कृषि क्या है , कृषि अर्थशास्त्र की प्रकृति , कृषि अर्थशास्त्र का क्षेत्र
कृषि क्या है ?
लम्बे समय तक कृषि फसलों के उत्पादन से सम्बन्धित था । जैसे-जैसे आर्थिक विकास की प्रक्रिया आगे बढ़ी अन्य बहुत से ब्यवसाय कृषि उत्पादन से जुड़े गये तथा ए कृषि के भाग बन गये । वर्तमान समय में कृषि में कृषि उत्पादन के अलावा फारेस्ट्री, वनीकरण तथा पशुपालन इत्यादि को शामिल किया जाता है । कृषि उत्पादों का विपणन, परिष्करण एवं वितरण अब कृषि ब्यवसाय के भाग समझे जाने लगे है। कुछ अन्य कृषि क्रियाएँ जैसे कृषि आगतों की पूर्ति, बीज, उर्वरक, ऋण, बीमा, इत्यादि भी प्रस्तावना कृषि ब्यवसाय के भाग माने जाते है ।
कृषि अर्थशास्त्र की प्रकृति Nature of Agricultural Economics
कृषि अर्थशास्त्र में सामान्य अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों का प्रयोग किया जाता है। प्रथम प्रश्न जो संबंधित है वह कृषि अर्थशास्त्र के क्षेत्र से है । कृषि अर्थशास्त्र के अधिकतर सिद्धान्त सामान्य अर्थशास्त्र से लिए गये है, तथा कृषि अर्थशास्त्र की मुख्य साखाएं सामान्य अर्थशास्त्र के समान है, लेकिन तब यह प्रश्न उठता है कि यदि सामान्य अर्थशास्त्र के सिद्धान्त कृषि अर्थशास्त्र के सिद्धान्त से अलग नही है तो कृषि अर्थशास्त्र को अलग से अध्ययन की आवश्यकता क्यों है। इसका कारण यह है कि कृषि अर्थशास्त्र में सामान्य अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों का प्रयोग प्रत्यक्ष रूप से नही करते हैं, बल्कि सामान्य अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों में सुधार करके, कृषि क्षेत्र की विशेषताओं तथा स्थितियों के अनुसार इसका प्रयोग करते है ।
क्या कृषि अर्थशास्त्र व्यावहारिक विज्ञान है
कृषि अर्थशास्त्र व्यावहारिक विज्ञान के नाते वस्तु स्थिति हमारे सम्मुख रखता है । यह कारण तथा परिणाम के संबंध को बताता है । उत्पादन के क्षेत्र में यह हमें बताता है कि किसी भूमि के टुकड़े पर ज्यों-ज्यों श्रम तथा पूँजी की इकाइयां बढ़ाते है त्यों-त्यों प्रत्येक अगली इकाई का उत्पादन घटता जाता है | इस प्रवृत्ति को घटते प्रतिफल का नियम कहते है ।
कुछ अर्थशास्त्री कृषि अर्थशास्त्री को व्यावहारिक विज्ञान कहते है। जैसा कि एस. बी. की परिभाषा से स्पष्ट है कि कृषि अर्थशास्त्र एक व्यावहारिक विज्ञान है तथा यह कृषि से संबंधित आर्थिक समस्याओं का पहचान करना, अध्ययन करना, समस्याओं का वर्गीकरण करना आदि समस्याओं के समाधान से संबंधित ग्रे के अनुसार कृषि अर्थशास्त्र एक विज्ञान है, जिसमें अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों एवं उपायों को कृषि उद्योग की विशेष दशाओं में प्रयोग करते जबकि ब्लैक इस दृष्टिकोण से सहमत नहीं है। जैसा कि हम जानते है कि विशुद्ध विज्ञान का प्रयोग विशेष स्थिति में होता है। उदाहरण के लिए इंजीनियरिंग एक व्यावहारिक विज्ञान है, यह सुझाव देता है कि भौतिक विज्ञान तथा अन्य विज्ञानों का प्रयोग एक निश्चित स्थिति में किस प्रकार किया जाता
2. कृषि अर्थशास्त्र विज्ञान तथा कला दोनों है
जैसा कि बताया जा चुका है कि कृषि अर्थशास्त्र को व्यावहारिक विज्ञान नही कहना चाहिए बल्कि यह विशुद्ध विज्ञान का एक विशेष रूप है। विज्ञान की तरह कृषि अर्थशास्त्र भी विभिन्न आर्थिक चरो के बींच कारण तथा परिणाम संबंध किस प्रकार का है। यदि यह संबंध पाया जाता है तो हम इसका प्रयोग हम विभिन्न आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए करते है। कृषि अर्थशास्त्र एक कला भी है। यह हमें उन उपायों तथा विधियों को बताता है जिन्हें अपनाकर कृषि उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि की जा सकती है। दूसरे हमें यह बताता है कि किसान को, महाजन के चंगुल से छुड़ाने के लिए सहकारी समितियों का गठन करना चाहिए । तीसरें कृषि मजदूरों की मजदूरी बढ़ाने के लिए यह कृषि मजदूरों की संघ बनाने की सलाह देता है । चौथे किसान को उसकी उपज का उचित मूल्य दिलवाने के लिए यह कृषि विपणन समितियों का गठन करने को कहता है
3कृषि अर्थशास्त्रआदर्श विज्ञान (Normative Science) :
कृषि अर्थशास्त्र हमारे सामने आदर्श भी प्रस्तुत करता है अर्थात यह अच्छे / बुरे तथा उचित / अनुचित का भी विचार करता है। यह इस प्रश्न का भी उत्तर देता है कि क्या होना चाहिए । उदाहरण के लिए कृषि अर्थशास्त्र बताता है कि भारत में अन्य देशों की अपेक्षा प्रति हेक्टेअर उत्पादन बहुत कम है अतः उसे बढ़ाना चाहिए । दूसरे कृषि श्रमिकों की मजदूरी व कार्यक्षमता भी अन्य देशों की अपेक्षा बहुत कम है जिसे बढ़ाना चाहिए । तीसरे भारत में कृषि मजदूरों के कार्य करने के घण्टे बहुत अधिक है जिन्हें सीमित करना चाहिए । चौथे महाजन किसान से ऊची ब्याज दर वसूल करते है जिसे कम करना चाहिए । इस प्रकार हम कह सकते है कि कृषि अर्थशास्त्र व्यावहारिक विज्ञान और आदर्श विज्ञान के साथ-साथ कला भी है।
कृषि अर्थशास्त्र का क्षेत्र Field of Agricultural economics
उपरोक्त परिभाषाएं कृषि अर्थशास्त्र के क्षेत्र को इंगित करती है। सामान्य अर्थशास्त्र के सिद्धान्त और कृषि अर्थशास्त्र के सिद्धान्त में मूल रूप से कोई अन्तर नहीं है। सामान्य अर्थशास्त्र के लगभग सभी यन्त्रों का प्रयोग कृषि अर्थशास्त्र में होता है। उत्पादन उपभोग, वितरण, विपणन, वित्त, योजना एवं नीति निर्माण आदि कृषि अर्थशास्त्र की मुख्य शाखाएं है।
कृषि क्षेत्र काब्यष्टिगत तथा समष्टिगत दृष्टि से भी वर्णन किया जाता है। कृषि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत कृषि समस्याएं तथा उनके समाधान के उपायों का अध्ययन किया जाता है।
प्रो. केस के अनुसार, "कृषि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत कार्य प्रबन्ध, विपणन, सहकारिता, भू धारण पद्धतियां, ग्रामीण कृषि साख, कृषि नीति, कृषि मूल्यों का विश्लेषण तथा इतिहास आदि को सम्मिलित किया जाता है। कृषि अर्थशास्त्र में हम न केवल आर्थिक तथ्यों का ही अध्ययन करते हैं, बल्कि कृषि समस्याओं के समाधान के लिए व्यावहारिक सुझाव भी प्रस्तुत करते है।
अन्य शब्दों में हम कह सकते है कि कृषि अर्थशास्त्र में किसान क्या पैदा करे, कितना पैदा करे, उसे कहां तथा किसके द्वारा बेचे आय को बढ़ाने के लिए कौन सा सहायक धंधा अपनाएं, अपनी पैदावार में किसकों कितना तथा किस प्रकार हिस्सा दे तथा किन-किन वस्तुओं का उपयोग करें आदि सभी समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। आज कृषि अर्थशास्त्र की विषय सामग्री ब्यक्तिगत स्तर पर कार्य संगठन एवं प्रबन्ध तक ब्यापक हो गयी है। दूसरे कृषि अर्थशास्त्र का विकास होने के साथ-साथ कृषि उत्पादन में नई-नई संभावनाएं पैदा हो गयी है।
कृषि अर्थशास्त्र किसानों के लिए इस नये ज्ञान को आसान बनाकर उनमें प्रेरणा का संचार करता है। तीसरे कृषि अर्थशास्त्र, कृषि अनुसंधान तथा तकनीकि विकास को प्रोत्साहन देता है। चौथे अन्तर्राष्ट्रीय ब्यापार में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान हो जाने के कारण कृषि उत्पादों का ब्यवस्थित ढंग से उत्पादन और वितरण करने के उद्देश्य से आजकल भिन्न राष्ट्रो के बीच सहयोग में वृद्धि हो रही है। अतः कृषि अर्थशास्त्र अन्तर्गर्राष्ट्रीय स्तर के समझौते करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
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