकायत या अपील का विनिश्चय करते समय, यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग की यह राय है कि, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी, किसी युक्तियुक्त कारण के बिना और लगातार सूचना के लिए कोई आवेदन प्राप्त करने में असफल रहा है या उसने धारा 7 की उपधारा (1) के अधीन विनिर्दिष्ट समय के भीतर सूचना नहीं दी है या असद्भावपूर्वक सूचना के लिए अनुरोध से इंकार किया है या जानबूझकर गलत, अपूर्ण या भ्रामक सूचना दी है या ऐसी सूचना को नष्ट कर दिया है, जो अनुरोध का विषय थी या किसी रीति से सूचना देने में बाधा डाली है वहां वह, यथास्थिति, ऐसे केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध उसे लागू सेवा नियमों के अधीन अनुशासनिक कार्रवाई के लिए सिफारिश करेगा।

 

राज्य सूचना आयोग रिपोर्टिंग की कार्यप्रणाली 

 

धारा-25 मॉनीटर करना और रिपोर्ट करना:

(1) यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, प्रत्येक वर्ष के अंत के पश्चात्, यथासाध्यशीघ्रता से उस वर्ष के दौरान इस अधिनियम के उपबंधों के कार्यान्वयन के सम्बन्ध में एक रिपोर्ट तैयार करेगा और उसकी एक प्रति समुचित सरकार को भेजेगा।

(2) प्रत्येक मंत्रालय या विभाग, अपनी अधिकारिता के भीतर लोक प्राधिकारियों के सम्बन्ध में, ऐसी सूचना एकत्रित करेगा और उसे, यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग को उपलब्ध कराएगा, जो इस धारा के अधीन रिपोर्ट तैयार करने के लिए अपेक्षित है और इस धारा के प्रयोजनों के लिए, उस सूचना को देने तथा अभिलेख रखने से सम्बन्धित अपेक्षाओं का पालन करेगा।

(3) प्रत्येक रिपोर्ट में, उस वर्ष के सम्बन्ध में, जिससे रिपोर्ट सम्बन्धित है, निम्नलिखित के बारे में कथन होगा:-

(क) प्रत्येक लोक प्राधिकारी से किए गये अनुरोधों की संख्या ;

(ख) ऐसे विनिश्चयों की संख्या, जहां आवेदक अनुरोधों के अनुसरण में दस्तावेजों तक पहुंच के लिए हकदार नहीं थे, इस अधिनियम के वे उपबंध जिनके अधीन ये विनिश्चय किये गए थे और ऐसे समयों की संख्या, जब ऐसे उपबंधों का अवलंब लिया गया था ;

(ग) पुनर्विलोकन के लिए, यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग को निर्दिष्ट की गई अपीलों की संख्या, अपीलों की प्रकृति और अपीलों के निष्कर्ष ;

(घ) इस अधिनियम के प्रशासन के सम्बन्ध में किसी अधिकारी के विरुद्ध की गई अनुशासनिक कार्रवाई की विशिष्टियां ;

(ङ) इस अधिनियम के अधीन प्रत्येक लोक प्राधिकारी द्वारा एकत्रित की गई प्रभारों की रकम ;

(च) कोई ऐसे तथ्य, जो इस अधिनियम की भावना और आशय को प्रशासित और कार्यान्वित करने के लिए लोक प्राधिकारियों के किसी प्रयास को उपदर्शित करते हैं ;

(छ) सुधार के लिए सिफारिशें, जिनके अंतर्गत इस अधिनियम या अन्य विधान या सामान्य विधि के विकास, समुन्नति, आधुनिकीकरण, सुधार या संशोधन के लिए विशिष्ट लोक प्राधिकारियों के सम्बन्ध में सिफारिशें या सूचना तक पहुंच के अधिकार को प्रवर्तनशील बनाने से सुसंगत कोई अन्य विषय भी हैं।

(4) यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार प्रत्येक वर्ष के अंत के पश्चात् यथासाध्यशीघ्रता से, उपधारा (1) में निर्दिष्ट, यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग की रिपोर्ट की एक प्रति संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष या जहां राज्य विधान-मंडल के दो सदन हैं, वहां प्रत्येक सदन के समक्ष और जहां राज्य विधान-मंडल का एक सदन है वहां उस सदन के समक्ष रखवाएगी।

(5) यदि केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग को ऐसा प्रतीत होता है कि इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों का प्रयोग करने के सम्बन्ध में किसी लोक प्राधिकारी की पद्धति इस अधिनियम के उपबंधों या भावना के अनुरूप नहीं है तो वह प्राधिकारी को ऐसे उपाय विनिर्दिष्ट करते हुए, जो उसकी राय में ऐसी अनुरूपता को बढ़ाने के लिए किये जाने चाहिए, सिफारिश कर सकेगा।


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