मुस्लिम समाज में विवाह |ईसाई समाज में विवाह | Muslim evam Isai Samaj Me Vivah
मुस्लिम समाज में विवाह, ईसाई समाज में विवाह
मुस्लिम विवाह
- हिंदुओं के विपरीत मुस्लिमों में विवाह को एक संविदा (Contract) माना जाता है तथा 'कुरान' इसका मुख्य स्रोत है। सामान्यतः मुस्लिमों में विवाह के लिए 'निकाह' शब्द का प्रयोग किया जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ 'लिंगों का मेल' (Union of sexes ) है.
- इस्लामी वैधानिक मान्यताओं के अनुसार निकाह एक कानूनी संविदा है जिसका लक्ष्य पति-पत्नी के यौन संबंधों तथा उनकी संतान के संबंधों व उनके पारस्परिक अधिकारों तथा कर्त्तव्यों को वैधता प्रदान करना है।
- डी.एफ. मुल्ला (Principle of Muslim Law ) के अनुसार, 'निकाह को एक संविदा रूप में परिभाषित किया जाता है जिसका उद्देश्य संतानोत्पत्ति और संतान को वैधता प्रदान करना है।'
- मुस्लिम विवाह की संविदात्मक प्रकृति स्पष्ट होती है। मुस्लिम विवाह मुख्यतः एक समझौता है जिसका उद्देश्य यौनिक संबंधों और बच्चों के प्रजनन को कानूनी रूप देना है तथा समाज के हित में पति-पत्नी और उनसे उत्पन्न संतानों के अधिकारों व कर्त्तव्यों को निर्धारित करके सामाजिक जीवन का नियमन करना है।
मुस्लिम निकाह संविदा में सामान्यतः तीन विशेषताएं पायी जाती हैं-
(1) दोनों पक्षों की स्वतंत्र सहमति
(2)
(3)
मुस्लिम विवाह में ये तीनों बातें आ जाती है।
मुस्लिम विवाह की शर्तें
मुस्लिम विवाह की कुछ प्रमुख शर्तें हैं
- सही मस्तिष्क का व्यक्ति जिसकी उम्र 15 वर्ष से कम न हो।
- संरक्षक की देखरेख में नाबालिक विवाह भी हो सकता है।
- निकाह के लिए दोनों पक्ष स्वतंत्र हो ।
- काजी के सामने निकाह का कबूलनामा इकरार होता है।
- निकाह में दो गवाहों का होना आवश्यक है।
- गवाहों के मामले में दो स्त्रियां एक पुरुष के बराबर मानी गई हैं।
- विवाह के प्रतिफल के रूप में मेहर की राशि निश्चित कर ली जाती है या भुगतान कर दिया जाता है।
- दोनों पक्ष निषेध संबंधों के अंतर्गत न आते हों।
ईसाई समाज में विवाह
- हिंदुओं के समान ईसाइयों में भी विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है। एक पुरूष और एक स्त्री का पवित्र मिलन ही विवाह है। ईसाइयों में विवाह के दो स्वरूप होते हैं- धार्मिक विवाह तथा सिविल विवाह।
- धार्मिक विवाह में चर्च व पादरी की भूमिका प्रमुख होती है लेकिन अदालत से विवाह संपन्न होने के पश्चात भी पादरी का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
- 1872 के भारतीय ईसाइ विवाह अधिनियम के अनुसार, विवाह के लिए लड़के, लड़कियों की न्यूनतम आयु क्रमशः 16 वर्ष और 13 वर्ष होनी चाहिए ईसाइयों में अधिकांश विवाह धार्मिक विवाह ही होते हैं, जो गिरजाघर में संपन्न किये जाते हैं।
ईसाई विवाह के मुख्य उद्देश्य:- ईसाई विवाह के दो मुख्य उद्देश्य हैं
(1) यौन इच्छा की संतुष्टि
(2) संतानोत्पत्ति
ईसाइयों में विवाह-विच्छेद -
- ईसाइयों में विवाह विच्छेद को अच्छा नहीं माना जाता। फिर भी ईसाइयों में तलाक (विवाह-विच्छेद) 'भारतीय विवाह विच्छेद अधिनियम, 1869 (The Indian Divorce Act, 1869) द्वारा होता है। इस नियम का लाभ प्राप्त करने के लिए किसी एक पक्ष अर्थात् वर या वधू का ईसाई होना आवश्यक है।
इस अधिनियम के अनुसार विवाह-विच्छेद की निम्न शर्तें हैं
- पति ने ईसाई धर्म छोड़कर अन्य स्त्री के साथ विवाह कर लिया है।
- पति ने दूसरा विवाह कर लिया है।
- पति ने बलात्कार या सौदेबाजी या पशुओं के साथ मैथुन किया हो
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